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Updated: 27 फरवरी, 2021 05:47 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
  @masahid.abbas
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हज़रत अली का नाम आपने बेशक सुना होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं हज़रत अली थे कौन?और ये कैसे कयामत तक की दुनिया के लिए एक मिसाल बन गए हैं. हज़रत अली के बारे में अगर आप नहीं जानते हैं तो आपको इसे पूरा पढ़ना चाहिए. हज़रत अली सिर्फ एक शख्स का नाम नहीं है, हज़रत अली महज एक किरदार का नाम नहीं है. हज़रत अली एक रास्ता हैं, हज़रत अली एक सीख हैं, हज़रत अली के बताए गए रास्ते और उनकी शासन की नीति को अगर पढ़ लिया जाए तो कोई भी हुकूमत हो या कोई भी सरकार हो वह कभी भी फेल नहीं हो सकती है. उसकी सत्ता पर कभी भी उंगली नहीं उठाई जा सकती है. हज़रत अली एक ऐसे बादशाह थे, एक ऐसे हाकिम थे जिनके कार्यकाल को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है. चौदह सौ साल पहले की हज़रत अली के शासन की चर्चा आज तक क्यों होती है इसका अंदाज़ा आप आगे पढ़कर आसानी के साथ लगा सकते हैं.

हज़रत अली सत्ता पर काबिज थे तभी उनकी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के दौरान हत्या कर दी गई थी. हज़रत अली को कब्र में दफ्न करने के बाद जब उनके बेटे घर वापिस आए तो उन्होंने किसी के रोने की आवाज़ सुनी. जब हज़रत अली के दोनों बेटे दौड़ कर उस शख्स के पास गए तो उसे नाबीना यानी की अंधा पाया. इन दोनों ने जब उस नाबीना शख्स से रोने की वजह पूछी तो उस शख्स ने बताया कि वह पिछले तीन दिन से भूखा है. अबतक उन्हें रोज़ एक भला इंसान खाना लाकर खिलाता था और उसकी सेवा किया करता था.

Ali, Prophet Mohammad, Islam, Musalman, King, Public, Saudi Arab, Education आज 1400 साल बाद भी हज़रत अली का शुमार अरब के सबसे बेहतरीन शासकों में है

जब इन दोनों ने उस अंधे इंसान से पूछा कि क्या आप उस भले इंसान का नाम बता सकते हो, तो उसने जवाब दिया कि मुझे उसका नाम तो नहीं मालूम है लेकिन वह खुद को मेरा भाई बताता था. यह दोनों बच्चे समझ गए कि वह भला इंसान कोई और नहीं बल्कि उनके शहीद पिता यानी कि हज़रत अली ही थे जो हर रोज़ इस इंसान को खाना लाकर खिलाते थे. एक बादशाह का इस तरह से अंधे शख्स को खाना खिलाना और वह भी बिना नाम ज़ाहिर किए, यह बताता है कि वह सिर्फ शासक नहीं था.

हज़रत अली ने साल 656 से साल 661 के बीच अरब पर हुकूमत की थी. आज के मिडिल ईस्ट के 70 प्रतिशत हिस्से पर तब अरब की हुकूमत चलती थी. हज़रत अली जोकि पैगंबर मोहम्मद साहब के दामाद भी थे उऩ्हें हज़रत मोहम्मद के इस दुनिया के जाने के बाद लगभग 24 साल के बाद सत्ता हासिल हुयी थी. हज़रत अली मुसलमानों के सबसे पवित्र स्थल यानी की खानए काबा में पैदा हुए थे. हज़रत अली ने अपने 4 साल के शासन में वह क्रीतिमान स्थापित किए जो किसी भी सरकार या बादशाह के लिए एक सीख है.

दुनिया के हर शासक को हज़रत अली की नीतियों से शिक्षा लेना चाहिए. आइये अब हज़रत अली के कार्यकाल के उन्हीं नीतियों पर चर्चा करते हैं. हज़रत अली ने अपने कार्यकाल में सबसे बड़ा कदम उठाते हुए शिक्षा पर बड़े काम किए. वह विज्ञान की बातें करते थे, वह गणित की बातें करते थे, और इनकी शिक्षाओं को वह हर घर तक पहुंचा देना चाहते थे. हर आखिरी इंसान तक को वह शिक्षित देखने का संकल्प ले चुके थे. हालांकि उस वक्त तक भी अरब में शिक्षा का स्तर बेहद खराब था और हज़रत अली से पहले किसी ने भी इस क्षेत्र में कोई बड़ा काम नहीं किया था.

