मुझे आज भी याद आता है वो वक्त जब हर रविवार टीवी पर रामायण सीरियल आया करता था. 1987-88 का समय था. मैं बच्ची थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि रामायण को समझ न सकूं. और वैसे भी रामायण किसी के लिए भी महज सीरियल नहीं था. रामायण हमारे धर्म और संस्कृति का हिस्सा रहा है. जब पहली बार लोगों ने रामायण के पात्रों को पर्दे पर देखा तो वो उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ गए थे. मुझे याद है मेरी दादी हाथ जोड़कर रामायण देखा करती थीं. ये वो दैर था जब सुबह 9.30 बजे पूरा भारत रुक जाता था.
कहने का मतलब ये है कि अपने धर्म से जुड़ी बातें, धार्मिक ग्रंथ और उनसे जुड़े पात्र, किस्से-कहानियां, तीज त्योहार, रीति-रिवाज ये वो चीजें हैं जो हमारी धरोहर हैं. हमें बचपन से ही इनसे सींचा जाता रहा है. और ऐसे में अगर कोई ये नहीं बता सके कि हनुमान जी किसके लिए संजीवनी बूटी लाने गए थे तो ये न सिर्फ हैरानी बल्कि शर्म की भी बात होगी. रामायण के इस बेसिक से सवाल का जवाब भी कुछ लोग नहीं जानते. आज अपनी इसी समझ पर बॉलीवुड अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा हंसी की पात्र बन गई हैं. ट्विटर पर #YoSonakshiSoDumb ट्रेंड हो रहा है.
इस सवाल पर भी लाइफलाइन !!
दरअसल केबीसी पर सोनाक्षी सिन्हा गेस्ट कंटेस्टेंट के रूप में आई थीं. वो कर्मवीर कंटेस्टेंट का सहयोग करने हॉट सीट पर बैठी थीं. अमिताभ बच्चन ने सवाल किया कि- 'रामायण के अनुसार हनुमान किसके लिए संजीवनी बूटी लेकर आए थे?' इसके लिए चार ऑप्शन थे- सुग्रीव, लक्ष्मण, सीता और राम. ताज्जुब हुआ जब न तो इस सवाल का जवाब कर्मवीर कंटेस्टेंट बता सकीं और न ही सोनाक्षी सिन्हा. इसके लिए उन्होंने लाइफलाइन लेनी पड़ी.
इस वीडियो को देखकर सारा देश स्तब्ध था, क्योंकि 1 लाख 60 हजार रुपए के लिए पूछा जाने वाला ये सवाल बहुत सरल था. किताबों से न मिला हो, माता-पिता ने न पढ़ाया हो लेकिन पूरे देश को रामायण का ज्ञान तो रामानंद सागर ने दे ही दिया था. लेकिन उस पीढ़ी को वाकई संघर्ष करना पड़ रहा है जिसने अपने होशोहवास में रामानंद सागर वाली रामायण नहीं देखी.
अब सोनाक्षी के साथ जो होना था सो हो रहा है. लेकिन इस बात से कई सवाल उठते हैं. पहला सवाल तो खुद जनता उठा रही है कि सोनाक्षी ऐसे घर से आती हैं जिसका नाम 'रामायण' है. उनके पिता का नाम शत्रुघ्न है, जिनके भाई राम, लक्षमण और भरत हैं. खुद सोनाक्षी के जुड़वां भाइयों के नाम लव-कुश है, उनके घर में राम चरित मानस का पाठ हमेशा किया जाता है. फिरभी सोनाक्षी को इस सवाल का जवाब क्यों नहीं पता?
सोनाक्षी सिन्हा उसी पीढ़ी की हैं जो सीता को घर से निकालने पर राम पर सवाल उठाती है. राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने पर उन्हें ऐतराज है. क्योंकि राम ने सीता की अग्निपरीक्षा ली और घर से निकाल दिया. सीता के नाम पर इनका फैमिनिस्ट जग जाता है. लेकिन इस बहस का आखिर मतलब ही क्या जब उन्हें धर्म ग्रंथों की बुनियादी बातों का ही अंदाजा नहीं है.
