राम के साथ रावण की भी पूजा! ऐसी विविधता भारत में ही संभव है...
हर साल की तरह दशहरा के दिन जब देश भर में रावण का पुतला फूंका जाता है बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशिया मनाई जाती हैं तो दिल्ली-नोएडा बॉर्डर से महज 15 किलोमीटर दूर एक गांव में मातम मनाया जाएगा.
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हर साल की तरह दशहरा के दिन जब देश भर में रावण का पुतला फूंका जाता है बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशिया मनाई जाती है तो दिल्ली-नोएडा बॉर्डर से महज 15 किलोमीटर दूर एक गांव में शोक का माहौल होता है. लोग मातम मनाते हैं. भारत की विशाल विविधता का ये एक और प्रमाण है. क्योंकि भारतीय समाज के एक बड़े तबके में रावण की छवि क्या है, ये बताने की जरूरत नहीं हैं.
बहरहाल, ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव का रुख कीजिए. माना जाता है कि इस गांव का नाम रावण के पिता विशरवा के नाम पर पड़ा है और इसी जगह रावण का जन्म हुआ था. यही कारण है कि जब पूरे देश में दशहरा की खुशियां होती हैं तो बिसरख में मातम छाया रहता है.
बिसरख गांव में रावण का मंदिर है और उसकी पूजा की जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण के पिता विशरवा दरअसल ब्रह्मा के पुत्र पुलस्तय के पुत्र थे. इस लिहाज से मानिए, तो रावण भगवान ब्रह्मा का परपोता हो गया. कथाओं में रावण के महापंडित होने की बात पहले ही कही जाती रही है.
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बिसरख गांव में रावण का मंदिर (साभार-डीएनए) |
कहानियों का सिलसिला यहीं नहीं खत्म होता. मध्य प्रदेश के विदिशा, मंदसौर, रतलाम, इंदौर जैसे जिलों में कुछ जगहों पर 10 सिर वाले रावण की पूजा की जाती है. मंदसौर का नाम ही रावण की पत्नी मंदोदरी के नाम पर है और माना जाता है कि ये रावण का ससुराल है. मध्य प्रदेश के ही कन्याकुब्जा ब्राह्मण समुदाय के लोग ये भी मानते हैं कि रावण उनका पूर्वज था. विदिशा जिले में तो रावणग्राम नाम का एक गांव है और यहां रहने वाले 90 फीसदी लोग ब्राह्मण हैं.
रावणग्राम में रावण |
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के कानपुर में रावण का मंदिर मौजूद है. ये मंदिर शहर के शिवााला इलाके में मौजूद भगवान शिव के मंदिर के ठीक बगल में है. रावण का ये मंदिर साल में केवल एक दिन दशहरा के मौके पर खुलता है. उस दिन हजारों लोग रावण को पूजने आते हैं. यहां पूजा करने के लिए आने वाले लोगों की नजर में रावण हिंदू ग्रंथों का महान ज्ञाता था.
कानपुर में रावण का मंदिर |
इसके अलावा तमिलनाडु सहित दक्षिण के कुछ राज्यों में भी रावण की पूजा की जाती है. आंध्र प्रदेश के काकिनाडा में रावण के मंदिर मौजूद हैं. यहां विशाल शिवलिंग मौजूद है. माना जाता है कि इसकी स्थापना रावण ने ही की थी. यहां ज्यादातर मछुआरा समाज के लोग रहते हैं और वे शिव तथा रावण दोनों की पूजा करते हैं.
काकिनाडा का रावण |
ये विलेन तो हीरो भी है!
एक ही समाज और अगर धर्म को भी जोड़ लीजिए, तो रावण को लेकर जो अलग-अलग मान्यताएं हमारे ही बीच मौजूद, वो वाकई दिलचस्प हैं. आप रावण को पढ़ना शुरू कीजिए तो कई तरह की कहानियां मिल जाएंगी जिसमें उसकी कभी पंडित, चिकित्सक और संगीत प्रेमी जैसी बनती है तो कभी दानवों जैसी.
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कुछ प्रचलित कहानियों के अनुसार जब भगवान राम ने लंका जाने के लिए पुल बनाने की सोची, तो उन्हें रामेश्वरम में सबसे पूजा कराना था. चूंकी उस समय धरती पर सबसे बड़ा पंडित रावण ही मौजूद था, तो राम ने उसे ही आमंत्रिक किया. रावण आया भी. उसने पूजा ही नहीं कराई बल्कि राम और वानर सेना को आशीर्वाद भी दिया. श्रीलंका की लोक कथाओं में तो ये भी कहा जाता है कि रावण ने लड़ाई शुरू करने के लिए राम को शुभ मुहूर्त भी बताया था.
एक लोक कथा तो ये भी है कि पूजा के लिए राम की पत्नी यानी सीता की मौजूदगी भी जरूरी थी. तब रावण ने अपने पुष्पक विमान से सीता को केवल पूजा में शामिल होने के लिए रामेश्वरम बुला लिया था. पूजा के बाद वह उन्हें अपने साथ वापस श्रीलंका ले गया. रावण को संगीत का प्रमी भी माना जाता है. कहा जाता है कि वह महान वीणा वादक था और उसने वीणा के कई स्वरूपों का इजाद भी किया. शिव तांडव की शुरुआत भी रावण से हुई! यही नहीं रावण को आर्युवेद का भी ज्ञान था और चिकित्सा के क्षेत्र में उसने कई नई चीजों की शुरुआत की.
दरअसल, ये केवल कहानियां नहीं हैं. सबूत हैं, एक समाज की महान विविधता की. राम, कृष्ण और दुर्गा के साथ रावण, दुर्योधन और महिषासुर तक को पूजे जाने का ऐसा उदाहरण शायद ही कहीं और देखने को मिले.
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