जेंडर गैप एक ऐसी बहस का विषय है जिसके बारे में न जाने कितनी ही बार बात की गई है, न जाने कितने ही तर्क दिए गए हैं, लेकिन इसका हल अभी तक नहीं निकला है. लड़कियों के साथ वैसा व्यवहार नहीं किया जाता जैसा लड़कों के साथ करते हैं. लड़कियों को कम सैलरी दी जाती है और उन्हें काम करते समय भी ऐसा बहुत कुछ झेलना पड़ता है.
ऑस्ट्रेलिया के एक कैफे ने इसको लेकर बहुत बढ़िया प्रयोग करना शुरू किया है. हैंडसम हर (Handsome Her) नाम का एक ऑस्ट्रेलियन कैफे कुछ अलग ही सोची है. यहां पुरुषों के बिल में 18% टैक्स अलग से लगाया जाता है. इस टैक्स का नाम है जेंडर पे गैप टैक्स (Gender Pay Gap Tax). इस टैक्स का नतीजा ये हुआ कि न सिर्फ इस कैफे में बहुत सी भीड़ आई बल्कि सोशल मीडिया पर भी प्रमोशन हुआ. हालांकि, इनको काफी गालियां भी मिली, लेकिन अधिकतर लोगों ने इस काम को सराहा कि इसकी वजह से कम से कम आदिकाल से सामने आई समस्या के लिए किसी ने तो आवाज उठाई.
इस स्कीम की जानकारी कैफे ने अपने चॉकबोर्ड पर दे दी थी. ये कैफे तीन अहम रूल्स पर चलता है..
1. महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी,
2. पुरुषों को 18% एक्स्ट्रा टैक्स देना होगा ये पैसा महिलाओं की सर्विस को डोनेट किया जाएगा,
3. आदर दोनों तरफ से किया जाता है.
2016 में ऑस्ट्रेलिया में एक सर्वे किया गया था जिसमें ये पाया गया था कि महिलाओं की सैलरी पुरुषों की तुलना में 17.7 प्रतिशत कम होती है. ये रिपोर्ट जेंडर इक्वालिटी एजेंसी ने दी थी. इस रिपोर्ट में ये भी बात सामने आई थी कि महिलाओं की सैलरी हर वर्ग में कम ही है.
ये काम इसलिए किया गया है ताकि महिलाओं की सैलरी और उनके...
जेंडर गैप एक ऐसी बहस का विषय है जिसके बारे में न जाने कितनी ही बार बात की गई है, न जाने कितने ही तर्क दिए गए हैं, लेकिन इसका हल अभी तक नहीं निकला है. लड़कियों के साथ वैसा व्यवहार नहीं किया जाता जैसा लड़कों के साथ करते हैं. लड़कियों को कम सैलरी दी जाती है और उन्हें काम करते समय भी ऐसा बहुत कुछ झेलना पड़ता है.
ऑस्ट्रेलिया के एक कैफे ने इसको लेकर बहुत बढ़िया प्रयोग करना शुरू किया है. हैंडसम हर (Handsome Her) नाम का एक ऑस्ट्रेलियन कैफे कुछ अलग ही सोची है. यहां पुरुषों के बिल में 18% टैक्स अलग से लगाया जाता है. इस टैक्स का नाम है जेंडर पे गैप टैक्स (Gender Pay Gap Tax). इस टैक्स का नतीजा ये हुआ कि न सिर्फ इस कैफे में बहुत सी भीड़ आई बल्कि सोशल मीडिया पर भी प्रमोशन हुआ. हालांकि, इनको काफी गालियां भी मिली, लेकिन अधिकतर लोगों ने इस काम को सराहा कि इसकी वजह से कम से कम आदिकाल से सामने आई समस्या के लिए किसी ने तो आवाज उठाई.
इस स्कीम की जानकारी कैफे ने अपने चॉकबोर्ड पर दे दी थी. ये कैफे तीन अहम रूल्स पर चलता है..
1. महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी,
2. पुरुषों को 18% एक्स्ट्रा टैक्स देना होगा ये पैसा महिलाओं की सर्विस को डोनेट किया जाएगा,
3. आदर दोनों तरफ से किया जाता है.
2016 में ऑस्ट्रेलिया में एक सर्वे किया गया था जिसमें ये पाया गया था कि महिलाओं की सैलरी पुरुषों की तुलना में 17.7 प्रतिशत कम होती है. ये रिपोर्ट जेंडर इक्वालिटी एजेंसी ने दी थी. इस रिपोर्ट में ये भी बात सामने आई थी कि महिलाओं की सैलरी हर वर्ग में कम ही है.
ये काम इसलिए किया गया है ताकि महिलाओं की सैलरी और उनके अधिकारों के लिए लड़ा जा सके. बहुत ही बढ़िया बात है. भारत में अगर ऐसा होता और इसी तरह लोग जागरुक होते तो शायद किसी फेमिनिस्ट की जरूरत भी नहीं होती. लेकिन वाकई अगर कोई रेस्त्रां या कैफे ऐसा भारत में करने लगे तो क्या होगा कभी सोचा है?
दो बातें होंगी ... पहली तो ये कि पुरुषों का ईगो हर्ट हो जाता और लोग बहुत परेशान हो जाते. ऐसे कृत्य को जघन्य अपराध माना जाता, लोग रेस्त्रां को तोड़ते-फोड़ते और सोशल मीडिया पर भयंकर गालियां पड़तीं. दूसरा ये होता कि लोग अपनी पत्नी, बीवी, गर्लफ्रेंड को लेकर जाते और उनके नाम पर बिल करवाते. या टेक अवे ऑर्डर लेकर आते. अब ऐसा ही तो होता है न हिंदुस्तान में. अगर कहीं महिलाओं की लाइन लगी हो तो वहां अपनी बीवी, बहन, गर्लफ्रेंड, मां को लगा दिया जाता है और जल्दी काम करवाया जाता है.
जिस देश में महिलाओं के अधिकारों का ऐसे फायदा उठाया जाता है, वहां भला कैसे आखिर ये सोचा जा सकता है कि कोई महिला के अधिकारों के लिए ऐसा कदम उठाएगा. यहां तो अगर महिलाओं के किसी भी अधिकार के बारे में बात हो तो उससे किसी तरह से भी फायदा पुरुष उठा सकें वैसे जुगाड़ सोच लिए जाते हैं. रेलवे लाइन हो, राशन कार्ड की लाइन हो या फिर होम लोन के लिए अप्लाई करना हो.. हर जगह यही तो देखा जाता है.
मैं तो बस इतना कहूंगी कि वाकई ऑस्ट्रेलिया के इस कैफे ने एक अच्छी पहल की है. इस कैफे ने वाकई बता दिया कि महिलाओं के लिए कोई भी पहल छोटी या बड़ी नहीं होती है. कम से कम इस पहल को सराहा जा सकता है.
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