यह पुराना तालिबान नहीं है, तालिबान अब बदल चुका है. पुराना तालिबान जैसा था वैसा ही दिखता था. नया तालिबान ख़ास है. यह प्रेस कॉन्फ़्रेंस भी करता है और एक पत्रकार द्वारा नेत्रियों पर पूछे गये सवाल की खिल्ली उड़ाते हुए कैमरा बंद भी करवा देता है. यह महिला अधिकारों की बात करता है और 12-13 वर्षीय बच्चियों को उनके परिवार के सामने घर से खींचकर ले भी जाता है. एक चीखती बच्ची की आवाज़ अबतक मेरे कानों में गूंज रही है.
यह महिलाओं के कामकाज की बात करता है और पढ़ने जाती एक लड़की को रोककर गोली भी मार देता है. लड़की गिर जाती है और गूँजता है अल्लाह हू अकबर.
इसे जलालाबाद में विरोध दिखाकर स्वयं को लोकतांत्रिक भी दिखाना था लेकिन जंगली मन को धैर्य न रहा इसलिए गोलियाँ भी बरसा दीं. पत्रकारों के साथ इतनी मारपीट की कि सभी रो रहे थे. उसके बाद क्या हुआ वही जानें क्योंकि कैमरा ऑफ़ हो गया.
नये तालिबान को पता है कि कब कैमरे पर आना है, कब ऑफ़ करना है. नया तालिबान जितना उन मासूमों की ज़िंदगी से खेल रहा है उतना ही उन लोगों के दिमाग से जो दूर बैठे चार सुर्खियाँ पढ़कर निर्णय बना लेते हैं.
नये तालिबान ने लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, आइसिस को अफ़ग़ानिस्तान में एंट्री दी है. ज़ाहिर है अपने बेटे के जन्म पर सोहर गाने नहीं बुलाया होगा.
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