नवरात्रे चल रहे हैं और माता रानी के भक्त 9 दिनों के व्रत बड़ी श्रृद्धा से रख रहे हैं. कहा जाता है कि व्रत रखने से मन, तन और आत्मा शुद्ध होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार नवरात्रों में व्रत रखने से मां प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. मैं भी पहले व्रत किया करती थी, लेकिन अब नहीं करती. बहुत से लोग मेरे व्रत न रखने को भक्ति से जोड़ते हैं. लेकिन मुझे लगता है कि मेरा स्वस्थ रहकर काम करते रहना ज्यादा जरूरी है. व्रत न करने पर भी मां के साथ मेरा जुड़ाव पहले जैसा ही है.
मेरी ऊर्जा तो सिर्फ ऑफिस में काम करने से ही खत्म हो जाती है. लेकिन घर आने वाली बाई पूरे 9 दिन के उपवास रखे हुए है जबकि वो कई घरों में काम करती है. ये बात कहकर उसे खुदपर बड़ा फख्र हो रहा था, लेकिन तीसरे ही दिन उसकी हालत खराब हो गई. मैंने समझाया कि व्रत मत रखो क्योंकि तुम्हें शारीरिक रूप से काफी मेहनत करनी होती है. लेकिन उसका यही कहना था कि 'मन नहीं मानता दीदी, शुरू से करते आए हैं.'
यानी स्वास्थ्य और व्रत में से किसी एक को चुनना पड़े तो महिलाएं व्रत को ही चुनती हैं क्योंकि यहां सवाल आस्था का है. व्रत के बारे में लोगों की ये सोच कितनी बदली है और कितनी बदलनी चाहिए इसपर लोगों का ध्यान जाना चाहिए.
अलग-अलग धर्म, अलग-अलग व्रत के प्रकार
व्रत, धर्म का साधन माना गया है. इसलिए संसार के समस्त धर्मों ने किसी न किसी रूप में व्रत और उपवास को अपनाया है. हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, यहूदी धर्म, ताओवाद, जैन धर्म में भी व्रत किए जाते हैं. भले ही हर धर्म में इसे अलग-अलग नाम से पुकारा जाता हो. जैसे इस्लाम में इसे रोजा कहते हैं. ईसाई fasting. अपनी-अपनी...
नवरात्रे चल रहे हैं और माता रानी के भक्त 9 दिनों के व्रत बड़ी श्रृद्धा से रख रहे हैं. कहा जाता है कि व्रत रखने से मन, तन और आत्मा शुद्ध होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार नवरात्रों में व्रत रखने से मां प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. मैं भी पहले व्रत किया करती थी, लेकिन अब नहीं करती. बहुत से लोग मेरे व्रत न रखने को भक्ति से जोड़ते हैं. लेकिन मुझे लगता है कि मेरा स्वस्थ रहकर काम करते रहना ज्यादा जरूरी है. व्रत न करने पर भी मां के साथ मेरा जुड़ाव पहले जैसा ही है.
मेरी ऊर्जा तो सिर्फ ऑफिस में काम करने से ही खत्म हो जाती है. लेकिन घर आने वाली बाई पूरे 9 दिन के उपवास रखे हुए है जबकि वो कई घरों में काम करती है. ये बात कहकर उसे खुदपर बड़ा फख्र हो रहा था, लेकिन तीसरे ही दिन उसकी हालत खराब हो गई. मैंने समझाया कि व्रत मत रखो क्योंकि तुम्हें शारीरिक रूप से काफी मेहनत करनी होती है. लेकिन उसका यही कहना था कि 'मन नहीं मानता दीदी, शुरू से करते आए हैं.'
यानी स्वास्थ्य और व्रत में से किसी एक को चुनना पड़े तो महिलाएं व्रत को ही चुनती हैं क्योंकि यहां सवाल आस्था का है. व्रत के बारे में लोगों की ये सोच कितनी बदली है और कितनी बदलनी चाहिए इसपर लोगों का ध्यान जाना चाहिए.
