अमृता ने न सिर्फ़ स्कूटर पर बैठ कर इमरोज की पीठ पर साहिर का नाम लिखा,
न सिर्फ़ साहिर की पी हुई सिगरेट के बट को इकट्ठा किया,
और तो और ‘मैं तैनूं फिर मिलांगी’ कविता के अलावा भी बहुत कुछ किया है.
अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) इन सब से आगे, बहुत आगे हैं. अपने आप में शब्दों की एक तिलिस्मी दुनिया हैं. मैं एक शब्द नहीं लिखने वाली थी मैम के लिए. मुझे जन्मदिन (Amrita Pritam Birthday) पर फैलाया जाने वाला ये चरस बिलकुल भी पसंद नहीं है. ऊपर से जिन्होंने एक अक्षर नहीं पढ़ा होगा अमृता के बारे में, जिनको अमृता के असली नाम से लेकर उनकी रचनाओं के बारे में एक बात नहीं मालूम आज वो भी डायरिया कर रहे हैं यहां .पहले जान तो लो कौन है अमृता? वो इमरोज (Imroz) की प्रेमिका और साहिर (Sahir) के इश्क़ में बौराई स्त्री से कहीं ज़्यादा हैं.
अमृता वो हैं जिसने शादी को ढकोसला तब बताया जब औरतें घुट-घुट कर जीने को मजबूर थी. वो सोलह की उम्र में हुई प्रीतम सिंह के साथ अपनी शादी को ख़ारिज कर आई थीं. उसने दर्द के आगे घुटने टेकने के बजाय उसे लफ़्ज़ों का जामा पहनाना शुरू कर दिया था. अपनी लिखी कहानियों और कविताओं की वजह से पद्मश्री से लेकर, 1956 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड और 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार हासिल किया.
अमृता ने जो भी किया खुले मन से किया. वो फ़ेमिनिस्ट थीं. मुहब्बत को जीने वाली मगर अपने हक़ को सबसे पहले समझने वाली फ़ेमिनिस्ट स्त्री. उनकी लिखी कविताएं और कहानियां पढ़ो समझ आएगा कि वो किसी की महबूबा होने से पहले कितनी सक्षम महिला थीं. क्या क्रांति की है...
अमृता ने न सिर्फ़ स्कूटर पर बैठ कर इमरोज की पीठ पर साहिर का नाम लिखा,
न सिर्फ़ साहिर की पी हुई सिगरेट के बट को इकट्ठा किया,
और तो और ‘मैं तैनूं फिर मिलांगी’ कविता के अलावा भी बहुत कुछ किया है.
अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) इन सब से आगे, बहुत आगे हैं. अपने आप में शब्दों की एक तिलिस्मी दुनिया हैं. मैं एक शब्द नहीं लिखने वाली थी मैम के लिए. मुझे जन्मदिन (Amrita Pritam Birthday) पर फैलाया जाने वाला ये चरस बिलकुल भी पसंद नहीं है. ऊपर से जिन्होंने एक अक्षर नहीं पढ़ा होगा अमृता के बारे में, जिनको अमृता के असली नाम से लेकर उनकी रचनाओं के बारे में एक बात नहीं मालूम आज वो भी डायरिया कर रहे हैं यहां .पहले जान तो लो कौन है अमृता? वो इमरोज (Imroz) की प्रेमिका और साहिर (Sahir) के इश्क़ में बौराई स्त्री से कहीं ज़्यादा हैं.
अमृता वो हैं जिसने शादी को ढकोसला तब बताया जब औरतें घुट-घुट कर जीने को मजबूर थी. वो सोलह की उम्र में हुई प्रीतम सिंह के साथ अपनी शादी को ख़ारिज कर आई थीं. उसने दर्द के आगे घुटने टेकने के बजाय उसे लफ़्ज़ों का जामा पहनाना शुरू कर दिया था. अपनी लिखी कहानियों और कविताओं की वजह से पद्मश्री से लेकर, 1956 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड और 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार हासिल किया.
अमृता ने जो भी किया खुले मन से किया. वो फ़ेमिनिस्ट थीं. मुहब्बत को जीने वाली मगर अपने हक़ को सबसे पहले समझने वाली फ़ेमिनिस्ट स्त्री. उनकी लिखी कविताएं और कहानियां पढ़ो समझ आएगा कि वो किसी की महबूबा होने से पहले कितनी सक्षम महिला थीं. क्या क्रांति की है उन्होंने पंजाबी साहित्य में. अमृता अपने-आप में भाषा और साहित्य की मुकम्मल दुनिया हैं.
ख़ैर, अगर आज अमृत कौर होती तो सौ साल में एक और साल जुड़ कर दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत रेशम लिखने वाली, सुनहरी स्त्री होतीं. लेकिन उनका नहीं होना भी होना है क्योंकि उन्होंने ख़ुद ही कहा था ⁃ Wherever you see a glimpse of free soul, consider that my home, consider me!
और आप रहेंगी मदाम. दिन मुबारक हो.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.