कोरोनावायरस से पैदा हुई दहशत अभी ख़त्म भी नहीं हुई है. ऐसे में भारत जैसे देश में मंकी पॉक्स ने एक बार फिर लोगों की चिंताओं को बढ़ा दिया है. ताजा मामला राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का है जहां मंकीपॉक्स का एक मामला सामने आया है. केस में दिलचस्प ये है कि वो व्यक्ति जो इस बीमारी की चपेट में है उसकी कोई इंटरनेशनल ट्रेवल हिस्ट्री नहीं है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या मंकी पॉक्स कम्युनिटी स्प्रेड है? आखिर हम कैसे खुद को इस बीमारी से बचा सकते हैं.
क्या है इस बीमारी का मूल
मंकीपॉक्स कोई नई बीमारी नहीं है. इसे पहली बार 1950 के दशक के अंत में बंदरों के एक समूह में पाया गया था. वायरस वैरियोला (चेचक का प्रेरक एजेंट) और वैक्सीनिया वायरस (उपलब्ध चेचक के टीकों में से एक में प्रयुक्त वायरस) के समान जीनस में है. बीमारी को ये नाम यानी मंकी पॉक्स, 1958 में डेनमार्क में बंदरों पर हुए एक शोध के बाद दिया गया.
ज़ूनोटिक रोग - यह कैसे फैलता है?
'मंकीपॉक्स के प्रसार में जानवरों की महत्वपूर्ण भूमिका है. मनुष्य और बंदर दोनों इसके आकस्मिक होस्ट हैं और जंगली चूहों को आमतौर पर इस वायरस को शरण देते देखा जाता है. सर गंगाराम अस्पताल में इंटेंसिविस्ट और सीनियर कंसल्टेंट डॉ धीरेन गुप्ता की मानें तो वायरस पश्चिम अफ्रीका से अलग किया गया स्ट्रेन मध्य अफ्रीका के स्ट्रेन की तुलना में कम विषैला प्रतीत होता है. डॉक्टर गुप्ता के अनुसार वायरस का क्लैड 2 यानी पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन पूरी दुनिया में बड़ी ही तेजी के साथ फैल रहा है.
वायरस के विषय में माना ये भी जा रहा है कि या जानवरों (बंदर, गिलहरी, जंगली चूहों) या जानवरों के मांस (जंगली जानवर) के साथ लंबे समय तक संपर्क या संक्रमित...
कोरोनावायरस से पैदा हुई दहशत अभी ख़त्म भी नहीं हुई है. ऐसे में भारत जैसे देश में मंकी पॉक्स ने एक बार फिर लोगों की चिंताओं को बढ़ा दिया है. ताजा मामला राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का है जहां मंकीपॉक्स का एक मामला सामने आया है. केस में दिलचस्प ये है कि वो व्यक्ति जो इस बीमारी की चपेट में है उसकी कोई इंटरनेशनल ट्रेवल हिस्ट्री नहीं है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या मंकी पॉक्स कम्युनिटी स्प्रेड है? आखिर हम कैसे खुद को इस बीमारी से बचा सकते हैं.
क्या है इस बीमारी का मूल
मंकीपॉक्स कोई नई बीमारी नहीं है. इसे पहली बार 1950 के दशक के अंत में बंदरों के एक समूह में पाया गया था. वायरस वैरियोला (चेचक का प्रेरक एजेंट) और वैक्सीनिया वायरस (उपलब्ध चेचक के टीकों में से एक में प्रयुक्त वायरस) के समान जीनस में है. बीमारी को ये नाम यानी मंकी पॉक्स, 1958 में डेनमार्क में बंदरों पर हुए एक शोध के बाद दिया गया.
ज़ूनोटिक रोग - यह कैसे फैलता है?
'मंकीपॉक्स के प्रसार में जानवरों की महत्वपूर्ण भूमिका है. मनुष्य और बंदर दोनों इसके आकस्मिक होस्ट हैं और जंगली चूहों को आमतौर पर इस वायरस को शरण देते देखा जाता है. सर गंगाराम अस्पताल में इंटेंसिविस्ट और सीनियर कंसल्टेंट डॉ धीरेन गुप्ता की मानें तो वायरस पश्चिम अफ्रीका से अलग किया गया स्ट्रेन मध्य अफ्रीका के स्ट्रेन की तुलना में कम विषैला प्रतीत होता है. डॉक्टर गुप्ता के अनुसार वायरस का क्लैड 2 यानी पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन पूरी दुनिया में बड़ी ही तेजी के साथ फैल रहा है.
वायरस के विषय में माना ये भी जा रहा है कि या जानवरों (बंदर, गिलहरी, जंगली चूहों) या जानवरों के मांस (जंगली जानवर) के साथ लंबे समय तक संपर्क या संक्रमित व्यक्तियों के साथ निकट संपर्क में तेजी से फैलता है. बीमारी के विषय में रोचक तथ्य ये है कि यह हवा के माध्यम से नहीं फैलता है, लेकिन अगर कोई संक्रमित रोगी के निकट संपर्क में है, तो संक्रमण होने की संभावनाएं हो सकती हैं. मंकी पॉक्स स्मॉल पॉक्स और चिकेन पॉक्स से कम संक्रामक है.
