Lucknow: शहर की नफ़ासत-नजाकत की गवाह तस्वीरें
न केवल उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) बल्कि भारत भर में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (Lucknow) अपने अदब, नजाकत और नफासत के लिए जाना जाता है. तो आइये कुछ तस्वीरों के जरिये देखते हैं कि कैसा लगता है लखनऊ.
-
Total Shares
किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल'
मगर ख़ुदा की क़सम लखनऊ ने लूट लिया.
बिस्मिल सईदी ने जो बात अपने इस शेर में कही है, मैंने उसे महसूस किया है. इमामबाड़ा, भूल भुलैया, बिग बेन जैसा घंटाघर, सनी देओल की गदर में दिखने वाला पक्का पुल और लामार्ट्स कॉलेज वाला लखनऊ (Lucknow). लखनऊ जहां गंज में घूमने की क्रिया को अलग नाम मिला है- गंजिंग. लखनऊ, जहां पान लगाए नहीं बनाए जाते हैं. लखनऊ, जहां गालियां भी तमीज़ में पगी होती हैं. लखनऊ, जहां इतर की गली भी मिलेगी और तेज़ाब वाली गली भी. जहां एक इलाके का नाम चौक है और जहां पुलिया मुंशी भी है और टेढ़ी भी. उस लखनऊ की कुछ तस्वीरें, मेरी नज़र से, आपकी नज़रों के लिए.
आसफ़ी इमामबाड़ा. इसे बड़ा इमामबाड़ा भी कहते हैं (फोटो : रजत सैन)
आसफ़ी इमामबाड़ा. इसे बड़ा इमामबाड़ा भी कहते हैं क्योंकि ये एक नवाब की दरियादिली की अलामत तो है ही, इसका अपना दिल भी बहुत बड़ा है. लखनऊ में पड़े भीषण सूखे के बाद अवाम को बेकारी से उबारने के लिए और रोजग़ार मुहैया करवाने के लिए इसकी तामीर शुरु हुई. कहा ये भी जाता है कि जो लोग कुछ नहीं कर पाते थे, उन्हे बन चुके हिस्से को तोड़ने का काम दिया जाता था और इसके बदले में मज़दूरी दी जाती थी. इमामबाड़े की तामीर को नवाबी दौर की मनरेगा स्कीम समझिए.
इमामबाड़ा हर साल लाखों पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करता है (फोटो : रजत सैन)
आसफ़ी इमामबाड़ा नवाब आसफुद्दौला ने बनवाया. जिनकी सख़ावत यानी दानशीलता आज तक मशहूर है. कहा तो यहां तक जाता था कि जिसको न दे मौला, उसको दे आसफुद्दौला. आसफुद्दौला ही वो नवाब थे जो अवध की राजधानी को फैज़ाबाद से लखनऊ लाए और इसे शहर-ए-अदब बना दिया.
इमामबाड़ा पुराने शहर के हुसैनाबाद इलाके में स्थित है (फोटो : रजत सैन)
आसफ़ी इमामबाड़ा हुसैनाबाद इलाके में स्थित है. ये पूरा इलाक़ा गुज़िश्ता लखनऊ की सबसे हसीन यादगार है. मोहर्रम के दौर में कोई यहां आए तो यूं लगेगा कि वो जाने आलम के लखनऊ में वापस आ गया है. मुनव्वर राना ने फरमाया है- मोहर्रम में हमारा लखनऊ ईरान लगता था, मदद मौला ! हुसैनाबाद रोता छोड़ आए हैं.
भूलभुलैया इमामबाड़े का एक अन्य आकर्षण है (फोटो : रजत सैन)
इसी इमामबाड़े के अंदर लखनऊ की मशहूर भूलभुलैया है. एक ऐसी जगह जहां एक रास्ते से इतने रास्ते निकलते हैं कि इंसान इसी में भटक कर रह जाता है. अपनी मंज़िल तक पहुंच ही नहीं पाता. ये इमामबाड़ा अपने विशाल हॉल के लिए बहुत मशहूर है.
आज भी लखनऊ शहर हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है (फोटो : रजत सैन)
राजा झाऊलाल और नवाब आसफुद्दौला की दोस्ती आज तक हिन्दू-मुस्लिम एकता की मज़बूत मिसाल है. अंग्रेज़ों ने जब झाऊलाल को आसफुद्दौला से अलग कर दिया और ज़बरदस्ती पटना भेज दिया तो आसफुद्दौला ने अपने दोस्त के ग़म में मौत को गले लगा लिया.
मीर तकी मीर भी लखनऊ आए और यहां आकर कई रचनाओं का निर्माण किया (फोटो : रजत सैन)
आसफुद्दौला के ज़माने में ही उर्दू के मशहूर शाइर मीर तक़ी मीर लखनऊ आए. नवाब आसफु्दौला को होली खेलते देख उन्होने एक मस्नवी लिखी. मीर लखनऊ में सिर्फ़ आसफुद्दौला से ही ख़ुश रहे.
मुहर्रम का त्योहार इमामबाड़े का एक अन्य आकर्षण है (फोटो :रजत सैन)
आसफ़ी इमामबाड़ा आज एक पर्यटन स्थल तो है ही साथ ही इमाम हुसैन में श्रद्धा रखने वालों के लिए एक पवित्र धार्मिक स्थल भी है. नमाज़, मजलिस, ताज़िएदारी समेत तमाम दीनी फ़रायज़ यहां निभाए जाते हैं.
