2019 दस्तक दे चुका है और इस साल आने वाले हैं लोकसभा चुनाव. वो चुनाव जो न सिर्फ कांग्रेस बल्कि खुद भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए भी बेहद अहम हैं और दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी लाज बचाने में लगी हुई हैं. इस चुनाव में किसानों की बदहाली और कर्ज माफी का वादा बड़ा रोल निभाएगा. 2017 अप्रैल के बाद से 8 राज्यों में किसानों की कर्ज माफी का ऐलान हुआ. जिन्हें करीब 1 लाख 90 हज़ार करोड़ रुपए का लोन माफ करना है. राजनीतिक पार्टियों ने वोटों के फायदे के लिए जो वित्तीय बोझ सरकारी खजाने और बैंकों पर डाला है, उसका समाधान ढूंढना आसान नहीं है. मध्य प्रदेश में तो कर्ज माफी के आदेश के बाद भी दो किसानों ने आत्महत्या कर ली है, ये कर्ज माफी भी किसानों के लिए स्थायी समाधान नहीं है.
ये आंकड़ा दिखाता है कि आखिर भारत में कृषि समस्या कितनी बड़ी है. किसानों को उनकी फसल का सही दाम नहीं मिलता और कर्ज के तले दबकर किसान आत्महत्या कर लेता है. सरकार बैंकों और हमारे देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं.
Livemint की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में जो लोन माफी की गई थी उसमें से सिर्फ 35% राशि ही अभी तक दी जा सकी है. जिन किसानों के लिए ये कर्ज माफी की जाती है उनमें से अधिकतर को ये फायदा नहीं पहुंचा पाती. Comptroller and Auditor General of India की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक कर्ज माफी का फायदा पहले से ठीक कमाई कर रहे किसानों को मिलता है और छोटे किसान, ऐसे किसान जिनके पास अपनी जमीन भी नहीं है जिन्हें वाकई मदद की जरूरत है उन्हें मदद नहीं मिलती.
कर्ज माफी के राजनीतिक शार्टकट से हटकर 4 राज्यों ने ढूंढा नया...
2019 दस्तक दे चुका है और इस साल आने वाले हैं लोकसभा चुनाव. वो चुनाव जो न सिर्फ कांग्रेस बल्कि खुद भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए भी बेहद अहम हैं और दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी लाज बचाने में लगी हुई हैं. इस चुनाव में किसानों की बदहाली और कर्ज माफी का वादा बड़ा रोल निभाएगा. 2017 अप्रैल के बाद से 8 राज्यों में किसानों की कर्ज माफी का ऐलान हुआ. जिन्हें करीब 1 लाख 90 हज़ार करोड़ रुपए का लोन माफ करना है. राजनीतिक पार्टियों ने वोटों के फायदे के लिए जो वित्तीय बोझ सरकारी खजाने और बैंकों पर डाला है, उसका समाधान ढूंढना आसान नहीं है. मध्य प्रदेश में तो कर्ज माफी के आदेश के बाद भी दो किसानों ने आत्महत्या कर ली है, ये कर्ज माफी भी किसानों के लिए स्थायी समाधान नहीं है.
ये आंकड़ा दिखाता है कि आखिर भारत में कृषि समस्या कितनी बड़ी है. किसानों को उनकी फसल का सही दाम नहीं मिलता और कर्ज के तले दबकर किसान आत्महत्या कर लेता है. सरकार बैंकों और हमारे देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं.
Livemint की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में जो लोन माफी की गई थी उसमें से सिर्फ 35% राशि ही अभी तक दी जा सकी है. जिन किसानों के लिए ये कर्ज माफी की जाती है उनमें से अधिकतर को ये फायदा नहीं पहुंचा पाती. Comptroller and Auditor General of India की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक कर्ज माफी का फायदा पहले से ठीक कमाई कर रहे किसानों को मिलता है और छोटे किसान, ऐसे किसान जिनके पास अपनी जमीन भी नहीं है जिन्हें वाकई मदद की जरूरत है उन्हें मदद नहीं मिलती.
कर्ज माफी के राजनीतिक शार्टकट से हटकर 4 राज्यों ने ढूंढा नया रास्ता
ऐसा नहीं है. हिंदुस्तान में चार राज्यों द्वारा किए गए किसानों को कर्ज देने के सही तरीकों का इस्तेमाल किया था.