किसे मंकीपॉक्स की चपेट में आने का सबसे ज्यादा खतरा है?
पुरुष - मंकीपॉक्स के ज्यादातर मामले पुरुषों में देखे गए हैं.
LGBTQ - WHO का मानना है कि पुरुषों और LGBTQ समुदाय के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों को इस वायरस की चपेट में आने का सबसे ज्यादा खतरा है.
हेल्थ केयर वर्कर्स - क्योंकि इलाज के लिए ये लोग रोगी के निकट रहते हैं इसलिए इनके भी इस खतरनाक बीमारी की चपेट में आने की प्रबल संभावनाएं हैं.
प्रतिरक्षित लोग - वो तमाम लोग जो लंबे समय तक स्वास्थ्य जटिलताओं का सामना कर रहे हैं वो भी खतरे के निशान के ऊपर हैं.
क्या मनी पॉक्स केवल एक यौन संचारित रोग (एसटीडी) है?
बीमारी और वायरस के विषय पर अपना पक्ष रखते हुए डब्लूएचओ ने कहा है कि फिलहाल यह एक ऐसा प्रकोप है जो पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों में केंद्रित है, खासकर ऐसे लोग जो कई लोगों के साथ सेक्स करते हैं. वायरस के प्रसार पर डब्लूएचओ ने ये भी कहा है कि, 'इसलिए यह आवश्यक है कि वो तमाम देश जहां पुरुष, पुरुषों के साथ सेक्स संबंध स्थापित कर रहे हैं वहां मिलाकर काम किया जाए और लोगों को सही और सटीक सूचनाएं मुहैया कराई जाएं.
डब्लूएचओ ये भी मानता है कि प्रभावित समुदायों के स्वास्थ्य, मानवाधिकार और गरिमा दोनों की रक्षा करते हुए इस बीमारी की रोकथाम की दिशा में काम करना चाहिए.
लेकिन क्या मंकी पॉक्स एसटीडी है? स्वास्थ्य विशेषज्ञ और महामारी पर शोध कर रहे वैज्ञानिक इसपर असहमत हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि मनी पॉक्स एसटीडी हैं या नहीं या फिर ये केवल यौन संपर्क द्वारा फैलता है इसको लेकर अभी तक सुबूत नहीं जुटाए जा सके हैं. यह एचआईवी की तरह नहीं है, हम इसे स्पष्ट रूप से केवल एचआईवी के रूप में वर्गीकृत नहीं कर सकते हैं, चूंकि बीमारी का एक कारण रक्त भी है इसलिए उसे भी बीमारी फैलने की एक बड़ी वजह के रूप में देखा जा रहा है.
इसके अलावा डॉक्टर्स और वैज्ञानिक इस बात पर भी बल देते पाए जा रहे हैं कि पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों को उच्च जोखिम वाले रोगियों का वर्गीकरण दिया गया है. लेकिन मामला वह नहीं है. किसी को भी मंकीपॉक्स हो सकता है.
क्या करें जब मंकी पॉक्स हो जाए.
मरीज को यदि चेचक का टीका 4 दिनों के भीतर दिया जाए तो रोग से बचा जा सकता है. हालांकि टीकाकरण को एक्सपोजर के 14 दिनों तक माना जा सकता है, अगर 4 से 14 दिनों के बीच टीकाकरण किया जाता है, तो यह माना जाता है कि टीकाकरण रोग के लक्षणों को कम करता है लेकिन ये बीमारी को रोकता नहीं है,
आप प्रसार को कैसे रोक सकते हैं?
यदि कोई अपने आपको तीन सप्ताह के लिए सबसे अलग कर लेता है तो इस बीमारी के प्रसार को रोका जा सकता है.
मंकी पॉक्स के लिए टीके
मौजूदा समय में दो ऐसे वैक्सीनेशन हैं जोमंकीपॉक्स के विकास के जोखिम को कम कर सकने में कारगर हैं.
MVA और और ACAM2000 वैक्सीन ऐसे दो उपलब्ध टीके हैं जो मंकीपॉक्स के विकास के जोखिम को कम कर सकते हैं. 'स्मॉल पॉक्स' का टीका केवल मंकीपॉक्स से 82-85% सुरक्षा प्रदान करता है.
घबराने की जरूरत नहीं, बीमारी को लेकर मृत्यु दर कम है.
बीमारी को लेकर वैज्ञानिकों का मत है कि मंकीपॉक्स कम मृत्यु दर के साथ एक आत्म-सीमित बीमारी है. वहीं वैज्ञानिक इस बात को भी मानते हैं कि इस बीमारी में मृत्यु दर काफी कम है.
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