एक बात तो हमें मान ही लेनी चाहिए कि ये जो सास-बहू के सीरियलों से हम चिपके रहते हैं वो किसी तरह का साइंस फिक्शन नहीं बल्कि लगभग हर भारतीय घर के रोजाना की कहानी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं. और बदकिस्मती से अगर आपका ससुराल, मां के घर जैसा नहीं है तो फिर इन सीरियलों के खूसट किरदारों से खुद को रिलेट कर पाएंगे.
अगर अपने ससुराल वालों के साथ घुलना-मिलना आपके लिए मुश्किल हो रहा है तो यह बहुत तनावपूर्ण हो सकता है. और आप थोड़े संवेदनशील हैं तब तो बात और हाथ से निकल सकती है. भले ही लोग आपको कहें कि ऐसी चीजों को दिल पर ना लें, एक कान से सुनें दूसरे से निकाल दें आदि-आदि लेकिन अगर ईमानदारी से बोलें तो ये इतना आसान नहीं है. हमारे पास आपके लिए एक ही सलाह है कि अपनी चमड़ी मोटी कर लें और अपने दिमाग को खराब ना होने दें.
1- बहस के दौरान बोली गई बातों को इग्नोर करें-
जब माहौल गरम होता है तो शब्दों का वार दो धारी तलवार की तरह होता है. ये सच है कि बातों का डंक बहुत जोर से लगता है लेकिन असलियत ये है कि हर चीज आपके हाथ में है कि आप किस हद तक किसी बात को खुद को प्रभावित करने देते हैं. कल्पना कीजिए: आप किसी बहस में पड़े हैं और कोई आपसे कुछ कह रहा है, जिससे आप सहमत नहीं हैं. तो रोने या परेशान होने के बजाय अपनी सोच का एन्टीना दूसरी तरफ घूमा ले. कोई भी एक वाक्य चुन लें और उसे अपने मन में दोहराते रहें. इससे आप अपने खिलाफ कही जाने वाली बेकार की बातों से निजात पा लेंगे.
2- बहस वाली जगह से जितनी जल्दी...
एक बात तो हमें मान ही लेनी चाहिए कि ये जो सास-बहू के सीरियलों से हम चिपके रहते हैं वो किसी तरह का साइंस फिक्शन नहीं बल्कि लगभग हर भारतीय घर के रोजाना की कहानी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं. और बदकिस्मती से अगर आपका ससुराल, मां के घर जैसा नहीं है तो फिर इन सीरियलों के खूसट किरदारों से खुद को रिलेट कर पाएंगे.
अगर अपने ससुराल वालों के साथ घुलना-मिलना आपके लिए मुश्किल हो रहा है तो यह बहुत तनावपूर्ण हो सकता है. और आप थोड़े संवेदनशील हैं तब तो बात और हाथ से निकल सकती है. भले ही लोग आपको कहें कि ऐसी चीजों को दिल पर ना लें, एक कान से सुनें दूसरे से निकाल दें आदि-आदि लेकिन अगर ईमानदारी से बोलें तो ये इतना आसान नहीं है. हमारे पास आपके लिए एक ही सलाह है कि अपनी चमड़ी मोटी कर लें और अपने दिमाग को खराब ना होने दें.
1- बहस के दौरान बोली गई बातों को इग्नोर करें-
जब माहौल गरम होता है तो शब्दों का वार दो धारी तलवार की तरह होता है. ये सच है कि बातों का डंक बहुत जोर से लगता है लेकिन असलियत ये है कि हर चीज आपके हाथ में है कि आप किस हद तक किसी बात को खुद को प्रभावित करने देते हैं. कल्पना कीजिए: आप किसी बहस में पड़े हैं और कोई आपसे कुछ कह रहा है, जिससे आप सहमत नहीं हैं. तो रोने या परेशान होने के बजाय अपनी सोच का एन्टीना दूसरी तरफ घूमा ले. कोई भी एक वाक्य चुन लें और उसे अपने मन में दोहराते रहें. इससे आप अपने खिलाफ कही जाने वाली बेकार की बातों से निजात पा लेंगे.
