संक्रांति के पावन पर्व पर जहां आसमान में लहराती, बलखाती हजारों पतंगें एक ख़ूबसूरत तस्वीर जड़ती हैं वहीं पक्षियों के बीच एक अजीब क़िस्म की बदहवासी फ़ैल जाती है. कई-कई दिन ये इमारतों की मुंडेरों से चिपक सहमे बैठ जाते हैं और जो हिम्मत कर निकलते भी हैं तो उनके सुरक्षित लौट आने की सम्भावना प्रायः कम ही होती है. जनवरी माह इन पक्षियों के लिए सबसे मनहूस समय होता है. जहां दाना-पानी की तलाश में सुबह को निकले ये मासूम मुसाफ़िर शाम को घर लौट ही नहीं पाते. इनके टूटे-फूटे, कटे पंख, क्षतविक्षत शरीर और उससे बहता लहू मनुष्य की उमंग और उत्साह की बलिवेदी पर प्रतिदिन कुर्बान होता है.
उल्लास और मेल-मिलाप में भरे हम मनुष्य छत पर पतंग उड़ा विविध व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं और इधर किसी घोंसले में अंडे से झांकते नन्हे चूज़े प्रतीक्षा की आंख आसमां पर टिका किसी और लोक की ओर भूखे ही प्रस्थान कर जाते हैं. हमें इनका भी सोचना है जो सुबह की पहली धूप के साथ हमारे आंगन में चहचहाहट बन उतरते हैं, जो किसी बच्चे की तरह खिड़कियों से लटक सैकड़ों करतब किया करते हैं, जो अलगनी को अपने बाग़ का झूला समझ दिन-रात फुदकते हैं.
पक्षियों के बिना ये दुनिया कैसी सन्नाटे भरी होगी, इसकी कल्पनामात्र सिहरा देने के लिए काफ़ी है. हमने तालाबों का पानी चुरा लिया, नदियों को विषैला कर दिया, बारिश से उसके हिस्से की माटी छीन उस जमीं पर सीमेंट-कंक्रीट से भर अपना पट्टा लगा लिया, जंगलों को ऊँची इमारतों की तस्वीर दे दी, प्रकृति का जितना और जिस हद तक शोषण कर सकते थे, किया. अब हमारे पास अपना कहने को ज्यादा कुछ शेष नहीं है. आसमां पर दीवारें खड़ी हो सकतीं तो अब तक इसका भी बंटवारा हो गया होता! ये मासूम पक्षी ही हैं जो सबके आंगन में एक सी ख़ुशी लेकर उतरते...
संक्रांति के पावन पर्व पर जहां आसमान में लहराती, बलखाती हजारों पतंगें एक ख़ूबसूरत तस्वीर जड़ती हैं वहीं पक्षियों के बीच एक अजीब क़िस्म की बदहवासी फ़ैल जाती है. कई-कई दिन ये इमारतों की मुंडेरों से चिपक सहमे बैठ जाते हैं और जो हिम्मत कर निकलते भी हैं तो उनके सुरक्षित लौट आने की सम्भावना प्रायः कम ही होती है. जनवरी माह इन पक्षियों के लिए सबसे मनहूस समय होता है. जहां दाना-पानी की तलाश में सुबह को निकले ये मासूम मुसाफ़िर शाम को घर लौट ही नहीं पाते. इनके टूटे-फूटे, कटे पंख, क्षतविक्षत शरीर और उससे बहता लहू मनुष्य की उमंग और उत्साह की बलिवेदी पर प्रतिदिन कुर्बान होता है.
उल्लास और मेल-मिलाप में भरे हम मनुष्य छत पर पतंग उड़ा विविध व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं और इधर किसी घोंसले में अंडे से झांकते नन्हे चूज़े प्रतीक्षा की आंख आसमां पर टिका किसी और लोक की ओर भूखे ही प्रस्थान कर जाते हैं. हमें इनका भी सोचना है जो सुबह की पहली धूप के साथ हमारे आंगन में चहचहाहट बन उतरते हैं, जो किसी बच्चे की तरह खिड़कियों से लटक सैकड़ों करतब किया करते हैं, जो अलगनी को अपने बाग़ का झूला समझ दिन-रात फुदकते हैं.
पक्षियों के बिना ये दुनिया कैसी सन्नाटे भरी होगी, इसकी कल्पनामात्र सिहरा देने के लिए काफ़ी है. हमने तालाबों का पानी चुरा लिया, नदियों को विषैला कर दिया, बारिश से उसके हिस्से की माटी छीन उस जमीं पर सीमेंट-कंक्रीट से भर अपना पट्टा लगा लिया, जंगलों को ऊँची इमारतों की तस्वीर दे दी, प्रकृति का जितना और जिस हद तक शोषण कर सकते थे, किया. अब हमारे पास अपना कहने को ज्यादा कुछ शेष नहीं है. आसमां पर दीवारें खड़ी हो सकतीं तो अब तक इसका भी बंटवारा हो गया होता! ये मासूम पक्षी ही हैं जो सबके आंगन में एक सी ख़ुशी लेकर उतरते हैं, हर वृक्ष को अपना घर समझ हमारी सुबह-शाम रोशन करते हैं. इनकी राहें उसी आसमां से होकर गुजरती हैं जहां हम कांच लगे मांज़े का नेटवर्क बिछाते हुए पल भर भी नहीं हिचकते.
मैं पतंग उड़ाने या उत्सव को पूरे हर्षोल्लास से मनाने का पूरी तरह समर्थन करती हूं पर हर वर्ष यह पतंगबाज़ी कितने निर्दोष पक्षियों को घायल करती है, उनकी जान ले लेती है; इस बात से भी वाकिफ़ हूं. दुपहिया वाहनों या पैदल चलते राहगीरों के लिए भी ये कई बार जानलेवा साबित होता है और पतंग लूटते हुए बच्चों की दुर्घटनाओं के हृदयविदारक किस्से भी हर बार सामने आते हैं. इनमें से कई घटनाओं को सावधान रहने और बच्चों को समझाने भर से रोका जा सकता है.
जहां तक पक्षियों और नागरिकों की सुरक्षा का प्रश्न है तो निम्नलिखित बातों को अपनाकर हादसों को कम किया जा सकता है -
* सुबह और शाम के समय पतंग उड़ाने से बचा जाए क्योंकि यह पक्षियों की आवाजाही का समय होता है.
* कांच लगा मांज़ा इस्तेमाल न करें.
* उड़ाते समय यदि कोई पक्षी इसकी चपेट में आ जाता है तो डोर खींचने की बजाय ढीली छोड़ दें.
* घायल पक्षियों की रक्षा/ देखभाल करने वाली संस्थाओं के संपर्क नंबर अपने पास रखें.
* टू-व्हीलर पर लोहे का गार्ड लगवा लें तथा वाहन चलाते समय हेलमेट पहनें. इसकी गति भी बहुत तेज न रखें. बच्चा अगर साथ में हो तो उसे आगे खड़ा न रखकर पीछे ही बिठाएं.
* पैदल चलते समय अपनी गर्दन और सिर पर दुपट्टा/मफ़लर लपेट लें.
* बहुत आवश्यक हो तो ही बाहर निकलें.
यह सब सुनिश्चित करने के बाद पूरी, जलेबी, उंधियु और तिल के बने स्वादिष्ट व्यंजनों का अपने परिवार और मित्रों के साथ भरपूर स्वाद लें. त्योहार को पूरे जोश और उल्लास के साथ मनायें. मकर संक्रांति की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.