क्यों नरेंद्र मोदी की वाराणसी जीत गिनीज बुक में दर्ज हो सकती है
वाराणसी संसदीय सीट पर नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए चुनाव एकतरफा हो चुका है. अब बीजेपी की कोशिश है कि मोदी की जीत का रिकॉर्ड कायम किया जा सके. खुद मोदी भी चाहते हैं कि जीत किताब लिखने लायक हो.
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बीजेपी के लिए वैसे तो देश की हर संसदीय सीट महत्वपूर्ण है, लेकिन उनमें भी दो बेहद खास हैं - वाराणसी और गांधीनगर. वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं तो गांधीनगर से अमित शाह पहली बार चुनाव मैदान में हैं. कोशिश तो अमित शाह को भी लालकृष्ण आडवाणी से ज्यादा वोटों के अंतर से जिताने की है और मोदी को सबसे बड़े मार्जिन से जीत दिलाने की हो रही है.
बीजेपी का एक स्लोगन है - मेरा बूथ सबसे मजबूत. अपने नामांकन से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने वाराणसी में कार्यकर्ताओं से मुलाकात की थी और समझाया था कि किसी भी सूरत में एक भी बूथ नहीं हारना चाहिये.
जीत ऐसी हो कि सियासी पंडित किताब लिखें
वाराणसी का चुनाव मैदान 2014 से काफी अलग है. 2014 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ अरविंद केजरीवाल थे, जो ठीक पहले शीला दीक्षित को दिल्ली में हरा चुके थे - और वही उत्साह उन्हें बनारस तक खींच कर ले गया. इस बार भी प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनाव लड़ने की संभावना रही जो मोदी के नामांकन के ठीक पहले खत्म हो गयी. समझा जाता है कि अगर प्रियंका वाड्रा चुनाव लड़तीं तो लड़ाई इतनी एकतरफा नहीं होती जितनी अभी है.
पांच साल बाद प्रधानमंत्री मोदी के सामने जो दो उम्मीदवार हैं उनमें से एक अजय राय की पिछली बार जमानत जब्त हो चुकी है - और दूसरी शालिनी यादव बीजेपी कैंडिडेट से शहर के मेयर का चुनाव हार चुकी हैं. अजय राय को कांग्रेस से दोबारा टिकट मिला है - और शालिनी यादव को सपा-बसपा गठबंधन का. वाराणसी संसदीय सीट पर चुनाव इस बार ऐसा हो चुका है कि लोग कहने लगे हैं कि मजा ही खत्म हो गया है. क्रिकेट और राजनीति को एक तरीके से देखा जाता है, लेकिन बनारस के लोग मान कर चल रहे हैं क्रिकेट में तो मैच के इधर उधर होने की गुंजाइश भी रहती, लेकिन मोदी के चुनाव में तो दूसरी तरफ मैदान ही साफ है.
खुद प्रधानमंत्री मोदी भी ऐसा ही मान कर चल रहे हैं, लेकिन पुराने अनुभवों के चलते कार्यकर्ताओं को सचेत भी करते रहते हैं. नामांकन से पहले बीजेपी कार्यकर्ताओं से इमोशनल अपील भी की, 'इस चुनाव के दो पहलू हैं एक, काशी लोकसभा जीतना. मेरे हिसाब से ये काम कल पूरा हो गया है. एक काम अभी बाकी है - वो है पोलिंग बूथ जीतना. बनारस जीत गये, अब पोलिंग बूथ जीतना है - और एक भी पोलिंग बूथ पर बीजेपी का झंडा झुकने नहीं देना है, ऐसा मैं मानता हूं... अगर आपकी हार हुई तो सबसे ज्यादा दुख मुझे होगा.'
अपनी जीत पर मोदी चाहते हैं कोई किताब लिखे...
2014 में मोदी को 5,81,023 वोट मिले थे और अरविंद केजरीवाल को 3,71,785 वोटों से हराया था. दूसरे नंबर पर रहे केजरीवाल को 2,09,238 वोट मिले थे. अगर इस बार भी प्रियंका वाड्रा चुनाव मैदान में होतीं जीत के आंकड़े ऐसे ही या कुछ आगे पीछे होते. 2014 में सपा-बसपा और कांग्रेस उम्मीदवारों को मिले वोटों को जोड़ें तो 181481 हुए यानी जितने वोट केजरीवाल को अकेले मिले थे उससे भी कम. तब तीनों उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी.
केजरीवाल से इतर देखें तो विपक्षी उम्मीदवारों को जो वोट मिले थे वे उनके निजी संपर्कों ओर पार्टी के वोट बैंक का हिस्सा थे. लगता तो यही है कि इस बार भी उन्हें इतने वोट मिल सकते हैं.
जीत के अब तक के 5 सिकंदर
वाराणसी से तो नहीं, लेकिन 2014 में वडोदरा सीट पर प्रधानमंत्री मोदी के ही नाम सबसे ज्यादा वोटों से जीतने का रिकॉर्ड रहा. बाद में महाराष्ट्र की बीड सीट पर हुए उपचुनाव में ये रिकॉर्ड टूट कर बीजेपी नेता प्रीतम मुंडे के नाम हो गया.
