9/11 के बाद से ही अमेरिका में सिख संप्रदाय के साथ भेदभाव की खबरें आती रही हैं. अमेरिकी अक्सर पगड़ी और दाढ़ी रखने के कारण सिखों को भी मुस्लिम समझ लेते हैं. लेकिन सवाल है कि कुछ लोगों की करतूतों के कारण किसी धर्म से भेदभाव करना क्या सही है? अमेरिका में रह रहे हरमीत सिंह ने इसी का जवाब देते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा है जो वायरल हो गया है.
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वे कहते हैं कि आम तौर पर अमेरिकी लोग मुस्लिम और सिख लोगों के बीच अंतर नहीं जानते. वे मुझे कहते हैं कि कई अमेरिकी पगड़ी और दाढ़ी को या तो ISIS या तालिबान से जोड़ लेते हैं या फिर बिन लादेन से. चलिए ठीक है... क्योंकि वैसे भी ज्यादातर सिखों के शब्दकोश में डर नाम का शब्द भी नहीं होता.
हम पीड़ित लोग नहीं हैं जिसे गलत तरीके से पहचाने जाने का दंश झेलना पड़ा रहा है. हम तो दरअसल वहीं कर रहे हैं जिसके लिए हम जाने जाते हैं. यही तो हमारा काम है कि हम नफरत और अज्ञानता को आत्मसात कर लेते हैं ताकि दूसरे लोगों को यह न झेलना पड़े. देखो... आप हमें वो समझ लेते हो जो हम हैं ही नहीं. यह और बात है कि आप नहीं जानते कि हम कौन हैं, हमारी असल पहचान क्या है. हमारी परंपरा हमें सहिष्णु होना सिखाती है, दुश्मनों से प्यार करना सिखाती है और उन लोगों की रक्षा करना भी सिखाती है, जिनसे हम भले सहमत नही हों.
ये जो बराबरी की बात, धर्म की आजादी, सबके लिए न्याय की बात आप अमेरिकी लोग आज कर रहे हैं, सिख संप्रदाय के लोग तो सदियों से इसे ही जी रहे हैं और इसी के लिए मर रहे हैं. हमारा इतिहास ऐसे उदाहरण से भरा पड़ा है कि कैसे सिखों ने खुद को तरजीह न देकर दूसरों को बचाया. हमने खुद से ऊपर मानवता को तरजीह दी. हमे तो शुरू से ये ही पढ़ाया जाता रहा है कि हमारी जिम्मेदारी ही हमारी पहचान है.
हमने अपने पूर्वजों से सीखा है कि नफरत कभी दूर तक नहीं जाती. जीत हमेशा प्यार और सच्चाई की होती है. आप हम पर हमला कर खुद को भले ही बहुत बड़ा समझते हों लेकिन हर हमले के साथ आप हमारे ही संकल्प...
9/11 के बाद से ही अमेरिका में सिख संप्रदाय के साथ भेदभाव की खबरें आती रही हैं. अमेरिकी अक्सर पगड़ी और दाढ़ी रखने के कारण सिखों को भी मुस्लिम समझ लेते हैं. लेकिन सवाल है कि कुछ लोगों की करतूतों के कारण किसी धर्म से भेदभाव करना क्या सही है? अमेरिका में रह रहे हरमीत सिंह ने इसी का जवाब देते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा है जो वायरल हो गया है.
आप भी पढ़िए ये फेसबुक पोस्ट-
वे कहते हैं कि आम तौर पर अमेरिकी लोग मुस्लिम और सिख लोगों के बीच अंतर नहीं जानते. वे मुझे कहते हैं कि कई अमेरिकी पगड़ी और दाढ़ी को या तो ISIS या तालिबान से जोड़ लेते हैं या फिर बिन लादेन से. चलिए ठीक है... क्योंकि वैसे भी ज्यादातर सिखों के शब्दकोश में डर नाम का शब्द भी नहीं होता.
