Debate: चाय-पकौड़ा बेचना रोजगार लेकिन कितने लोग इसके लिए तैयार?
पीएम मोदी ने कहा कि अगर कोई पकौड़े वाला दिन भर में दो सौ रुपए कमाता है तो क्या यह रोजगार नहीं है? पीएम मोदी ने पकौड़े बेचने की तुलना रोजगार से की, जिसके चलते अब उन पर निशाना साधा जा रहा है.
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पीएम मोदी ने पकौड़े बेचने की तुलना रोजगार से क्या की, उन पर विरोधियों ने निशाना साधना शुरू कर दिया. पहले अखिलेश यादव ने पीएम के इस बयान पर निशाना साधा था और फिर अब हार्दिक पटेल ने भी पीएम को आड़े हाथों लिया है. आपको बता दें कि पीएम मोदी ने जी न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर कोई पकौड़े वाला ठेला लगाकर दिन भर में दो सौ रुपए कमाता है तो क्या यह रोजगार नहीं है? पीएम मोदी ने पकौड़े बेचने की तुलना रोजगार से की, जिसके चलते अब उन पर निशाना साधा जा रहा है.
क्या कहा है हार्दिक और अखिलेश यादव ने?
नरेंद्र मोदी के बयान पर तंज कसते हुए हार्दिक पटेल ने कहा है- ‘बेरोजगार युवा को पकौड़े का ठेला लगाने का सुझाव एक चायवाला ही दे सकता है, अर्थशास्त्री ऐसा सुझाव नहीं देता!'
इससे पहले यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने भी कहा था- 'एक मंत्री जी कह रहे हैं वानर से मानव बनने का डार्विन का सिद्धांत गलत है क्योंकि पूर्वजों ने ऐसे परिवर्तन को होते हुए देखने की बात कभी नहीं की है. ऐसा कहकर वो देश की सोच को शायद इतनी अवैज्ञानिक बनाना चाहते हैं कि लोग पकौड़ा तलने के रोजगार को नौकरी के समकक्ष मानने से इनकार न करें.'
एक मंत्री जी कह रहे हैं वानर से मानव बनने का डार्विन का सिद्धांत गलत है क्योंकि पूर्वजों ने ऐसे परिवतर्न को होते हुए देखने की बात कभी नहीं की है. ऐसा कहकर वो देश की सोच को शायद इतनी अवैज्ञानिक बनाना चाहते हैं कि लोग पकोड़ा तलने के रोजगार को नौकरी के समकक्ष मानने से इंकार न करें. pic.twitter.com/sYSh6b9Liw
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) January 21, 2018
ऐसे कामों से भी अर्थव्यवस्था को मिल रहा सहारा
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में 84.7 फीसदी नौकरियां सिर्फ इनफॉर्मल या असंगठित क्षेत्रों में हैं. इनमें एग्रिकल्चर को शामिल नहीं किया गया है. सबसे अधिक नौकरियां मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन और ट्रेड में हैं. देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में इनफॉर्मल, अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर और एग्रिकल्चर की बहुत बड़ी भूमिका है. इस तरह जिस इनफॉर्मल सेक्टर की ओर पीएम मोदी ने इशारा किया है, वह अर्थव्यवस्था में काफी अहम है.
'बेरोजगारी' को भी समझना जरूरी
श्रम सांख्यिकी ब्यूरो (Bureau of Labor Statistics) अनुसार बेरोजगार वह शख्स होता है जो काम करना चाहता है, लेकिन उसे कोई काम नहीं मिलता. उन लोगों को इस श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता जो नौकरी पाने या जीविका चलाने के लिए कोई कोशिश ही नहीं करते हैं. यानी अगर आपने कुछ कंपनियों या फैक्ट्रियों में नौकरी के लिए आवेदन नहीं किया है और खाली हाथ घर पर बैठे हैं तो आपके पास रोजगार तो नहीं ही है, साथ ही आप बेरोजगारों की श्रेणी में भी नहीं आते हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में बढ़कर 3.5 फीसदी बेरोजगारी रहने का अनुमान है, जो 2017 में 3.4 फीसदी थी.
प्रति व्यक्ति आय में हो चुकी है बढ़ोत्तरी
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 में देश में शुद्ध प्रति व्यक्ति आय 9.7 फीसदी बढ़कर 1,03,219 रुपए पर पहुंच गई है, जो 2015-16 में 94,130 रुपए थी. यानी हर महीने एक व्यक्ति औसतन 8600 रुपए कमाता है. आपको बता दें कि ये औसतन आंकड़ा है यानी कुछ लोग इससे अधिक भी कमाते होंगे और कुछ इससे कम भी. अब इस पैसे में उसका घर आसानी से चल पाता है या नहीं यह एक बड़ा सवाल है.
चाय-पकौड़े बेचना रोजगार तो है, लेकिन आखिर कितने लोग इसके लिए तैयार हैं? क्या सिर्फ डॉक्टर, इंजीनियर और अफसर बनने का सपने देखना और बेरोजगारी की मार झेलने के लिए खुद देश के लोग भी जिम्मेदार नहीं हैं? छोटे कामों को करने में शर्मिंदगी महसूस करना गलत नहीं है? पीएम मोदी ने पकौड़े बेचने, चाय बेचने और अखबार बेचने के काम को रोजगार तो बता दिया, लेकिन सवाल यह है कि क्या जब 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने रोजगार मुहैया कराने की बात कही थी तो उनका मतलब इन सबसे ही था? आप भी सोचिए इस सवाल पर और अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में लिखिए. बताइए कि चाय-पकौड़ा लगाना आपके हिसाब से रोजगार है या नहीं?
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