महावीर हनुमान जी का जन्म किस स्थान पर हुआ था, इसको लेकर काफी मतभेद हैं. हनुमान जी के जन्म स्थान को लेकर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों के बीच काफी विवाद हैं. हर एक राज्य का कहना है कि हनुमान जी का जन्म उनके ही राज्य में हुआ था. आखिर क्या है हनुमान जी के जन्म का सच और किन ग्रंथों से जाना जा सकता है हनुमान जी के जन्म स्थान का असली रहस्य?
हनुमान जी दक्षिण भारतीय हैं?
ऐसी सामान्य मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म दक्षिण भारत में हुआ था और इसलिए उन्हें दक्षिण भारतीय कहना गलत नहीं होगा. इस बात पर ज्यादातर लोग सहमत हैं कि हनुमान जी का जन्म दक्षिण भारत के किसी स्थान पर हुआ था. हनुमान जी और श्रीराम जी का पहली बार आमना-सामना भी दक्षिण भारत मे ही हुआ था. जब श्रीराम माता जानकी की खोज में दक्षिण भारत की तरफ आगे बढ़े थे. जब श्रीराम पंपा सरोवर के पास ऋष्यमुख पर्वत के पास पहुंचे. तब उन्हें देख कर सुग्रीव ने श्रीराम के पास हनुमान जी को दूत बना कर भेजा था.
वालि और सुग्रीव का राज्य किष्किंधा आज के आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के क्षेत्रों तक फैला हुआ था. लेकिन, क्या सारे वानर एक ही स्थान पर रहते थे और इसी तर्क से हनुमान जी का जन्म भी इसी स्थान के आस-पास हुआ था. अगर वाल्मीकि रामायण के किष्किंधाकांड को ध्यान से पढ़ें, तो पता चलता है कि वानरों का राज सारे पृथ्वी के जंगलों और पर्वतों तक फैला हुआ था. वानरराज केसरी किसी अन्य स्थान के राजा थे, तो नल, नील, द्विद, मयंद आदि वानर भी किसी न किसी दूसरे राज्य से संबंध रखते थे. हां यह सत्य है कि सभी वानर राजा मुख्य रुप से सुग्रीव या वालि को ही अपना प्रधान मानते थे.
इसलिए जब सुग्रीव ने सभी वानरों को श्रीराम की सहायता के लिए बुलावा भेजा तो केसरी सहित सारी पृथ्वी पर फैले वानर राजा अपनी सेनाओं के साथ आए. इस तर्क से यह स्थापित करना बहुत कठिन है कि हनुमान जी के पिता किष्किंधा के पास के ही कोई राजा थे और हनुमान जी का जन्म इसी तर्क के अनुसार दक्षिण भारत में ही हुआ था.
श्रीराम भक्त हनुमान के जन्म को लेकर भारत के कई राज्यों के अलग-अलग दावे हैं.
वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के जन्म स्थान का वर्णन
वाल्मीकि रामायण मे किष्किंधाकांड में सबसे पहले हनुमान जी के जन्म और उनके जन्म स्थान का वर्णन मिलता है. प्रसंग यह है कि जब सारे वानर माता सीता की खोज में समुद्र के किनारे पहुंचते हैं तो लंका जाने के लिए समुद्र कौन पार करेगा इसको लेकर सभी संशय में पड़ जाते हैं. जाम्बवंत जी हनुमान जी को समुद्र पार कर लंका जाने के लिए उत्साहित करते हैं और हनुमान जी को उनके दिव्य जन्म की कथा सुनाते हैं. वाल्मीकि रामायण की कथा के अनुसार महावीर हनुमान जी की माता अंजना पहले स्वर्ग में पुंजकस्थली नामक अप्सरा थी, जिन्हें एक शाप (लोकश्रुतिओं के अनुसार ये शाप दुर्वासा ऋषि ने दिया था) की वजह से धरती पर एक वानरी के रुप में जन्म लेना पड़ता है. जो कभी भी अपना रुप एक इंसान की तरह कर सकती थीं –
अप्सर अप्सरसाम् श्रेष्ठा विख्याता पुंजिकस्थला|अंजना इति परिख्याता पत्नी केसरिणो हरेः|| 4.66.8
विख्याता त्रिषु लोकेषु रूपेणा अप्रतिमा भुवि|अभिशापात् अभूत् तात कपित्वे काम रूपिणी|| 4.66.9
अर्थः जाम्बवंत जी यहां हनुमान जी से उनकी माता अंजना के विषय में बताते हुए कह रहे हैं कि उनकी माता अंजना स्वर्ग की श्रेष्ठ अप्सरा पुंजिकस्थला थी और वानर राज केसरी की पत्नी हैं. पुंजिकस्थला जो तीनों लोकों में अपनी सुंदरता के लिए विख्यात थीं, उन्हें एक शाप की वजह से पृथ्वी पर एक वानरी के रुप में जन्म लेना पड़ा जो कि कभी भी अपना रुप बदल सकती थीं.हनुमान जी के पिता कौन हैं, केसरी या वायुदेव?
