पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी अपना कार्यकाल पूरा करके जा चुके हैं. वेंकैया नायडू के रूप में इस देश को अपना 15 वां उपराष्ट्रपति मिल गया है. जब तक पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी कुर्सी पर थे सब ठीक था. सबके बागों में बहार थी. सब तरफ भाई चारा था, सबके खेत लहलहा रहे थे, हर तरफ हरियाली थी. जैसे- जैसे कुर्सी से हटने के दिन आए हामिद साहब को महसूस हुआ कि इस देश में, देश के मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना वास कर गयी है. इस कारण देश के मुस्लिमों के बीच स्वीकार्यता का माहौल खतरे में है.
राज्य सभा टीवी को दिए गए एक इंटरव्यू में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने माना है कि,' भारतीय मूल्यों का बेहद कमजोर हो जाना, सामान्य तौर पर कानून लागू करा पाने में विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों की योग्यता का चरमरा जाना है और इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात किसी नागरिक की भारतीयता पर सवाल उठाया जाना है.'
जिस वक्त से मैंने ये इंटरव्यू सुना और इसके बारे में अखबारों और वेबसाइटों में पढ़ा, उस वक्त से मैं गहरी चिंता में हूं. मेरी चिंता का सबब, पूर्व उपराष्ट्रपति का यूं अचानक अपने रिटायरमेंट के ठीक बाद, मेरे प्रति फिक्रमंद होना है. शायद उपराष्ट्रपति जी इसलिए परेशान हुए हैं क्योंकि वो भी मुसलमान हैं. हामिद साहब की ही तरह, मुसलमान तो मैं भी हूं, जिसने उनकी कही बात एक कान से सुनी, उसपर थोड़ी देर हँसा फिर उसे दूसरे कान से निकाल दिया.
ध्यान रहे कि मुझमें और हामिद साहब में एक मूलभूत फर्क है, और इसी फर्क के चलते मैं हामिद साहब की बात पचा पाने में असमर्थ और असहज महसूस कर रहा हूं. हामिद साहब एक जिम्मेदार और बड़े पद पर काम करने के बाद...
पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी अपना कार्यकाल पूरा करके जा चुके हैं. वेंकैया नायडू के रूप में इस देश को अपना 15 वां उपराष्ट्रपति मिल गया है. जब तक पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी कुर्सी पर थे सब ठीक था. सबके बागों में बहार थी. सब तरफ भाई चारा था, सबके खेत लहलहा रहे थे, हर तरफ हरियाली थी. जैसे- जैसे कुर्सी से हटने के दिन आए हामिद साहब को महसूस हुआ कि इस देश में, देश के मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना वास कर गयी है. इस कारण देश के मुस्लिमों के बीच स्वीकार्यता का माहौल खतरे में है.
राज्य सभा टीवी को दिए गए एक इंटरव्यू में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने माना है कि,' भारतीय मूल्यों का बेहद कमजोर हो जाना, सामान्य तौर पर कानून लागू करा पाने में विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों की योग्यता का चरमरा जाना है और इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात किसी नागरिक की भारतीयता पर सवाल उठाया जाना है.'
जिस वक्त से मैंने ये इंटरव्यू सुना और इसके बारे में अखबारों और वेबसाइटों में पढ़ा, उस वक्त से मैं गहरी चिंता में हूं. मेरी चिंता का सबब, पूर्व उपराष्ट्रपति का यूं अचानक अपने रिटायरमेंट के ठीक बाद, मेरे प्रति फिक्रमंद होना है. शायद उपराष्ट्रपति जी इसलिए परेशान हुए हैं क्योंकि वो भी मुसलमान हैं. हामिद साहब की ही तरह, मुसलमान तो मैं भी हूं, जिसने उनकी कही बात एक कान से सुनी, उसपर थोड़ी देर हँसा फिर उसे दूसरे कान से निकाल दिया.
ध्यान रहे कि मुझमें और हामिद साहब में एक मूलभूत फर्क है, और इसी फर्क के चलते मैं हामिद साहब की बात पचा पाने में असमर्थ और असहज महसूस कर रहा हूं. हामिद साहब एक जिम्मेदार और बड़े पद पर काम करने के बाद रिटायर होने वाले मुसलमान हैं. मैं एक आम सा 10 से 6 की नौकरी करने वाला मुसलमान हूं. ऐसा मुसलमान जिसके पास वक्त ही नहीं है कि वो बढ़ती महंगाई, रोजगार, अच्छी शिक्षा, बेरोजगारी, बच्चों की फीस, ट्रैफिक जाम के सिग्नल, नलों से निकलते काले पानी, हर पांच मिनट के दौरान कटती लाइट को छोड़ उन बातों पर फ़िक्र करे जिसका उसकी जिन्दगी से कुछ खास लेना देना नहीं है.
चाहे भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हों या कोई और. भारत के एक नागरिक के तौर पर, मुझे कभी भी ये नहीं महसूस हुआ कि, मेरे साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है या फिर मेरे अधिकारों का हनन हो रहा है. एक मुसलमान होने के नाते मैं अपने इस देश में उतना ही खुश, उतना ही सुरक्षित महसूस करता हूं जितना कोई अन्य धर्म और समुदाय का व्यक्ति.
गौरतलब है कि, हामिद साहब ने ये बयान मेरे लिए दिया था. शायद उन्हें ये लगता हो कि इससे मैं और मुझ जैसे करोड़ों मुसलमान खुश हो जाएंगे. तो व्यक्तिगत रूप से मैं, हामिद साहब को बताना चाहूंगा कि,'नहीं इससे हम खुश नहीं होने वाले और यदि वो और ऐसी सोच रखने वाले लोग, ऐसा कुछ सोच रहे हैं तो ये और कुछ नहीं उनकी अपनी भूल है.
मुझे ये बात कहने में बिल्कुल भी गुरेज नहीं है कि चाहे हामिद साहब हों या कोई और. यदि वो आपस में फूट डालने वाली भावना का संचार करते हुए रहनुमा बन अच्छा बने रहने का प्रयास कर रहे हैं तो इसे एक आम मुसलमान के तहत मैं तो बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करूंगा.
बहरहाल, मुझे हामिद साहब से ये उम्मीद बिल्कुल नहीं थी. आज उन्होंने भी वो कार्ड खेल दिया जिसकी बदौलत हमारे नेता लम्बे समय से हमारे बीच फूट डाल के राज करते चले आ रहे हैं. एक ऐसा कार्ड जिसकी बदौलत आजादी से लेकर आजतक हम आम मुसलमान गर्त के अंधेरों में डूबते चले जा रहे हैं.
अंत में इतना ही कि, एक आम भारतीय मुसलमान के तहत, मुझे तब वाकई ज्यादा खुशी मिलती जब पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी हिन्दू-मुस्लिम, सहिष्णुता-असहिष्णुता का राग अलापने के बजाए अपने आखिरी स्टेटमेंट में न सिर्फ मेरे लिए बल्कि पूरे समुदाय के लिए अच्छी शिक्षा, रोजगार, बेरोजगारी, विकास जैसेमुद्दों पर बात करते. मुझे ये कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं हो रहा कि आज हामिद जी के इस खुश करने वाले स्टेटमेंट से मेरी कोने में कहीं किनारे बैठी भावना वाकई आहत हो गयी.
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