और उस बीजेपी कार्यकर्ता ने रसगुल्ला मणिशंकर अय्यर के मुंह में डाल दिया...
गुजरात चुनाव में भाजपा को मिली जीत अमित शाह या नरेंद्र मोदी की जीत नहीं है इसमें मणिशंकर अय्यर की हिस्सेदारी भी बराबर की है जिसे किसी भी देशवासी को नकारना नहीं चाहिए.
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गुजरात चुनावों का परिणाम आ चुका है. भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, और बताया है कि गुजरात में वही अंगद का पैर है जिसे हिला पाना आसन नहीं है. कांग्रेस ने भी राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद अच्छी शुरुआत की है और आलोचकों का मुंह बंद किया है. अल्पेश और जिग्नेश जैसे नवांकुरित नेताओं को देखें तो मिलता है कि इन दोनों ने भी अपनी जीत से बता दिया है कि उन्होंने अंधेरे में जो तीर छोड़ा था वो निशाने पर लगा है.
इतना देखने तक गुजरात में सब कुछ सही और चुस्त दुरुस्त लग रहा है. एक नजर में कोई भी कह देगा कि इस परीक्षा में वही अव्वल नंबर लाया है जिसने दिए की रोशनी में पढ़ाई करते हुए भरपूर मेहनत की. अब इस बात को फिर से पढ़िये और समझने की कोशिश करिए. जब आप इसे "दूसरी नजर" से देख रहे होंगे तो मिलेगा कि भाजपा की इस जीत में अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा किसी और का हाथ है तो वो केवल और केवल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार मणिशंकर अय्यर हैं.
गुजरात चुनावों में भाजपा की जीत को अगर देखें तो इसमें बहुत बड़ा हाथ खुद मणिशंकर अय्यर का भी है
जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. मोदी की इस जीत में अगर अमित शाह के बाद किसी ने उत्प्रेरक की भूमिका अदा की है तो वो अय्यर ही हैं. याद तो आपको भी होगा वो लम्हा जब अपनी लम्बी जुबान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देते हुए उन्हें "नीच" कहा था. नीच के उस बयान का क्या असर हुआ नतीजा हमारे सामने हैं. "कांग्रेस पार्टी जीतकर हारने वाली बाजीगर" बन गयी.
चूंकि आज चुनाव के नतीजे घोषित होने थे अतः एक आदर्श नागरिक की तरह रात ढंग से न सोने के बावजूद मैं भी नतीजों पर अपनी नींद भरी नजर गड़ाए हुए था. शाम होते -होते मुझे झपकी आ गयी और उस कच्ची नींद में मैंने एक सपना देखा. सपने में मुझे मणिशंकर अय्यर का घर दिखा और उस घर के गेट के बाहर भाजपा के नेता दिखे. भाजपा के ये नेता खाली हाथ बिल्कुल नहीं थे इनके हाथों में मिठाई का डिब्बा था. कोई अय्यर को छेने का रसगुल्ला खिला रहा था तो कोई सोहनपपड़ी, कहीं कोई इस इन्तेजार में था कि कब अय्यर उनके पास आएं और वो जल्दी से उन्हें गजक या गुड़पपड़ी खिलाकर उनका मुंह मीठा करा दें.
सपने में मैंने ये भी देखा कि शुरू शुरू में अय्यर चटकारे मारकर इस मुफ्त की मिठाई का मजा ले रहे थे मगर जैसे जैसे दिन चढ़ा वो मिठाई खा खाकर उकता गए और बार बार मिठाई सामने आने पर मुंह बनाते नजर आए. अभी मैं सपना देख ही रहा था कि किसी ने मुझे जगा दिया और ये दृश्य मेरी आंखों से ओझल हो गया. सपना, सपना होता है और हकीकत हकीकत है. न सपना हकीकत होता है और न ही हकीकत सपना. गुजरात जीतना कांग्रेस का सपना था मगर हकीकत ये है कि जनता ने अपने वोट के माध्यम से ये बता दिया है कि उसे क्या पसंद है और उसका स्वरूप कैसा होगा.
बहरहाल, कभी एक कहावत सुनी थी मगर उस कहावत को बताने से पहले ये बताना जरूरी है कि प्रायः विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस युग में चंद ही लोग ऐसे होंगे जो कहावतों को सही मानें. खैर छोड़िये, हां तो कहावत कुछ यूं है कि दूध का जला छाछ भी फूंक फूंककर पीता है. अय्यर पूर्व में कई बार गर्म दूध को मुंह लगा चुके हैं मगर देखा जाए तो वो दूध से जले पहली बार हैं. अतः ये चुनाव उनके लिए भी यादगार होगा. इसके अलावा इस चुनाव को राहुल गांधी भी सिर्फ इसलिए याद रखेंगे क्योंकि ऐसा बहुत दिन के बाद हुआ है जब उन्होंने और उनकी पार्टी ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी है.
कहा जा सकता है कि गुजरात का ये चुनाव शायद राहुल कभी भूल नहीं पाएंगे. अंत में हम अपनी बात खत्म करते हुए बस इतना ही कहेंगे कि आज वाकई समर्थकों को राहुल का मुंह मीठा कराना चाहिए और राहुल को भी ध्यान रखना चाहिए कि मारे डर के अगर कोई उनके पास मीठा न ला रहा हो तो वो गुड़ पपड़ी खाकर अपना मुंह मीठा कर लें. वैसे भी बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि मीठा खाने के अवसर नहीं होते व्यक्ति को जब भी मौका मिले मीठा खा लेना चाहिए.
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