हज़रत अली हुकूमत पर काबिज होने के बावजूद खेती किया करते थे इसलिए वह किसानों के हर दर्द को खूब भलि-भांति समझा करते थे. शायद इसीलिए उन्होंने अपने कार्यकाल के पहले ही साल में ये फरमान सुना डाला कि अगर मौसम की खराबी की वजह से किसी भी किसान की फसल खराब होती है तो उसे टैक्स से मुक्त रखा जाएगा और उसे सरकारी मदद मुहैया कराई जाएगी. हज़रत अली पैगंबर मोहम्मद साहब की मृत्यु के बाद करीब 24 साल तक जनता के बीच रहे इसलिए उन्हें हर वह कमी बखूब मालूम थी जो हुकूमत और आम इंसान के बीच खाई पैदा कर रही थी.

हज़रत अली ने सत्ता संभालते ही भ्रष्टाचार पर पहला वार किया और एक ही झटके में कई गवर्नरों की सेवा समाप्त करके नए गवर्नरों की नियुक्ति की और उन्हें स्पष्ट निर्देश दिया कि करदाताओं से कर यानी की टैक्स तभी वसूला जाए जब करदाता को सभी बुनियादी सुविधाएँ आसानी के साथ उपलब्ध की जा रही हों. हज़रत अली के इस फैसले के बाद ही अरब के तमाम हिस्सों में हज़रत अली की जय-जयकार होने लगी और विरोधियों को यहीं से हज़रत अली का सत्ता पर बने रहना चुभने लगा. हज़रत अली काफी तेज़ी के साथ आम नागरिकों तक उनकी ज़रूरत की चीज़ें मुहैया करा रहे थे.

हज़रत अली के तमाम फैसलों के बीच एक फैसला जो हज़रत अली की सोच को प्रकट करता है वो है न्यायालय से जुड़ा फैसला, दरअसल हज़रत अली ने अपने कार्यकाल के दौरान न्यायधीशों के वेतन में अच्छी खासी वृद्धि कर दी थी और इसके पीछे तर्क दिया था कि ज़्यादा वेतन होने के कारण न्यायधीष किसी भी लालच में नहीं पड़ेंगे और इमानदारी के साथ इंसाफ करेंगे. किसी के साथ भी नाइंसाफी नहीं हो सकेगी.

हज़रत अली खुद तो धार्मिक थे लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान हर धर्म को अपने धर्म को मानने की पूरी आज़ादी थी. हर धर्म के लोग पूरी आज़ादी के साथ अपने धर्म को न सिर्फ मानते थे बल्कि अपने पूरे रीति रिवाज के साथ अपना धार्मिक कार्य भी अंजाम दिया करते थे. हज़रत अली की तमाम नीतियों में से सबसे बेहतर नीति श्रमिक नीति को माना जाता है. हज़रत अली खुद भी कहा करते थे कि मज़दूर को उसकी मेहनत का पैसा उसका पसीना सूखने से पहले ही दे देना चाहिए.

हज़रत अली के कार्यकाल में जितने भी सरकारी मज़दूरी करते थे उन्हें पैसा हमेशा वक्त से पहले ही मिल जाया करता था. किसी भी मज़दूर को अपनी मज़दूरी के लिए चक्कर नहीं काटने होते थे. हज़रत अली की हुकूमत महज 4 साल कुछ महीने ही रही लेकिन इस दौरान उन्होंने हर मौके पर कहा कि उनकी हुकूमत में एक भी शख्स ऐसा नहीं है जो भूखा रहा हो. उनके इस दावे को कोई भी कभी भी झुठला नहीं पाया था. हज़रत अली दुनिया के हर शासक के लिए एक मिसाल हैं.

हज़रत अली के बारे में सबकुछ लिख पाना यहां पर संभव नहीं है लेकिन एक छोटी सी कोशिश से आपको हज़रत अली के व्यक्तित्व का अंदाज़ा हो जाए यही क्या कम है. हज़रत अली का मानना था कि अगर कोई चोर रोटी चुरा कर खाए तो चोर का हाथ काटने के बजाय बादशाह के हाथ काट दिए जाएं, क्योंकि ये बादशाह की नाकामी है कि लोग रोटी खाने के लिए चोरी करें.

