'मोटू' से मौलाना मसूद अजहर! जैश प्रमुख की कहानी वाकई दिलचस्प है
जैश प्रमुख मौलाना मसूद अजहर ने अपना पहला आतंकी कैम्प इसलिए छोड़ा क्योंकि सब उसे मोटू कहते थे. इंसान में कुछ तूफानी होने और करने का जज्बा होना अच्छी बात है मगर जब यही जज्बा इंसान को मोटू से मसूद अजहर बना दे तो बात सच में सीरियस है
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आजकल की लाइफस्टाइल ही इतनी अस्त-व्यस्त है कि इंसान को खाना खाने और कसरत करने का समय ही नहीं मिल पा रहा है. नतीजा मोटापा. आज का आदमी न चाहते हुए भी आदमी मोटा हो रहा है. सवाल होगा कि आखिर मोटापे पर ये विचार-विमर्श क्यों हो रहा है. वजह है मौलाना मसूद अजहर. UNSC द्वारा ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किये जाने के बाद एक बार फिर जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मौलाना मसूद अजहर चर्चा में है. मसूद अजहर के बारे में कुछ बहुत ही मजेदार जानकारियां हाथ लगी हैं.
मसूद अजहर बचपन से ही कुछ तूफानी करना चाहता था. मगर हमेशा ही उसका मोटापा आड़े आया और उसे अपमान का सामना करना पड़ा. यही अपमान वो कारण था जिसने मौलाना मसूद अजहर को एक बहुत बड़ा आतंकी बन सबसे बदला लेने को मजबूर किया. जिस वक़्त 1994 में जैश प्रमुख को पुलिस और रक्षा अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किया गया, तो पूछताछ में जो कुछ भी उसने बताया था वो अपने आप में हास्यापद था.
मसूद अजहर ने खुद जो जानकारियां 1994 में अपनी गिरफ़्तारी के दौरान पुलिस को दी वो काफी दिलचस्प है
रक्षा अधिकारियों को दी गई जानकारी में मसूद ने कहा था कि कराची मदरसे में इस्लामिक शिक्षा लेने के बाद उसे जिहादी ट्रेनिंग के लिए अफ़ग़ानिस्तान के एक आतंकी प्रशिक्षण शिविर में भेजा गया था. जहां उसे अपना पहला जिहादी स्कूल सिर्फ इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि साथ के लड़के उसे मोटू-मोटू कहकर चिढ़ाते और उसका मजाक बनाते थे.
मसूद का मोटापा किस हद तक उसपर हावी था. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसे न सिर्फ अपने रोजमर्रा के काम करने में बाधा हो रही थी. बल्कि उसके चलते वो अपने पहले जिहादी स्कूल में भी लगातार फिसड्डी साबित हो रहा था. मसूद के अनुसार अपने मोटापे के कारण वो न तो बंदूक कंधे पर रखकर सही से निशाना ही लगा पता था और न ही वो लेट कर कटीले तारों को पार कर पाता था.
मसूद की ये हरकतें उसके टीचर को नागवार गुजरती थीं और वो उसे डांट फटकार लगाते थे. मसूद ने ये भी बताया था कि टीचर की इस डांट फटकार का फायदा उसके साथी जिहादी उठाते थे और 'मोटू' समेत अलग अलग अपमानजनक टाइटल्स से उसका मजाक उड़ाते थे. ये सब चीजें मसूद अजहर को बहुत आहत करती थीं. चूंकि मसूद अपनी 40 दिन की ट्रेनिंग में बार बार नाकाम हो रहा था इसलिए उसे बिल्कुल बेकार समझकर वापस कराची भेज दिया गया.
गौरतलब है कि मोटा और भद्दा होने के बावजूद आतंक की दुनिया में मसूद अजहर का शुमार एक कुशल वक्ता के रूप में होता है. मसूद अजहर को उसकी बोलचाल का फायदा कराची वापस आने के बाद हुआ. ट्रेनिंग कैम्प से भगाए जाने के बाद कराची आकर मसूद ने एक मदरसे में बतौर शिक्षक नौकरी की. यहीं उसकी मुलाकात हरकत उल मुजाहिदीन के सदस्य मौलाना फजलुर रहमान खलील से हुई.
मौलाना फजलुर रहमान मसूद अजहर से प्रभावित हुआ और उसने उसे आतंकवाद के लिए फंड रेजिंग का काम सौंप दिया और मसूद अजहर भी इस काम में अच्छा निकला और उसने हरकत उल मुजाहिदीन को खूब फायदा पहुंचाया. फंड रेजिंग के दौरान अपने द्वारा दिए गए भाषणों ने मसूद अजहर को लोकप्रिय बना दिया.
1999 में मौलाना मसूद अजहर ने आईएसआई की मदद से अपना खुद का संगठन जैश-ए-मोहम्मद बनाया. संगठन का रूप कितना विभात्स है वो आज हमारे सामने है. कुल मिलकर जितनी भी बातें तब इस कुख्यात आतंकी ने पुलिस और रक्षा अधिकारियों को बताई. यदि उन बातों का अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि, मसूद अजहर को अफ़ग़ानिस्तान के उस ट्रेनिंग कैम्प से वापस ही इसलिए भेजा गया था क्योंकि बाक़ी आतंक के सूरमाओं को लगता था कि ये लड़का किसी काम का नहीं है.
बहरहाल, मसूद अजहर का अब तक का जीवन देख कर एक कहावत याद आ गई जिसके अनुसार जो लोग कारनामे नहीं करते वो कारस्तानियां करते हैं. और हां जब व्यक्ति कारनामों के बजाए कारस्तानियों पर फोकस करता है तो उसका हाल कुछ वैसा ही होता है जैसा इस समय अजहर का है.
बात का सार बस इतना है कि इंसान में कुछ तूफानी होने और करने का जज्बा होना अच्छी बात है. मगर जब यही जज्बा इंसान को मोटू से मसूद अजहर बना दे तो बात सच में सीरियस है औ रहमें इसपर गहनता से विचार करना चाहिए.
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