तो क्या सिर्फ नरेंद्र मोदी पर भरोसा करता है शेयर बाजार?
गुजरात चुनाव नतीजों से एक बात और साबित हुई. मोदी के चेहरे पर मायूसी आई नहीं कि शेयर बाजार लाल होने लगता है. वहीं अगर मोदी मुस्कुरा दिए तो शेयर बाजार भी खिलखिला उठता है.
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चुनाव की वजह से पैदा हुई हलचल से शेयर बाजार में उथल-पुथल तो होती ही है. लेकिन बाजार नई ऊंचाइयां छुएगा या फिर गोता लगाएगा, इसके लिए निवेशक पीएम मोदी को एक टक देखते रहते हैं. चुनावी मौसम में मोदी के चेहरे पर मायूसी आई नहीं, कि शेयर बाजार लाल होने लगता है. वहीं अगर मोदी ने मुस्कुरा दिया तो शेयर बाजार भी खिलखिला उठता है. कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला है गुजरात चुनाव में भी. खास बात यह भी है कि शेयर बाजार को सिर्फ नरेंद्र मोदी पर भरोसा है. पिछले कई चुनावों में शेयर बाजार का पैटर्न यही दिखाता है. आइए जानते हैं कैसे शेयर बाजार सिर्फ नरेंद्र मोदी पर करता है भरोसा.
शेयर बाजार को सिर्फ नरेंद्र मोदी पर भरोसा है. पिछले कई चुनावों में शेयर बाजार का पैटर्न यही दिखाता है.
867 प्वाइंट गिरा बाजार
18 दिसंबर को सुबह शेयर बाजार खुलने से पहले ही 8 बजे से वोटों की गिनती शुरू हो गई. शुरुआती रुझान में कांग्रेस और भाजपा के बीच तगड़ी टक्कर देखने को मिली. शेयर बाजार खुलते-खुलते हालत ये हो गई कि कांग्रेस भाजपा से आगे हो गई. इसका सीधा असर शेयर बाजार पर दिखने लगा. इधर कांग्रेस की झोली में वोट गिरते जा रहे थे, उधर शेयर बाजार गोता लगा रहा था. हालत ये हो गई कि शेयर बाजार 867 प्वाइंट तक गिर गया.
लेकिन फिर शुरू हुआ भाजपा की बढ़त का सिलसिला और शेयर बाजार फिर से खिलखिला उठा. इसके बाद शेयर बाजार ने न सिर्फ अपने पुराने नुकसान की भरपाई की, बल्कि 139 अंकों की बढ़त के साथ 33,601 के स्तर पर जा पहुंचा. दिन भर के कारोबार में एक ऐसा भी समय आया जब शेयर बाजार ने करीब 338 अंकों की बढ़त बना ली. इससे एक बात तो साफ है कि शेयर बाजार को पीएम मोदी पर भरोसा है, ना कि राहुल गांधी पर. तभी तो कांग्रेस की जीत की ओर बढ़ते कदम से शेयर बाजार सहम गया था.
योगी पर शेयर बाजार को भरोसा नहीं
शेयर बाजार को मोदी ब्रिगेड के योगी आदित्यनाथ पर भी कुछ खास भरोसा नहीं है. तभी तो उनके शपथ लेने के बाद शेयर बाजार करीब 351 प्वाइंट गिरा था. इससे यह तो साफ है कि योगी आदित्यनाथ का यूपी का मुख्यमंत्री बनना शेयर बाजार को रास नहीं आया. शेयर बाजार पीएम मोदी के भरोसे था, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ का अंदाजा किसी ने नहीं लगाया था. इतना ही नहीं, चुनाव परिणाम के दिन (8 मार्च 2017) भी शेयर बाजार करीब 98 अंक गिर गया था. इससे यह भी साफ है कि शेयर बाजार सिर्फ पीएम मोदी पर भरोसा करता है, ना कि पूरी भाजपा पर.
केजरीवाल से मामूली खुशी मिली
10 फरवरी 2015 को दिल्ली चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे, जिसमें अरविंद केजरीवाल ने प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की थी. भाजपा को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं. चुनावी नतीजे देखने के बाद सेंसेक्स में 128 अंकों की बढ़त देखी गई. 14 फरवरी को केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह के बाद शेयर बाजार महज 41 अंक बढ़कर बंद हुआ. राजधानी होने के नाते भाजपा की हार के बावजूद शेयर बाजार में थोड़ी बढ़त दिखी थी. हालांकि, आने वाले कुछ दिनों में शेयर बाजार में गिरावट आ गई थी. अगर दिल्ली में भाजपा की सरकार बनती तो शेयर बाजार में एक अलग ही ट्रेंड देखने को मिल सकता था.
बिहार में भाजपा की हार से सहमा बाजार
8 नवंबर 2015 को बिहार चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे. शुरुआत में तो ऐसा लगा मानो शेयर बाजार को बिहार चुनाव के नतीजों से कोई मतलब ही ना हो. मनीकंट्रोल के आंकड़ों के अनुसार 6 नवंबर को जिस स्तर पर शेयर बाजार बंद हुआ था, 9 नवंबर को भी शेयर बाजार उसी स्तर 26,265 पर बंद हुआ. लेकिन अगले ही दिन यानी 10 नवंबर को शेयर बाजार 522 अंक गिर गया. पीएम मोदी के चेहरे पर लड़े गए चुनाव में भाजपा की हार का असर सीधा शेयर बाजार पर देखने को मिला.
उत्तराखंड का कोई असर नहीं
यूं तो उत्तराखंड के चुनाव में भी भाजपा ही जीती थी, लेकिन शेयर बाजार पर इसका कोई खास असर नहीं देखा गया. 11 मार्च 2017 को उत्तराखंड चुनाव का परिणाम घोषित हुआ. लेकिन शेयर बाजार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा कि उत्तराखंड में भाजपा जीती. 10 मार्च को शेयर बाजार जिस स्तर (28,946) पर बंद हुआ था, दो दिन की छुट्टी के बाद 13 मार्च को भी शेयर बाजार उसी स्तर पर बंद हुआ. उत्तराखंड चुनाव के दिन भाजपा की जीत के बावजूद शेयर बाजार में कोई खास बढ़त नहीं दिखने को एक बड़ा कारण यह भी था कि इसी दिन पंजाब चुनाव के नतीजे भी आए थे, जिसमें कांग्रेस जीती थी. वहीं दूसरी ओर कारोबारी नजरिए से भी पंजाब और उत्तराखंड कोई बड़ी भूमिका नहीं निभाते हैं.
इन 5 वाकयों से यह साफ है कि शेयर बाजार सिर्फ भाजपा और खास कर पीएम मोदी पर भरोसा करता है. जब जब भाजपा हारी है तो उसका शेयर बाजार पर नकारात्मक असर देखने को मिला. हालांकि, दिल्ली चुनाव में शेयर बाजार ने थोड़ा भरोसा केजरीवाल पर भी दिखाया. लेकिन गुजरात के कारोबारी हब होने का नतीजा ये हुआ कि शेयर बाजार में बड़ा उतार-चढ़ाव देखने को मिला.
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