Propose Day: सुनो, प्रेम के प्रपोजल का कोई प्रोटोकॉल नहीं होता
फिल्मों ने भले ही आपको कंफ्यूज कर दिया हो कि हीरो ही पहले Propose करता है पर असल ज़िंदगी में इस फ़ॉर्मूला के चलते, कई रिश्ते मन के भीतर ही दबे रह जाते हैं. किसी के हिस्से के गुलाब की खुश्बू, बस नोटबुक के निर्जीव पन्ने को महकाती रह जाती है.
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'मेरा दिल भी कितना पागल है/ ये प्यार तो तुमसे करता है
पर सामने जब तुम आते हो/ कुछ भी कहने से डरता है'
'साजन' फ़िल्म का ये गीत यूं ही अमर नहीं हो गया है. यूं ही नहीं इसे सुनकर आपकी धड़कनें बढ़ने लगती हैं और आप एक अलग ही दुनिया में चले जाते हो. ये धकधक तो इसलिए होती है क्योंकि आप इससे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं. वो किसी को प्यार करने और न कह पाने का जो मलाल है न, असल में आप उससे अब तक उबर ही नहीं पाए हैं. और इस गीत को सुनते ही प्यार का यही मीठा-मीठा दर्द झिलमिलाने लगता है. प्रेम में डूबे प्यारे लोगों! आज Propose Day पर अच्छा मौक़ा है, अपने महबूब या दिलरुबा तक अपने दिल का हाल पहुंचाने का. वरना देख लीजिए, कहीं पहले आप, पहले आप के चक्कर में ये दिन 'मलाल दिवस' न बनकर रह जाए. मैं इस बात की प्रतीक्षा कभी न करूं कि मेरा प्रेमी ही मुझे गुलाब दे या प्रेम का इज़हार वही पहले करे. ये काम तो मैं भी कर सकती हूं. 'प्रेम' कोई प्रमेय थोड़े ही है कि उन्हीं चरणों से होता हुआ 'इति सिद्धम्' तक पहुंचेगा, जो श्री पायथागौरस महाराज जी समझा गए हैं. अजी, प्रेम का कोई प्रोटोकॉल नहीं होता. जब कोई अच्छा लगे तो उसे सीधे-सीधे बिना किसी लाग-लपेट के कह ही देना चाहिए कि 'यार, तुम बिन नहीं जिया जाता!' हर हाल में, उम्र भर के अफ़सोस से बेहतर, कह देना ही है.
कई मौके आए हैं जब असल ज़िंदगी में प्रपोज के फ़ॉर्मूले के चलते, कई रिश्ते मन के भीतर ही दबे रह जाते हैं
कोई आपको प्यार करता है, आपके साथ जीने के सपने देख रहा है. इससे ज्यादा प्यारी बात भी कोई हो सकती है क्या? ख़ुद से मोहब्बत होने लगती है, जी. मुस्कान डेढ़ इंच और चौड़ जाती है. मन, महबूब के सपने देखने लगता है और हर प्रेम गीत में वही तस्वीर नज़र आती है. कितनी ही बार दर्पण के सामने, जुल्फों को संवारते हुए ख़ुद पर इठला लिया जाता है. पूरी क़ायनात तक ये समाचार पहुंचाने का जी करता है कि 'सुनो, उसे मुझसे मोहब्बत है'.
फिल्मों ने भले ही आपके दिमाग़ में ये भर कंफ्यूज कर दिया हो कि हीरो ही पहले Propose करता है पर असल ज़िंदगी में इस फ़ॉर्मूला के चलते, कई रिश्ते मन के भीतर ही दबे रह जाते हैं. किसी के हिस्से के गुलाब की खुश्बू, बस नोटबुक के निर्जीव पन्ने को महकाती रह जाती है. तो कोई उन ख़तों के उत्तर न दे पाने के मलाल में डूब जाता है जो तमाम मुश्किलों से जूझते हुए उसकी साईकल की पिछली सीट पर अटके मिले थे. धीरे-धीरे गुजरता समय न तो इस खुश्बू को बांध पाता है और न ही पंखुड़ियों का नर्म अहसास ही बचा पाता है.