1. केरल- किसानों की समस्या का एडवांस हल
केरल का एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे सरकार कर्ज माफी का पूरा फायदा गरीब किसानों को दे सकती है. केरल सरकार ने दिल्ली के रहने वाले अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक के नेतृत्व में एक कर्ज मुक्ति कमीशन बनाया था. इस कमीशन की जिम्मेदारी दी गई थी कि वह केरल में किसान आत्महत्यों को रोकने का कारगर तरीका ढूंढे.
कैसे काम करता है ये मॉडल-
ये मॉडल आज़ादी के पहले के छोटू राम कमीशन (पंजाब) से मिलता जुलता है. इसमें 7 लोगों की टीम काम कर रही थी जिसमें किसान, वकील, अर्थशास्त्री और राजनीतिक समीक्षक मौजूद थे. इस टीम ने एक अलग तरह की स्कीम निकाली. गांव-गांव जाकर किसान पोर्टफोलियो तैयार करने के बाद एक बार में किसानों को मदद न देकर छोटी-छोटी राशि में कई बार में पैसा देना तय किया गया. जैसे अगर बीज बोने का समय है तो सिर्फ बीज के लिए पैसा दिया जाए. साथ ही ये रिलीफ उन्हीं किसानों को मिलनी थी जिनकी सालाना आय 2 लाख से कम थी, जिनके पास या तो 5 एकड़ से कम या फिर अपनी जमीन थी ही नहीं.
सिर्फ कॉर्पोरेट बैंकों को लेन ही माफ किए गए और इसका नतीजा ये निकला कि 11000 किसानों को फायदा मिला और 11 करोड़ दिए गए. इससे केरल में किसान आत्महत्याओं का सिलसिला कम हो गया.
इस मॉडल का फायदा ये था कि किसानों से मिलकर उनकी अहम समस्या का पता लगाया जा सकता था. इस मॉडल की बुराई ये थी कि ये बहुत धीमा था. किसानों को कई बार सालों का इंतजार करना पड़ सकता था. ये सिस्टम केरल जैसे छोटे राज्य के लिए तो ठीक था, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के लिए नहीं.
2. तेलंगाना- फसल बोने के लिए किसान को एडवांस पेमेंट
तेलंगाना में भी एक अन्य तरह का मॉडल फॉलो किया गया था. ये थी Rythu Bandhu scheme. किसानों के लिए इन्वेस्टमेंट सपोर्ट स्कीम. जहां किसानों को हर फसल के लिए 4000 रुपए देने का फैसला किया गया था. इस साल 12000 करोड़ का अलॉटमेंट हो चुका है. ये वो स्कीम है जिसको लेकर कई लोगों ने अपनी राय दी है. ये किसानों के लिए आय/बचत का एक सिस्टम है. ये न सिर्फ आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है बल्कि इससे जल्दी काम होगा और इसमें गलती की गुंजाइश कम है क्योंकि किसानों की जमीनों के रिकॉर्ड रहेंगे.
कैसे काम करता है ये मॉडल-
5 एकड़ से कम जमीन वाले किसानों के पास अक्सर नए सीजन की शुरुआत में कोई साधन नहीं रहता है. ऐसे में बैंकों के लोन सेंक्शन सिस्टम के झंझट में न पड़कर किसान साहूकारों से पैसे लेते हैं जो बहुत ज्यादा ब्याज पर होता है. ऐसे में किसानों की समस्याएं और बढ़ जाती हैं. बंधू स्कीम का फायदा उठाने के लिए किसानों को अपने जमीनों के रिकॉर्ड बताने होते हैं. सरकार बैंक बियरर चेक के आधार पर किसानों को पैसा देती है. एग्रिकल्चर एक्सटेंशन ऑफिसर (AEO) इस स्कीम के लिए हर गांव का निरीक्षण करते हैं और टैब के जरिए एंट्री करते हैं कि किसे चेक मिल रहा है. यानी स्कीम सीधी सी है कि किसानों का कर्ज माफ करने की जगह उन्हें पहले ही फसल के लिए पैसे दे दिए जाएं. जमीन के रिकॉर्ड की जांच करने के लिए नई पट्टादार पासबुक भी दी गई है. एक खास डैशबोर्ड सॉफ्वेयर की मदद से इनकी मॉनिटरिंग भी होती है.
