रत्ना पाठक शाह (नसीरूद्दीन शाह की पत्नी) कहती हैं भारत सऊदी में बदल रहा है. यहां औरतों को करवा चौथ करना पड़ता है. सबसे पहले कोई उनको समझाओ कि करवा चौथ या तीज किसी भी स्त्री को ज़बरदस्ती नहीं करवाया जाता है. हिंदू स्त्रियां खुद अपनी मर्ज़ी की मालिक हैं, करना है तो करेंगी नहीं करना है तो नहीं करेंगी. दूसरी बात करवा चौथ या तीज कभी भी स्त्रियों के दमन का सूचक नहीं बल्कि श्रृंगार, स्पेशल फ़ील करने, विमन हुड को सिलेब्रेट करने का त्योहार था. इस दिन स्त्रियां न तो कोई घर का काम करती हैं न उनसे कोई कहता है कि तुम हमारी ख़िदमत करो.
करवा चौथ से कितने दिन पहले शॉपिंग शुरू हो जाती है. एक दिन पहले ब्यूटी पार्लर में रत्ना जी को जा कर देखना चाहिए कि कैसे सज रही होती हैं स्त्रियां. घर लौटती हैं तो हाथों में मेहंदी सजी होती है, आंखों में मुहब्बत वाला रंग. फ़ास्ट रखने से पहले सासु मां की तरफ़ से जो शगुन की थाली मिलती है जिसमें न जाने कितने आशीर्वाद के साथ गिफ़्ट्स रखे होते हैं. जो नहीं करते वो नहीं समझ सकते कि क्या होता है करवाचौथ या हरितालिका तीज़.
हां, आप उस करवाचौथ की किताब या हरितालिका तीज़ की किताब का ज़िक्र कर सकते हैं जिसमें लिखा है कि उपवास न करने पर तरह तरह के पाप लगते हैं. तो जान लीजिए वो कोई ग्रंथ नहीं है और न ही उसे कालिदास या वाल्मीकि जैसे किसी महान हस्ती ने लिखा है. उसमें लिखी बातों को कोई भी पढ़ी-लिखी लड़की नहीं मानती या किसी डर में आ कर कोई त्योहार नहीं करती.
वो किसी ने यूं ही लिख दिया होगा. अब हर अच्छी चीज़ में वक़्त के साथ कुरीतियां तो जुड़ी न तो वैसे ही हरितालिका की कथा में भी जोड़ दी गयी, उसका उस त्योहार से कोई वास्ता नहीं है. मेरे...
रत्ना पाठक शाह (नसीरूद्दीन शाह की पत्नी) कहती हैं भारत सऊदी में बदल रहा है. यहां औरतों को करवा चौथ करना पड़ता है. सबसे पहले कोई उनको समझाओ कि करवा चौथ या तीज किसी भी स्त्री को ज़बरदस्ती नहीं करवाया जाता है. हिंदू स्त्रियां खुद अपनी मर्ज़ी की मालिक हैं, करना है तो करेंगी नहीं करना है तो नहीं करेंगी. दूसरी बात करवा चौथ या तीज कभी भी स्त्रियों के दमन का सूचक नहीं बल्कि श्रृंगार, स्पेशल फ़ील करने, विमन हुड को सिलेब्रेट करने का त्योहार था. इस दिन स्त्रियां न तो कोई घर का काम करती हैं न उनसे कोई कहता है कि तुम हमारी ख़िदमत करो.
करवा चौथ से कितने दिन पहले शॉपिंग शुरू हो जाती है. एक दिन पहले ब्यूटी पार्लर में रत्ना जी को जा कर देखना चाहिए कि कैसे सज रही होती हैं स्त्रियां. घर लौटती हैं तो हाथों में मेहंदी सजी होती है, आंखों में मुहब्बत वाला रंग. फ़ास्ट रखने से पहले सासु मां की तरफ़ से जो शगुन की थाली मिलती है जिसमें न जाने कितने आशीर्वाद के साथ गिफ़्ट्स रखे होते हैं. जो नहीं करते वो नहीं समझ सकते कि क्या होता है करवाचौथ या हरितालिका तीज़.
हां, आप उस करवाचौथ की किताब या हरितालिका तीज़ की किताब का ज़िक्र कर सकते हैं जिसमें लिखा है कि उपवास न करने पर तरह तरह के पाप लगते हैं. तो जान लीजिए वो कोई ग्रंथ नहीं है और न ही उसे कालिदास या वाल्मीकि जैसे किसी महान हस्ती ने लिखा है. उसमें लिखी बातों को कोई भी पढ़ी-लिखी लड़की नहीं मानती या किसी डर में आ कर कोई त्योहार नहीं करती.
वो किसी ने यूं ही लिख दिया होगा. अब हर अच्छी चीज़ में वक़्त के साथ कुरीतियां तो जुड़ी न तो वैसे ही हरितालिका की कथा में भी जोड़ दी गयी, उसका उस त्योहार से कोई वास्ता नहीं है. मेरे घर में न तो वो कथा पढ़ी जाती और न उसके अनुरूप कुछ होता है. भाभियां मेरी उपवास नहीं रखती हैं और उस दिन सिर्फ़ सजती संवरती हैं. ठीक न.
अब ज़रा कोई रत्ना पाठक को पूछे कि बुर्क़े में क्या क्रांति हो रही है? बहूपत्नी विवाह वाले समुदाय में औरतें कितनी आज़ाद हैं? पिरीयड आते ही उस क़ौम की लड़कियों की शादी करवा दी जाती है वो सऊदी अरब होता नहीं दिखता क्या? हिंदुओं के त्योहार से ही ख़ाली भारत सउदी हो जाएगा? या अल्लाह ये क्या सितम है, कोई उनको समझाओ या फिर हमारी अक़्ल पर ताले लगवा दो!
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