जिस लड़की के ऊपर एसिड अटैक (Acid Attack) होता है, उसका चेहरा जलने के साथ उसकी जिंदगी भी राख की धूल के बराबर हो जाती है. वह सिर्फ कहने के लिए जिंदा रहती है. उस दिन के बाद वह दोबारा अपना चेहरा शीशे में देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है. उसे खुद से नफरत हो जाती है, उसकी पीड़ा हम औऱ आप चाहकर नहीं समझ सकते, ना कभी समझ पाएंगे. उसकी जिंदगी इस कदर बदलती है कि शायद ही कभी दोबारा पटरी पर आ पाती है. आज दिल्ली में जब 17 साल की स्कूल छात्रा पर बाइक सवाल दो लड़कों ने एसिड से हमला किया तो मैं हैरान गई. मन सिहर गया. मैं सोच में पड़ गई कि, क्या आज भी लोग एसिड से हमला करते हैं? बहुत दिनों बाद मुझे इस तरह की घटना सुनाई दी.
असल में घटनाएं तो होती हैं मगर हमारे सामने नहीं आ पाती हैं. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 250-300 तेजाब हमले होते हैं. अभी कई ऐसे लोग भी हैं जो रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते हैं. यह मामला दिल्ली का है और इसकी बकायदा सीसीटीवी फुटेज है, इसलिए यह मामला आसानी से सामने आ गया.
ऐसी ना जाने कितनी बहन बेटियां घुट-घुट कर जीने को मजबूर होंगी, जिनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है. इस तरह के अधिकतर हमले एक तरफा प्यार में लड़कियों को सबक सिखाने के लिए किए जाते हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018 से 2022 तक देश में महिलाओं पर एसिड अटैक के 386 मामले दर्ज किए गए थे. जिनमें कुल 62 आरोपियों को दोषी पाया गया. यह जानकारी खुद देश के गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने संसद में दी थी.
अब सोचिए कि हमले हुए 386 और पकड़ में आए सिर्फ 62 आरोपी? ऐसे...
जिस लड़की के ऊपर एसिड अटैक (Acid Attack) होता है, उसका चेहरा जलने के साथ उसकी जिंदगी भी राख की धूल के बराबर हो जाती है. वह सिर्फ कहने के लिए जिंदा रहती है. उस दिन के बाद वह दोबारा अपना चेहरा शीशे में देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है. उसे खुद से नफरत हो जाती है, उसकी पीड़ा हम औऱ आप चाहकर नहीं समझ सकते, ना कभी समझ पाएंगे. उसकी जिंदगी इस कदर बदलती है कि शायद ही कभी दोबारा पटरी पर आ पाती है. आज दिल्ली में जब 17 साल की स्कूल छात्रा पर बाइक सवाल दो लड़कों ने एसिड से हमला किया तो मैं हैरान गई. मन सिहर गया. मैं सोच में पड़ गई कि, क्या आज भी लोग एसिड से हमला करते हैं? बहुत दिनों बाद मुझे इस तरह की घटना सुनाई दी.
असल में घटनाएं तो होती हैं मगर हमारे सामने नहीं आ पाती हैं. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 250-300 तेजाब हमले होते हैं. अभी कई ऐसे लोग भी हैं जो रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते हैं. यह मामला दिल्ली का है और इसकी बकायदा सीसीटीवी फुटेज है, इसलिए यह मामला आसानी से सामने आ गया.
ऐसी ना जाने कितनी बहन बेटियां घुट-घुट कर जीने को मजबूर होंगी, जिनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है. इस तरह के अधिकतर हमले एक तरफा प्यार में लड़कियों को सबक सिखाने के लिए किए जाते हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018 से 2022 तक देश में महिलाओं पर एसिड अटैक के 386 मामले दर्ज किए गए थे. जिनमें कुल 62 आरोपियों को दोषी पाया गया. यह जानकारी खुद देश के गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने संसद में दी थी.
अब सोचिए कि हमले हुए 386 और पकड़ में आए सिर्फ 62 आरोपी? ऐसे स्थिती में सरकार से क्या ही उम्मीद की जा सकती है. एसिड अटैक पीड़ित लक्ष्मी की याचिका के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि एसिड की बिक्री को रेग्यूलेट किया जाएगा.
