“बुद्धम् शरणम गच्छामि, धम्मम शरणम गच्छामि.”
साप्ताहंत की छूट्टियाँ होने पर घर पहुँचा तो टीवी पर उच्चारित हो रहे शब्दों की ये पवित्र माला कानों में पड़ते ही अनायास ध्यान उस तरफ खींचा चला गया.
टीवी पर कोई न्युज़ चैनलवाला गया शहर में स्थित गुरपा पहाड़ी की टेर लगा रहा था. अब गया शहर ठहरा मेरा गृहप्रदेश और ऊपर से एक विश्वप्रसिद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल. स्वभाव से ही यायावर होने के कारण शहर और इसके आसपास के सभी इलाके तो अबतक मैने छान मारे थे. पर सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ और दुख भी कि अपने ही शहर का गुरपा पहाड़ी कैसे छूट गया. ख़ैर...अब रात हो चुकी थी. इसलिए मन मसोसकर रह गया.
तड़के ही बाइक उठा गुरपा पहाड़ी की खोज पर निकल पड़ा. खोज से मेरा गलत मतलब मत निकालिएगा. मैने कोई डिसकवरी नहीं करी, बल्कि गुरपा पहाड़ी ने ही मुझे खोज निकाला और अपनी तरफ आकृष्ट कर लिया. हा...हा!
तकरीबन दो घंटे लगे मुझे गया शहर से गुरपा पहाड़ी पहुँचने में, जो कि शहर से उत्तर-पूर्व की तरफ स्थित है. वैसे अगर आप गुरपा पहाड़ी की तरफ आने का मूड बनाएं तो बस और ट्रेन की सुविधा भी उपलब्ध है.
शहर के गुल-गपाड़े से दूर गुरपा पहाड़ी की तलहटी पर पहुँच बता नहीं सकता, मेरे मन को कितना सुकून मिला! पहाड़ी का रास्ता एक गाँव से होकर गुजरता है और अपने वाचाल स्वभाव के कारण गांव में ही कैम्प लगाए एक युवक से दोस्ती भी कर ली जो सफ़र में मेरा हमसफ़र बन गया. उस युवक ने अपना नाम मानस बताया और साथ ही यह भी बताया कि वह मगध विश्वविद्यालय बोधगया में गया के विभिन्न बौद्ध स्थलों पर शोध का एक छात्र है.
मानस के साथ ही पहाड़ी की सैंकड़ों सीढ़ियां चढ़ गुरपा पहाड़ी की चोटी पर जा पहुँचा, जहाँ से दूर-दूर तक आच्छादित जंगल, झरनों, आदि मनोरम...
“बुद्धम् शरणम गच्छामि, धम्मम शरणम गच्छामि.”
साप्ताहंत की छूट्टियाँ होने पर घर पहुँचा तो टीवी पर उच्चारित हो रहे शब्दों की ये पवित्र माला कानों में पड़ते ही अनायास ध्यान उस तरफ खींचा चला गया.
टीवी पर कोई न्युज़ चैनलवाला गया शहर में स्थित गुरपा पहाड़ी की टेर लगा रहा था. अब गया शहर ठहरा मेरा गृहप्रदेश और ऊपर से एक विश्वप्रसिद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल. स्वभाव से ही यायावर होने के कारण शहर और इसके आसपास के सभी इलाके तो अबतक मैने छान मारे थे. पर सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ और दुख भी कि अपने ही शहर का गुरपा पहाड़ी कैसे छूट गया. ख़ैर...अब रात हो चुकी थी. इसलिए मन मसोसकर रह गया.
तड़के ही बाइक उठा गुरपा पहाड़ी की खोज पर निकल पड़ा. खोज से मेरा गलत मतलब मत निकालिएगा. मैने कोई डिसकवरी नहीं करी, बल्कि गुरपा पहाड़ी ने ही मुझे खोज निकाला और अपनी तरफ आकृष्ट कर लिया. हा...हा!
तकरीबन दो घंटे लगे मुझे गया शहर से गुरपा पहाड़ी पहुँचने में, जो कि शहर से उत्तर-पूर्व की तरफ स्थित है. वैसे अगर आप गुरपा पहाड़ी की तरफ आने का मूड बनाएं तो बस और ट्रेन की सुविधा भी उपलब्ध है.
शहर के गुल-गपाड़े से दूर गुरपा पहाड़ी की तलहटी पर पहुँच बता नहीं सकता, मेरे मन को कितना सुकून मिला! पहाड़ी का रास्ता एक गाँव से होकर गुजरता है और अपने वाचाल स्वभाव के कारण गांव में ही कैम्प लगाए एक युवक से दोस्ती भी कर ली जो सफ़र में मेरा हमसफ़र बन गया. उस युवक ने अपना नाम मानस बताया और साथ ही यह भी बताया कि वह मगध विश्वविद्यालय बोधगया में गया के विभिन्न बौद्ध स्थलों पर शोध का एक छात्र है.