हालांकि, इस स्कीम का एक बुरा पहलू भी है कि इस स्कीम का फायदा उन किराएदार किसानों को नहीं मिलता जो किराए की जमीन पर खेती करते हैं.
3. ओडिशा- किसान सहायता योजना
ओड़ीसा सरकार ने इसे और एक कदम आगे लाया है. 10000 करोड़ की कृषक सहायता स्कीम लॉन्च करके. इसका नाम है Krushak Assistance for Livelihood and Income Augmentation (KALIA) स्कीम. ये स्कीम 74 लाख किसानों के घरों की सहायता करती है जिसमें वो किसान भी शामिल है जिनके पास जमीने नहीं हैं.
कैसे काम करता है ये मॉडल-
इस स्कीम के अंतरगत किसान 10 हज़ार रुपए दो किश्तों में दिए जाते हैं. ये खेती के दोनों सीजन के लिए हैं. इसी के साथ, 2 लाख का लाइफ कवर भी दिया जाता है और एक्सिडेंट कवर भी. कालिया स्कीम किराएदार किसानों को भी मौका देती है.
किसान कैसे पैसा इस्तेमाल करना चाहता है ये पूरी तरह उसके ऊपर निर्भर करता है. साथ ही आधार कार्ड सिस्टम भी है. साथ ही इससे सरकार किसानों को कर्ज के जंजाल में फंसने से भी रोक सकती है. 10 लाख किराएदार किसानों को 12,500 रुपए की रकम बकरी, खेती के औजार, सिंचाई के औजार, मछुआरों को मछली पकड़ने के सामान आदि के लिए दिए जाते हैं.
तेलंगाना और ओड़ीसा के किसानों के लिए जो स्कीम चलाई गई है ये एक इन्वेस्टमेंट के तौर पर है जहां पुराने समय में की गई गलती को सुधारने के लिए नहीं.
4. आंध्रप्रदेश- किसानों काे सालाना लोन
आंध्रप्रदेश की भी एक ऐसी ही स्कीम है जिसमें किसान 25000 प्रति एकड़ के हिसाब से सालाना लोन ले सकता है. आंध्रप्रदेश में ऋतु साधिकार संस्था (Farmers empowerment corporation) के तहत लोन दिया जाता है. ये किसानों के लिए वन स्टॉप शॉप जैसा है. इसमें किसान 1.5 लाख तक के लोन के लिए आवेदन दे सकते हैं.
कैसे काम करता है ये मॉडल-
अगर किसान उसी साल लोन चुका देता है जिस साल उसने लिया होता है तो उसपर कोई ब्याज नहीं लगता. अगर किसान सालाना लोन नहीं चुका पाया तो कम ब्याज ही लगता है. ये स्कीम उन किसानों की सहायता करती है जो अपना पैसा नहीं चुका सकते, न कि कर्ज माफी कर उन किसानों को पैसा दे देती है जिन्हें लगता है कि सरकार कर्ज माफी कर देगी इसलिए पैसा न चुकाओ. यकीन मानिए ऐसा कई लोग सोचते हैं कि कर्ज ले लो और बाकी सरकार तो माफ कर ही देगी.
अगर आंध्रप्रदेश, ओड़ीसा, तेलंगाना जैसे राज्यों की स्कीम देखें तो ये इन्वेस्टमेंट ही है जो किसानों को इतना हक देती है कि वो अपनी खेती सही तरीके से कर सकें और कर्ज और ब्याज के मायाजाल में न फंसे. साथ ही, कर्ज माफी का लॉलीपॉप न सिर्फ किसानों को ऊपरी राहत देता है बल्कि डिफॉल्टरों की संख्या भी बढ़ाता है. कर्ज लेकर पैसे न देने वाले ऐसे बहुत से लोग होते हैं जिन्हें सिर्फ सरकार द्वारा कर्ज माफी का इंतजार रहता है.
कुछ इस तरह की स्कीम ही हर राज्य में लागू होनी चाहिए न कि सिर्फ कर्ज माफी का आदेश होना चाहिए. क्योंकि ये आदेश न किसानों के काम आता है न देश के. देश और किसान दोनों ही कर्ज के तले दबे रहते हैं.
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