भारत में मौजूदा वक्त में हर कोई चिंतित है परेशान है. कोरोना वायरस का कहर है. लगभग पूरा भारत पाबंदी के दौर से गुज़र रहा है. ऐसे समय में खुद को मानसिक दबाव से मुक्त रख पाना एक बड़ी चुनौती है. अच्छे-खासे इंसानों का बुरा हाल है, घरों में कैद रहना दिमाग पर असर डालता है. अब ज़रा सोचिए कि बच्चों पर इसका कितना गहरा असर पड़ सकता है. खासतौर पर तब जब वह एक चिंता के साथ घरों में कैद हों. लाखों छात्र-छात्राएं आज एक अजीब स्थिति के दौर से गुजर रहे हैं. वैसे भी बच्चों के लिए परीक्षा एक चिंता का विषय होता है और खासतौर पर यह चिंता और डर तब और अधिक हो जाता है जब परीक्षा बोर्ड की हो. बोर्ड की परीक्षाओं के लिए अब तक कई बोर्डों से बस यही साफ हो पाया है कि दसवीं की परीक्षा नहीं होगी जबकि बारहवीं की परीक्षा को लेकर भ्रम की स्थिति लगातार बनी हुई है. बच्चों को तारीख पर तारीख मिल रही है. परीक्षा होगी नहीं होगी या फिर किस तरह से होगी कुछ भी स्थिति साफ नहीं हो पाई है.
कई बार परीक्षा को लेकर बैठक भी हुई लेकिन हर बार परीक्षा के ऐलान को लेकर एक नई तारीख दे दी जाती है. शिक्षा महकमा खुद कशमकश की हालत में है, परीक्षा को लेकर सुर्पीम कोर्ट तक में अर्ज़ी लगा दी गई है. एक जनहित याचिका दायर करते हुए अभिभावकों ने कोर्ट से मांग भी की कि परीक्षा को रद कर दिया जाए कोरोना वायरस के खतरे के बीच परीक्षा का ज़बरदस्ती आयोजन न किया जाए. सुर्पीम कोर्ट में मामले को लेकर सुनवाई हुई केन्द्र सरकार ने कहा कि वह जल्द ही कोई फैसला लेने वाला है और दो दिनों के भीतर ही अपना फैसला ज़ाहिर कर देगा.
कोर्ट ने कहा है कि जो भी फैसला लें उसके पीछे एक स्पष्ट वजह भी ज़रूर बताएं. बारहवीं के बच्चे मंत्रालय व बोर्ड की हर...
भारत में मौजूदा वक्त में हर कोई चिंतित है परेशान है. कोरोना वायरस का कहर है. लगभग पूरा भारत पाबंदी के दौर से गुज़र रहा है. ऐसे समय में खुद को मानसिक दबाव से मुक्त रख पाना एक बड़ी चुनौती है. अच्छे-खासे इंसानों का बुरा हाल है, घरों में कैद रहना दिमाग पर असर डालता है. अब ज़रा सोचिए कि बच्चों पर इसका कितना गहरा असर पड़ सकता है. खासतौर पर तब जब वह एक चिंता के साथ घरों में कैद हों. लाखों छात्र-छात्राएं आज एक अजीब स्थिति के दौर से गुजर रहे हैं. वैसे भी बच्चों के लिए परीक्षा एक चिंता का विषय होता है और खासतौर पर यह चिंता और डर तब और अधिक हो जाता है जब परीक्षा बोर्ड की हो. बोर्ड की परीक्षाओं के लिए अब तक कई बोर्डों से बस यही साफ हो पाया है कि दसवीं की परीक्षा नहीं होगी जबकि बारहवीं की परीक्षा को लेकर भ्रम की स्थिति लगातार बनी हुई है. बच्चों को तारीख पर तारीख मिल रही है. परीक्षा होगी नहीं होगी या फिर किस तरह से होगी कुछ भी स्थिति साफ नहीं हो पाई है.
कई बार परीक्षा को लेकर बैठक भी हुई लेकिन हर बार परीक्षा के ऐलान को लेकर एक नई तारीख दे दी जाती है. शिक्षा महकमा खुद कशमकश की हालत में है, परीक्षा को लेकर सुर्पीम कोर्ट तक में अर्ज़ी लगा दी गई है. एक जनहित याचिका दायर करते हुए अभिभावकों ने कोर्ट से मांग भी की कि परीक्षा को रद कर दिया जाए कोरोना वायरस के खतरे के बीच परीक्षा का ज़बरदस्ती आयोजन न किया जाए. सुर्पीम कोर्ट में मामले को लेकर सुनवाई हुई केन्द्र सरकार ने कहा कि वह जल्द ही कोई फैसला लेने वाला है और दो दिनों के भीतर ही अपना फैसला ज़ाहिर कर देगा.
कोर्ट ने कहा है कि जो भी फैसला लें उसके पीछे एक स्पष्ट वजह भी ज़रूर बताएं. बारहवीं के बच्चे मंत्रालय व बोर्ड की हर बैठक पर न्यूज़ चैनलों पर नज़रे गड़ाए बैठे रहते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनकी परीक्षा को लेकर जल्द ही स्तिथि साफ होगी. लेकिन हर बैठक के बाद उन्हें निराशा हाथ लग रही है. बारहवीं की परीक्षा में बैठने वाले बच्चों की उम्र एक अहम पड़ाव पर हुआ करती है जहां से वो अपने आगे के कैरियर को लेकर फैसला लेते हैं.
मौजूदा वक्त में सभी बच्चों के मन में सिर्फ यही सवाल तैर रहा है कि आखिर उनकी परीक्ष होगी या नहीं होगी. होगी तो कैसे होगी और नहीं होगी तो उनको किस तरह से नंबर दिया जाएगा. ये तमाम चीज़ें बच्चों पर मानसिक दबाव को बढ़ावा दे रही हैं. सामान्य तौर पर ऐसा होता भी है कि जब तक परीक्षा हो नहीं जाती है तब तक एक डर बच्चों के दिमाग में बैठा रहता है. परीक्षा को लेकर बार बार मिल रही नई तारीखों से ये डर लंबे समय से बच्चों के अंदर बैठा हुआ है.
बारहवीं के छात्र को सिर्फ परीक्षा की ही चिंता नहीं रहती है बल्कि आगे की तैयारी को लेकर भी वह दिमागी तौर पर उलझे हुए होते हैं. ऐसे में बोर्ड या मंत्रालय को जल्द से जल्द परीक्षा पर स्थिति को साफ कर देनी चाहिए ताकि वह बच्चे अपने दिमागी तौर पर बैठे डर और चिंता से निजात पा सकें.
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