उसे जगने के लिए किसी अलार्म की जरूरत नहीं पड़ती. वह गांव में रहती है न. उसे ऑफिस तो नहीं जाना लेकिन फिर भी जल्दी में रहती है. वह 4 बजे जग तो जाती है लेकिन चाय या कॉफी नहीं पीती. गोबर निकालना, घूरे पर जाना फिर द्वार पर झाड़ू और सब्जी उगाना कितने तो काम रहते हैं उसे. हां वह अब वह अकेले जो रहती है.
जब शादी करके आई थी तो भरा-पूरा परिवार था. फिर धीरे-धीरे सब शहरों की ओर रूख कर गए. पति को पैसे कमाने थे तो वह मना भी कैसे करती? कुछ साल बाद सास और फिर ससुर जी भी गुजर गए. बच्चे पढ़ाई करने शहर चले गए.
हां घरवालों ने उसे एक सादा फोन जरूर दे दिया था जिस पर घंटी आ सकती है. किसी ने उसे फोन रिसीव करना तो सिखा दिया लेकिन फोन मिलाना उसे अभी भी नहीं आता, वह अनपढ़ जो है. हां कभी कभार वह बजता जरूर है जिसे शायद ही वह कभी ले पाती है, क्योंकि उसे हर वक्त अपने पास मोबाइल रखने की आदत जो नहीं है. हर महीने में घरवालों से बस उसे कुछ पैसे मिल जाते हैं. वो कहते हैं उसका कोई खर्च थोड़ी है, ना घर का किराया देना है और ना राशन खरीदना है.
उससे कोई तरह-तरह के पकवान बनाने की जिद भी तो नहीं करता लेकिन वह अपने लिए पकाती और खाती है शायद सुबह की बनाई हुई सब्जी या फिर रात की बची हुई रोटी. हां उसे मछली खाने का शौक है लेकिन लाएगा कौन. बहुए ऐसी दुकानों पर थोड़ी जा सकती हैं, लोग क्या कहेंगे. उसे मायके भी गए सालों हो गए. ऐसा नहीं है कि उसे बुलावा नहीं आता लेकिन अगर वह चली गई तो घर का ख्याल कौन रखेगा?
वह लगी रहती है सुबह से शाम कभी ना खत्म होने वाले अपने काम में. अब उसे व्यस्त रहना अच्छा लगता है या शायद उसे काटता है अकेलापन. याद आती है अपनों की. उसने नहीं मांगी ऐसी जिंदगी अपने लिए लेकिन सब...
उसे जगने के लिए किसी अलार्म की जरूरत नहीं पड़ती. वह गांव में रहती है न. उसे ऑफिस तो नहीं जाना लेकिन फिर भी जल्दी में रहती है. वह 4 बजे जग तो जाती है लेकिन चाय या कॉफी नहीं पीती. गोबर निकालना, घूरे पर जाना फिर द्वार पर झाड़ू और सब्जी उगाना कितने तो काम रहते हैं उसे. हां वह अब वह अकेले जो रहती है.
जब शादी करके आई थी तो भरा-पूरा परिवार था. फिर धीरे-धीरे सब शहरों की ओर रूख कर गए. पति को पैसे कमाने थे तो वह मना भी कैसे करती? कुछ साल बाद सास और फिर ससुर जी भी गुजर गए. बच्चे पढ़ाई करने शहर चले गए.
हां घरवालों ने उसे एक सादा फोन जरूर दे दिया था जिस पर घंटी आ सकती है. किसी ने उसे फोन रिसीव करना तो सिखा दिया लेकिन फोन मिलाना उसे अभी भी नहीं आता, वह अनपढ़ जो है. हां कभी कभार वह बजता जरूर है जिसे शायद ही वह कभी ले पाती है, क्योंकि उसे हर वक्त अपने पास मोबाइल रखने की आदत जो नहीं है. हर महीने में घरवालों से बस उसे कुछ पैसे मिल जाते हैं. वो कहते हैं उसका कोई खर्च थोड़ी है, ना घर का किराया देना है और ना राशन खरीदना है.
उससे कोई तरह-तरह के पकवान बनाने की जिद भी तो नहीं करता लेकिन वह अपने लिए पकाती और खाती है शायद सुबह की बनाई हुई सब्जी या फिर रात की बची हुई रोटी. हां उसे मछली खाने का शौक है लेकिन लाएगा कौन. बहुए ऐसी दुकानों पर थोड़ी जा सकती हैं, लोग क्या कहेंगे. उसे मायके भी गए सालों हो गए. ऐसा नहीं है कि उसे बुलावा नहीं आता लेकिन अगर वह चली गई तो घर का ख्याल कौन रखेगा?
वह लगी रहती है सुबह से शाम कभी ना खत्म होने वाले अपने काम में. अब उसे व्यस्त रहना अच्छा लगता है या शायद उसे काटता है अकेलापन. याद आती है अपनों की. उसने नहीं मांगी ऐसी जिंदगी अपने लिए लेकिन सब तो जरूरी था फिर किसे माना करती या क्या छोड़ देती. 50 साल की उम्र में भी उसके सर से पल्लू नहीं हटा. आज भी वह घूंघट में रहती है, वह घर की छोटी बहू जो है. हां इस बीच वह पड़ोसी महिलाओं से कुछ बोल बतिया जरूर लेती है. दबी हंसी हंस लेती है, पता नहीं वह क्या बात करती होगी?
वह अकेले करती क्या है कुछ काम तो है नहीं, नौकरी पर थोड़ी जाना है. उसे नहीं मतलब कि कहां क्या हो रहा. अपने गांव के पास वाले कस्बे को छोड़कर उसने कोई दूसरी जगह शायद ही देखी हो. सिनेमा और होटेल जाना तो दूर की बात है. उसे रोज पूजा-पाठ करने की आदत तो नहीं लेकिन कभी तीज और ज्युतिया का व्रत नहीं छोड़ा.
अगर शादी, ब्याह पड़ जाए तो सबसे ज्यादा काम करने की आदत उसे ही है. सबके मुंह से अपने काम की तारीफ सुनकर अंदर ही अंदर खुश हो जाती है, जैसे खुलकर हंसना शायद उसे सीखा ही नहीं. हां उसका पति साल में एक बार आ जाता है 20-25 दिन के लिए. जिसके आने के बाद बदल जाता है उसका रूप, निकल जाती हैं बक्से से साड़ियां और आता है श्रृंगार का मौसम, लेकिन उसके जाने के बाद फिर उसकी दुनिया होती हैं पड़ोसी औरतें और कुछ बकरियां.
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