उत्तर प्रदेश के कानपुर में 10 वर्षीय बच्चे ने अपने रिश्तेदार के मोबाइल में पोर्न क्लिप देखी. और, पड़ोस में ही रहने वाली 7 साल की बच्ची का बलात्कार कर दिया. ये घटना अविश्वसनीय और काल्पनिक सी लगती है. लेकिन, सच्ची है. बताया जा रहा है कि बच्चा कई दिनों से अपने किसी रिश्तेदार के मोबाइल में पड़ी पोर्न क्लिप देख रहा था. जो निश्चित तौर पर उसके लिए आसानी से उपलब्ध हो जाता होगा. खैर, इसके लिए कौन जिम्मेदार है और कौन नहीं इस पर चर्चा से पहले ये जानना जरूरी है कि मोबाइल पर उपलब्ध होने वाला हर कंटेंट बच्चों के लिए सही नहीं है. और, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सिनेमा और ओटीटी के जमाने में गालियों और सेमी-न्यूड सीन्स से भरी फिल्में और वेबसीरीज बच्चों के दिमाग पर न केवल खराब असर डाल रही हैं. बल्कि, उन्हें अपराध करने के लिए उकसा रही हैं.
मोबाइल पर उपलब्ध होने वाला ये कंटेंट बच्चों की उम्र से पहले ही उनसे उनका बचपन छीन रहा है. इसकी वजह से 'गुड टच और बैड टच' के बीच अंतर न कर पाने वाला बच्चा खुद बलात्कार करने तक पहुंच गया है. परिजनों को अपने बच्चों पर न केवल नजर बनाए रखनी होगी. बल्कि, उन्हें ये बात समझनी होगी कि बच्चों को मोबाइल पर यूं ही कुछ भी देखने के लिए नहीं दिया जा सकता है. वैसे, ये घटना भारतीय समाज के लिए सबक से कम नहीं है कि अब बच्चों को यूं ही मजाक में मोबाइल देने का समय खत्म हो चुका है.
इस बात में शायद ही कोई दो राय होगी कि बच्चों की पढ़ाई के लिए मोबाइल और टैबलेट वगैरह एक जरूरी उपकरण बन गए हैं. लेकिन, बच्चे अपने मोबाइल या टैबलेट पर क्या देख रहे हैं, इसे लेकर परिजनों को ही सतर्कता बरतनी होगी. क्योंकि, किसी अन्य शख्स के मोबाइल...
उत्तर प्रदेश के कानपुर में 10 वर्षीय बच्चे ने अपने रिश्तेदार के मोबाइल में पोर्न क्लिप देखी. और, पड़ोस में ही रहने वाली 7 साल की बच्ची का बलात्कार कर दिया. ये घटना अविश्वसनीय और काल्पनिक सी लगती है. लेकिन, सच्ची है. बताया जा रहा है कि बच्चा कई दिनों से अपने किसी रिश्तेदार के मोबाइल में पड़ी पोर्न क्लिप देख रहा था. जो निश्चित तौर पर उसके लिए आसानी से उपलब्ध हो जाता होगा. खैर, इसके लिए कौन जिम्मेदार है और कौन नहीं इस पर चर्चा से पहले ये जानना जरूरी है कि मोबाइल पर उपलब्ध होने वाला हर कंटेंट बच्चों के लिए सही नहीं है. और, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सिनेमा और ओटीटी के जमाने में गालियों और सेमी-न्यूड सीन्स से भरी फिल्में और वेबसीरीज बच्चों के दिमाग पर न केवल खराब असर डाल रही हैं. बल्कि, उन्हें अपराध करने के लिए उकसा रही हैं.
मोबाइल पर उपलब्ध होने वाला ये कंटेंट बच्चों की उम्र से पहले ही उनसे उनका बचपन छीन रहा है. इसकी वजह से 'गुड टच और बैड टच' के बीच अंतर न कर पाने वाला बच्चा खुद बलात्कार करने तक पहुंच गया है. परिजनों को अपने बच्चों पर न केवल नजर बनाए रखनी होगी. बल्कि, उन्हें ये बात समझनी होगी कि बच्चों को मोबाइल पर यूं ही कुछ भी देखने के लिए नहीं दिया जा सकता है. वैसे, ये घटना भारतीय समाज के लिए सबक से कम नहीं है कि अब बच्चों को यूं ही मजाक में मोबाइल देने का समय खत्म हो चुका है.
इस बात में शायद ही कोई दो राय होगी कि बच्चों की पढ़ाई के लिए मोबाइल और टैबलेट वगैरह एक जरूरी उपकरण बन गए हैं. लेकिन, बच्चे अपने मोबाइल या टैबलेट पर क्या देख रहे हैं, इसे लेकर परिजनों को ही सतर्कता बरतनी होगी. क्योंकि, किसी अन्य शख्स के मोबाइल में क्या पड़ा है, ये उन्हें भी नहीं पता है. और, बच्चों को लोग अपना मोबाइल देने से कतराते भी नहीं है. क्योंकि, उन्हें पता है कि आखिर बच्चा उनके मोबाइल पर क्या ही खोज पाएगा? लेकिन, आजकल के बच्चे को एंड्राइड जेनरेशन कहा जाना चाहिए. जो कुछ ही सालों में इन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स चलाने में महारत हासिल कर लेते हैं. और, मोबाइल सभी तरह के कंटेंट के लिए एक ओपन सोर्स है.
अब तक तो मोबाइल पर गेम न खेलने देने की वजह से बच्चों द्वारा की गई आत्महत्याओं और हत्याओं तक के मामले ही सामने आते थे. लेकिन, अब 10 साल के एक बच्चे द्वारा बलात्कार जैसी घिनौनी हरकत करने का ये मामला इतनी आसानी से पचने वाला नहीं है. यह सिर्फ भयावह नहीं है. यह आत्मा को झकझोर कर रख देने वाला मामला है. कहना गलत नहीं होगा कि परिजनों को बच्चों पर नजर बनाए रखने को अपनी प्राथमिकता बनाना ही होगा. क्योंकि, अगर ऐसा नहीं किया गया. तो, अंजाम ऐसी ही घटनाओं के तौर पर सामने आते रहेंगे.
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