पुणे में 14 साल की एक बच्ची के साथ 13 मर्द 5 दिन तक अलग-अलग जगह पर ले जा कर बलात्कार करते हैं. वो बच्ची भाग न जाए इसलिए उसे कमरे में नंगा रखते हैं और खाना नहीं देते हैं. बाद में जब उसकी हालत बिगड़ने लगती है तो उसे रेलवे स्टेशन पर छोड़ देते हैं जहां रेलवे के कर्मचारी भी उसके साथ बलात्कार करते हैं. अब बच्ची हॉस्पिटल में है, ज़िंदगी और मौत से लड़ती हुई. कुछ लोग गिरफ़्तार भी हुए हैं. ख़ैर. मैंने ये ख़बर कल पढ़ी थी और तय कर लिया था कि लिखना नहीं है इस पर या बलात्कार की किसी भी ख़बर पर. कोई मतलब नहीं बनता है. क्या फ़ायदा है लिखने से? क्या इससे बलात्कार रुक रहा है. नहीं. हर तीसरे दिन बलात्कार और गैंगरेप की ख़बरें आती ही रहती है. ये न्यू नॉर्मल है. आप मर्द हैं, आपको सब हक़ है. आप बलात्कार करिए, ख़ुश रहिए. मां-बाप आपके गर्व महसूस करेंगे. इसलिए आपको जन्म दिया.
लेकिन एक स्त्री का शरीर है मेरा. कभी मैं भी 14 साल की थी. फिर ख़्याल आता है कि जिन दिनों मैं 14 साल की थी उन दिनों मेरे साथ क्या-क्या हुए था. किसी दिन सड़क पर चलते हुए किसी ने मुझे अनचाहे तरीक़े से छू लिया था. किसी ने गंदी नज़रों से देखते हुए भद्दा कॉमेंट किया था. किसी दिन भीड़ में जानबूझ कर कोई नज़दीक आ गया था. इन सारी घटनाओं में एक चीज़ कॉमन थी- मर्द.
ये किसी भी उम्र के किसी भी सूरत के और किसी पेशे से आते हों लेकिन इन सबके लिए लड़की सिर्फ़ जिस्म भर रही. मुझे ख़ुद से महीनों घिन्न आती रही. फिर धीरे-धीरे ये घिन्न नफ़रत में बदली और फिर जो ऐसा करते हैं उनसे नफ़रत होने लगी. अब जब कि उम्र के 14वें पड़ाव को गुजरे अरसा हो गया है फिर भी ऐसी कोई ख़बर पढ़ती हूं तो वो सारे ज़ख़्म गहरे होने लगते हैं.
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पुणे में 14 साल की एक बच्ची के साथ 13 मर्द 5 दिन तक अलग-अलग जगह पर ले जा कर बलात्कार करते हैं. वो बच्ची भाग न जाए इसलिए उसे कमरे में नंगा रखते हैं और खाना नहीं देते हैं. बाद में जब उसकी हालत बिगड़ने लगती है तो उसे रेलवे स्टेशन पर छोड़ देते हैं जहां रेलवे के कर्मचारी भी उसके साथ बलात्कार करते हैं. अब बच्ची हॉस्पिटल में है, ज़िंदगी और मौत से लड़ती हुई. कुछ लोग गिरफ़्तार भी हुए हैं. ख़ैर. मैंने ये ख़बर कल पढ़ी थी और तय कर लिया था कि लिखना नहीं है इस पर या बलात्कार की किसी भी ख़बर पर. कोई मतलब नहीं बनता है. क्या फ़ायदा है लिखने से? क्या इससे बलात्कार रुक रहा है. नहीं. हर तीसरे दिन बलात्कार और गैंगरेप की ख़बरें आती ही रहती है. ये न्यू नॉर्मल है. आप मर्द हैं, आपको सब हक़ है. आप बलात्कार करिए, ख़ुश रहिए. मां-बाप आपके गर्व महसूस करेंगे. इसलिए आपको जन्म दिया.
लेकिन एक स्त्री का शरीर है मेरा. कभी मैं भी 14 साल की थी. फिर ख़्याल आता है कि जिन दिनों मैं 14 साल की थी उन दिनों मेरे साथ क्या-क्या हुए था. किसी दिन सड़क पर चलते हुए किसी ने मुझे अनचाहे तरीक़े से छू लिया था. किसी ने गंदी नज़रों से देखते हुए भद्दा कॉमेंट किया था. किसी दिन भीड़ में जानबूझ कर कोई नज़दीक आ गया था. इन सारी घटनाओं में एक चीज़ कॉमन थी- मर्द.