इसके बाद वाल्मीकि जी माता अंजना का परिचय देने के बाद अचानक उनके पिता और उनके मायके की तरफ चल पड़ते हैं और उनके बारे में विस्तार से कथा कहते हैं-
दुहिता वानर इन्द्रस्य कुंजरस्य महात्मनः|मानुषम् विग्रहम् कृत्वा रूप यौवन शालिनी|| ४-६६-१०विचित्र माल्य आभरणा कदाचित् क्षौम धारिणी|अचरत् पर्वतस्य अग्रे प्रावृड् अंबुद सन्निभे || ४-६६-११
अर्थः जाम्बवंत कहते हैं कि हे हनुमान - अंजना कुंजर नामक वानर राज की पुत्री के रुप में जन्म लेती हैं. एक बार जब वो गहने और जेवर और सुंदर मालाएं पहन कर एक पर्वत की चोटी की तरफ जा रही थी.
तस्या वस्त्रम् विशालाक्ष्याः पीतम् रक्त दशम् शुभम्|स्थितायाः पर्वतस्य अग्रे मारुतो अपहरत् शनैः||४-६६-१२
भावार्थः तब अचानक उनके वस्त्रों को पवन (मारुत या हवा) ने उड़ा दिया.
स ददर्श ततः तस्या वृत्तौ ऊरू सुसंहतौ|स्तनौ च पीनौ सहितौ सुजातम् चारु च आननम्|| ४-६६-१३
भावार्थः और पवन उनके आंतरिक अंगो में प्रवेश कर गए. सा तु तत्र एव संभ्रांता सुवृत्ता वाक्यम् अब्रवीत्|एक पत्नी व्रतम् इदम् को नाशयितुम् इच्छति|| ४-६६-१६
अर्थः पवन के इस प्रकार उनके आंतरिक अंगो में प्रवेश करने पर अंजना ने पूछा कि कौन वो अदृश्य शक्ति है, जो उनके एक पतिव्रत होने की इच्छा को तोड़ रहा है. इस पर पवन देव ने कहा कि 'मैंने आपका अपमान नहीं किया है. मैं सभी में प्रवेश करने वाला पवन देव हूं. मैंने आपके अंदर दैविक रुप से प्रवेश किया है जिससे आपको एक महान और तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी.
माता अंजना वानरराज केसरी की पत्नी थीं
इस संदर्भ में कहीं भी माता अंजना के वानरराज केसरी के साथ विवाहित होने की बात नहीं कही गई है. लेकिन, माता अंजना के द्वारा पतिव्रत के भंग करने की शंका से यह स्पष्ट हो सकता है कि उनका विवाह हो चुका था. लेकिन, इसके अगले कुछ श्लोकों से यह जरुर पता चलता है कि वानरराज केसरी ने हनुमान जी को अपने पुत्र के रुप में ही प्राप्त किया और उनका लालन पालन किया.
स त्वम् केसरिणः पुत्रः क्षेत्रजो भीम विक्रमः|| ४-६६-२९
मारुतस्य औरसः पुत्रः तेजसा च अपि तत् समः|
त्वम् हि वायु सुतो वत्स प्लवने च अपि तत् समः|| ४-६६-३०
अर्थः जाम्बवंत ने कहा कि 'आप केसरी की पत्नी अंजना के महापराक्रमी पुत्र हैं. आप वायुदेव के औरस पुत्र हैं और आप वायुदेव के समस्त गुणों से युक्त हैं. आप उन्हीं वायुदेव के समान कहीं भी उड़ कर आ-जा सकते हैं'
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में हनुमान जी की कथा
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में ऋषि अगत्स्य के द्वारा भी हनुमान जी के जन्म की कथा कही गई है, जिसमें उन्हें वानरराज केसरी और वायुदेव दोनों का ही पुत्र बताया गया है-
सुवर्णदत्तवरस्वर्णः सुमेरुर्नाम पर्वतः. यत्र राज्यं प्रशास्त्यस्य केसरी नाम वै पिता..
