मनमर्जियां विवाद: भारत के 6 बड़े धर्म क्या कहते हैं नशे के बारे में
फिल्म मनमर्जियां में सिख किरदार के नशा करने की बात को लेकर विवाद शुरू हो गया है, कहा जा रहा है कि सिख सिगरेट नहीं पीते. पर भारत के 6 अहम धर्म आखिर क्या कहते हैं नशे को लेकर? क्या सिख धर्म में सिगरेट पीने की मनाही है, लेकिन शराब चलती है?
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अनुराग कश्यप की फिल्म मनमर्जियां रिलीज हो गई है और ये फिल्म असल में अपनी कहानी से ज्यादा अपने विवादों के लिए चर्चा में आ गई है. फिल्म के कुछ सीन को लेकर सिख धर्म के एक गुट ने कोर्ट में केस कर दिया. कहा गया कि इस फिल्म में सिख कैरेक्टर (तापसी और अभिषेक) को सिगरेट पीते हुए दिखाया है, एक सीन में अभिषेक गलत तरीके से पगड़ी उतारते हैं और एक सीन में तापसी गुरुद्वारे में शादी के लिए जा रही होती हैं और अपने एक्स ब्वॉयफ्रेंड के बारे में सोच रही होती हैं. ये तीन सीन फिल्म से काट दिए गए हैं. अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू इस बात पर अपने-अपने बयान भी दे चुके हैं. तापसी तो सोशल मीडिया पर बहुत ट्रोल भी हुई हैं और जवाब में उन्होंने ये तक कह दिया कि लोग गुरुद्वारे में जाने से पहले ड्रग टेस्ट क्यों नहीं करवा लेते.
मनमर्जियां फिल्म में सिख किरदारों के सिगरेट पीने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है
कुल मिलाकर तापसी का सिगरेट पीना यानी एक सिख का सिगरेट पीना गैर धार्मिक माना गया और इसी बात के इर्द-गिर्द पूरा विवाद हो गया. सोशल मीडिया पर भी लोग कह रहे हैं कि फिल्म ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है. तापसी ने इसके खिलाफ सोशल मीडिया पर बहस भी छेड़ दी.
I’m sure waheguru must have approved of drinking but not smoking. Otherwise why will such sensible and pure n pious people protest. https://t.co/1ZU8MvcMf0
— taapsee pannu (@taapsee) September 20, 2018
तापसी का कहना भी सही है कि सिख धर्म में शराब पीने का चलन तो कुछ ज्यादा ही दिखता है. पंजाबी फिल्मों से लेकर चौक-चौराहे तक इस बात के लिए फेमस हैं कि वो लोग शराब पीते हैं. साथ ही पंजाब की ड्रग्स प्रॉब्लम से सभी वाकिफ हैं, लेकिन क्या इस धर्म में सिर्फ सिगरेट ही बैन है और शराब नहीं? क्या कोई जानता है कि भारत के छह अहम धर्म क्या कहते हैं सिगरेट और शराब के बारे में और उनके नुमाइंदों ने कैसे अपने हिसाब से धर्म को तोड़ मरोड़ लिया है?
1. सिख धर्म-
सिख धर्म में कहीं भी सिगरेट के बारे में नहीं लिखा गया है. अगर देखा जाए तो किसी भी धर्म में विशेष तौर पर सिगरेट के बारे में नहीं लिखा गया है क्योंकि जब इन धर्मों की स्थापना हुई तब सिगरेट प्रचलन में ही नहीं थीं. हां, इस धर्म में ड्रग्स और शराब के बारे में साफतौर पर लिखा हुआ है. सिख धर्म में नशा वर्जित है. ड्रग्स और तम्बाकू सिखों के लिए वर्जित है. गांजा वैसे तो वर्जित माना गया है, लेकिन कुछ खास सिखों में ये रिवाज़ के तौर पर लिया जाता है.
सिख धर्म सिगरेट और शराब दोनों पीने के लिए मना करता है
श्री गुरूग्रंथ साहिब के पैराग्राफ 554 में लिखा है कि..
'शराब पीने से, इंसान की सोचने की शक्ति पर असर पड़ता है, पागलपन उसपर हावी होता है. वो अपने और पराए में फर्क नहीं कर पाता और अपने गुरू द्वारा नकार दिया जाता है.'
इसके अलावा, श्री गुरूग्रंथ साहिब के ही पैराग्राफ 1293 में लिखा गया है कि अगर शराब गंगा के पानी से भी बन रही है तो भी ये खराब ही है.
