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Updated: 10 फरवरी, 2021 07:42 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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न शिकायत करेगा और टूटेगा भी नहीं,

बजाय 'दिल’ के आप, ‘टेडी’ से खेलिए.

शेर गुमनाम है, मगर है कमाल का. शेर होते ही कमाल के हैं. वो तो बातें हैं, जो हर्ट कर जाती हैं और आनन फानन में जॉली नेचर का आदमी भी आहत हुई भावना के चलते नाक भौं सिकोड़ लेता है और मुंह फुला लेता है. बड़े बुजुर्गों ने फरमाया है कि ख़फ़ा भी मौका देखकर ही होना चाहिए तो हम भी नेगेटिव बातें नहीं करेंगे. वैलेंटाइन वीक है इसलिए जाने ही देते हैं. 10 फरवरी, ईद-ए-आशिकीन यानी वैलेंटाइन वाले हफ्ते का चौथा दिन, जो समर्पित है Teddy को. ईमानदारी से देखा जाए तो इश्क़ में टेडी का कॉन्सेप्ट ही अपने में तमाम तरह के विरोधाभास लिए हुए है. मगर अब जबकि इश्क़ नापने का पैमाना टेडी की क्यूटनेस उसकी लंबाई और चौड़ाई है तो फिर आज सारी बातें उसी सिलसिले में होंगी.

आज इश्क़ में टेडी का पोस्टमार्टम होगा. घनघोर होगा. घमासान होगा. साथ ही होंगी कुछ जरूरी बातें. तो आइए शुरू करते हैं बातों का सिलसिला एक मित्र और उससे जुड़े किस्से के साथ.

फरवरी,आशिक़ समुदाय की ईद का दौर है. बहुत काम और खर्च होते हैं साल के इस महीने में. हमारे एक मित्र हैं. सज्जन आदमी हैं और चूंकि इश्क़ की भयंकर गिरफ्त में हैं तो जैसे ही साल का ये महीना यानी वैलेंटाइन डे आता है अपना भाई बेचैन हो उठता है. प्रपोज, किस और हग तक तो फिर भी ठीक था एक्चुली ये फ्री के आइटम हैं मगर बीच के बचे तीन दिनों ने उनकी नींदें उड़ा दी हैं. ध्यान रहे कि बीती 7 फरवरी को उन्होंने अपनी पत्नी को 'रेड रोज़' देने का प्लान किया. आनन फानन में वो मार्केट गए... मगर ये क्या रेड रोज़ की एक स्टिक 65 रूपये की जैसे तैसे तह तोड़ करके उन्होंने वो स्टिक पूरे 60 रूपये में खरीदी.

अभी बीते दिन उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी को चॉकलेट भी दी. चॉकलेट का नाम है ' फ़ेर्रेरो रॉशर” इतनी महंगी चॉकलेट कि क्या कहने इतने पैसों में तो पौने दो किलो चिकन, तीन पाव पनीर, 10 – 12 रुमाली रोटी और आधा किलो हरी मटर आ जाये मटर पुलाव बनाने के लिए.

आज भाईसाहब मार्केट निकले थे टेडी लेने... सुबह से शाम हो गयी अभी फोन आया तो बता रहे थे कि जैसे टेडी के दाम हैं अवश्य ही उन्हें टेडी के चक्कर में अपनी गांव वाली 2 बिसवा जमीन और पिताजी का लगवाया हुआ ट्यूब वेल बेचना पड़ जाएगा. चूंकि कहावत है अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान आज शायद भाई के सितारे बुलंद थे तो एक जगह डील अच्छी मिली और ये सस्ते में निपट लिए. टेडी घर आ गया.

भले ही मीना के इश्क़ की गिरफ्त में आए आशिक को हमारी फिल्मों ने कुत्ते से लेकर कमीना तक की संज्ञा दी हो. लेकिन अब जबकि इश्क़ का पैमाना टेडी है. तो उसे जानू-बेबी के घर तक लाने के लिए यदि दिलबर को चांद और मंगल तक की यात्रा करनी हो तो वो करेगा. इज्जत से समझौता नहीं. मजाल है बात उसकी ईगो या प्रेस्टीज पर आ जाए और उसे किसी पुरुष या महापुरुष के सामने झुकना पड़े.

बहरहाल, भले ही महंगाई के इस दौर में प्यार इंसान को इंसेन बना दे. उसे किसी भी मोड़ पर ले आए लेकिन ये टेडी ही है जो मरते या प्रेमिका/ पत्नी से मार खाते आशिक के लिए संजीवनी है.

जैसा कि हम बता चुके हैं इश्क़ में टेडी का कॉन्सेप्ट ही अजीब है मगर इसे लेकर अच्छी बात ये है कि ये होता बड़ा सहिष्णु है. इस बेचारे गरीब को दुलार कीजिये, गले लगाइये, पप्पी दीजिये, झोर की झप्पी दीजिये या फिर इसे लातों से मारिये, हाथों से मारिये। उठाकर फ़ेंक दीजिये इसे ये बोलेगा कुछ नहीं और पूर्णतः खामोश रहेगा। यही इसकी खूबी है. यही एक अच्छी बात है जो इसे दूसरी चीजों से अलग करती है.

जब बात टेडी की सिधाई पर हो रही है तो हम दिलबर को नजरअंदाज नहीं कर सकते. देखा जाए तो किसी जानू-बेबी के लिए उसका दिलबर भी टेडी ही तो है. नहीं मतलब कभी गौर करियेगा जानू बेबी का जब मन हुआ तो खेल लिया और जब मन भर गया या किसी बात पर गुस्सा आ गया तो घनघोर फजीहत कर उठा के साइड लाइन कर दिया. इस स्थिति में जानू-बेबी के पास खड़े दिलबर के लिए सिर्फ और सिर्फ दो ऑप्शन होते हैं या तो वो खड़े-खड़े सारी फजीहत सहे या फिर ब्रेक अप कर ले. अरे अरे अरे। ... इतने पवन मौके पर हम फिर इधर उधर निकल गए और हमारा सारा फोकस नेगेटिव बातों पर आ गया.  

खैर शायर ने ऐसे ही जानू-बेबी से बार बार अपनी ऐसी तैसी कराते आशिक यानी हमारे दिलबर के लिए कहा है कि

कश्ती-ए-इश्क़ में रखना क़दम संभाल के

दरिया-ए-मुहब्बत के किनारे नहीं होते.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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