अजय देवगन की फिल्म दृश्यम 2 (Drishyam 2) का इंतजार मुझे तब से था जब इसका ओरिजनल वर्जन अमेजन प्राइम पर मलयाली भाषा में रिलीज हुआ था. कई लोगों ने तो अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ ही देख लिया. हालांकि मैंने भी देखने की कोशिश की थी मगर समझ नहीं आ रहा था कि फिल्म का सीन देखू या फिर नीचे लिखा हुआ अंग्रेजी का सबटाइटल्स पढ़ूं. खैर, थोड़ी देर देखने के बाद मैंने यह सोचा कि इसे तब देखूंगी जब इसका रीमेक हिंदी में रिलीज होगा. वैसे भी अपनी भाषा में फिल्म देखने का मजा ही कुछ और है.
उस दिन का इंतजार कल यानी संडे को जाकर पूरा हुआ. फिल्म के हाउसफुल औऱ एडवांस बुकिंग की खबर मुझ तक पहले ही पहुंच चुकी थी. इस जानकारी का मैंने फायदा उठाया और शुक्रवार को ही संडे शाम की टिकट एडवांस में बुक कर ली. इस फिल्म को ट्रेलर देखने के बाद से ही मैं सेकेण्ड पार्ट को देखने के लिए उत्सुक थी. लॉकडाउन के बाद मेरे साथ ऐसा पहली बार हुई कि मैं किसी फिल्म को देखने के लिए इतना एक्साइटेड थी. अमूनन बिना किसी ऑफर के आजकल सिनेमा देखने में मजा नहीं आता मगर दृश्यम टू पर किसी ऑफर का कोई लाभ नहीं मिला. फिर भी मैंने अपने खाते से पूरे पैसे कटाए और टिकट बुक की.
जब संडे की शाम को हम सिनेमा हॉल में पहुंचे तो देखा कि बाहर काफी भीड़ है. मैं किसी भी सूरत में फिल्म का शुरुआती सीन मिस नहीं करने देना चाहती थी. इसलिए बना देरी किए जल्दी-जल्दी हॉल के अंदर जाने लगी. भाई साहब, जैसे ही अंदर गई देखा ये क्या पूरा हॉल खचाखच भरा हुई. माने ऊपर से लेकर नीचे तक के सारे रो पूरे भरे हुए थे. ऑडियंस में बच्चे से लेकर बूढ़े तक शामिल थे. मुझे लगा इतनी भीड़ है कहीं कोई हमारी सीट पर भी ना बैठा मिल जाए. थैंक गॉड...
अजय देवगन की फिल्म दृश्यम 2 (Drishyam 2) का इंतजार मुझे तब से था जब इसका ओरिजनल वर्जन अमेजन प्राइम पर मलयाली भाषा में रिलीज हुआ था. कई लोगों ने तो अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ ही देख लिया. हालांकि मैंने भी देखने की कोशिश की थी मगर समझ नहीं आ रहा था कि फिल्म का सीन देखू या फिर नीचे लिखा हुआ अंग्रेजी का सबटाइटल्स पढ़ूं. खैर, थोड़ी देर देखने के बाद मैंने यह सोचा कि इसे तब देखूंगी जब इसका रीमेक हिंदी में रिलीज होगा. वैसे भी अपनी भाषा में फिल्म देखने का मजा ही कुछ और है.
उस दिन का इंतजार कल यानी संडे को जाकर पूरा हुआ. फिल्म के हाउसफुल औऱ एडवांस बुकिंग की खबर मुझ तक पहले ही पहुंच चुकी थी. इस जानकारी का मैंने फायदा उठाया और शुक्रवार को ही संडे शाम की टिकट एडवांस में बुक कर ली. इस फिल्म को ट्रेलर देखने के बाद से ही मैं सेकेण्ड पार्ट को देखने के लिए उत्सुक थी. लॉकडाउन के बाद मेरे साथ ऐसा पहली बार हुई कि मैं किसी फिल्म को देखने के लिए इतना एक्साइटेड थी. अमूनन बिना किसी ऑफर के आजकल सिनेमा देखने में मजा नहीं आता मगर दृश्यम टू पर किसी ऑफर का कोई लाभ नहीं मिला. फिर भी मैंने अपने खाते से पूरे पैसे कटाए और टिकट बुक की.
जब संडे की शाम को हम सिनेमा हॉल में पहुंचे तो देखा कि बाहर काफी भीड़ है. मैं किसी भी सूरत में फिल्म का शुरुआती सीन मिस नहीं करने देना चाहती थी. इसलिए बना देरी किए जल्दी-जल्दी हॉल के अंदर जाने लगी. भाई साहब, जैसे ही अंदर गई देखा ये क्या पूरा हॉल खचाखच भरा हुई. माने ऊपर से लेकर नीचे तक के सारे रो पूरे भरे हुए थे. ऑडियंस में बच्चे से लेकर बूढ़े तक शामिल थे. मुझे लगा इतनी भीड़ है कहीं कोई हमारी सीट पर भी ना बैठा मिल जाए. थैंक गॉड की हमारी सीट खाली थी. आह बैठकर सुकून मिला. खैर, फिल्म शुरु हई.
