कुछ कुप्रथाएं आज भी समूचे समाज को शर्मसार करती हैं, उन्हीं में बाल विवाह भी है. इस कुःप्रथा के खिलाफ असम सरकार द्वारा चलाया जा रहा अभियान चर्चाओं में है. ऐसे अभियान पहले भी विभिन्न राज्यों में खूब चले, लेकिन धीरे-धीरे कमजोर पड़े. पर मौजूदा मुहिम ने फिर से ताकत दी है, नई चेतना जगाई है. मजे की बात ये भी है कि बाल विवाह के खिलाफ अभियान तो उत्तर पूर्व भारत के सेवन सिस्टर्स राज्य में चल रहा है, लेकिन खलबली हिंदी पट्टी से लेकर पहाड़ी राज्यों तक मची हुई है. अभियान को बाल कुप्रथा के खिलाफ आखिरी चोट माना जा रहा है. बाल विवाह की घटनाएं अधिकांश राजस्थान में सुनने को मिलती थीं. वहां की घटनाओं को केंद्र में रखकर ‘बाल बधु’ जैसे प्रसिद्ध टीवी सीरियल बनाए गए, कई हिंदी फिल्मों का निर्माण भी हुआ. लेकिन सेवन सिस्टर्स राज्यों में कोई कल्पना तक नहीं करता था कि वहां भी इस तरह की हरकतें कोई करेगा.
हालांकि, हिंदुस्तान का कोई ऐसा राज्य नहीं है, जहां कम उम्र के बच्चों की शादियां ना हुई हों और होती हैं. पर, चर्चाओं में कम आईं, लेकिन ताज्जुब होता है कि उत्तर पूर्व भारत के राज्यों असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड व त्रिपुरा में भी व्यापक स्तर पर नौनिहालों के बचपन के साथ लोग खिलवाड़ कर रहे हैं और हुकूतमें चुप बैठी हैं. या फिर कार्रवाई करने में उन्होंने उदासीनता दिखाई. कई कारण हो सकते हैं, लेकिन असम सरकार के अभियान का स्वागत ना सिर्फ समूचा देश कर रहा है बल्कि, केंद्रीय बाल आयोग, राज्य बाल संरक्षण आयोग से लेकर बाल सिमितयां, बाल कल्याण संस्थान व केंद्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान भी कर रही हैं. स्वागत होगा भी क्यों नहीं? काम जो इतना बेहतरीन हो रहा है. ये अभियान अगर यूं ही सख्ती से चलता रहा, तो बाल विवाह कुप्रथा के खिलाफ ये आखिरी चोट होगी, कार्रवाई के बाद सजा इतनी कठोरतम हो, जिससे लोग डरे इस कृत्य करने को.
आधुनिक युग का प्रत्येक वाशिंदा इस हकीकत से वाकिफ है कि बाल विवाह एक ‘दंश’ हैं जो सिर्फ बचपन को लीलता है. बेशक, इसे कुप्रथा की संज्ञा समाज ने दी हो, लेकिन ये एक कलंक है, जो किसी एक सिर नहीं, बल्कि हम सभी के माथे पर सामूहिक रूप से लगता है. तमाम प्रयासों के बावजूद भी बाल विवाह की भट्टी में बचपन धड़ल्ले से तपता आया है. भविष्य में भी कब तक तपेगा, जिसका किसी को कोई अंदाजा नहीं? सरकारी-सामाजिक स्तर पर इस दंश को रोकने की कोशिशें तो खूब हुईं, पर सभी नाकाफी साबित हुईं. दरअसल, सरकारों के प्रयासों को इस तंत्र से जुड़े लोगों ने कामयाब नहीं होने दिया. केंद्र व राज्यों की हुकूमतों ने सख्त कानून और पहरेदारी से रोकने की भरसक कोशिशें की, पर समाज ने इस कुप्रथा को जिंदा रखा. पर, इतना जरूर है हाल के दशकों में बाल विवाह की घटनाओं में काफी गिरावट आइ.