इस फैक्ट के बारे में यहां पढ़ें-
जिस सिख ने पंच 'ककार' यानी कंघी, केश, कटार, कड़ा और कंघा धारण किया है उसके लिए तो ये पाप करने के बराबर है. तो कुल मिलाकर सिख धर्म के लिए सिर्फ सिगरेट नहीं बल्कि शराब भी वर्जित है, लेकिन ये कहना सही होगा कि इसे अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ लिया गया है.
2. हिंदू धर्म-
हिंदू धर्म की अगर बात करें तो इस धर्म में भैरव को शराब भोग में चढ़ाई जाती है और काली माता की पूजा में भी कई अनुष्ठानों में शराब प्रसाद के तौर पर चढ़ती है और जहां तक सिगरेट का सवाल है तो सिगरेट नहीं, लेकिन भगवान शिव के भक्त चिलम पीते और भांग-धतूरे से नशा करते हुए दिखाई देते हैं. यह बहाना लेकर कि भगवान शिव भी इसका उपभोग करते हैं. पर अगर हिंदू मान्यताओं की बात की जाए तो तम्बाकू और अन्य नशे के पदार्थ तामसिक करार दिए गए हैं और साथ ही इन्हें हिंदू धर्म में व्यसन बोला जाता है. यानी हिंदुओं के लिए भी इसे लेने की मनाही है.
गीता के अध्याय 18 के श्लोक 39 में लिखा है-
यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मनः।
निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम्॥
यानी जो सुख भोगकाल में तथा परिणाम में भी आत्मा को मोहित करने वाला है, वह निद्रा, आलस्य और प्रमाद (नशा) से उत्पन्न सुख तामस कहा गया है.
इसके अलावा भी गीता में कई जगह नशा न करने की सलाह दी गई है.
हिंदू धर्म में भगवान को शराब चढ़ाने से लेकर बाबाओं के गांजा पीने तक सब कुछ देखा जा सकता है , लेकिन...
जो लोग शिव की बात करते हैं और कहते हैं कि शिव भी नशा करते हैं जैसे अघोरी बाबा आदि वो लोग दिन भर नशे में डूबे रहते हैं, लेकिन किसी भी श्लोक में या किसी भी ग्रंथ में ये नहीं कहा गया है कि शिव भक्तों को नशा करते रहना चाहिए. जहां तक शिव के शराब या नशा करने का तर्क दिया जाता है तो ये माना जाता है कि शिव ने सभी सांसारिक बुराइयों को अपने अंदर ले लिया था और इसीलिए उन्होंने जहर भी पिया था और वो नीलकंठ कहलाए थे. पर कोई भी शिव भक्त जहर पीता तो नहीं दिखता हां अपने हिसाब से ये लोग नशा जरूर शिव भक्ति के नाम पर कर लेते हैं.
हालांकि, आयुर्वेद में शराब, तम्बाकू और गांजे को उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन ये उन्हीं लोगों के लिए है जिन्हें इसकी जरूरत होगी.
3. इस्लाम धर्म..
जितने भी अब्राहमिक धर्म हैं जिनमें इस्लाम प्रमुख हैं उनमें शराब और अन्य ड्रग्स को लेकर साफ तौर पर लिखा गया है. अगर सिर्फ इस्लाम की बात करें तो कुरान में नशा हराम माना गया है. तम्बाकू और अन्य तरह के नशे के शरीर पर खराब असर के कारण ही इसे हराम माना गया है. इस्लाम धर्म ये भी कहता है कि शरीर भगवान का तोहफा है और इंसान को अपनी शख्सियत बचा कर रखनी चाहिए और ये भी वजह है कि नशे से दूर रहने को कहा गया है.
कुरान शरीफ की आयत 4:43 में कहा गया है-
नशा करने वालों की दुआ कुबूल नहीं होती है. “ऐ ईमान वालों (मुसलमानों)! अगर तुम नशे की हालत में हो तो नमाज मत पढ़ो जब तक तुम ये न जानते हो कि तुम क्या कह रहे हो…” कुरान शरीफ 4:43
कुरान शरीफ में कई चीज़ों को हराम माना गया है और उसमें से सबसे अहम नशा है. लेकिन यह भी उतना ही सही है कि बादशाहों की आरामगाह का शराब एक अनिवार्य होती थी.
4. ईसाई धर्म-
ईसाई धर्म की जहां तक बात की जाए तो ये भी अब्राहमिक धर्क है, लेकिन इस धर्म में वाइन को ईसा मसीह के खून से जोड़कर देखा जाता है. कहा जाता है कि मसीह पानी को छूकर वाइन बना देते थे. सिगरेट के बारे में इस धर्म में भी नहीं बताया गया क्योंकि इस धर्म की स्थापना जब हुई तो सिगरेट नहीं थी हालांकि, कट्टरपंथी कैथोलिक मानते हैं कि जीवन बिना तम्बाकू के होना चाहिए.
