क्या हनुमान जी बंदर थे? ठीक वैसे ही जैसे हम आज के बंदरों को देखते हैं. फिर आज के बंदर हनुमान जी की तरह इंसानों की भाषा क्यों नहीं बोल सकते? क्यों आज के बंदर पहाड़ को उठा नहीं सकते? क्यों आज के बंदर अपने शरीर को बड़ा या छोटा नहीं कर सकते? क्यों आज के बंदर समुद्र पार नहीं कर सकते हैं? कुछ विचारवान तार्किकों का मानना है कि हनुमान जी बंदर नहीं थे बल्कि वानर कबीले से आते थे. ये एक कबीला था जो वानरों की तरह दिखता था लेकिन थे ये सभी इंसान ही.कुछ विद्वानों ने आगे जाकर वानर शब्द का संधि विच्छेद भी कर दिया और कहा कि वन+नर=वानर. यानि वन में रहने वाले इंसानों को वानर कहा जाता था. फिर इनसे पूछिये कि रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग कैसे लगा दी. अगर ये वनों में रहने वाले नर ही थे तो फिर कौन सा इंसान है जो पहाड़ को उठा सकता है, कौन सा इंसान है जो रुप बदल सकता है या फिर समुद्र पार कर सकता है. फिर रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग कैसे लगाई. क्योंकि वानर यानि वन में रहने वाले इंसान की पूंछ तो नहीं होनी चाहिए थी.
दोनों ही तर्कों यानि वानरों को इंसान कहने वाले और हनुमान जी को आज जैसे बंदर कहने वालों के पास जवाब खत्म हो जाते हैं. मेरा मानना है कि हनुमान, सुग्रीव, वालि, अंगद सभी बंदर ही थे, उनकी पूंछ भी थी, लेकिन ये आम बंदरों की तरह नहीं थे. ये देवताओं के अंश पुत्र थे जिन्होंने वानरों का शरीर धारण किया था.
ठीक वैसे ही जैसे विष्णु जी ने कभी मत्स्य, कभी वाराह, कभी कछुए का शरीर धारण किया था लेकिन थे वो मूल रुप से विष्णु. शरीर धारण करने से वो आम कछुए या मछली, या फिर वाराह नहीं माने जा सकते ना. रामायण में तीन कथाएं इस बात का आधार मानी जाती है.
पहली, ये कि जब कार्तिकेय के जन्म...
क्या हनुमान जी बंदर थे? ठीक वैसे ही जैसे हम आज के बंदरों को देखते हैं. फिर आज के बंदर हनुमान जी की तरह इंसानों की भाषा क्यों नहीं बोल सकते? क्यों आज के बंदर पहाड़ को उठा नहीं सकते? क्यों आज के बंदर अपने शरीर को बड़ा या छोटा नहीं कर सकते? क्यों आज के बंदर समुद्र पार नहीं कर सकते हैं? कुछ विचारवान तार्किकों का मानना है कि हनुमान जी बंदर नहीं थे बल्कि वानर कबीले से आते थे. ये एक कबीला था जो वानरों की तरह दिखता था लेकिन थे ये सभी इंसान ही.कुछ विद्वानों ने आगे जाकर वानर शब्द का संधि विच्छेद भी कर दिया और कहा कि वन+नर=वानर. यानि वन में रहने वाले इंसानों को वानर कहा जाता था. फिर इनसे पूछिये कि रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग कैसे लगा दी. अगर ये वनों में रहने वाले नर ही थे तो फिर कौन सा इंसान है जो पहाड़ को उठा सकता है, कौन सा इंसान है जो रुप बदल सकता है या फिर समुद्र पार कर सकता है. फिर रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग कैसे लगाई. क्योंकि वानर यानि वन में रहने वाले इंसान की पूंछ तो नहीं होनी चाहिए थी.
दोनों ही तर्कों यानि वानरों को इंसान कहने वाले और हनुमान जी को आज जैसे बंदर कहने वालों के पास जवाब खत्म हो जाते हैं. मेरा मानना है कि हनुमान, सुग्रीव, वालि, अंगद सभी बंदर ही थे, उनकी पूंछ भी थी, लेकिन ये आम बंदरों की तरह नहीं थे. ये देवताओं के अंश पुत्र थे जिन्होंने वानरों का शरीर धारण किया था.
ठीक वैसे ही जैसे विष्णु जी ने कभी मत्स्य, कभी वाराह, कभी कछुए का शरीर धारण किया था लेकिन थे वो मूल रुप से विष्णु. शरीर धारण करने से वो आम कछुए या मछली, या फिर वाराह नहीं माने जा सकते ना. रामायण में तीन कथाएं इस बात का आधार मानी जाती है.
पहली, ये कि जब कार्तिकेय के जन्म के पहले शिव और पार्वती के मिलन में देवताओं ने अवरोध उत्पन्न कर दिया तो माता पार्वती ने देवताओ को श्राप दे दिया कि वो अपनी पत्नियों और अप्सराओं से संतान पैदा नहीं कर सकते.
दूसरे, जब रावण भगवान शिव को चैलेंज देने के लिए कैलाश पर्वत पर जा धमका तो वहां नंदी ने रावण का रास्ता रोक लिया. रावण ने नंदी के वानर जैसे मुख को देख कर उनका मज़ाक उड़ाया. तब नंदी ने श्राप दिया कि रावण तेरा वध वानरों की सहायता से होगा.