गिरावट का मुख्य कारण दूर-दराज के गांवों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार होना और विशेषकर ग्रामीण महिलाओं का शिक्षित होना? बचपन बर्बाद होने के बाद नकारात्मक पहलुओं ने ना सिर्फ समाज को गहरी नींद से जगाया, बल्कि सचेत भी किया. बाल विवाह के विरूध असम सरकार की कठोरतम कार्रवाई इस समय चर्चाओं में है. चर्चा हो भी क्यों ना? क्योंकि इस दंश का जड़ से खात्मा जो करना है. शुरूआत असम सरकार ने करी जो अच्छी बात है. वहां, बाल विवाह के आरोपियों पर पुलिस-प्रशासन की ताबड़तोड़ कार्रवाई हो रही है, दिन-रात हो रही है जो अब भी जारी है. सरकार के इस कदम की प्रशंसा समूचा हिंदुस्तान कर रहा है. पक्ष-विपक्ष सभी समर्थन में है. सिर्फ मुठ्ठी भर लोग ऐसे हैं जो विरोध में खड़े हैं. तरस आता है ऐसे लोगों की मानसिकता पर, जो बचकानी और बेवकूफी वाली टिप्पणी करते हैं.
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एआईयूडीएफ अभियान के विरोध में हैं, उनका तर्क है कि असम सरकार ने बिना कानून बनाए गैर-कानूनी रूप से कार्रवाई शुरू की है. लेकिन, उन्हें कौन बताए कि बाल विवाह निषेध अधिनियम का प्रावधान केंद्रीय स्तर पर पूरे देश में अमल में है. यही कानून प्रत्येक राज्यों में भी प्रभावी है, कुछेक राज्यों में तो अपने भी कानून हैं जो बाल विवाह के विरुद्ध कार्य करते हैं. पुलिस के आंकड़ों की माने तो असम में बाल विवाह में शामिल करीब तीन हजार गिरफताीयां हुई हैं, सिलसिला जारी है. ये बड़ा स्कैंम है जो बताता है कि वहां बचपन को कैसे रौंदा जा रहा था. पूर्ववर्ती सरकारों के वक्त से खेल चला आया है. इस अभियान ने सभी राज्यों को सचेत किया है. इस खेल में जो लोग जुड़े हैं फिलहाल दुबके हैं और सहमे हुए हैं. कम उम्र में विवाह होने से बच्चियां केंद्र सरकार की महिलाओं की सशक्तिकरण मुहिम से भी दूर हो जाती हैं.
इसके अलावा उनका स्वास्थ्य एवं पोषण भी पूरा नहीं हो पाता. कम उम्र में मां बनना तो सबसे घातक होता है. आजादी के बाद हिंदुस्तान में वैसे तो कई कुप्रथाओं ने समाज को आहत-परेशान किया. पर, वक्त जैसे-जैसे आगे बढ़ा, लोगों में अच्छे-बुरी की समझ बढ़ी, सामाजिक चेतनाएं जगी, कुप्रथाओं पर बदलती व्यवस्थाओं ने तगड़ा प्रहार करना शुरू किया. देखा जाए तो कई कु:प्रथाएं एक-एक करके ध्वस्त होती गईं. उन्हीं में से बाल विवाह कुप्रथा है, जो अभी तक जिंदा है. दरअसल, बाल विवाह प्रथा के जिंदा रहने के कारण कई है. उन कारणों में हम आप बराबर के दोषी हैं, बाल विवाह की घटनाएं हमारे आसपास भी घटती हैं, लेकिन हम उनसे मुंह फेर लेते हैं.
जबकि, ऐसा करना नहीं चाहिए, अगर हम उसी वक्त आवाज उठाएं, तो ये प्रथा भी अपने आप दम तोड़ दे. इसके अलावा शिक्षा का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार होना चाहिए विशेषकर गांव-देहातों, आदिवासी क्षेत्रों व रूढ़िवादी सोच वाले लोगों में? बाल विवाह कराने वाले अभिभावकों व इसमें शामिल व्यक्तियों पर तगड़ा जुर्माना लगे और कड़ी सजा का प्रावधान हो. जो कानून हैं, उन्हें रिफॉर्म करने की दरकार है, इस तरह के आधुनिक प्रयासों से ही इस कु:प्रथा पर पूर्ण रूप से रोक लगाई जा सकेगी.
क्योंकि किसी भी देश की प्रगति-विकास, उस देश के बाल विकास, स्वस्थ, शिक्षित और योग्य युवाओं के कंधों पर निर्भर होता है. सोचने वाली बात है कि जब बच्चों को अगर हम पहले ही बाल विवाह जैसे दंश में धकेल देंगे, तो वह कैसे अपना और दूसरा का जीवन सर्जन कर पाएगा. देश की तरक्की में योगदान तो दूर की बात है. बाल विवाह के दुष्परिणाम एक नहीं, अनेक हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है. साथ ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी को बेकारी और गरीबी के समुद्र में भी धकेलता है. असम सरकार जैसे अभियान पूरे देश में चलने चाहिए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.