अब ऐसा नहीं है कि सरकार ने कुछ नहीं किया. हमलों को रोकने के लिए भारत में साल 2013 में जनता को तेजाब की काउंटर पर बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया. जिसके अनुसार, केवल वही लोग एसिड खरीद सकते हैं, जिनके पास लाइसेंस है. एसिड की खरीद के लिए पहचान को भी अनिवार्य कर दिया गया, लेकिन दिल्ली महिला आयोग के औचक निरीक्षणों से पता चला कि तेजाब हमेशा की तरह खुलेआम धड़ल्ले से बिक रहा है. आखिर एसिड पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए सरकार को और कितनी एसिड अटैक पीड़िताओं की जरूरत है?
केंद्र सरकार ने एसिड को जहर की श्रेणी में रखने का फैसला किया था. साथ ही यह भी तय किया गया था कि बैन दुकानों से जुर्माने के रूप में जो पैसे मिलेंगे, उसका इस्तेमाल पीड़िता के इलाज में किया जाएगा. यह राशि 36000 है, जो ना के बराबर है. जबकि एसिड विक्टिम के इलाज में लाखों का खर्च आता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकारी अफसर एसिड की अनियमित बिक्री की ठीक से जांच नहीं कर रहे हैं.
असल में हमारी बाहरी स्किन हमारी रक्षा करती है. जब यही जल जाती है तो संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है. एसिड पीड़िता को बार-बार अपनी जली हुई स्किन का ऑपरेशन कराना पड़ता है. उनकी पूरी जिंदगी इसी में बीत जाती है. हम कह तो रहे हैं कि आप कितनी भी कोशिश कर लो मगर एसिड विक्टिम की जिंदगी कभी भी पहले की तरह नॉर्मल नहीं हो पाती है. कुल मिलाकर ये सारी घटनाएं इसलिए हो रही हैं, क्योंकि सरकार इसके बिक्री पर रोक नहीं लगा पा रही है.
टॉयलेट क्लीनर को सस्ता बना दो, हर कोई हैरपिक नहीं खरीद सकता इसलिए एसिड बिकता है
सरकार को चाहिए कि टॉयलेट क्लीनर को एकदम सस्ता कर दे, ताकि एसिड कम बिकने लगे. यहां तो महिलाएं शौचालय की सफाई के लिए घर के राशन की तरह एसिड खरीद लाती हैं और उससे उन्हीं के ऊपर हमला कर दिया जाता है.
एसिड अटैक का मामला पराली जैसा हो गया है
जिस तरह पाल्यूशन बढ़ने पर साल भर एक बार पराली जलाने का मामला उठता है और थोड़े दिन बाद सब शांत हो जाती है, उसी तरह जब एसिड अटैक होता है तो मालमा सामने आकर थोड़े दिन में शांत हो जाता है. नेता राजनीति करते हैं, बयान देते हैं और फिर भूल जाते हैं.
हमलावर का भी अपना पक्ष है
तुम मेरी नहीं हो सकती तो किसी और की भी नहीं हो सकती, ठुकरा के मेरा प्यार इंतकाम देखेगी और मैं तेरी जिंदगी को मौत से भी बदतर बना दूंगा. जो लड़के इस तरह की धमकियां लड़कियों को देते हैं, वे कर भी देते हैं. उन्हें सिर्फ 20 रुपए की एसिड की बोतल ही तो खरीदनी होती है और लड़की के चेहरे पर फेंक देनी है. बस हो गया हिसाब बराबर...
जिला प्रशासन की लापरवाी भी तेजाब से कम नहीं है
बात तो यही है कि एसिड फेंकने के लिए आरोपी को मिल कहां से जाता है? इसका मतलब यह है कि यह मार्केट में आसानी से उबलब्ध है. घरों में बाथरूम के कोने में रखा मिल जाता है. लोग आराम से दुकान पर जाते हैं औऱ एसिड की बोतल खरीद लेते हैं.
किसी दुकानदार के पास यह डाटा नहीं रहता है कि एसिड खरीदने वाला कौन है? सरकार के पास तो एसिड ब्रिक्री के आंकड़े ही नहीं हैं. अगर जिला प्रशासन चौकन्ना रहकर दुकानों में छापा मारते तो पता चलता कि बिना लाइसेंस के बिना किसी रिकॉर्ड के किस तरह जहर वाली बोतलें बेची जा रही हैं.
आखिर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया कोर्ट का काम खत्म हो गया. सरकार ने भी काउंटर पर बैन का नियम बना दिया और खामोश हो गई. नेताओं को इस पर सिर्फ राजनीति करनी है. इन सब में भुगत रही है वह एसिड अटैक पीड़िता. जिसकी जिंदगी से किसी को कोई मतलब नही हैं...
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