हम पीड़ित लोग नहीं हैं जिसे गलत तरीके से पहचाने जाने का दंश झेलना पड़ा रहा है. हम तो दरअसल वहीं कर रहे हैं जिसके लिए हम जाने जाते हैं. यही तो हमारा काम है कि हम नफरत और अज्ञानता को आत्मसात कर लेते हैं ताकि दूसरे लोगों को यह न झेलना पड़े. देखो... आप हमें वो समझ लेते हो जो हम हैं ही नहीं. यह और बात है कि आप नहीं जानते कि हम कौन हैं, हमारी असल पहचान क्या है. हमारी परंपरा हमें सहिष्णु होना सिखाती है, दुश्मनों से प्यार करना सिखाती है और उन लोगों की रक्षा करना भी सिखाती है, जिनसे हम भले सहमत नही हों.
ये जो बराबरी की बात, धर्म की आजादी, सबके लिए न्याय की बात आप अमेरिकी लोग आज कर रहे हैं, सिख संप्रदाय के लोग तो सदियों से इसे ही जी रहे हैं और इसी के लिए मर रहे हैं. हमारा इतिहास ऐसे उदाहरण से भरा पड़ा है कि कैसे सिखों ने खुद को तरजीह न देकर दूसरों को बचाया. हमने खुद से ऊपर मानवता को तरजीह दी. हमे तो शुरू से ये ही पढ़ाया जाता रहा है कि हमारी जिम्मेदारी ही हमारी पहचान है.
हमने अपने पूर्वजों से सीखा है कि नफरत कभी दूर तक नहीं जाती. जीत हमेशा प्यार और सच्चाई की होती है. आप हम पर हमला कर खुद को भले ही बहुत बड़ा समझते हों लेकिन हर हमले के साथ आप हमारे ही संकल्प को और मजबूत करते हैं. आप सब ने स्कूलों में हमारे बच्चों पर तंज कसा. अपनी आधी-अधूरी और दुनिया की बेहद कम जानकारी होने का परियच देते हुए हमारे पूजा करने के स्थानों पर आपने हमला किया. हां... हम और लोगों से अलग दिखते हैं और इस तरह का भेदभाव हमने पहले भी देखा है. हम सभी सिख जानते हैं कि एक सिख दुनिया में जहां भी जाए तो सभी बातों से पहले उसकी पहचान सामने आ जाती है. लेकिन बेहद असहिष्णु माहौल के बावजूद वे नफरत का जवाब नहीं देते बल्कि प्यार ही बरसाते हैं.
आप सोचते होंगे कि आपके डराने से हम अपने 'देश' वापस चले जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं होगा. हम यहीं रहकर न केवल यह साबित करेंगे कि हम डरे नहीं है बल्कि आपकी सोच को बदलने की कोशिश करेंगे. हमारा धर्म यह सिखाता है कि कहीं दूसरा कोई नहीं है, किसी में कोई अंतर नहीं है, कोई सबसे अच्छा नहीं है. केवल एक दिव्य प्रकाश है जो हम सब में है.
एक सिख की मजबूती उसकी पहचान में है और यह उनकी मौजूदगी से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचता है. आप अपने पक्षपातपूर्ण सोच के लेंस से दुनिया को देखने के लिए मीडिया की इमेज का सहारा ले सकते हैं लेकिन हम अपने संकल्प को साधने के लिए अध्यात्मिक शक्ति का ही सहारा लेते हैं. एक सिख तूफान में भी अडिग खड़ा रहेगा क्योंकि हम जानते हैं कि असल लड़ाई में बाहरी जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण आंतरिक जीत होती है. मैं एक बेहतर अमेरिका देखना चाहता हूं, जहां सहिष्णुता केवल एक शब्द भर नहीं हो. बल्कि हर व्यक्ति उसका पालन करे. जहां विविधता को कमजोरी के तौर पर नहीं देखा जाए बल्कि यही हमारी शक्ति हो. हमारा राष्ट्र और महान बने. उस समय तक आप हमें कभी खुद को छुपते-छिपाते नहीं देखेंगे. एक आम सिख ऐसे ही पगड़ी और दाढ़ी के साथ आपको बाहर सड़कों पर दिखेगा, जिसे पहचानना आसान होगा और जो हर चुनौती के लिए भी हमेशा तैयार रहेगा.
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