तीसरे, रावण ने ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि उसे न तो देवता, न राक्षस और न ही यक्ष या गंधर्व या कोई पशु मार सके. वो ये इंसान को इसमें जोड़ना भूल गया. अब ये तीनो ही स्टोरी के प्लॉट बन गए.
जब दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे तब सभी देवता उनके पास रावण के वध का उपाय पूछने के लिए गए. वहां विष्णु जी ने कहा कि मैं इंसान का शरीर धारण कर दशरथ के चारों पुत्रों के रुप में अलग अलग अंशों के साथ अवतार लूंगा.
श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न विष्णु के अलग अलग अंशों के अवतार थे. यानि विष्णु ने इंसान का शरीर धारण कर राम के रुप में अवतार लिया. इस हिसाब से श्रीराम थे तो इंसान ही लेकिन वो मूल रुप से विष्णु ही थे. आम इंसानों से एकदम अलग थे. उनकी पलकें नहीं झपकती थीं जैसे देवताओं की नहीं झपकती. और भी कई विशेषताएं थी जो उन्हें आम इंसानों से अलग करती थी और देवता साबित करती थीं.
अब बारी थी दूसरे देवताओं की. सभी देवताओं ने धरती पर बंदरों का शरीर धारण किया और अपनी पत्नियों से अपने अंश पुत्रों को जन्म दिया जिनके सिर्फ शरीर बंदरों और रीक्षों के थे. वो मूलतः थे देवताओं के पुत्र. हनुमान जी की मां अंजना दरअसल पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थी जिससे वायुदेव ने अपने अंश पुत्र के रुप में बंदर का शरीर देकर हनुमान को जन्म दिया.
इसी प्रकार सुग्रीव सूर्य के अंश पुत्र थे, वालि इंद्र का अंश पुत्र था, नील अग्निदेव के पुत्र थे, जाम्बवंत ब्रह्मा के अंश पुत्र थे जिनका शरीर रीक्ष का था. तो ये सभी शरीर से तो बंदर या रीक्ष थे लेकिन मूल रुप से देवताओं के पुत्र थे इसलिए आम बंदरों से एकदम अलग थे. ये देवताओं की तरह इंसानों की भाषा बोल सकते थे, देवताओं की तरह हवा में उड़ सकते थे, देवताओं की तरह रुप बदल सकते थे और देवताओं की तरह ही शक्तिशाली भी थे. लेकिन इनका शऱीर बंदरों वाला था.
एक बात और राम और रावण के युद्ध का कोई लेना देना इंसानों से नहीं था. सिर्फ राम और उनके भाई ही विष्णु के इंसानी अवतार के रुप में इंसान का शरीर लेकर आए थे. बाकि सभी बंदर, भालू देवताओं के पुत्र थे.
ये युद्ध देवताओं के अंशपुत्रों और राक्षसों के बीच हुआ था. इंसान सिर्फ इस युद्ध का दर्शक था. ठीक वैसे ही जैसे किसी नाटक में एक्टर्स अलग अलग रुप धारण कर एक्टिंग करते हैं और फिर नाटक खत्म होते ही अपने असली रुप में सामने आ जाते हैं.
जैसे ही राम राज्य की स्थापना हुई, हनुमान, जाम्बवंत, द्विद और मयंद को छोड़ कर सभी विष्णु रुप श्रीराम के साथ वैकुंठ चले गए या फिर स्वर्ग चले गए. इन्होंने अपने बंदर शरीर को छोड़ दिया और वापस देवताओं केे शरीर को धारण कर लिया.इसीलिए इसे नाटक या लीला कहा जाता है.
इसी लिए रामलीला खेली जाती है. क्योंकि ये देवताओं और राक्षसों के बीच आपस का खेल था, मैच था. मैच खत्म और सभी अपने रुप में वापस आ गए. अब बेचारे रह गए सामान्य बंदर जिनमें हम हनुमान जी को तलाशने लगते हैं, सोचते हैं कि ये फिर इंसानों की तरह क्यों बात नहीं कर पाते, ये रुप क्यों नहीं बदल पाते.
क्योंकि ये देवताओं के अंश हैं ही नहीं ये तो सामान्य बंदर है. ये रामायण के पहले भी थे और रामायण के बाद भी. द्वापर काल में द्विद, मयंद का वध श्रीकृष्ण ने कर दिया और जाम्बवंत की लीला भी खत्म हो गई. सिर्फ हनुमान रह गए हैं जो आज भी बंदर के शरीर में देवता के अँश पुत्र हैं और चिरंजीवी हैं.
पूरे महाभारत में युधिष्ठिर को वनवास में कोई बंदर इंसान की आवाज़ में बात करता नहीं दिखता क्योंकि उस वक्त हनुमान जी को छोड़कर बाकि सभी बंदर सामान्य बंदर ही थे. हनुमान जी और भीम की जब मुलाकात होती है तब जाकर जरुर हनुमान जी बंदर होते हुए भी इंसान की भाषा बोलते नज़र आते हैं. क्योंकि वही इकलौते बचे हुए देवता पुत्र बंदर हैं.
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