1. प्रीतम मुंडे, बीजेपी : 2014 में ही बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे की दिल्ली में एक हादसे में मौत हो गयी. मुंडे की संसदीय सीट बीड पर जब उपचुनाव हुए तो बीजेपी ने उनकी दूसरी बेटी प्रीतम मुंडे को टिकट दिया. प्रीतम ने कांग्रेस उम्मीदवार को करीब सात लाख वोटों से शिकस्त देते हुए बड़ी जीत का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया. उपचुनाव में प्रीतम मुंडे को 9,16,923 वोट जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अशोकराव शंकरराव पाटिल को 2,24,678 वोट मिले थे. मुंडे की बड़ी बेटी पंकजा मुंडे महाराष्ट्र के ही परली से विधायक हैं और सूबे की देवेंद्र फडणवीस की सरकार में मंत्री हैं.
2. अनिल बसु, सीपीएम : आम चुनाव में जीत के अंतर के अनुसार दूसरे नंबर पर सीपीएम के अनिल बसु का नाम आता है. 2004 में अनिल बसु ने करीब छह लाख वोटों से आरामबाग संसदीय सीट पर जीत हासिल की थी.
3. पीवी नरसिम्हा राव, कांग्रेस : पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव इस सूची में तीसरे नंबर पर आते हैं. राव आंध्र प्रदेश के नंदयाल से 1991 में 5.8 लाख वोट से चुनाव जीत कर तब की सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड बनाया था.
4. नरेंद्र मोदी, बीजेपी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वडोदरा सीट से 2014 में 5.7 वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे. चुनाव में मोदी ने कांग्रेस के मधुसूदन मिस्त्री को हराया था.
5. रामविलास पासवान, एलजेपी : केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के नाम तो दो बार सबसे बड़ी जीत दर्ज कराने का रिकॉर्ड है. 1989 में पासवान हाजीपुर से जनता दल के टिकट पर पांच लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते थे. उससे पहले 1977 में पासवान भारतीय लोकदल के टिकट पर चार लाख से ज्यादा वोटों से हाजीपुर से ही जीते थे.
मोदी की सबसे बड़ी जीत में जुटी बीजेपी
वाराणसी में बीजेपी के वॉर रूम में चल रही चुनावी तैयारियों में कई नये तरीके भी अपनाये जा रहे हैं. पिछले पांच साल में जमीनी स्तर पर संगठन खड़ा करने में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जुटे हुए हैं. चुनावों से पहले कई बार अमित शाह बूथ लेवल कार्यकर्ताओं से कई बार मीटिंग भी कर चुके हैं.
1. लाभार्थी प्रमुख : मोदी सरकार की उज्ज्वला जैसी स्कीमों के प्रचार प्रसार और याद दिलाकर लोगों से वोट मांगने के लिए एक नयी जिम्मेदारी गढ़ गयी है - लाभार्थी प्रमुख. लाभार्थी प्रमुख अपनी टीम के कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर उन वोटर तक पहुंचने की कोशिश करता है जिन्हें उज्ज्वला और सौभाग्य जैसी योजनाओं का लाभ मिला है.
2. संख्या प्रमुख : संख्या या समूह प्रमुख की जिम्मेदारी वैसे कार्यकर्ताओं को दी गयी है जिनके पास संगठन के कामकाज का बढ़िया अनुभव रहा हो. इनके जिम्मे तीन-चार सेक्टर कमेटियां शामिल होती हैं.
3. पन्ना प्रमुख : पन्ना प्रमुख निचले स्तर पर सबसे बड़ी भूमिका होती है. एक बूथ लेवल कार्यकर्ता के साथ कई पन्ना प्रमुख जुड़े होते हैं. पन्ना प्रमुख का काम वोटर लिस्ट देख कर एक पन्ने के सभी वोटर के संपर्क में रहना होता है और मतदान के दिन उन्हें बूथ तक पहुंचाने की भी जिम्मेदारी होती है. बनारस में 5 मई तक सभी पन्ना प्रमुखों को लोगों के घर वोटर स्लिप पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गयी है.
बीजेपी का वाराणसी चुनाव कार्यालय मोदी की जीत का रिकॉर्ड कायम करने के लिए दिन रात जुटा हुआ है. चुनाव कार्यालय की टीम करीब 20 हजार लोगों से लगातार संपर्क में रहती हैं जिनमें बड़े नेताओं, रणनीतिकारों से लेकर निचलने स्तर के कार्यकर्ता भी शामिल हैं. वाराणसी में बीजेपी की 1819 बूथ यूनिट काम कर रही है.
वाराणसी में बीजेपी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने के लिए मोदी ने कहा, 'मैं भी बूथ कार्यकर्ता रह चुका हूं. मुझे भी दीवारों पर पोस्टर चिपकाने का सौभाग्य मिल चुका है.' फिर समझाया कि जिस तर संगठन में शक्ति दिखाकर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था, उसी तरह वो चाहते हैं कि सभी मिलकर पोलिंग बूथ जीतें - जीत ऐसी हो कि सियासी पंडितों को किताब लिखनी पड़े.
अब तो ये बीजेपी के लिए चैलेंज है कि कैसे वो प्रधानमंत्री मोदी को जीत दिला पाती है - ऐसी जीत जिस पर सियासी पंडितों को किताब लिखने के लिए मजबूर होना पड़े. बीजेपी का दावा है कि वो दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है, फिर तो उसके लिए और भी जरूरी हो जाता है कि उसके सबसे बड़े नेता को वोटों के अंतर के हिसाब से सबसे बड़ी जीत हासिल हो - ऐसी जीत जो गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो सके.
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