सावधान! उत्तर प्रदेश में प्यार करना मना है...
मनचलों के चक्कर में रोमियो और मजनूं अपनी-अपनी कब्रों में सिसकारियां भर रहे हैं. जिस इश्क का ककहरा वो प्यार के अंजान परिंदों को सिखाकर आए थे, दो टके के इश्कज़ादों ने उसका ऐसा हश्र कर दिया कि यूपी पुलिस के जवान बात-बात में रोमियो और मजनूं की एमसी बीसी करने पर तुले हैं.
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(कृप्या इसे सिर्फ़ हास्य व्यंग्य की तरह ही लें) रोमियो पिट रहे हैं, जूलियट आंसू बहा रही हैं. गली मुहल्ले के पार्क में महबूबा का इंतज़ार करते मजनूं हलकान हैं. जान जा रही है पर जानेमन नहीं आ रही है. लैला की आंखें पथरा गई हैं. उनकी ज़ुबां पर यही अल्फ़ाज़ हैं कि कोई पत्थर से ना मारो मेरे दीवाने को, लेकिन सुन कौन रहा है. इंतज़ार की इंतेहा है और पुलिस के थप्पड़ और लाठियां हैं. मुहब्बत का पहला सफ़ा थाने के रोज़नामचे में दर्ज हो रहा है. इश्क की इबारत पुलिस की जीडी में दर्ज हो चुकी है. थानेदार का रौब ऐसा है कि सात जन्म तक जीने-मरने की कसमे खाने वाले प्यार के परिंदे ख़ाकी वर्दी वालों के सामने उठक-बैठक कर रहे हैं. जिस तरह से चौराहों पर धुनाई हो रही है. उसे देखकर तो संत वेलेन्टाइन की आत्मा भी बाप-बाप कर रही होगी. अच्छा है फ़रवरी का महीना नहीं है. वरना इतनी कुटाई होती कि स्वर्ग में भी हर तरफ़ यूपी पुलिस नज़र आती.
मनचलों के चक्कर में रोमियो और मजनूं अपनी-अपनी कब्रों में सिसकारियां भर रहे हैं. जिस इश्क का ककहरा वो प्यार के अंजान परिंदों को सिखाकर आए थे, दो टके के इश्कज़ादों ने उसका ऐसा हश्र कर दिया कि यूपी पुलिस के जवान बात-बात में रोमियो और मजनूं की एमसी बीसी करने पर तुले हैं. कमबख्त इश्क होती ही ऐसी चीज़ है, जिसमें खाया-पिया कुछ नहीं और खर्चा होता है बारह आना. हीर रांझा, ग़ालिब, रोमियो और मजनूं के ज़माने में महंगाई कम थी, लिहाज़ा फटेहाली में भी इश्क की कामयाब इबारत लिख गये. ये अलग बात है कि ना रोमियो को जूलियट मिली, ना मजनूं को लैला... ग़ालिब को भी इश्क ने ऐसा निकम्मा कर दिया कि मयख़ाना उनकी ज़िंदगी का ठिकाना बन गया.
मगर सावधान! ये उत्तर प्रदेश है और यहां प्यार करना मना है. बेरोज़गारी के इस दौर में एक इश्क ही था, उस पर भी पहरा लगा दिया. नौकरी तो मिली नहीं ऊपर से जवानी में कुलबुलाया प्यार सलाखों के पीछे ले गया. एंटी रोमियो स्क्वॉड चील की तरह नज़रें गढ़ाए बैठा है. मोबाइल और वॉट्सएप के ज़माने में भी खुलेआम पकड़े जा रहे हैं. इश्क के पुर्ज़े-पुर्ज़े हो रहे हैं. ऊपर से मुसीबत ये कि जिसने डेट पर बुलाया था. वर्दी वालों को देखकर वो भी मुकर जा रही है. बदले में मिल रही है लैला से जुदाई और पुलिस की तुड़ाई.
अब इन प्यार के दुश्मनों को कौन समझाए कि लगा लो पहरा इश्क कौन सा किसी की क़ैद में रहता है, ये तो बिना वजह होता है... इसे तो ना वक्त का इल्म होता है... ना समाज की फिक्र होती है... इश्क़ की पाठशाला नहीं होती जनाब... मुहब्बत के बीज तो सड़कों के किनारे फलते-फूलते हैं. चौक-चौराहे से निकलने वाली जब हया से अपना दुपट्टा लहराती है तो खुदा कसम इश्क़ हिरन से भी तेज़ कुलाचें भरता है. फिर मुहब्बत के वरक फड़फड़ाने लगते हैं. सबक सारे खुद बा खुद याद हो जाते हैं. बस इक झलक के लिए सुबह से शाम सड़कों पर फिरना पड़ता है. कभी स्कूल-कॉलेज के किनारे... कभी नुक्कड़-नमुाइश में.. बेसाख़्ता इश्क इतनी आहें भरता है कि मजनूं बस दीवाना हो जाता है.
और यहीं से इश्क़ का फ़लसफ़ा शुरु होता है. पगडंडियों पर होले-होले बढ़ता हुआ प्यार किसी को मंज़िल तक पहुंचा देता है तो किसी को उम्रभर के लिए मनचला बना देता है. वैसे भी मनचलों और मजनूं में बड़ा फ़र्क होता है. आदतन हर किसी के साथ बदमाशियां मनचलों की जमात में खड़ा कर देती हैं. जबकि उम्रभर बस किसी एक की दीवानगी रांझा, मजनूं और रोमियो के ख़िताब दिला देती है. मगर उत्तर प्रदेश में बसंती बयार के बाद नया निज़ाम बदला तो पहली शामत मनचलों की आ गई. बदमाशों को पकड़ने में फ्लॉप पुलिस या तो आज़म ख़ां की भैंस ढूंढ लाती है या फिर इश्क में आंखें चार करने वालों पर नकेल कस देती है. मगर डॉन हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाते हुए खुलेआम घूम रहे हैं. अरे मनचलों, लफ़्ंटरों की धुनाई करो. कौन रोकता है... इतनी सुताई करो कि नानी याद आ जाए... मगर सरकार प्रमोशन के चक्कर में बेकसूरों का एनकाउंटर तो मत करो.
इश्क में ऐसी पिटाई भी होगी,
सोचा ना था ऐसी सुताई होगी,
हम बेवजह ही चक्कर में फंस गये,
अब तो सलाखों में कुटाई होगी.
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