अलग-अलग धर्म, अलग-अलग व्रत के प्रकार
व्रत, धर्म का साधन माना गया है. इसलिए संसार के समस्त धर्मों ने किसी न किसी रूप में व्रत और उपवास को अपनाया है. हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, यहूदी धर्म, ताओवाद, जैन धर्म में भी व्रत किए जाते हैं. भले ही हर धर्म में इसे अलग-अलग नाम से पुकारा जाता हो. जैसे इस्लाम में इसे रोजा कहते हैं. ईसाई fasting. अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उपवास कुछ घंटो, कुछ दिनों के या महीने भर के हो सकते हैं. लेकिन हर धर्म में उपवास का मकसद सिर्फ एक ही होता है त्याग और खुद को अंदर तक साफ कर लेना.
लाइफस्टाइल और व्रत-
व्रत के बारे में कहा जाता है कि ये सिर्फ आस्था से ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य से भी जुड़ा है. दिन में एक बार या दो बार का खाना न खाकर शरीर को भी अंदर से साफ करने का मौका मिलता है, पाचन तंत्र भी अच्छा रहता है. इसलिए व्रत या fasting अच्छी होती है. विदेशों में तो लोग fasting lifestyle OMAD(One meal a day) अपना रहे हैं जिससे वजन नियंत्रण कर सकें. लेकिन आजकल देखा जाता है कि भागदौड़ भरी दिनचर्या में लोग जब सामान्य खानपान पर ध्यान नहीं दे पाते, उसमें लापरवाही करते हैं तो उपवास करना उनके लिए और भी भारी पड़ता है.
घर में रहकर लोग व्रत में खास और पौष्टिक खाना खा सकते हैं, फलाहार कर सकते हैं. लेकिन बाहर ये सब करना जरा सा मुश्किल होता है. लोग व्रत में बिना अनाज का खाना खा तो लेते हैं लेकिन कब खाना है, कितना खाना है या बिल्कुल भी नहीं खाना है, इसमें पीछे रह जाते हैं. लिहाजा ये सब चीजें शरीर पर साकारात्मक नहीं बल्कि नकारात्मक प्रभाव डालती हैं. लोगों को ऊर्जा की कमी महसूस होती है और वो व्रत नहीं रख पाते.
विज्ञान ने बताए हैं व्रत के फायदे और नुकसान
व्रत के बारे में कभी भी ये नहीं कहा जाता कि ये अच्छा नहीं है. और अगर सभी धर्मों ने इसे अपनाया है तो इसके पीछे कोई ठोस कारण तो होगा ही. विज्ञान ने व्रत रखने के कुछ फायदे बताए हैं-
- व्रत blood sugar लेवल को कम करने और इंसुलिन प्रतिरोध को कम करने में मदद कर सकता है, लेकिन पुरुषों और महिलाओं को अलग तरह से प्रभावित कर सकता है.
- उपवास से कोरोनरी हृदय रोग कम होते हैं. ये blood pressure, triglycerides और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है.
- जानवरों पर हुए शोध से पता चलता है कि उपवास brain function यानी मस्तिष्क की कार्य क्षमता में सुधार कर सकता है, nerve cell synthesis को बढ़ा सकता है और अल्जाइमर और पार्किंसंस रोग जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियों से बचा सकता है.
- व्रत से metabolism बढ़ सकता है और शरीर के वजन और शरीर की वसा को कम करने में मदद कर सकता है.
- उपवास मानव विकास हार्मोन (HGH) के स्तर को बढ़ा सकता है, ये एक महत्वपूर्ण प्रोटीन हार्मोन है जो विकास, मेटाबॉलिज्म, वजन घटाने और मांसपेशियों को ताकत देने में अहम भूमिक निभाता है.
