बीएसएफ से बर्खास्त तेजबहादुर यादव को मोदी के सामने उतारकर सपा ने क्या पाया?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी में सपा बसपा गठबंधन का उम्मीदवार बदलना और बीएसएफ से बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव को टिकट देना ये बताता है कि इस लड़ाई में अखिलेश को बहुत कुछ हासिल कर लेने की इच्छा है.
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जनवरी 2017. साल के पहले महीने का दूसरा हफ्ता. 2019 के आम चुनाव होने में दो साल का वक़्त था, इसलिए मुल्क के हालात भी ठीक ही थे. देश का आदमी इत्मिनान में था. मगर बेचैनी तब बढ़ी, जब एक फौजी का बगावत करता वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. वायरल हुए वीडियो में जिस फौजी को जनता ने देखा उसका नाम तेज बहादुर यादव था. तेज बहादुर ने 'खाने' के लिए सरकार और फ़ौज से बगावत की थी. तेज बहादुर ने बताया था कि कैसे उसकी बटालियन में भ्रष्टाचार व्याप्त है. जिसके चलते उसे जला हुआ सूखा पराठा और पानी जैसी दाल खाने को मिलती है.
फौजी ने जो आरोप अपनी बातों में लगाए थे उसे सुनकर न सिर्फ देश की जनता सन्न थी बल्कि तंत्र तक को लकवा मार गया था. मामला बढ़ा तो बात जांच -पड़ताल तक आ गई और उसके बाद तेज बहादुर यादव गुमनामी के अंधेरों में कहीं खो गए. उस घटना के 2 साल बाद अब जबकि देश की 17 वीं लोकसभा का चुनाव अपने चौथे चरण में पहुंच गया है हम एक बार फिर तेज बहादुर यादव का नाम सुन रहे हैं.
वाराणसी में तेज बहादुर यादव के चुनाव लड़ने से सबसे ज्यादा फायदा अखिलेश यादव का होता नजर आ रहा है
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सपा-बसपा गठबंधन ने एक बड़ा फैसला लिया है. समाजवादी पार्टी ने वाराणसी लोकसभा सीट से प्रत्याशी बदलते हुए तेजबहादुर यादव को टिकट दे दिया है. तेज बहादुर यादव अब शालिनी यादव के स्थान पर पार्टी उम्मीदवार होंगे, और वाराणसी में उनका सीधा मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होगा. चूंकि अब बीएसएफ से बर्खास्त तेज बहादुर यादव पीएम मोदी के सामने हैं तो जाननें का प्रयास करें कि मोदी के मुकाबले तेज बहादुर को उतारकर सपा ने क्या पाया.
मोदी के सामने 'पीडि़त सैनिक'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सैनिकों का हमदर्द माना जाता है. अक्सर ही हमारे सामने ऐसी तस्वीरें आती हैं जब हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सैनिकों का हाल चाल लेते, उनके हितों की बातें करते या फिर उनसे मिलते जुलते देखते हैं. अभी हाल में हुई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जिस तरह पीएम मोदी ने शहीदों के नाम पर वोट मांगे, उसकी भले ही विपक्ष ने आलोचना की हो. मगर जिस तरह मोदी अपनी कही बातों पर अडिग हैं उससे इस बात का अंदाजा लग जाता है कि कहीं न कहीं पीएम मोदी इस बात को मानते हैं कि वही सैनिकों के सच्चे हितैषी हैं.
एक पीड़ित सैनिक के रूप में जनता तेज बहादुर की व्यथा पहले ही सुन चुकी है
अब चूंकि वाराणसी में प्रधानमंत्री का मुकाबला तेज बहादुर से हैं तो पीएम की बातों के सामने तेज बहादुर का अपने को पीडि़त सैनिक दर्शाना और हमदर्दी बटोरना स्वाभाविक है. तेज बहादुर का जो अंदाज है उसको देखकर लग रहा है कि उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी है. मूल रूप से हरियाणा से सम्बन्ध रखने वाले और वाराणसी से प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ रहे तेजबहादुर यादव ने कहा है कि मैं असली चौकीदार हूं जिसने देश की सीमा की 21 वर्षों तक रक्षा की और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की. तेज बहादुर यादव ने कहा है कि अपने नाम के आगे चौकीदार लगाना प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता.
