खेलमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर चर्चा में हैं. कारण है उनका देश में फिटनेस को लेकर जागरूकता अभियान के तहत व्यायाम करते हुए अपना एक वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड करना. राठौर ने अपने इस वीडियो में खेल और सिनेमा जगत की कई महत्वपूर्ण हस्तियों को टैग किया था. राठौर ने देश की जनता से आग्रह किया था कि वो भी व्यायाम करें और ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर डाल कर देश के अन्य लोगों को इस अभियान से जोड़ें. अभी राज्यवर्धन का ये चैलेन्ज देना भर था कि खास से लेकर आम लोगों ने इस चैलेंज को एक्सेप्ट करके पूरे सोशल मीडिया को ऐसे वीडियो से पाट दिया है.
राठौर का चैलेन्ज लोग एक्सेप्ट कर रहे हैं. मगर देखना दिलचस्प होगा कि क्या लोग, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का चैलेन्ज एक्सेप्ट करेंगे? जी हां, बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. राठौर की ही तरह केजरीवाल ने भी देश को एक अनूठा चैलेन्ज दिया है. केजरीवाल के इस चैलेन्ज से जहां एक तरफ आम लोगों ने राहत की सांस ली तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके माथे पर चिंता के बल पड़ गए.
ज्ञात हो कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने दिल्ली के 575 प्राइवेट स्कूलों को बढ़ी हुई फीस वापस करने का निर्देश दिया है. आपको बताते चलें कि स्कूलों ने ये फीस छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने का हवाला देकर वसूली थी.
इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि न सिर्फ सरकार ये चाहती है कि स्कूल जून 2016 से जनवरी 2018 तक वसूली गई बढ़ी हुई फीस वापस करें बल्कि तत्काल प्रभाव में उसपर 9 प्रतिशत की दर से ब्याज भी दें. ध्यान रहे कि केजरीवाल सरकार का यह फैसला दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा गठित एक समिति की रिपोर्ट के बाद आया है. हाई कोर्ट ने उक्त समिति का गठन...
खेलमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर चर्चा में हैं. कारण है उनका देश में फिटनेस को लेकर जागरूकता अभियान के तहत व्यायाम करते हुए अपना एक वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड करना. राठौर ने अपने इस वीडियो में खेल और सिनेमा जगत की कई महत्वपूर्ण हस्तियों को टैग किया था. राठौर ने देश की जनता से आग्रह किया था कि वो भी व्यायाम करें और ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर डाल कर देश के अन्य लोगों को इस अभियान से जोड़ें. अभी राज्यवर्धन का ये चैलेन्ज देना भर था कि खास से लेकर आम लोगों ने इस चैलेंज को एक्सेप्ट करके पूरे सोशल मीडिया को ऐसे वीडियो से पाट दिया है.
राठौर का चैलेन्ज लोग एक्सेप्ट कर रहे हैं. मगर देखना दिलचस्प होगा कि क्या लोग, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का चैलेन्ज एक्सेप्ट करेंगे? जी हां, बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. राठौर की ही तरह केजरीवाल ने भी देश को एक अनूठा चैलेन्ज दिया है. केजरीवाल के इस चैलेन्ज से जहां एक तरफ आम लोगों ने राहत की सांस ली तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके माथे पर चिंता के बल पड़ गए.
ज्ञात हो कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने दिल्ली के 575 प्राइवेट स्कूलों को बढ़ी हुई फीस वापस करने का निर्देश दिया है. आपको बताते चलें कि स्कूलों ने ये फीस छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने का हवाला देकर वसूली थी.
इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि न सिर्फ सरकार ये चाहती है कि स्कूल जून 2016 से जनवरी 2018 तक वसूली गई बढ़ी हुई फीस वापस करें बल्कि तत्काल प्रभाव में उसपर 9 प्रतिशत की दर से ब्याज भी दें. ध्यान रहे कि केजरीवाल सरकार का यह फैसला दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा गठित एक समिति की रिपोर्ट के बाद आया है. हाई कोर्ट ने उक्त समिति का गठन छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के संबंध में निजी स्कूलों के रिकॉर्ड की जांच करने के लिए किया था. समिति ने अभी तक शहर में 1169 स्कूलों का आडिट किया है.
गौरतलब है कि दिल्ली सरकार में शिक्षा निदेशालय ने एक आदेश पारित किया है जिसमें कहा गया है कि,'कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ऐसे 575 स्कूलों की पहचान की है जिन्होंने अभिवाहकों से बढ़ी हुई फीस वसूली. अतः ऐसे स्कूल 9 प्रतिशत ब्याज के साथ अभिवाहकों को पूरी फीस लौटाएं. इसके अलावा स्कूलों को निर्देशित किया गया है कि वे सात दिन के भीतर फीस वापस करें साथ ही अगर कोई वेतन बकाया है तो उसका भुगतान भी सुनिश्चित किया जाए. शिक्षा निदेशालय के इस आदेश में इस बात का भी जिक्र है कि यदि स्कूलों द्वारा आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो इसे बहुत ही गंभीरता से लिया जाएगा और दोषी स्कूलों के खिलाफ दिल्ली स्कूल शिक्षा कानून, 1973 के तहत कार्रवाई की जाएगी.'
तमाम आलोचनाओं से घिरे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की इस पहल को एक समझदारी भरा फैसला माना जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि आज जिस तरह शिक्षा बाजारवाद की भेंट चढ़ गयी है, एक आम आदमी का अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने का सपना बस एक सपना बनकर ही रह जाता है. स्कूल क्वालिटी एजुकेशन के नाम पर, जहां एक तरफ लगातार अभिवाहकों से महंगी फीस वसूल रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अभिवाहकों को बाध्य कर दिया है कि वो किताब-कॉपी, ड्रेस जैसी चीजें भी स्कूल से ही खरीदें.
ऐसे में प्रायः यही देखा गया है कि स्कूलों का ये मनमाना रवैया इस महंगाई के दौर में माता पिता की परेशानियों को घटाने के बजाए बढ़ाने का ही काम करता नजर आ रहा है. निश्चित तौर पर केजरीवाल सरकार का ये फैसला स्वागत योग्य फैसला है जिसकी जमकर सराहना होनी चाहिए. साथ ही अब देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली की देखा देखी ऐसे कौन-कौन से राज्य हैं जो इससे मिलता जुलता फैसला लेते हैं और शिक्षा की मार से परेशान अभिवाहकों को कुछ पल की राहत देते हैं और एक ऐतिहासिक फैसला लेते हैं.
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