2- बहस वाली जगह से जितनी जल्दी हो सके अलग हट जाएं
कभी-कभी गरम और तनाव के माहौल से खुद को निकालना ही सबसे अच्छा इलाज है. हालांकि जब आप किसी पर गुस्सा हैं या फिर आपके आस पास का माहौल सही नहीं है तब ऐसे में शांत दिमाग से सोचना आसान नहीं होगा. तो इसलिए ऐसे मौके पर आप सिर्फ ये करें कि कहीं बाहर घूमने निकल जाएं. ऐसी जगह चुनें जहां पेड़ों, फूलों और घास के साथ बहुत सारी हरियाली हो. मानें या न मानें इससे आपको बहुत मजबूती का अहसास होगा.
3- बस इतना याद रखें कुछ तो लोग कहेंगे
ये गाना तो आपने सुना ही होगा 'कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना'... अगर सुना है तो फिर आपको ये लाइन भी याद होगी- 'क्यों बेकार की बातों में भींग जाए नैना.'
सिर्फ इतना याद रखें कि कोई भी दो लोग एक जैसे नहीं होते, न ही एक जैसे सोचते हैं. हर इंसान अलग होता है और हर स्थिति परिस्थिति के लिए उनकी अलग राय होती है. कई बार ऐसा होगा जब आपको विरोध का सामना करना पड़ेगा और वह भी जरुरी नहीं कि विनम्र तरीके से नहीं होगा. और फिर आपको ये बात भी याद रखनी होगी कि धरती पर आप अकेले प्राणी नहीं है जिसके साथ ये सब हो रहा है. तो क्या हुआ अगर कोई आपकी बातों से सहमत नहीं होता है? लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं कि आपको दूसरों को खुश करने के लिए अपने व्यक्तित्व को ही बदलना होगा. और अगर आपको लगता है कि आप सही हैं, तो फिर आप किसी और की बात पर ध्यान ही नहीं दें. ये बात गांठ बांध कर रख लें कि किसी में भी आपको चोट पहुंचाने की ताकत नहीं है. किसी में भी नहीं मतलब, किसी में भी नहीं.
4- क्रोधित हों, उदास नहीं
उदासी और गुस्सा दोनों ही बहुत मजबूत और थोड़ा एक समान भावनाएं हैं. हालांकि दोनों के बीच एक बहुत ही छोटा सा अंतर है. गुस्सा कुछ समय बाद गायब हो जाता है, लेकिन उदासी साथ लटकी रहती है. असलियत तो ये है कि गुस्से की तुलना में उदासी से निपटना ज्यादा मुश्किल है. क्योंकि उदासी दूसरे बातों की यादों को बढ़ावा देती है. इसलिए अगली बार जब आप इस तरह की स्थिति में हों तो अपने आप को गुस्से में होने दें. इसके अलावा अपने गुस्से को बाहर निकालने के लिए कोई क्रिएटिव सा तरीका भी सोच लें. लेकिन खुद को चोट न पहुंचाएं.
5- अपनी भावनाओं को दबाएं नहीं बोलें
अपनी भावनाओं को दबाए रखने से कोई फायदा नहीं होने वाला. इसके अलावा यह आपको भावनात्मक रुप से परेशान भी करेगा. तो इसलिए अगर आप अपनी भावनाओं को स्थिर रखना चाहते हैं और अगर आप अपनी कोई राय रखते हैं, तो ये ही बेस्ट उपाय है. लड़ाई ना करें, लेकिन अपनी बात को भी कायदे से रखें. और अपने पार्टनर को भी इस बात से अवगत कराएं कि आप पर क्या बीत रही है. किसी का थोड़ा सा भी भावनात्मक सहयोग कभी बुरा नहीं करता.
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