हां, इन सूखी हुई पंखुड़ियों को थामे हुए मन के किसी कोने में अफ़सोस उपजता है और एक आवाज़ भी आती है कि काश! हमने उसे कह दिया होता! कितनी अजीब सी बात है न कि प्रेम में डूबी लड़की की सारी सहेलियों को पता होता है कि उसके सपनों का राजकुमार कौन है. लड़के के दोस्त भी इस बात को जानते हैं कि कौन उसकी भाभी बनने वाली है लेकिन हाय रे संकोच और शर्म के मारे, बस उन दोनों को ही एक-दूसरे के दिल का हाल नहीं पता होता, जिनका इसे जानने का पहला हक़ बनता है.
प्रिय के सामने आते ही धड़कनें बढ़ जाती हैं, ज़ुबान अटकने लगती है. सौ बातें कर ली जाती हैं, बस इक इश्क़ के सिवाय. ये बात जरुर है कि लड़कियों की प्रवृत्ति ऐसी रहती आई है कि वे यहाँ भी लड़के की प्रतीक्षा करती हैं. साथ ही ये अपेक्षा भी रहती है कि वही पहल करेगा. मानती हूं, अच्छा लगता है पर कभी उसे भी तो अच्छा लगाओ. किसी का भी हो, 'दिल' एक सी मांसपेशियों से ही बना है. तुम प्रेम में पहल कर सकती हो.
लड़के के दिल का बोझ कुछ तो कम करो, उसे समझो और अपना 'हाल ए दिल' कह ही डालो उससे. बड़े से बड़े शूरवीर भी 'इज़हार ए मोहब्बत' के मामले में छुईमुई बन जाते हैं. यहां उनकी बात नहीं हो रही जो 'एक गई, दूसरी आएगी' के सिद्धांत पर चलकर प्रेम की झूठी क़समें खाने का ढोंग रचते हैं. बल्कि ये उन सच्चे प्रेमियों के लिए है जो एक-दूसरे की परवाह करते हैं. जो इस डर से कह ही नहीं पाते कि कहीं लड़के/लड़की को बुरा लग गया तो दोस्ती न टूट जाए! वे रिजेक्शन से कहीं ज्यादा एक रिश्ते को खोने से डरते हैं.
लेकिन यक़ीन मानिए जहां दोस्ती सच्ची होती है, वहां लड़का हो या लड़की, उन्हें डरे बिना अपने दिल की बात कह ही देनी चाहिए. हो सकता है कि दूसरा पक्ष भी यही सोच रहा हो और न भी सोचे, तब भी दिल से जुड़े रिश्ते खोते नहीं, बल्कि ऐसी अभिव्यक्ति से तो और गहरा ही जाते हैं. पहले के समय में कबूतर और चिट्ठियों का दौर बेहद ख़ूबसूरत और नाज़ुक था. गलत पते पर पहुंचने के सौ ख़तरे भी थे उसमें. लेकिन इंटरनेट युग ने बहुत कुछ आसान कर दिया है.
अब एक क्लिक पर इज़हार किया जा सकता है. यहां पहली टिक का मतलब आपके दिल का हाल पते पर पहुंचना है, दूसरा टिक होते ही लिफ़ाफ़ा टेबल पर है और इन दोनों के नीले रंग में बदलते ही आप उलटी गिनती गिनना शुरू कर दीजिए. कुछ ही पलों में आपके भाग्य का फ़ैसला होने वाला है. यदि इतना भी सब्र नहीं तो सीधे फ़ोन उठाइए और वीडियो कॉल कर लीजिए.
यूं भी यह सबसे बेहतर तरीक़ा है. वरना बाद में यह अफ़सोस भी रह सकता है कि आपने अपने जीवन के सबसे ख़ूबसूरत पल को तस्वीर बनते नहीं देख पाया! मैं तो ये भी कहूंगी कि इन सबके चक्करों में भी क्यों पड़ना? उसके पास जाइए और कोमल हाथों को थाम आज Propose कर ही दीजिए उसे. जी लीजिये इस अहसास को और सुनिए इन धडकनों को.
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