व्रत के नुक्सान भी हैं- माना कि व्रत के फायदों की लिस्ट लंबी है लेकिन ये हर किसी के लिए सही नहीं हो सकता.
- यदि आप डायबिटीज या low blood sugar वाले लोगों को व्रत नहीं करना चाहिए नहीं तो व्रत से blood sugar का स्तर बिगड़ सकता है, जो खतरनाक हो सकता है.
- वृद्ध लोगों, किशोरों या कम वजन वाले लोगों को व्रत करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए.
- व्रत कर ही रहे हों तो ऐसे खाने पर जोर दें जिसमें भरपूर पोषक तत्व मौजूद हों, और जो आपको हाइड्रेटेड रख सके.
- इसके अलावा अगर ज्यादा समय के लिए व्रत करना हो तो शारीरिक गतिविधि को कम करने और भरपूर आराम करने का प्रयास करें. यानी ऊर्जा बचाएं.
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अंधविश्वास और व्रत
व्रत को अगर आस्था से जोड़ा जाता है तो स्वाभाविक है कि वहां विश्वास भी होगा और अंधविश्वास भी. अपने विश्वास की वजह से ही लोगों ने व्रत करने के नियम ऐसे बनाए हुए हैं कि उसमें अगर जरा भी कमी रह जाए तो उसे अपशगुन से जोड़ा जाता है. व्रत में अगर किसी को उल्टी हो जाए को उस व्रत को खंडित मान लिया जाता है. व्रत के समय अगर किसी महिला को पीरियड आ जाएं तो कहा जाता है कि व्रत फलता नहीं. सबसे बड़ा अंधविश्वास तो करवाचौथ के व्रत को लेकर है. ये व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है इसलिए इसको लेकर भी महिला किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेती, वो किसी भी अवस्था में क्यों न हो व्रत नहीं छोड़ती. हालांकि इसे लेकर अपनी अपनी आस्था है. नवरात्र के 9 दिन बहुत से लोग तो केवल लौंग खाकर बिता देते हैं. वो ये करते आ रहे हैं इसलिए डर की वजह से रखते ही रहते हैं. चाहे स्वास्थ्य खराब हो जाए. लेकिन आज भी व्रत को लेकर ऐसे नियम कायदे बने हुए हैं जहां व्रत में आस्था नहीं बल्कि डर शामिल होता है. और जहां डर हो, वहां विश्वास नहीं होता.
महिला-पुरूष बनाम व्रत
यूं तो किसी की श्रद्धा और विश्वास पर उंगली नहीं उठाई जा सकती, लेकिन धर्म-कर्म के मामले में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं ही आगे रहती हैं. मंदिरों में पुरूषों के मुकाबले महिलाएं ही दिखाई देती हैं. बेटे के लिए व्रत हो, पति के लिए व्रत हो या घर की सुख शांति के लिए व्रत हो वो सभी व्रतों की जिम्मेदारी घर की महिलाएं पर ही होती है. हां कुछ पुरुषों को मंगलवार के व्रत करते जरूर देखा है. लेकिन ऐसे लोगों की संख्या काफी कम है. लेकिन आज बराबरी के जमाने में ये बात हमेशा ही बहस का रूप ले लेती है कि अगर स्त्रियां व्रत कर सकती हैं तो पुरुष क्यों नहीं. शरीर को कष्ट देना हो या भोजन का त्याग करना हो तो ये सिर्फ महिलाओं के लिए ही क्यों?
खैर ये तो बहस का विषय है और हमेशा रहेगा भी. लेकिन व्रत को लेकर मुझे सिर्फ एक बात समझ आती है कि अगर व्रत रखकर मेरा शरीर परेशान होता है तो मैं व्रत नहीं रखती. जितनी आस्था ईश्वर में है उतनी ही आस्था अपने शरीर से भी है. और इसीलिए माता की भक्त होने के बावजूद भी मैं व्रत नहीं रखती.
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