हज़रत अली अपने शासनकाल में रात के अंधेरों में गरीब वर्ग व विधवा या अनाथ के घरों पर दस्तक देते थे और खुद की पीठ पर अनाज का बोरा लादकर उनतक पहुंचाते थे. ऐसा शासक होना आज के दौर में लगभग नामुमकिन सा दिखता है. हज़रत अली के शासन से बेतहाशा किस्म की सीख ली जा सकती है. हज़रत अली ने अलग अलग मौकों पर कई बातें कहीं, काफी बातें आज के दौर में सुनहरे कथनों के रूप में मौजूद हैं. कुछ मशहूर कथनों का ज़िक्र करना भी यहां पर ज़रूरी है. हज़रत अली कहते हैं -

इन्सान का अपने दुश्मन से बदला लेने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि वो अपनी खूबियों में इज़ाफा कर दे.

रिज्क (अनाज) के पीछे अपना ईमान कभी खराब मत करो” क्योंकि नसीब का रिज़्क इन्सान को ऐसे तलाश करता है जैसे मरने वाले को मौत.

गरीब वो है जिसका कोई दोस्त न हो.

कभी तुम दुसरों के लिए दिल से दुआ मांग कर देखो तुम्हें अपने लिए मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

किसी की बेबसी या दुख पर मत हंसो ये वक़्त तो तुम पर भी आ सकता है.

जिसको तुमसे सच्ची मोहब्बत होगी, वह तुमको बेकार और नाजायज़ कामों से रोकेगा.

किसी का ऐब (बुराई) तलाश करने वाले की मिसाल उस मक्खी के जैसी है जो सारा खूबसूरत जिस्म छोड सिर्फ़ ज़ख्म पर बैठती है.

सरकार का खज़ाना और सुविधाएं मेरे और मेरे परिवार के उपभोग के लिए नहीं हैं, मै बस इनका रखवाला हूं.

अगर किसी के बारे मे जानना चाहते हो तो पता करो के वह शख्स किसके साथ उठता बैठता है.

इल्म (शिक्षा) की वजह से दोस्तों में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) होता है दौलत की वजह से दुश्मनों में इज़ाफ़ा होता है.

झूठ बोलकर जीतने से बेहतर है सच बोलकर हार जाओ.खूबसूरत इंसान से मोहब्बत नहीं होती बल्कि जिस इंसान से मोहब्बत होती है वो खुबसुरत लगने लगता है.

हमेशा उस इंसान के करीब रहो जो तुम्हे खुश रखे लेकिन उस इंसान के और भी करीब रहो जो तुम्हारे बगैर खुश ना रह पाए.

जो तुम्हारी खामोशी से तुम्हारी तकलीफ का अंदाज़ा न कर सके उसके सामने ज़ुबान से इज़हार करना सिर्फ़ लफ्ज़ों को बरबाद करना है.

मुश्किलतरीन काम बेहतरीन लोगों के हिस्से में आते हैं. क्योंकि वो उसे हल करने की सलाहियत (क्षमता) रखते हैं.

कभी भी अपनी जिस्मानी त़ाकत और दौलत पर भरोसा ना करना, क्योंकि बीमारी और ग़रीबी आने मे देर नही लगती है.

हज़रत अली के इन सदेंशों को पढ़ने के बाद उनकी शख्सियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. हज़रत अली एक ऐसे इंसान हैं जिन्हें उस वक्त भी एक धड़े ने खुदा मान लिया था और आज भी एक गिरोह हज़रत अली को खुदा ही मानता है. हज़रत अली की कब्र आज ईराक के नजफ शहर में स्थित हैं जहां पर दुनिया के हर धर्म के लोग बड़ी संख्या में पहुंचा करते हैं.

हज़रत अली के लिए ही कई वैज्ञानिकों ने दावा किया है हज़रत अली के जीवन और उनके संदेशों को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि यह पूरी दुनिया हज़रत अली के सामने ही बनाई गई है. बिजली और हवाई जहाज जैसे टेक्नोलाजी की भविष्यवाणी हज़रत अली ने 1400 साल पहले ही कर दिया था. आज उनकी किताब नहजुल बलागा दुनिया की हर भाषा में उपलब्ध है जिसे पढ़ कर हज़रत अली के अन्य हिस्सों को भी आसानी के साथ पढ़ा जा सकता है.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास @masahid.abbas

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं

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