जम्मू कश्मीर में कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दो साल पूरे हो गए हैं. परिसीमन आयोग का भी काम जारी है. आतंकवाद-अलगाववाद और पत्थरबाज़ी की घटनाओं और उनसे होने वाली राजनीतिक उठा पटक पर लगभग ताला लगता जा रहा है. नए कश्मीर को बुनने की पहल जारी है जिसकी अपनी चुनौतियां हैं. इस बीच, लालचौक को हब्बाकदल से अलग करने वाले इलाके में स्थित शीतलनाथ मंदिर में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद इस साल पूरे 31 साल बाद पहली बार बसंत पंचमी पर बड़े धार्मिक समागम के रूप में पूजा व हवन का आयोजन किया गया.
कोई दो साल से मीडिया में आते जाते ‘नए कश्मीर’ के समाचारों और योजनाओं के बीच पिछले कोई 31 साल से दुनिया के कोने कोने में रह रहे कश्मीरी पंडित उस शीतलनाथ मंदिर की ओर निहार रहे थे जो उनके लिए शान्ति, आस्था , सद्भाव और सौहाद्र का परिचायक है. नया कश्मीर इन आँखों में अपनी ही तरह से पल रहा था. उम्मीदें हाथ थाम रही थी, मातृभूमि अपनी ओर खींच रही थी, जब इसी श्रीनगर स्थित शीतलनाथ मंदिर में बसंत पंचमी का पूजा हवन करने कश्मीरी पंडित न सिर्फ पहुंचे बल्कि हज़ारों की संख्या में सोशल मीडिया की मदद से उसके साक्षी भी बने.
अब शीतलनाथ मंदिर अपनी पूरी ऊर्जा के साथ एक बार फिर न सिर्फ कश्मीरी पंडितों, बल्कि देश विदेश के पर्यटकों का स्वागत करने के लिए तैयार हो रहा है. कश्मीर के इस ऐतिहासिक मंदिर में कश्मीरी पंडितों का शहीदी स्मारक बनाया जा रहा है. तीन दशक पूर्व कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और आतंकियों की आगजनी के बाद से जर्जर पड़े मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है. कश्मीर में सबसे पुरानी सभा सनातन धर्म शीतलनाथ आश्रम सभा एक शहीद स्मारक बनाकर 13 व 14 सितंबर...
जम्मू कश्मीर में कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दो साल पूरे हो गए हैं. परिसीमन आयोग का भी काम जारी है. आतंकवाद-अलगाववाद और पत्थरबाज़ी की घटनाओं और उनसे होने वाली राजनीतिक उठा पटक पर लगभग ताला लगता जा रहा है. नए कश्मीर को बुनने की पहल जारी है जिसकी अपनी चुनौतियां हैं. इस बीच, लालचौक को हब्बाकदल से अलग करने वाले इलाके में स्थित शीतलनाथ मंदिर में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद इस साल पूरे 31 साल बाद पहली बार बसंत पंचमी पर बड़े धार्मिक समागम के रूप में पूजा व हवन का आयोजन किया गया.
कोई दो साल से मीडिया में आते जाते ‘नए कश्मीर’ के समाचारों और योजनाओं के बीच पिछले कोई 31 साल से दुनिया के कोने कोने में रह रहे कश्मीरी पंडित उस शीतलनाथ मंदिर की ओर निहार रहे थे जो उनके लिए शान्ति, आस्था , सद्भाव और सौहाद्र का परिचायक है. नया कश्मीर इन आँखों में अपनी ही तरह से पल रहा था. उम्मीदें हाथ थाम रही थी, मातृभूमि अपनी ओर खींच रही थी, जब इसी श्रीनगर स्थित शीतलनाथ मंदिर में बसंत पंचमी का पूजा हवन करने कश्मीरी पंडित न सिर्फ पहुंचे बल्कि हज़ारों की संख्या में सोशल मीडिया की मदद से उसके साक्षी भी बने.
अब शीतलनाथ मंदिर अपनी पूरी ऊर्जा के साथ एक बार फिर न सिर्फ कश्मीरी पंडितों, बल्कि देश विदेश के पर्यटकों का स्वागत करने के लिए तैयार हो रहा है. कश्मीर के इस ऐतिहासिक मंदिर में कश्मीरी पंडितों का शहीदी स्मारक बनाया जा रहा है. तीन दशक पूर्व कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और आतंकियों की आगजनी के बाद से जर्जर पड़े मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है. कश्मीर में सबसे पुरानी सभा सनातन धर्म शीतलनाथ आश्रम सभा एक शहीद स्मारक बनाकर 13 व 14 सितंबर को दो दिवसीय आयोजन कर कश्मीरी पंडितों का शहीदी दिवस मनाने की योजना बना चुकी है और उसे अंजाम देने के लिए स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर तैयारियों में जुटे हुए हैं. मंदिर का संचालन और प्रबंधन देखने वाली सभा एक बड़े डेवलपमेंट प्लान पर भी काम कर रही है.