मानस के साथ ही पहाड़ी की सैंकड़ों सीढ़ियां चढ़ गुरपा पहाड़ी की चोटी पर जा पहुँचा, जहाँ से दूर-दूर तक आच्छादित जंगल, झरनों, आदि मनोरम प्राकृतिक छटाओं का दृश्य देखकर सफ़र की सारी थकान जाती रही. मानस ने बताया कि इस गुरपा पहाड़ी को गुरुपद गिरी तथा कुक्कुटपाड़ा गिरी की नाम से भी जाना जाता है. मानस ने ही बताया कि मैं कुछ घंटों से चूक गया नहीं तो पर्वत की चोटी पर सुर्योदय का दृश्य बड़ा मनोरम होता है. साथ ही यहाँ से सूर्यास्त देखना भी हृदय को शीतलता प्रदान करता है.
पता चला कि गुरपा की इसी पावन पहाड़ी पर भगवान बुद्ध के अंतिम शिष्य महाकश्यप को निर्वाण प्राप्त हुआ था. इस जगह को लेकर मानस ने एक बड़ी रोचक घटना सुनाई जिसे उसने अपने थेसिस में भी लिखा है. उसने बताया कि एक मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध के उत्तराधिकारी महाकश्यप जब अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर थे, तब वह इस पहाड़ी पर चढ़ने का प्रयत्न कर रहा थे. इसी दौरान पहाड़ी की एक चट्टान में उनका पाँव फँस गया. लेकिन इन्ही चट्टानों ने फिर स्वयं ख़ुद को अलग कर उनको रास्ता दिया. महाकश्यप पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे और ध्यानमग्न हो गये. ध्यान में रहते हुए पहाड़ी के चट्टान उनके चारों ओर सिमट गये. मान्यता है कि आज भी महाकश्यप इसी गुरपा पहाड़ी पर कहीं चट्टानों के बीच ध्यान में लीन हैं और बुद्ध के अगले अवतार मैत्रेय के आने का इंतजार कर रहे हैं.
आध्यात्मिक रूप में समृद्ध गुरपा पहाड़ी पर स्थित स्तुप, बौद्ध मंदिर एवम् उनके अवशेषों को मैने अपने कैमरे में कैद कर लिया. पहाड़ी पर कई बौद्ध श्रद्धालु भी दिखें, जो भगवान बुद्ध और महाकश्यप का ध्यान लगाकर विश्व शांति की कामना में लीन थे. मानस ने बताया कि गुरपा और इसके इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी द मिडिल वे, लंदन, फरवरी 1998 में प्रकाशित ‘व्हेयर महा कस्सपा वेट्स’ में भी वर्णित है.
हमलोग अभी घुम ही रहे थे कि तभी कहीं पास से ही मंदिर की घंटी और संस्कृत के श्लोक कानों में पड़े. मैं उलझन में पड़ा था. पर मानस ने मेरे मन की उहापोह पढ़ ली और मुस्कुराकर बताया कि गुरपा की यह पहाड़ी बौद्ध धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म की आस्था से भी जुड़ा हुआ है. किवदंतियों के अनुसार भगवान विष्णु के वामन अवतार का एक चरण गुरपा के इसी पवित्र पर्वत पर पड़ा था और उनके पदचिन्ह आज भी यहाँ मौजूद बताए गए हैं. जबकि एक अन्य मान्यता के अनुसार यह पर्वत पुरातन काल से ही ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है. पर्वत के शिखर पर गुरपासीन माता का मंदिर भी स्थित थी जहाँ हमदोनों ने जाकर शीष नंवाये.
गुरपा पर्वत के शिखर पर आकर और वहाँ की ढेर सारी बातें जानकर दिन कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला. मानस को भी वापस लौटना था. अगली बार फिर आने की सोच हमलोग वापस लौट गये. पर गुरपा पर्वत की वो ख़ूबसूरत वादियाँ आज भी जेहन में वैसे ही विद्यमान है और आपके साथ अपने अनुभव साझा करते हुए उन्हे अपनी आँखो के सामने जीता-जागता महसूस कर सकता हूँ.
सच में हमारे आसपास कई ऐसे ऐतिहासिक, पौराणिक और मनोरम स्थल हैं जो प्रसिद्धि के अभाव में हमारी आंखों से बचकर रह गए हैं. तो बस, देर कैसी! आप भी अपने आस-पास ऐसी ही कोई जगह ढुंढ निकालें और निकल पड़े उस स्थान की सैर पर.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.