एक बड़ी लेखिका हैं. औरतों के ऊपर से कई किताब लिख चुकी हैं. विश्वविद्यालय में शिक्षिका हैं. फ़ेमिनिस्ट भी बताती हैं ख़ुद को. औरतों के हक़ के लिए लड़ती हैं ऐसा भी कहती हैं. उनको तीज-त्योहार, घूँघट, सिंदूर सबसे परेशानी है. सबका विरोध समय-समय पर करती रहती हैं. इन सबके अलावा वो बुर्क़ा-हिजाब की तरफ़दारी करती हैं. उनको लगता है कि बुर्क़ा और हिजाब पहन कर ही क्रांति होगी. ठीक!
चलिए अब बात करते हैं मासा अमीनी की. 22 साल की एक ईरानी लड़की जो अपने परिवार के साथ तेहरान घूमने आयी. घूमते वक्त मासा ने हिजाब पहना था लेकिन ईरान की मोरल पुलिसकर्मी को लगा कि हिजाब को सही तरीक़े से मासा ने नहीं पहना है, इसलिए उनको गिरफ़्तार करके डिटेंशन सेंटर ले गयी. जहाँ मासा को इतना मारा कि वो पहले कोमा में गयी और इस शुक्रवार को उनकी मौत हो गयी.. मासा की माँ बेटी को इंसाफ़ दिलाने के लिए दर-दर भटक रही हैं और ईरानी सरकार मासा की मौत को हार्ट-अटैक बता रही है. ठीक.
अब आप सोच रहे होंगे कि ऊपर लिखी दोनों बात का आपस में क्या रिश्ता है, है न?
देखिए, भारत में जहाँ आज़ादी है कि लड़कियाँ अपनी मर्ज़ी से जो चाहे पहन सकती हैं, जहाँ चाहे घूम सकती हैं वहाँ मुस्लिम समुदाय की लड़कियाँ बुर्क़े और हिजाब के ऊपर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए लड़ रही हैं. यहाँ इनको बुर्क़ा और हिजाब पहन कर ही रहना है. स्कूल-कॉलेज़ चाहें भले ही छूट जाए लेकिन बुर्क़ा और नक़ाब में इन्हें रहना पसंद है. ये कर्नाटक कोर्ट तक अपने को बुर्क़ा में क़ैद करवाने के लिए पहुँच चुकी हैं. इनको मासा जैसी ज़िंदगी चाहिए शायद. जहाँ बुर्क़ा या नक़ाब न पहनने की सज़ा मौत से कुछ कम न हो, है न!
और ऊपर जिस लेखिका का ज़िक्र है वो कोई एक लेखिका नहीं है बल्कि पूरा एक झुंड है जो बुर्क़ा को माँग करती लड़कियों को गुमराह करने के लिए उनके सपोर्ट में बोल रही हैं. इस झुंड में लेखिका से ले कर अरफ़ा ख़ानम जैसी पत्रकार, सायमा जैसी आर॰जे॰ तक शामिल हैं. जो खुद को बिकिनी से ले कर फ़्रॉक तक पहनती हैं लेकिन इन...
एक बड़ी लेखिका हैं. औरतों के ऊपर से कई किताब लिख चुकी हैं. विश्वविद्यालय में शिक्षिका हैं. फ़ेमिनिस्ट भी बताती हैं ख़ुद को. औरतों के हक़ के लिए लड़ती हैं ऐसा भी कहती हैं. उनको तीज-त्योहार, घूँघट, सिंदूर सबसे परेशानी है. सबका विरोध समय-समय पर करती रहती हैं. इन सबके अलावा वो बुर्क़ा-हिजाब की तरफ़दारी करती हैं. उनको लगता है कि बुर्क़ा और हिजाब पहन कर ही क्रांति होगी. ठीक!
चलिए अब बात करते हैं मासा अमीनी की. 22 साल की एक ईरानी लड़की जो अपने परिवार के साथ तेहरान घूमने आयी. घूमते वक्त मासा ने हिजाब पहना था लेकिन ईरान की मोरल पुलिसकर्मी को लगा कि हिजाब को सही तरीक़े से मासा ने नहीं पहना है, इसलिए उनको गिरफ़्तार करके डिटेंशन सेंटर ले गयी. जहाँ मासा को इतना मारा कि वो पहले कोमा में गयी और इस शुक्रवार को उनकी मौत हो गयी.. मासा की माँ बेटी को इंसाफ़ दिलाने के लिए दर-दर भटक रही हैं और ईरानी सरकार मासा की मौत को हार्ट-अटैक बता रही है. ठीक.
अब आप सोच रहे होंगे कि ऊपर लिखी दोनों बात का आपस में क्या रिश्ता है, है न?
देखिए, भारत में जहाँ आज़ादी है कि लड़कियाँ अपनी मर्ज़ी से जो चाहे पहन सकती हैं, जहाँ चाहे घूम सकती हैं वहाँ मुस्लिम समुदाय की लड़कियाँ बुर्क़े और हिजाब के ऊपर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए लड़ रही हैं. यहाँ इनको बुर्क़ा और हिजाब पहन कर ही रहना है. स्कूल-कॉलेज़ चाहें भले ही छूट जाए लेकिन बुर्क़ा और नक़ाब में इन्हें रहना पसंद है. ये कर्नाटक कोर्ट तक अपने को बुर्क़ा में क़ैद करवाने के लिए पहुँच चुकी हैं. इनको मासा जैसी ज़िंदगी चाहिए शायद. जहाँ बुर्क़ा या नक़ाब न पहनने की सज़ा मौत से कुछ कम न हो, है न!
और ऊपर जिस लेखिका का ज़िक्र है वो कोई एक लेखिका नहीं है बल्कि पूरा एक झुंड है जो बुर्क़ा को माँग करती लड़कियों को गुमराह करने के लिए उनके सपोर्ट में बोल रही हैं. इस झुंड में लेखिका से ले कर अरफ़ा ख़ानम जैसी पत्रकार, सायमा जैसी आर॰जे॰ तक शामिल हैं. जो खुद को बिकिनी से ले कर फ़्रॉक तक पहनती हैं लेकिन इन बच्चियों को इस्लामिक बर्बरता की तरफ़ क्रांति के नाम पर ढकेल रही हैं. ये हिजाब पहनी हुई लड़की को पोस्टर गर्ल बना कर पेश करती हैं. ये सरकार को कोसतीं हैं. इनको लड़कियों की आज़ादी की बात करती हिंदू सरकार पेट्रीआर्क नज़र आती है और बुर्क़ा फ़ेमिनिज़म का प्रतीक, आज़ादी का आसमाँ! अब शायद आपको दोनों बातों का लिंक समझ आ गया होगा...
ख़ैर...मैं सच में चाहती हूँ कि वो मुस्लिम लड़कियाँ जिनको बुर्क़ा पहनना है और जो कहती हैं कि बुर्क़ा हमारी Choice है वो आयें और बताएँ कि मासा जैसी ज़िंदगी उनको चाहिए. क्या मासा की मौत उनकी नज़र में भी जायज़ है जैसे इन लेखिकाओं की नज़र में... मैं कहती हूँ दुनिया की हर वो औरत और मर्द जो बुर्क़ा और हिजाब की तरफ़दारी कर रहा है वो सब मासा जैसी तमाम लड़कियों की हत्या में शामिल हैं. वो सब के सब गुनहगार हैं. मैं ख़ुश हूँ कि मैं हिंदू हूँ और मैं आज़ाद हूँ!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.