युवाओं को हिंसा के लिए उकसाने वाले कोचिंग संस्थान, बड़े पत्रकार, बूढ़े लेखक सब अब उनसे पल्ला झाड़ रहे हैं. जो लोग पांच हाथ लम्बा भड़काऊ पोस्ट लिखा रहे थे, अब कह रहे हैं कि हिंसा नहीं करनी चाहिए थी युवाओं को. उसके नुक़सान को अब गिना रहे हैं. इन सब ने युवाओं को उकसाने का काम किया. उनकी ज़िंदगी बर्बाद करवाई. अग्निपथ की बहाली के लिए शायद तारीख़ की भी घोषणा हो गयी है जिसमें हिंसा में भाग लेने वाले युवकों के लिए कोई जगह नहीं है. अब ये बेचारे लड़के न घर के रहे न घाट के. मैं डे वन से लिख रही थी, और मेरे जैसे बाक़ी के लोग भी लिख रहे थे कि हिंसा रास्ता नहीं है. ट्रेन जलाना रास्ता नहीं है, लेकिन इन्होंने बूढ़े लेखकों, ईमान बेचे हुए कोचिंग संस्थान, बिके हुए पत्रकारों की बात को सुनना ज़रूरी समझा. अब नुक़सान देखिए सिर्फ़ युवाओं का हुआ है. बूढ़ा लेखक किताब लिख कर, दूसरी क़ौम को ख़ुश करके काम चला लेगा, पत्रकार पैसा कमा ही रहा है, भूख से कौन मरेगा? एक-एक पैसे के लिए कौन मोहताज होगा?
और, राहुल गांधी जिनको कुछ लोग भगवान बनाने पर तुले हैं. जिनको ED के यहां पूछताछ के लिए बुलाया जाता है तो सारी कांग्रेस वफ़ादारी दिखाने के लिए दिल्ली को छावनी में तब्दील कर देती है. लेकिन यही कांग्रेस युवाओं के लिए क्या करती है? कितना आंदोलन करने के लिए सड़कों पर उतरती है? और अगर सड़कों पर उतरी थी तो फिर दंगे कैसे होने दिए?
दंगों से याद आया, ये कांग्रेस मुस्लिम के लिए खुद को मसीहा बताती है न तो तब कहां थी जब यूपी में लोगों के घर पर बुलडोज़र चल रहे थे? कितने कांग्रेस के नेता गए ग्राउंड पर इसका विरोध करने के लिए? प्रियंका गांधी कहां थी तब? मुस्लिम लोगों को समझना चाहिए कि भाजपा अगर उनकी...
युवाओं को हिंसा के लिए उकसाने वाले कोचिंग संस्थान, बड़े पत्रकार, बूढ़े लेखक सब अब उनसे पल्ला झाड़ रहे हैं. जो लोग पांच हाथ लम्बा भड़काऊ पोस्ट लिखा रहे थे, अब कह रहे हैं कि हिंसा नहीं करनी चाहिए थी युवाओं को. उसके नुक़सान को अब गिना रहे हैं. इन सब ने युवाओं को उकसाने का काम किया. उनकी ज़िंदगी बर्बाद करवाई. अग्निपथ की बहाली के लिए शायद तारीख़ की भी घोषणा हो गयी है जिसमें हिंसा में भाग लेने वाले युवकों के लिए कोई जगह नहीं है. अब ये बेचारे लड़के न घर के रहे न घाट के. मैं डे वन से लिख रही थी, और मेरे जैसे बाक़ी के लोग भी लिख रहे थे कि हिंसा रास्ता नहीं है. ट्रेन जलाना रास्ता नहीं है, लेकिन इन्होंने बूढ़े लेखकों, ईमान बेचे हुए कोचिंग संस्थान, बिके हुए पत्रकारों की बात को सुनना ज़रूरी समझा. अब नुक़सान देखिए सिर्फ़ युवाओं का हुआ है. बूढ़ा लेखक किताब लिख कर, दूसरी क़ौम को ख़ुश करके काम चला लेगा, पत्रकार पैसा कमा ही रहा है, भूख से कौन मरेगा? एक-एक पैसे के लिए कौन मोहताज होगा?
और, राहुल गांधी जिनको कुछ लोग भगवान बनाने पर तुले हैं. जिनको ED के यहां पूछताछ के लिए बुलाया जाता है तो सारी कांग्रेस वफ़ादारी दिखाने के लिए दिल्ली को छावनी में तब्दील कर देती है. लेकिन यही कांग्रेस युवाओं के लिए क्या करती है? कितना आंदोलन करने के लिए सड़कों पर उतरती है? और अगर सड़कों पर उतरी थी तो फिर दंगे कैसे होने दिए?
दंगों से याद आया, ये कांग्रेस मुस्लिम के लिए खुद को मसीहा बताती है न तो तब कहां थी जब यूपी में लोगों के घर पर बुलडोज़र चल रहे थे? कितने कांग्रेस के नेता गए ग्राउंड पर इसका विरोध करने के लिए? प्रियंका गांधी कहां थी तब? मुस्लिम लोगों को समझना चाहिए कि भाजपा अगर उनकी दुश्मन है तो कांग्रेस भी सगी नहीं है लेकिन वो भी इन युवकों के जैसे हैं जो अपना नुक़सान करवाने के बाद भी शायद कोई समझदारी दिखायें.
विपक्ष का काम नहीं होता है ख़ाली ट्विटर पर ट्वीट करके विरोध दर्ज करवाए. विपक्ष को मैदान में उतरना पड़ता है. ईमान से कहिए कब-कब कांग्रेस विपक्ष की भूमिका को निभा पाई है? योगी सरकार गलती पर गलती कर रही है लेकिन राहुल गांधी, प्रियंका गांधी एक बार भी यूपी का दौरा करना ज़रूरी नहीं समझते. जब देश का विपक्ष ट्वीट-ट्वीट खेल रहा हो तो सरकार अपनी मनमानी करेगी न. (जिनको लगता है कि कर रही है ये उनके लिए.)
ख़ैर, हमारा काम लिखना है हम लिख सकते हैं. सही ग़लत की पहचान आपको करनी है. देखिए दो वक़्त की रोटी, सिर पे छत, परिवार की देखभाल आपको ही करनी है इसलिए आप सिर्फ़ अपना सोचिए. जिनके भड़काने पर ट्रेन, बस जला आए देखिए वो भी आज आपको छोड़ कर भाग खड़े हुए हैं. अब तो आंखें खोलिए हुज़ूर!
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