ये किसी भी उम्र के किसी भी सूरत के और किसी पेशे से आते हों लेकिन इन सबके लिए लड़की सिर्फ़ जिस्म भर रही. मुझे ख़ुद से महीनों घिन्न आती रही. फिर धीरे-धीरे ये घिन्न नफ़रत में बदली और फिर जो ऐसा करते हैं उनसे नफ़रत होने लगी. अब जब कि उम्र के 14वें पड़ाव को गुजरे अरसा हो गया है फिर भी ऐसी कोई ख़बर पढ़ती हूं तो वो सारे ज़ख़्म गहरे होने लगते हैं.
14 साल की उम्र में हम लड़कियां खुद अपने शरीर में किसी अजनबी के जैसे रह रही होती हैं. बाहरी तौर पर बदलाव हो रहा होता है और उस पर समाज और आस-पास के लोगों की नज़रें भी बदल रही होती हैं. फिर ऐसे में उस 14 साल के शरीर के साथ बलात्कार यानि ज़बरदस्ती मर्द सेक्स कर लेता है. कितनी कुंठा से भरे ये लोग होते हैं. ये मानसिक रूप से बीमार लोग होते हैं.
ये सोच ही नहीं पाते हैं कि इनका एक बार किसी के साथ ज़बरदस्ती करना किसी को तमाम उम्र के लिए बर्बाद कर देता है. किसको दोष दें ऐसे मर्दों के लिए? इस समाज को, उसके घर परिवार को, पेट्रीआर्की को, किसे? पुलिस हर जगह, हर वक़्त नहीं हो सकती है ये हम भी जानते हैं. फिर क्या बलात्कार होते रहेंगे? लड़कियां शिकार होती रहेंगी?
मेरा मन नहीं हो रहा कि अभी बलात्कार कैसे रोके जाएं इस पर प्रवचन दूं. मेरा मन ये लिखते हुए घृणा से भर चुका है. मुझे इस वक़्त में ऐसा लग रहा है कि चाहे हम पेट्रीआर्की से कितना ही क्यों न लड़ लें, ईश्वर ने मर्दों को ज़्यादा ताकतवर बना कर इसलिए भेजा है कि वो हमारा बलात्कार कर सके. शारीरिक रूप से हम लड़कियां कमजोर होती हैं ही मर्दों की तुलना में. ऊपर से ये समाज ऐसा है जो मर्दों को कदम-कदम पर ये अहसास दिलवाता है कि वो स्त्रियों से उच्च कोटि की नस्ल है.
बचपन से बेटों को नंगा रख कर उसकी तस्वीर उतारेंगे. उसके प्राइवेट पार्ट का नाम रखेंगे. वो कुछ भी अश्लील हरकत करेगा तो उस पर वाह-वाह करेंगे. वहीं बेटियों को जन्म लेते ही ढक कर रखेंगे. उसको पैदा होते ही बताना शुरू कर देंगे कि पर्दे में रहो. यहीं से मर्द टॉक्सिक बनना शुरू होता है. आगे चल कर और भी चीज़ें इसमें ऐड होने लगती हैं, जैसे घर का माहौल, आस-पास की घटनाएं, पढ़ाई-लिखाई.
मां बाप को लगता है कि बेटा अग्रेसिव है तो सही है. यही अग्रेसिव बेटा घर से बाहर निकलते ही कभी अपना ग़ुस्सा शांत करने के लिए तो कभी अपनी सेक्स ड्राइव मिटाने के लिए तो कभी लड़कियों से नफ़रत की आग को शांत करने के लिए बलात्कार करता है. और हम क्या ही कर लेते हैं सिवाय लिखने के.
ये सिलसिला चलता ही रहेगा. लड़कियों का बलात्कार होता ही रहेगा. मर्द आकर डिफ़ेंड करते रहेंगे कि उनके ख़िलाफ़ मैंने कैसे लिख दिया. कहने वाले ये भी कहेंगे कि आपका भी बाप और भाई तो मर्द है, वो भी बलात्कारी हैं. ख़ैर. कहिए आप मर्द हैं आपको सब हक़ है!
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.