गौरतलब है कि जनवरी 2017 में तेज बहादुर यादव ने ये आरोप लगाया था कि हमें नाश्ते में बिना किसी सब्जी या अचार के साथ सिर्फ एक पराठा और चाय मिलती है. हम लम्बी ड्यूटी करते हैं और घंटों तक खड़े रहते हैं. दोपहर के खाने में हमें रोटी के साथ एक ऐसी दाल मिलती है जिसमें सिर्फ हल्दी और नमक होता है. तेज बहादुर ने तब अपनी बातों में खाने की क्वालिटी पर सवाल उठाया था साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि ऐसा खाना खाकर हम देश की सीमा की सुरक्षा कैसे करेंगे? तब कही अपनी बातों में यादव ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया था कि वो सैनिकों के साथ किये जा रहे इस बर्ताव का संज्ञान लें और इसपर उचित कार्रवाई करें.
यदि इस पूरे मामले का अवलोकन करें तो मिलता है कि तेज बहादुर के राजनीति में आने से यदि किसी को सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है तो वो कोई और नहीं बल्कि अखिलेश यादव हैं. कह सकते हैं कि तेज बहादुर अखिलेश के लिए वो तुरुप का इक्का हैं जिसकी आलोचना भाजपा या प्रधानमंत्री मोदी चाह कर भी नहीं कर सकते. अखिलेश इस बात को बखूबी जानते हैं कि यदि प्रधानमंत्री या भाजपा के किसी बड़े नेता ने तेज बहादुर की आलोचना की तो इससे जनता के बीच ये सन्देश जाएगा कि सैनिकों को लेकर प्रधानमंत्री की कथनी और करनी में एक बड़ा अंतर है.
वाराणसी में तेज बहादुर को सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस की दोस्ती के रूप में भी देखा जा रहा है
या अजय राय की मदद के लिए
पूरे वाराणसी में इस बात की चर्चा है कि वहां प्रधानमंत्री का किसी से कोई मुकाबला नहीं है. खुद पार्टी को इस बात का पूरा भरोसा है कि वाराणसी में प्रधानमंत्री एक बड़े मत प्रतिशत से जीत दर्ज कर इतिहास रचेंगे. वाराणसी में पीएम मोदी की ये जीत एकतरफा न लगे इसलिए भी तेज बहादुर को मैदान में लाया गया है. बात अगर वाराणसी में सपा बसपा गठबंधन और कांग्रेस की दोस्ती की हो तो कहा यही जा रहा था कि जैसे हालात हैं पक्का था कि मोदी के अलावा बाक़ी प्रत्याशियों की जमानत जब्त होगी.
अब क्योंकि तेज बहादुर मैदान में हैं इसलिए यहां पोलिंग ठीक ठाक होगी और कांग्रेस अपनी इस रणनीति से अजय राय की इज्जत बचाने में कामयाब हो जाएगी. ज्ञात हो कि 2014 में हुए चुनाव में भी अजय राय ने कोई खास प्रदर्शन नहीं किया था और तीसरे स्थान पर रहे थे. जिस तरफ के सियासी समीकरण वाराणसी में स्थापित किये गए हैं साफ है कि यहां सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस एक भूतपूर्व सैनिक तेज बहादुर यादव के नाम का सहारा लेकर एक दूसरे की पीठ खुजला रहे हैं.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में शालिनी यादव के ससुर एक बड़ा नाम हैं और उसी नाम के बल पर वाराणसी से इनका नाम सामने आया
कौन हैं शालिनी यादव, जिनका टिकट कटा
वाराणसी में पीएम मोदी, अजय राय और तेज बहादुर यादव के आलवा अगर इस समय कोई और सुर्ख़ियों में है तो वो नाम और कोई नहीं बल्कि शालिनी यादव हैं. शालिनी को अभी हाल ही में समाजवादी पार्टी ने वाराणसी से उम्मीदवार बनाया था. बता दें कि शालिनी यादव कांग्रेस के पूर्व सांसद और राज्यसभा के पूर्व उपसभापति श्यामलाल यादव की पुत्रवधू हैं जिनका शुमार वाराणसी के कद्दावर नेताओं में होता है. शालिनी यादव के टिकट को काटे जाने की वजह बस इतनी है कि सपा को महसूस हो रहा है कि किसी और के मुकाबले वाराणसी में तेज बहादुर पीएम मोदी को बड़ी चुनौती दे सकते हैं.
बहरहाल अब जबकि सपा के टिकट पर तेज बहादुर का सीधा मुकाबला पीएम मोदी से है. तो हमारे लिए भी देखना दिलचस्प रहेगा कि वोट के रूप में जनता इन्हें अच्छा खाना देती है या फिर इनके भाग्य में वही हल्दी नमक वाला पानी और बिना सब्जी का पराठा है. इसके अलावा तेज बहादुर के कंधे पर बंदूक रखकर फायर करने वाले अखिलेश अपने मकसद में कितना कामयाब होते हैं और मोदी विरोध को लेकर कितना आगे जाते हैं इसका फैसला भी आने वाला वक़्त करेगा बस हमें कुछ पल और इंतजार करना है.
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