एक बात और मैं पहले ही बता दे रही हूं कि मैं फिल्म का रिव्यू नहीं करने वाली हूं क्योंकि वह आईचौक पर पहले किया जा चुका है. मैं यहां एक दर्शक होने के नाते सिर्फ अपना एक्सपीरियंस शेयर कर रही हूं. जब फिल्म शुरु होती है तो एक सीन से आँख हटाने का मौका नहीं मिलता है. इतना कि फर्स्ट हॉफ में हमने पॉपकॉर्न तक नहीं खरीदा.
मानना पड़ेगा अभिषेक पाठक के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म शुरुआत जबरदस्त रही. इंटरवल के पहले कहानी थोड़ी खींचती हुई महसूस होती है मगर सेकेण्ड पार्ट में इतना जबरदस्त क्लाइमेक्स है कि कमी पूरी हो जाती है. मुझे सिर्फ एक बात बुरी लगी कि इंटरवल थोड़ा लंबा चला और उसमें भर-भर के ऐड दिखाए गए. इस बीच हमें पॉपकॉर्न खरीदने का मौका मिला. मगर इतनी लंबी लाइन थी कि 15 मिनट लग गए. इस बीच बस एक ही चिंता थी कि हम पॉपकॉर्न में लगे रहें और उधर फिल्म शुरु ना हो जाए.
अब बात करते हैं फिल्म के कलाकारों की...जिस तरह अजय देवगन अपनी जुल्फों को हल्का सा झटका मारकर धीरे-धीरे आत्मविश्वास के साथ चलते हैं, उस पर तो लोगों का दिल ही आ गया होगा. फिल्म के सीन में उनकी जुबान कुछ और कहती है और नशीली आंखें कुछ और. वे शांत रहते हैं और मन ही मन आगे की प्लानिंग करते रहते हैं. जब वे क्लाईमेक्स की परतें खोलते हैं तो सिनेमा हॉल में बैठे लोग ताली और सीटी बजा रहे होते हैं. वहीं श्रिया सरन साड़ी में कहर ढा रही हैं. मैच्योरनेस के साथ उनका डर वाला अभिनय शानदार है. वे एक ही पल में डरी हुईं महिला हैं और दूसरे पल में डटकर मुसीबतों का सामना करने वाली एक मां, जो अपनी बच्ची पर कोई आंच नहीं आने देना चाहती हैं. अक्षय खन्ना को मैंने हंगामा फिल्म के बाद अब देखा. उन्होंने पुलिस के रोल में शानदार अभिनय किया है. ऐसा लगता है कि उन्हें दूसरी फिल्मों में भी मौका मिलना चाहिए. तब्बू इस फिल्म में जान फूंक देती हैं. बेटे को खोने का गम उनके चेहरे से लेकर रूह तक झलकता है. इशिता दत्ता और मृणाल जाधव इस फिल्म की जान है. दोनों ने एकदम नेचुरल अभिनय किया है.
इस बात को इसी से समझिए कि फिल्म ने रविवार के दिन बॉक्स ऑफिस पर 27 करोड़ का कलेक्शन किया है. तीन दिनों में इसका कुल कलेक्शन 63.97 करोड़ रूपए है जबकि फिल्म सिर्फ हिंदी भाषा में ही रिलीज हुई है. बता दें कि यह फिल्म करीब 50 करोड़ रुपये के बजट में बनकर तैयार हुई है.
जितनी भीड़ कल दृश्यम 2 के लिए थी उतनी तो गंगू बाई काठियावाड़ी, ब्रह्मास्त्र पार्ट 1 और भूलभुलया 2 के समय पर भी नहीं थी. मैंने ये तीनों ही फिल्में सिनेमा हॉल में देखी हैं. मुझे इन तीनों में से सबसे अच्छी फिल्म दृश्मय 2 लगी. यह ऐसी फिल्म है जिसे मैं दोबारा देख सकती हूं. इसका क्लाइमेक्स हमारी सोच से ऊपर है, जिसे मैं यहां खोलने नहीं वाली हूं वरना आपका फिल्म देखने का मजा खराब हो जाएगा. इसमें परिवार का प्यार है, भावुक पल है. जमाने की सच्चाई है कि कैसे हर बार किसी कुछ गलत होने पर महिला को ही दोषी बनाया जाता है.
फिल्म खत्म हो गई मगर लोग अपनी सीट पर बैठे ताली और सीटी बजाए जा रहे थे. ऐसा लग रहा था कि किसी का सिनेमा हॉल से निकलने का मन नहीं कर रहा हो. सब यही बातें कर रहे थे कि कितनी शानदार फिल्म है. हां एक बात और जो लोग यह कह रहे थे कि लोगों के पास फिल्म देखने के पैसे नहीं हैं. उन्हें बता हूं कि लोग 250 रूपए की एक टिकट खरीद कर शो को हॉउसफुल बना रहे हैं. अगर कंटेट और अभिनय अच्छा है तो फिल्म को हिट होने से कोई रोक नहीं सकता है. बाकी आप फिल्म देखो और अपना अनुभव खुद ही शेयर करो....मेरे हिसाब से दृश्यम 2 के लिए इतना क्रेज है कि सीट नहीं मिल रही है...
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