अर्थः भगवान सूर्य के वरदान से जिसका स्वरुप सुवर्णमय हो गया है, ऐसा एक सुमेरु नाम से प्रसिद्ध पर्वत है, जहां हनुमान जी के पिता केसरी राज्य करते हैं.
तस्य भार्या बभूवेष्टा अंञ्जनेति परिश्रुता .जनयामास तस्यां वै वायुरात्मजमुत्तमम् ..
अर्थः उनकी अंजना नाम से विख्यात प्रियतमा पत्नी थीं. उनके गर्भ से वायुदेव ने एक उत्तम पुत्र को जन्म दिया. इस श्लोक से यह स्पष्ट हो जाता है कि वायुदेव जहां हनुमान जी के जैविक पिता हैं. वहीं केसरी उनके मानस पिता हैं.
महाभारत में हनुमान जी के जन्म की कथा
महाभारत के 'वन पर्व' में महावीर हनुमान और भीमसेन की मुलाकात की कथा है. इस कथा में भी महावीर हनुमान जी अपना परिचय वानरराज केसरी और वायुदेव दोनों के पुत्र के रुप में देते हैं –
अहं केसरिणः क्षेत्रे वायुना जगदायुषा .जातः कमलपत्राक्ष हनूमान नाम वानरः ..
अर्थः कमलनयन भीम! 'मैं वानरश्रेष्ठ केसरी के क्षेत्र में जगत के प्राणस्वरुप वायुदेव से उत्पन्न हुआ हूं. मेरा नाम हनुमान वानर है.'
हनुमान जी का जन्म नहीं हुआ था, वो प्रगट हुए थे
'वाल्मीकि रामायण' के अनुसार महावीर हनुमान जी का जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ था. बल्कि, वो एक गुफा में दिव्य रुप से पाये गये थे. इस श्लोक से यह स्पष्ट हो जाता है -
एवम् उक्ता ततः तुष्टा जननी ते महाकपेः|गुहायाम् त्वाम् महाबाहो प्रजज्ञे प्लवगर्षभ || ४-६६-२०
अर्थः हे महाकपि हनुमान! जब पवनदेव के वरदान को तुम्हारी माता ने सुना तो वो प्रसन्न और अनुग्रहित हो गईं. तब तुम्हारी मां ने तुम्हें दिव्य रुप से तुम्हें गुफा में पाया.
'प्रजज्ञ' शब्द के गहरे अर्थ है. 'प्रजज्ञ' और 'प्रजनन' में अंतर होता है. 'प्रजज्ञ' का अर्थ होता है पाया जाना. यानी हनुमान जी का जन्म नहीं हुआ था. वो पाये गए थे या प्रगट हुए थे या फिर दैविक रुप से उनका आगमन हुआ था.
हनुमान जी ने माता सीता को सुनाई अपने जन्म की कहानी
वाल्मीकि रामायण के 'सुंदरकांड' में जब महावीर हनुमान जी लंका जाते हैं और माता सीता को अपना परिचय देते हैं, तब वो अपने जन्म के बारे में कथा सुनाते हैं –
कौरजो नाम वैदेहि गिरीणाम् उत्तमो गिरिः| ततो गच्छति गो कर्णम् पर्वतम् केसरी हरिः|| ५-३५-८०
(गीता प्रेस गोरखपुर के वाल्मीकि रामायण में कौरजों के स्थान पर माल्यवान लिखा गया है )
स च देव ऋषिभिः दृष्टः पिता मम महाकपिः| तीर्थे नदी पतेः पुण्ये शम्ब सादनम् उद्धरत्|| ५-३५-८१
तस्य अहम् हरिणः क्षेत्रे जातो वातेन मैथिलि |हनूमान् इति विख्यातो लोके स्वेन एव कर्मणा || ५-३५-८२
अर्थः विदेहनंदिनी! पर्वतों में माल्यवान नाम से प्रसिद्ध एक उत्तम पर्वत है. वहां केसरी नामक एक वानर निवास करते थे. एक दिन वो वहां से गोकर्ण पर्वत पर गए. महाकपि केसरी मेरे पिता हैं. उन्होंने समुद्रतट पर विद्यमान उस पवित्र गोकर्ण– तीर्थ में देवर्षियों की आज्ञा से शम्बसादन नामक दैत्य का संहार किया था. मिथिलेश कुमारी! उन्हीं कपिराज केसरी के गर्भ से वायुदेवता के द्वारा मेरा जन्म हुआ है और मैं लोक में अपने ही कर्म के द्वारा हनुमान नाम से विख्यात हूं.
