पीजी वुडहाउस के उपन्यासों में से मेरा सबसे पसंदीदा नोवल है डैमशेल इन डिस्ट्रेस. इस उपन्यास में वुडहाउस की हिरोइनें इतनी समर्थ, शक्तिशाली और घातक होती हैं कि उनके डर से पुरुषों को भी पसीना आ जाए.
डैमशेल इन डिस्ट्रेस का मतलब है संकट में स्त्री. मुसीबत की मारी, एक बेचारी स्त्री. जिसे खुद की रक्षा करने के लिए पुरुष की जरुरत पड़ती है. लेकिन जितना मैंने इतिहास को पढ़ा है उसमें मैंने इसका ठीक उल्टा ही पाया. उस वक्त भी स्त्रियां सक्षम होती थीं. या कहें कि उन्हें होना पड़ता था क्योंकि मर्द अक्सर या ज्यादातर युद्ध अभियानों या व्यापार के कारण घर के बाहर ही रहते थे.
इतिहास पढ़ने के दौरान मुझे सईद नासिर नाज़िर की एक किताब मिली- लाल किला की एक झलक. नाज़िर का जन्म 16 अगस्त 1865 को दिल्ली में हुआ था और उनकी प्रारंभिक शिक्षा उन्हें उनके पिता द्वारा मिली थी. नाज़िर के पिता एक जानेमाने कवि थे जो 'मलाल' नाम से जाने जाते थे. नाज़िर ने चिकित्सा के क्षेत्र में अपना नाम कमाया और धरमपुर के रईस ने उन्हें अपना चिकित्सक और अपने बच्चों का शिक्षक नियुक्त किया था. धरमपुर के रईस की मौत के बाद नाज़िर दिल्ली आ गए. यहां आध्यात्म की ओर उनका झुकाव हुआ और उन्होंने एकांत में जीना शुरु कर दिया. साक़ी मैगजीन के लिए उन्होंने लगातार कई आर्टिकल लिखे जो बाद में लाल किला की एक झलक के नाम से छपे.
किताब में अपनी 76 कहानियों के जरिए वो महल के अंदर की बातें बतातें हैं. ये कहानियां उन्हें बन्नी खानुम ने सुनाई थी जो महल के किचन की महिला दारोगा की बहू थी. बन्नी 1857 तक अपनी सास के साथ महल के किचन में जाती थी. इनमें से एक कहानी से मैं बहुत प्रभावित हुई. क्योंकि मेरी दादी ने भी घर में घुसे डाकुओं को एक बार बेवकूफ बनाकर भगा दिया था. हुआ ये था कि मेरी दादी के घर में कुछ डकैत घुस आए थे. तब मेरी दादी ने खुब जोर जोर से हुक्का गुड़गुड़ाना शुरु कर दिया. डकैतों को लगा था कि घर में कोई पुरुष नहीं है तो वो घर लूट लेंगे. लेकिन...
पीजी वुडहाउस के उपन्यासों में से मेरा सबसे पसंदीदा नोवल है डैमशेल इन डिस्ट्रेस. इस उपन्यास में वुडहाउस की हिरोइनें इतनी समर्थ, शक्तिशाली और घातक होती हैं कि उनके डर से पुरुषों को भी पसीना आ जाए.
डैमशेल इन डिस्ट्रेस का मतलब है संकट में स्त्री. मुसीबत की मारी, एक बेचारी स्त्री. जिसे खुद की रक्षा करने के लिए पुरुष की जरुरत पड़ती है. लेकिन जितना मैंने इतिहास को पढ़ा है उसमें मैंने इसका ठीक उल्टा ही पाया. उस वक्त भी स्त्रियां सक्षम होती थीं. या कहें कि उन्हें होना पड़ता था क्योंकि मर्द अक्सर या ज्यादातर युद्ध अभियानों या व्यापार के कारण घर के बाहर ही रहते थे.
