Lok sabha election के बारे में ऐसा क्या है जो सेंसेक्स को पता है और हमें नहीं?
राहुल गांधी दावा कर रहे हैं कि किसी भी हालत में नरेंद्र मोदी और बीजेपी चुनाव हार रहे हैं. वहीं दूसरी ओर सेंसेक्स 40,000 के नजदीक पहुंच गया है. शेयर बाजार के जानकार मानते हैं कि ऐसा मोदी सरकार की वापसी की संभावना के कारण है.
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राहुल गांधी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि उनके पास जो रिपोर्ट आ रही हैं उसके मुताबिक नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनने जा रहे हैं. और बीजेपी चुनाव हार रही है. टीवी डिबेट में भी कुछ पोलिटिकल पंडित बीजेपी की जीत की संभावना को लेकर संशय जताते हैं. लेकिन शेयर बाजार की चाल कुछ और ही कह रही है. दलाल स्ट्रीट पर तेजी का प्रतीक बुल मदमस्त होकर दौड़ रहा है.
पूरा देश चुनावी रंग में रंगा हुआ है लिहाजा चुनावी सरगर्मियां भारत के बाजार पर भी साफ तौर पर देखी जा सकती हैं और जो इशारे बाजार कर रहा है वो निश्चित तौर पर भाजपा को खुशी देने वाले हैं. भारत के बाजार से आ रही रिपोर्ट ये बताती हैं कि लोकसभा चुनावों में जीत भाजपा की ही होगी, हालांकि 2014 के चुनाव की तुलना में अंतर जरा कम होगा.
CVoter opinion poll के अनुसार, कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन की 141 सीटों की तुलना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला NDA गठबंधन 543 में से 264 सीटें जीत सकता है. टाइम्स नाउ के VMR opinion survey के मुताबिक लोकसभा चुनाव में एनडीए 283 सीटों पर जीत हासिल करने के लिए तैयार है. इस साल 11 अप्रैल से 19 मई तक 543 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहा है. जिसमें सरकार बनाने के लिए 272 सीटों की जरूरत होगी.
इस साल जब से चुनावों की घोषणा की गई यानी 10 मार्च के बाद से ही सेंसेक्स और निफ्टी ने शानदार बढ़त हासिल की है. 10 मार्च से अब तक सेंसेक्स में दो हजार अंक और निफ्टी में करीब 600 अंक की तेजी आई है. 1 मार्च से BSE सेंसेक्स 4 प्रतिशत बढ़ गया है.
बाजार बता रहा है कि लोकसभा चुनावों में जीत भाजपा की ही होगी
आम चुनावों से पहले सेंसेक्स का ऐतिहासिक प्रदर्शन ये बता रहा है कि 30 बड़े शेयर सूचकांक के चुनाव पूर्व अवधि में बढ़ने की संभावना है.
BSE के ऐतिहासिक सेंसेक्स आंकड़ों के अनुसार, 2009 के आम चुनावों के दौरान बेंचमार्क इंडेक्स में भारी वृद्धि देखी गई थी. अप्रैल-जून तिमाही से सेंसेक्स 49 प्रतिशत बढ़ा. हालांकि, अप्रैल-जून 2014 के दौरान सूचकांक में 17 प्रतिशत की तेजी देखी गई थी.
2009 में शेयर बाजार में तेजी आने के पीछे दो कारण थे- एक था आम चुनाव और दूसरा था वैश्विक वित्तीय संकट से बाहर निकलना. 2008 में सभी देशों की वित्तीय प्रणाली चरमरा गई थी. हालांकि 2009 में ये दौर भी बीत गया जब शेयर बाजार संभला और बढ़ता गया.
2009 में जो तेजी हमने देखी वो एक दशक पहले की थी, और अभी जो हम देख रहे हैं, वो तेजी भी बिल्कुल उसी तरह की है. पिछले साल, बेंचमार्क सूचकांकों ने एक सुस्त अवधि देखी जिसे अब फिर से गति मिल रही है. 1 मार्च 2019 से सेंसेक्स 4 प्रतिशत बढ़ चुका है.
चुनाव के दौरान सेंसेक्स के प्रदर्शन की बात करें तो 1999 और 2014 के चुनावों के बाद के दो महीनों में सेंसेक्स 3-8 प्रतिशत गिरा था. हालांकि, 2009 के चुनावों के दौरान ये एकदम उल्टा था. तब कांग्रेस गठबंधन सत्ता में आया था और परिणाम वाले दिन यानी 16 मई, 2009 को सेंसेक्स में 17 प्रतिशत की तेजी आई थी.
इसीलिए यह उम्मीद की जा रही है कि चुनाव पूर्व आने वाली तेजी 2009 की ही तरह इस बार भी बनी रहेगी क्योंकि वर्तमान की भाजपा-नीत सरकार के दोबारा सत्ता में आने की पूरी उम्मीद है. मिडकैप और स्मॉल कैप शेयरों में सबसे ज्यादा रिटर्न मिल रहे हैं क्योंकि वे सस्ते वैल्यूएशन पर उपलब्ध हैं. सेंसेक्स को बाजार की संवेदनशीलता का सूचकांक भी कहा जाता है. शेयरों की खरीद-फरोख्त और बाजार, अर्थव्यवस्था की उठा-पटक के आधार पर सेंसेक्स ऊपर-नीचे जाता है. लेकिन आम चुनाव के नजदीक आने पर बाजार की चाल कुछ खास इशारे करने लगती है. और इस बार सेंसेक्स का इशारा बता रहा है कि- आएगा तो...
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