सनातन धर्म शीतलनाथ टेम्पल एंड आश्रम सभा ने क्रमवार तरीके से चलते हुए एक स्थायी पुजारी और रोजाना आरती की व्यवस्था के साथ प्लान का पहला चरण पूरा हो चुका है. 1992 में देश विरोधी तत्वों द्वारा जलाए गए मंदिर और हवनशाला के जीर्णोद्धार के साथ ही एक बाउंड्री वॉल का निर्माण भी कराया गया है. सभा ने परिसर में बनी स्कूल बिल्डिंग से अवैध कब्ज़ाइयों को हटवाने के लिए भी कड़े कदम उठाए हैं. अगले चरण में एक यात्री निवास और शहीद समारक भी बनाने की योजना है. हज़ारों साल पुराने शीतलनाथ मंदिर का आज का रूप कोई 600 साल पुराना है और मंदिर के इसी प्रांगण से प्रतिष्ठित मार्तण्ड अखबार भी निकलता था.
कश्मीर के इतिहास की सबसे पुरानी आधिकारिक रजिस्टर्ड सभा- सनातन धर्म शीतलनाथ टेम्पल एंड आश्रम सभा, जो इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण के लिए लगातार चुपचाप काम कर रही थी. ये घटना न सिर्फ कश्मीरी पंडितों, बल्कि सारे हिन्दुस्तान के लिए एक प्रमुख घटना के तौर पर समझी जानी चाहिए. जिस जगह का जीर्णोद्धार हो रहा है वो सिर्फ इमारत या प्रांगण न होकर कश्मीर और देश के लिए ऐतिहासिक महत्त्व की जगह है. शीतल नाथ मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थान न होकर अविभाजित कश्मीर का वो स्थान है जहाँ से कई सांस्कृतिक, सामजिक और राजनीतिक आन्दोलनों ने जन्म लिया. श्रीनगर स्थित इस मंदिर और मंदिर प्रांगण की शक्ति और महत्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी और वीर सावरकर समेत कई स्वतंत्रता सैनानियों और आंदोलनकारियों ने इस शीतलनाथ मंदिर प्रांगण को ही आन्दोलनों का केंद्र बनाया. इतना ही नहीं, 1947 में हुए कबाइली हमले के दौरान शीतलनाथ मंदिर की धरती से हिन्दू और मुसलामानों को एक होकर उन हमलों का सामना करने और सूफी संतों की इस पवित्र भूमि की रक्षा के लिए आवाज़ दी थी. इसके अलावा हिंदुस्तान में लव जिहाद की सब से पहला घटना पर आंदोलन इसी शीतलनाथ मंदिर के परिसर से नियंत्रित किया गया था.
साफ़ तौर पर शीतलनाथ मंदिर उस कश्मीरियत का गवाह है जिसे 1990 के बाद गुमशुदा सी हो गयी. उस सामजिक ताने बाने की नींव है जहाँ देश, कौमी एकता और सद्भाव कण कण में व्याप्त है. मुझे लगता है धारा 370 के हटने के बाद नए कश्मीर के लिए जितने भी कदम उठाये जा रहे हैं उन सबके बीच शीतलनाथ प्रांगण का खुलना शान्ति की एक नयी लहर के उठने का परिचायक है.
1990 में हुए कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद अब एक बार फिर मंदिर प्रांगण में हलचल है. बदलाव एक बार में, एक दिन में या एक साल में यकीनन नहीं होगा, पर मैं शीतलनाथ मंदिर में बढ़ी इस हलचल को कश्मीरियत की आमद के तौर पर देखता हूँ. 32 वर्षो में शीतलनाथ ने बहुत कुछ देखा और ख़ामोशी से सेह्ता रहा. शीतलनाथ को अपनों के हाथों फ़र्ज़ी कागज़ बनाकर बेचने की कोशिश हुई तो कभी किसी पोलिटिकल गुट ने मौका देख कर क्रेडिट लेने की कोशिश भी की.
शीतलनाथ ख़ामोशी से सब देख रहा है और जिस तरह से स्थानीय प्रशासन श्री सनातन धर्म शीतलनाथ आश्रम सभा के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर इस जगह ही रौनक लौटाने की कोशिशों में लगा है, ये यकीनन उस नए कश्मीर की नीव डल रही है जहाँ बिना बंदूकों के साये में एक साथ न सिर्फ त्यौहार, मेले और उत्सव मनाये जा सकते हैं, बल्कि एक साथ राज्य और देश को आगे भी ले जाया जा सकता है. एक नए उन्नत उज्जवल शांत, पर दमकते कश्मीर की ओर. मुझे इस बार शीतलनाथ मंदिर प्रांगण से नए कश्मीर का हर दिल अजीज़ शांति संगीत सुनाई दे रहा है जिसमें परस्पर प्रेम भी है और कश्मीरी गर्व भी.
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