यहां हनुमान जी माता सीता से अपने पिता के बारे में बताते हैं, उनके राज्य के बारे में भी बताते हैं, अपने पिता के द्वारा गोकर्ण तीर्थ क्षेत्र में शम्बसादन दैत्य के संहार के पराक्रम के बारे में भी बताते हैं. यहां तक कि वो अपने जन्म के बारे में भी बताते हैं लेकिन वह यह नहीं बताते कि उनका जन्म कब और किस स्थान पर हुआ था?
हनुमान जी का जन्म किस राज्य में हुआ था?
हनुमान जी के जन्म स्थान के विषय में वाल्मीकि रामायण में कुछ विशेष स्पष्ट रुप में नहीं लिखा गया है, जिससे उनके जन्म स्थान को आज के किसी आधुनिक राज्य में ठीक प्रकार से स्थापित किया जा सके. हाल में ही कुछ विद्वानों के द्वारा यह कहा गया है कि हनुमान जी का जन्म 'गोकर्ण' के पास हुआ था जो कर्नाटक के समुद्र तट के पास स्थित है. लेकिन, इस श्लोक से यह भी स्पष्ट नहीं है कि हनुमान जी का जन्म गोकर्ण पर्वत पर ही निश्चित रुप से हुआ था.कर्नाटक राज्य के ही कुछ लोगों का दावा है कि किष्किंधा राज्य आधुनिक कर्नाटक के हंपी के पास स्थित था. हंपी के पास ही स्थित आंजनेरी अंजनाद्रि पर्वत की एक गुफा में हनुमान जी का जन्म हुआ था.
यह सत्य है कि किष्किंधा में वानरराज सुग्रीव और वालि का राज था. लेकिन, केसरी किसी और राज्य के राजा थे. केसरी का राज्य कहां स्थित था, ये कोई निश्चित रुप से नहीं जानता. वैसे भी सुग्रीव ने श्रीराम की सहायता के लिए पूरी पृथ्वी से वानरों को बुलाया था. केसरी भी किसी दूरस्थ राज्य के राजा हो सकते थे, जो किष्किंधा से बहुत दूर शायद उत्तर या पूर्वी भारत में स्थित हो. लेकिन, यह तय है कि हनुमान जी का जन्म एक गुफा में ही हुआ था. अब यह गुफा किस राज्य में स्थित थी, इसको लेकर अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग वर्णन हैं.
सुमेरु पर्वत पर हुआ था हनुमान जी का जन्म!
अगर वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड पर दृष्टि डालें, तो वह गुफा सुमेरु पर्वत के पास हो सकती है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार सुमेरु पर्वत के पास वानरराज केसरी का राज्य स्थित था. हो सकता है कि वहीं किसी अन्य पर्वत पर माता अंजना जब जा रही थीं. तब वायुदेव के वरदान से हनुमान जी का जन्म हुआ हो. वाल्मीकि रामायण और अन्य ग्रंथों में सुमेरु पर्वत एक नहीं कई स्थानों पर हैं. अब सूर्यदेव ने जिस सुमेरु पर्वत को वरदान दिया था वो किस स्थान पर है इसे निश्चित रुप से कहा नही जा सकता. कुछ संस्थाओं का कहना है कि ब्रम्हांड पुराण, वाराह पुराण आदि में जिस पर्वत क्षेत्र का वर्णन है वो आधुनिक आंध्र प्रदेश के तिरुमाला पर्वत के पास स्थित है. महाराष्ट्र राज्य का दावा है कि हनुमान जी का जन्म नासिक जिले के त्र्यम्बकेश्वर के पास अंजनेरी पर्वत के पास हुआ था.
जबकि, गुजरात राज्य के कुछ लोगों की मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म गुजरात के डांग जिलें में उस स्थान पर हुआ था. जहां शबरी और श्रीराम की मुलाकात हुई थी. एक दावा पंजाब से ही आता है. जिसके अनुसार कैथल जिले में ही हनुमान जी का जन्म हुआ था. उस स्थान का पुराना नाम कपिस्थल ही आज कैथल के नाम से प्रसिद्ध है. एक मान्यता के अनुसार हनुमान जी का जन्म वर्तमान झारखंड राज्य के गुमला जिले के अंजना नामक एक गांव में हुआ था. ऐसे अनेक दावे कई धार्मिक पुस्तकों और मान्यताओं पर आधारित हैं. लेकिन इसको लेकर विवाद और संवाद आज भी जारी है. लेकिन यह एक तथ्य है कि हनुमान जी माता अंजना और वायुदेव के पुत्र हैं और वानरराज केसरी ने उन्हें अपने पुत्र की तरह ही पालन किया.
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