इतिहास पढ़ने के दौरान मुझे सईद नासिर नाज़िर की एक किताब मिली- लाल किला की एक झलक. नाज़िर का जन्म 16 अगस्त 1865 को दिल्ली में हुआ था और उनकी प्रारंभिक शिक्षा उन्हें उनके पिता द्वारा मिली थी. नाज़िर के पिता एक जानेमाने कवि थे जो 'मलाल' नाम से जाने जाते थे. नाज़िर ने चिकित्सा के क्षेत्र में अपना नाम कमाया और धरमपुर के रईस ने उन्हें अपना चिकित्सक और अपने बच्चों का शिक्षक नियुक्त किया था. धरमपुर के रईस की मौत के बाद नाज़िर दिल्ली आ गए. यहां आध्यात्म की ओर उनका झुकाव हुआ और उन्होंने एकांत में जीना शुरु कर दिया. साक़ी मैगजीन के लिए उन्होंने लगातार कई आर्टिकल लिखे जो बाद में लाल किला की एक झलक के नाम से छपे.
किताब में अपनी 76 कहानियों के जरिए वो महल के अंदर की बातें बतातें हैं. ये कहानियां उन्हें बन्नी खानुम ने सुनाई थी जो महल के किचन की महिला दारोगा की बहू थी. बन्नी 1857 तक अपनी सास के साथ महल के किचन में जाती थी. इनमें से एक कहानी से मैं बहुत प्रभावित हुई. क्योंकि मेरी दादी ने भी घर में घुसे डाकुओं को एक बार बेवकूफ बनाकर भगा दिया था. हुआ ये था कि मेरी दादी के घर में कुछ डकैत घुस आए थे. तब मेरी दादी ने खुब जोर जोर से हुक्का गुड़गुड़ाना शुरु कर दिया. डकैतों को लगा था कि घर में कोई पुरुष नहीं है तो वो घर लूट लेंगे. लेकिन दादी के हुक्के की आवाज सुनकर उन्हें लगा की घर के मर्द वापस आ गए हैं और वो उल्टे पैर भाग गए. बचपन में मुझे ये कहानी सुननी बड़ी अच्छी लगती थी.
इसलिए बन्नी की सुनाई कहानी जिसे नाज़िर ने लिखा है वो मेरे दिल को छू गई-
मुगलानी और डकैत
दिल्ली के सब्जी मंडी के पास की एक जगह है जिसका नाम मुगलपुरा रख दिया गया है. ध्यान देने की बात ये है कि ये वो मुगल नहीं जिसने पूरे देश पर राज किया. बल्कि इन्हें मुगल इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये मध्य एशिया से आए थे और मुगल आर्मी में इन्होंने अपनी सेवाएं दी थी. इनके परिवार की महिलाओं को मुगलानी कहते हैं.
एक दिन जब मैं बरादरी अपने गुरु से मिलने गई तो मैंने देखा कि मुगलपुरा की 50 औरतें और बच्चे वहां जमा थे. मैंने मीर दर्द की पोती और मौलवी नासिर जान की बीवी बेगम साहिब से पूछा- "हजरत आज तो कोई उर्स (संत का जन्मदिवस) भी नहीं है न कोई शादी फिर मुगलपुरा की इतनी औरतें और बच्चे यहां क्यों आए हुए हैं?"
बेगम साहिब ने कहा- "ये लोग बहुत दिक्कत में हैं. इसलिए डर से ये अपने घरों को छोड़कर यहां आ गए हैं. खानम जानती हो इनके घरों के 12 से 50 की उम्र के सारे मर्द, सुल्तान के साथ दक्कन के अभियान में चले गए हैं. अब घरों में ये औरतें और उनके छोटे बच्चे ही बचे हैं. आठ दिन पहले की बात है. एक भिखारी इनके दरवाजे पर भीख मांगता हुआ आया."
एक नौकरानी भिखारी को भीख देने गई. लेकिन उसने उस भिखारी को सिर्फ भीख ही नहीं दी बल्कि उसे ये भी बता दिया कि- 'बाबा, ये 20 घर विलायती मुगलों के हैं और घर के सारे पुरुष जंग पर गए हैं. अब यहां सिर्फ औरतें और बच्चे ही बचे हैं. वैसे ये लोग खुब अमीर हैं और इनके घरों में कीमती हीरे जवाहरात भरे पड़े हैं.'