तम्बाकू का सेवन ईसाई धर्म में भी वर्जित है
जहां तक वाइन या शराब की बात है तो सन् 1800 तक ईसाई धर्म में शराब को रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा माना जाता था और यहां तक कि चर्च में मास (प्राथर्ना सभा) के दौरान भी ब्रेड और वाइन प्रसाद के रूप में दिया जाता है. ईसा मसीह के आखिरी भोजन 'The last supper' में भी वाइन के ग्लास की अहम भूमिका है और इसे शैलिस (chalice: एक बड़ा कटोरा या कप.) कहा जाता है. हालांकि, इसका ज्यादा सेवन एक सिन यानी पाप बताया गया है.
19वीं सदी में प्रोटेस्टेंट ईसाईयों ने इसे रोजमर्रा के सेवन को खत्म किया और इसे कभी-कभी लेने पर जोर दिया.
अगर बाइबल को देखा जाए तो वर्स (Verse) Timothy 5:23 में वाइन के बारे में लिखा है-
Stop drinking only water, and use a little wine because of your stomach and your frequent illnesses.
(सिर्फ पानी पीना बंद करो, थोड़ी सी वाइन भी लो क्योंकि ये तुम्हारी पेट की समस्या का हल करेगी.)
बाइबल वर्स Ecclesiastes 9:7 में लिखा है कि-
7 Go, eat your food with gladness, and drink your wine with a joyful heart, for God has already approved what you do.
(जाओ अपना खाना खुशी से खाओ, अपनी वाइन खुशदिली से पियो क्योंकि भगवान ने इसे पहले ही मंजूर किया है)
हालांकि, ईसाई धर्म में इसके ज्यादा पीने से मनाही है और एक तय मात्रा में ही इसे पीने को कहा गया है. जहां तक तम्बाकू का सवाल है तो इसे ईसाई धर्म में भी बैन किया गया है. अगर रोमन कैथोलिक चर्च की बात करें तो कुछ समय पहले पोप जॉन पॉल II की तरफ से आधिकारिक तौर पर तम्बाकू और इसकी बुराइयों के बारे में बताया.
5. जैन धर्म-
भारत का एक और अहम धर्म है जैन धर्म और इसमें नशे को मांसाहार के तौर पर देखा जाता है क्योंकि शराब को बनाने के लिए जीवाणुओं या माइक्रोब्स का इस्तेमाल होता है और इसलिए इसे मांसाहार माना जाता है. जैन धर्म में बताये सात महाव्यसनों में शराब भी एक व्यसन है, लत है, बुरी आदत है. दारू, ठर्रा, व्हिस्की, वोडका, ब्रांडी, बियर, पावा, सूरा, सोमरस,मद्य,मधु आदि शराब के ही भिन्न -भिन्न नाम है. जैन धर्म किसी ग्रंथ पर आधारित धर्म नहीं हैं, लेकिन इसमें मुनियों के उपदेशों को ही सर्वोपरी माना गया है. तत्त्वार्थ सूत्र और आगम नाम से मुनियों की वाणी को ग्रंथ का रूप दिया गया है. लेकिन जैन धर्म में भी नशे को गलत माना गया है.
6. बौद्ध धर्म-
अगर हम हिंदुस्तान के छठवें प्रमुख धर्म बौद्ध धर्म की बात करें तो इस धर्म में भी नशा करने को गलत बताया गया है. बौद्ध धर्म पंचशील के आधाप पर काम करता है जिसमें पांच चीजों की मनाही है. बौद्ध धर्म के ग्रंथ त्रिपिटक है जिसमें आचार संहिता का पालन करने की बातें बताई गई हैं. इसमें पांच चीज़ों की मनाही है. 1. हिंसा न करना, 2. चोरी न करना, 3. व्यभिचार न करना, 4. झूठ न बोलना, 5. नशा न करना.
अगर सिर्फ नशे की बात करें तो त्रिपिटक में लिखा है-
सुरा-मेरय-मज्ज-पमादठ्ठाना वेरमणी- सिक्खापदं समादयामि।।
यानी 'मैं कच्ची-पक्की शराब, नशीली वस्तुओं के प्रयोग से विरत रहने की शिक्षा लेता हूं.'
अगर देखा जाए तो हिंदुस्तान के प्रमुख 6 धर्म इस तरह की शिक्षा देते हैं और किसी भी धर्म में नशा करने की सीख नहीं दी गई है. अगर ईसाई धर्म में है भी तो भी इसे सिर्फ सीमित मात्रा में लेने की बात कही गई है. हां, अपने हिसाब से कोई धर्म को तोड़ मरोड़ ले तो बात अलग है.
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