अब सोनाक्षी को क्या कहें, ये समय ही ऐसा है जब अच्छे अच्छों की कलई खुल रही है. भारत की जानी-मानी 'इतिहासकार' रोमिला थापर भी सोनाक्षी की ही तरह ट्रोल हो रही हैं. उन्होंने भी इतिहास को अपने हिसाब से तोड़ा मरोड़ा और एक बड़े मंच पर इतने कॉन्फिडेंस के साथ रखा कि सुनने वाले चकरा गए. वो कहती हैं कि 'युधिष्ठिर ने सम्राट अशोक से प्रेरणा लेकर जीता हुआ राजपाठ छोड़ दिया था'. ये तो इतिहास कार हैं, जिनकी लिखी किताबें बच्चे कॉलेजों में पढ़ते हैं. लेकिन इन्होंने तो काल का ही ख्याल नहीं रखा.
ये दोनों मामले सबक हैं. जिनसे बहुतों को सीखने की जरूरत है. जिससे आने वाली पीढ़ियां कम से कम मजाक की पात्र न बनें.
माता-पिता लें सबक
माता-पिता को ये समझने की जरूरत है कि वो अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाकर सिर्फ उन्हें पढ़ाने का फर्ज निभा रहे हैं, जबकि पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें नैतिक मूल्य देना और अपनी जड़ों से जोड़े रखना भी उन्हीं की जिम्मेदारी है. पहले तो रामायण पाठ होते रहते थे लेकिन हर कोई व्यस्त है. ये चीजें सिर्फ मंदिरों तक ही सीमित रह गई हैं. क्या त्योहारों का मतलब शॉपिंग डील्स और ऑफर्स तक ही सीमित है. इनके मूल्यों को आने वाली पीढ़ी को कौन बताएगा.
शिक्षा व्यवस्था के लिए सबक
ये बड़ा सबक तो शिक्षा व्यवस्था के लिए भी है. बल्कि मैं तो ये कहूंगी कि सोनाक्षी को तो कम इस सवाल ने हमारी शिक्षा व्यवस्था का आईना दिखाया है. रामायण के इस बुनियादी सवाल के जवाब सोनाक्षी नहीं जानती जिनकी उम्र इस वक्त 32 साल है. अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनके बाद आए लोग और बच्चे कितना जानते होंगे. इन सवालों के जबाव न पता होना हमारी असफलता है.
संस्कृति के रक्षकों के लिए सबक-
संस्कृति का झंडा उठाने वाले जब सड़कों पर निकलकर गाय पर हंगामा करते हैं, तो उन्हें इतना मजबूत होकर निकलना चाहिए कि गाय पर पूछे गए किसी सवाल पर अटकें न. संस्कृति की रक्षा करने का सबसे सही तरीका यही है कि पहले खुद संस्कृति के बारे में समझें और उसे अपनी अगली पीढ़ी को दें. इसलिए सोनाक्षी सिन्हा पर शर्मिंदा न होकर उनसे सबक लें.
सोनाक्षी को ट्रोल करके उनका कुछ बिगड़ने नहीं वाला, और न ही उनकी अज्ञानता से उनका करियर खराब होगा. बल्कि इससे उनका ही फायदा हो रहा है, निगेटिव ही सही पब्लिसिटी तो मिल ही रही है. उन्हें फिल्में भी मिलती रहेंगी और विज्ञापन भी. लेकिन जरा उन बच्चों का सोचिए, जिन्हें अपने ज्ञान की बदौलत ही आगे बढ़ना है. जिनका सपना हीरो-हीरोइन बनना नहीं बल्कि परीक्षा देकर नौकरी पाना है. ये बच्चे किस तरह आगे बढ़ेंगे. यहां बात सिर्फ विशेष धर्म या रामायण या महाभारत की नहीं है. आज ऐसे कितने ही वीडियो वायरल हैं जिनमें आज के ग्रैजुएट बच्चों को देश के राष्ट्रपति का नाम तक नहीं पता. देश में कितने राज्य हैं ये तक नहीं पता.
हालांकि सामान्य ज्ञान की जिम्मेदारी सिर्फ स्कूलों की नहीं होती, असके लिए सभी जिम्मेदार हैं. स्कूल भी, माता-पिता भी. हम चाहें पब्लिक स्कूल में पढ़ें, इंटरनेश्लन में पढ़े या फिर सरकारी स्कूल में, लेकिन पढ़ाई का मतलब ज्ञान होना चाहिए औपचारिकता नहीं. शिक्षा जरूरी है, डिग्री नहीं.
आज संतोष गंगवार की कही वो बात याद आ रही है जिसपर बहुत बवाल हुआ- 'नौकरी की कमी नहीं, योग्य लोगों की कमी है'. सोचिए, कितने योग्य हैं हम और कितने योग्य हैं हमारे बच्चे.
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