भिखारी ने उसकी बात पूरे ध्यान से सुनी और फिर दूसरे घरों में भीख मांगने के लिए चला गया. जब नौकरानी घर में वापस आई तो मालकिन ने उससे पूछा कि आखिर उसे इतना समय क्यों लग गया? उसने भिखारी को क्या कहा?
नौकरानी ने भिखारी से हुई अपनी बातचीत को उसे बता दिया. अब घर की औरतें खूब गुस्सा हुईं. किसी अजनबी को घर की बात बताने पर उसे खूब डांट लगाई. अब सारी औरतें डर गईं थीं कि वो भिखारी रात को अब उनके घर को लूटने जरुर आएगा. सभी घरों की खिड़कियां दूसरे घरों में खुलती थीं. इनके जरिए सभी घरों तक ये खबर पहुंचा दी गई. अब सारी औरतें एक जगह इकट्ठा हुईं और इस समस्या से निपटने का उपाय सोचने लगीं.
तय हुआ कि रात को सारी महिलाएं, पुरुषों के कपड़े पहनकर छत पर रखवाली करेंगी. रात को यही किया गया. सारी महिलाएं अपने घर के पुरुषों के कपड़े पहनकर और उनके हथियार लेकर छत पर रखवाली करने लगीं. रात शांति से गुजर गई. अगले दिन भीख मांगते हुए भिखारी फिर आया. उसकी आवाज सुनते ही नौकरानी दौड़ पड़ी.
भिखारी ने उसे डांटते हुए कहा- "झूठी. तुमने कहा था कि घर में कोई मर्द नहीं है. लेकिन रात को तो छतों पर पुरुष पहरा दे रहे थे. मैंने खुद उन्हें देखा था. उन्होंने तो मशालें भी जला रखी थी." नौकरानी ने कहा- "बाबा, मैंने झूठ नहीं कहा था. सच में यहां कोई पुरुष नहीं है. सारे पुरुष राजा के साथ जंग पर गए हैं. लेकिन इन औरतों से तो भगवान ही बचाए! ये बहुत ही चालाक औरतें हैं. रात को उन्होंने अपने अपने पतियों के कपड़े पहन लिए थे उनके ही हथियार लेकर वो सभी ही पहरा दे रही थीं. ताकि लुटेरों को लगे की घर के पुरुष पहरा दे रहे हैं."
जब नौकरानी वापस आई तो घर की औरतों ने उससे पूछा- "आज तुमने शाह जी को क्या कहा?"
जब उन्होंने उसकी बात सुनी, तो सभी महिलाओं ने चीखना और नौकरानी को कोसना शुरु कर दिया. "अब भिखारी सच्चाई जानता है, वो रात को आएंगे और हमें लूट लेंगे! इसलिए अब यही सही रहेगा कि शाम से पहले हम अपने सभी क़ीमती सामान लेकर हजरत बेगम साहिबा के पास शरण ले लें. और इस धोखेबाज औरत को इसकी नियति के भरोसे छोड़ देते हैं."
उसी शाम सारी मुगल औरतें अपने कीमती सामान के साथ यहां आ गईं. कल मुगलपुरा से आए एक व्यक्ति ने बताया कि "जिस रात औरतों ने मुगलपुरा को छोड़ा था उसी रात वहां डकैती हुई थी और डकैतों के हाथ कुछ भी नहीं आया. उन्होंने कई घरों में हमला किया पर हर जगह खाली हाथ ही रहे. गुस्से में उन्होंने नौकरानी को खूब मारा. क्योंकि उसने उनका वक्त बर्बाद किया था."
नौकरानी की पिटाई की खबर सुनकर मुगल औरतें बहुत खुश हुई थी. अब हजरत बाबा ने पुलिस को इत्लाह कर दिया है और पुलिस ने महिलाओं को सुरक्षा देने का वादा किया है. ये औरतें अब कुछ दिनों में वापस अपने घरों को चली जाएंगी."
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