आसिफी मस्जिद भी इसी इमामबाड़े में है जिसे बनने में 13 साल लगे (फोटो : रजत सैन)आसिफ़ी मस्जिद: नवाब आसफ़ुद्दौला ने इसे भी बनवाया. साल 1784 में इसकी शुरुआत हुई और इसे पूरा होने में 13 साल लगे. बड़ा इमामबाड़ा के परिसर में बनी इस मस्जिद की बड़ाई यूं होती है कि इसकी विशालकाय छत में एक भी बीम नहीं पड़ी है. गैर मुस्लिमों की एंट्री पर पाबंदी है.
बहुत वक़्त तक ये मस्जिद अंग्रेज़ों के कब्ज़े में रही. ये कब्ज़ा 1857 की क्रांति से शुरू हुआ था. यहां अंग्रेज़ी हुकूमत का गोला बारूद रखा जाता था. बताया जाता है कि क़रीब 25 सालों तक यहां अंग्रेज़ों ने नमाज़ नहीं होने दी थी.
आज इस मस्जिद का आलम ये है कि अखबारों में इस मस्जिद में पढ़ी जाने वाली नमाज़ की तस्वीर के बिना लखनऊ की ईद पूरी नहीं मानी जाती.
शहर की तमाम प्राचीन इमारतें शहर के इसी पुराने हिस्से में है (फोटो : रजत सैन)
हुसैनाबाद क्षेत्र में घंटाघर, सतखण्डा, शीशमहल, छोटा इमामबाड़ा और रूमी दरवाज़ा समेत तमाम ऐतिहासिक स्थल हैं लेकिन इन सबका सरताज बड़ा इमामबाड़ा ही है. मुनीर शिकोहाबादी और नाज़िर ख़य्यामी समेत तमाम शाइरों ने हुसैनाबाद के लिए शाइरी की है मगर बृजनारायण चकबस्त की बड़े इमामबाड़े पर कही गयी नज्म कालजयी है.
हुसैनाबाद क्लॉक टावर आज भी शहर की प्रमुख पहचान है (फोटो : रजत सैन)
हुसैनाबाद क्लॉक टॉवर: ‘पूरा लंडन ठुमकदा' में जिस बिग बेन क्लॉक टॉवर की बात की गयी है, ये उसी की तर्ज़ पर बनाया गया था. सितम्बर 2011 में मरम्मत के बाद 27 सालों में पहली बार इसके घंटे की आवाज़ गूंजी. 2019 में इसी क्लॉक टॉवर के पास लखनऊ का शाहीन बाग़ बना जहां ऐंटी-सीएए प्रदर्शन शुरू हुआ.
बिना रूमी दरवाजे के शायद ही लखनऊ की कल्पना की जा सके (फोटो : रजत सैन)
रूमी दरवाज़ा: एक वक़्त था जब ये 60 फ़ीट ऊंचा दरवाज़ा लखनऊ का एंट्री गेट हुआ करता था. नवाब आसफ़ुद्दौला 1784 में इसे बनवाया. अगर हुसैनाबाद का क्लॉक टॉवर लंडन के बिग बेन की तरह बना तो रूमी दरवाज़ा इस्तानबुल में मौजूद बाब-ए-हुमायूं की तर्ज़ पर बना. मगर इसका आर्किटेक्चर पूरी तरह से अवधी है. हाल फ़िलहाल में लखनऊ या आस-पास की कहानियां दिखाने वाली फ़िल्मों में रूमी दरवाज़ा हमेशा जगह पाता है.
पुराने शहर के बाद नए शहर की पहचान अम्बेडकर पार्क को माना जाता है (फोटो - रजत सैन)
अम्बेडकर पार्क नए लखनऊ की अलामत है. लखनऊ की मशहूर शाम की एक पुरनूर शमा ये भी है. इसकी ख़ूबसूरती लखनऊ के हुस्न को बढ़ा देती है. इसके आस पास उमड़ने वाला लोगों का हुजूम इसकी मकबूलियत की दास्तान कहता है.
अम्बेडकर पार्क नए और पुराने शहर के बीच संतुलन का काम करता है (फोटो : रजत सैन)
एक तरफ़ हुसैनाबाद और बड़ा इमामबाड़ा दूसरी तरफ़ अम्बेडकर पार्क और गोमती नगर. लखनऊ शहर असल में नए और पुराने का बेहतरीन संतुलन है. नई और पुरानी तहज़ीब कैसे एक दूसरे में घुल-मिल जाती है और शाना-ब-शाना शहर का किरदार निखारती है, इसे समझना हो तो लखनऊ बेहतरीन मिसाल है.
ये भी पढ़ें -
मोहर्रम पर ताज़िया बनाने की परंपरा का इतिहास, और क्यों कुछ मुसलमान इसके विरोधी हैं?
Chhath Puja करने का तरीका ही सभी त्योहारों में इसे अनूठा बनाता है
Janmashtami 2020: अपने भक्त के लिए भगवान कम दोस्त ज्यादा हैं श्री कृष्ण!
आपकी राय