बहुत मिलती जुलती है राम और रावण की कुंडली, लेकिन...
राम और रावण का नाम 'रा' अक्षर से शुरु होता है. रा अक्षर का संबंध चित्रा नक्षत्र से है. ऐसे लोग संवेदनशील होते हैं. राम और रावण दोनों संवेदनशील थे.
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दशहरे के पावन मौके पर हर साल बुराई के प्रतीक रावण को जलाया जाता है और अच्छी के प्रतीक श्री राम के लंका पर विजय का जश्न मनाया जाता है. राम और रावण के बीच घोर युद्ध हुआ था. इस युद्ध को देखकर देव और दावन सब चकित थे. लेकिन राम और रावण दोनों में कुछ बाते समान थी दोनों की कुंडली में कुछ ग्रहों की स्थिति समान थी. जिसके कारण दोनों ही महाविद्वान और शिव के निकट थे. लेकिन कुछ ऐसी असमानता भी थी, जो एक को देवता तो दूसरे को दानव बना देती है. आइए राम और रावण कि कुंडली पर नजर डालते हैं.
दोनों कुंडली में समानता :
श्री राम की कुंडली -
श्री राम की कुंडली
लंकापति रावण की कुंडली -
रावण की कुंडली
1- श्री राम और रावण दोनों की कुडंली में लग्न में बृहस्पति यानि गुरु ग्रह बैठे हुए हैं, लग्न में बैठा गुरु ज्ञानवान और विद्वान बनाता है. ये गुण दोंनों में था. श्री राम और रावण दोनों ही ज्ञानी और विद्वान थे.
2- श्री राम और रावण दोनों की कुंडली में मंगल मकर राशि में बैठा हुआ है. ज्योतिष में मकर राशि में मंगल उच्च का माना जाता है और पराक्रम को बढ़ाने वाला और निडर बनाने वाला होता है. श्री राम और रावण दोनों ही पराक्रमी थे.
3- श्रीराम और रावण दोनों की कुंडली में शनि तुला राशि में है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तुला में शनि उच्च का माना जाता है.
4- श्रीराम के कुंडली में चंद्रमा कर्क राशि में है और रावण की कुंडली में भी चंद्रमा कर्क राशि में है, कर्क राशि चंद्रमा की स्वयं की राशि मानी जाती है.
श्री राम और रावण की कुंडली में इतनी समानता होने के बाद भी दोनों में शत्रुता हुई. और अंत में भगवान राम ने रावण का वध किया. आखिर इसके पीछे क्या है. आइए ग्रहों का खेल समझते हैं.
श्री राम की कुंडली का विश्लेषण
भगवान श्री राम की कर्क लग्न की कुंडली है लग्न का स्वामी चंद्रमा अपने ही घर में बैठा हुआ है, ये स्थिति व्यक्ति को न्यायप्रिय और क्षमाशील बनाती है. लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति यानि गुरु भी बैठे हुए हैं. कर्क में बृहस्पति को उच्च का माना जाता है. उच्च का गुरु व्यक्ति को भावुक और विद्वान और साधु स्वभाव प्रदान करता है. ऐसे लोग मर्यादित जीवन जीना पसंद करते हैं. भगवान राम में भी ऐसे गुण थे.
भगवान राम की कुंडली में सातवें घर में मंगल उच्च का है. सातवें घर का संबंध जीवनसाथी यानि पत्नी से भी होता है. ज्योतिष में सातवें घर का कारक शुक्र को माना जाता है. श्री काम की कुंडली में सातवें घर का कारक शुक्र है, जिस पर राहु की दृष्टि है और केतू साथ बैठा हुआ है. और सातवें घर में मंगल है. इन दोनों के प्रभाव की वजह से माता सीता से श्री राम को अलग होना पड़ा और वियोग भरा जीवन जीना पड़ा.
राम और रावणरावण की कुंडली का विश्लेषण
रावण की कुंडली में लग्न में सूर्य बैठा हुआ है. ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है. लग्न में सूर्य अपनी स्वराशि में होने से उसकी स्थिति और मजबूत है. ऐसे लोग राजा के समान जीवन जीते हैं और इनका अत्मविश्वास बहुत प्रबल होता है. लेकिन लग्न में बैठे सूर्य पर मंगल की दृष्टि होने के कारण व्यक्ति के अंदर अहंकार पैदा होता है और आगे चलकर परेशानी का कारण बन सकता है. और यही रावण के साथ हुआ उसका अहंकार उसके अंत का कारण बना.
रावण की कुंडली में दूसरे भाव में बुद्ध अपनी खुद की राशि में बैठा हुआ है. दूसरा भाव धन भाव माना जाता है. उसका स्वामी खुद वही बैठा है साथ ही बुध ग्यारवें भाव का स्वामी भी है जिसे ज्योतिष में लाभ स्थान कहा जाता है. यानि धनेश और लाभेश बुध के होने से रावण के पास खूब धन होना ही था. और हम सब जानते हैं की रावण के पास सोने की लंका थी.
रावण की कुंडली में गुरु ग्रह की एक राशि आठवें घर में यानि आठवें घर का स्वामी गुरु अपने घर से छठे स्थान लग्न में बैठा हुआ है. शनि पांचवें घर, नवें घर और बारवें घर में बैठे चंद्रमा को देख रहा है. चंद्रमा बारवें घर में यानि व्यय स्थान में बैठा है. ज्योतिष में चंद्रमा को स्त्री का प्रतीक माना जाता है. और स्त्री या यानि सीता जी के कारण राम और रावण का युद्ध हुआ. छठे घर को शत्रु का घर भी माना जाता है जहां मंगल उच्च का बैठा हुआ. ये ग्रहों का समीकरण रावण के विनाश का कारण बना. कुंडली के बारह भावों में कौन सा ग्रह कहां बैठा और क्या रोल अदा कर सकता है, ये हम सब श्रीराम और रावण की कुंडली से समझ सकते हैं.
इन सब के अलावा श्रीराम और रावण में कुछ और समानताएं थी. राम और रावण का नाम 'रा' अक्षर से शुरु होता है. रा अक्षर का संबंध चित्रा नक्षत्र से है. ऐसे लोग संवेदनशील होते हैं. राम और रावण दोनों संवेदनशील थे. दोनों के जीवन में एक और समानता थी- दोनों शिव भक्त थे. श्री राम ने युद्ध से पहले शिवजी की पूजा की थी. रामेश्वरम इसका प्रमाण है. रावण भी बहुत बड़ा शिवभक्त था. रावण की वजह से ही भगवान शिव का एक ज्योतिर्लिंग देवघर में बाबा बैद्यनाथ के नाम से आज भी प्रसिद्ध है.
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