बरिश (Barish) की बूंदे हमें उन लम्हों में ले जाती हैं जिन्हें हम जीना चाहते हैं. हमें याद आती है बचपन की वह बारिश. कैसे हम खुले आसमान के नीचे बरसात में दौड़ने लगते थे. किसी की डांट की परवाह ही नहीं रहती थी. खुश रहने के लिए बस बारिश में भीगना ही काफी था.
बारिश में क्या-क्या याद आ जाता है?
बचपन वाले दोस्त और कागज की नाव
जब स्कूल नहीं जाना पड़ता था
बनारस का घाट और बूंदों के बीच गंगा आरती
चाय की टपरी पर बैठा वह प्रेमी जोड़ा
रसोई में गर्मागर्म पकौड़े बनाती मां
बॉलकनी और चाय का सुकून
बाइक की पिछली सीट बैठी वह लड़की
किशोर दा के गाने
राजकपूर, नरगिश और छतरी
लाइट का चले जाना
बिजली का गिरना
छत पर भीगते कपड़े
अंधेरी रातों में अकेले रहना
बाढ़ में बह गए घर
कैब में चलते गाने
गांव बगीचा और अमरूद का पेड़
दादा जी का लिट्टी-चोखा बनाना
ट्रैफिक और रोड जाम
सफेद कपड़े पर पड़े कीचड़ के छींटे
वह घर जहां छत से पानी टपकता था
अकेली महिला का घर में राशन भरना
आग पर सिका हुआ मक्का
जब बच्चों की टोली बागीचे में पहुंच जाती थी और पड़ोस वाली दादी के पेड़ से...
बरिश (Barish) की बूंदे हमें उन लम्हों में ले जाती हैं जिन्हें हम जीना चाहते हैं. हमें याद आती है बचपन की वह बारिश. कैसे हम खुले आसमान के नीचे बरसात में दौड़ने लगते थे. किसी की डांट की परवाह ही नहीं रहती थी. खुश रहने के लिए बस बारिश में भीगना ही काफी था.
बारिश में क्या-क्या याद आ जाता है?
बचपन वाले दोस्त और कागज की नाव
जब स्कूल नहीं जाना पड़ता था
बनारस का घाट और बूंदों के बीच गंगा आरती
चाय की टपरी पर बैठा वह प्रेमी जोड़ा
रसोई में गर्मागर्म पकौड़े बनाती मां
बॉलकनी और चाय का सुकून
बाइक की पिछली सीट बैठी वह लड़की
किशोर दा के गाने
राजकपूर, नरगिश और छतरी
लाइट का चले जाना
बिजली का गिरना
छत पर भीगते कपड़े
अंधेरी रातों में अकेले रहना
बाढ़ में बह गए घर
कैब में चलते गाने
गांव बगीचा और अमरूद का पेड़
दादा जी का लिट्टी-चोखा बनाना
ट्रैफिक और रोड जाम
सफेद कपड़े पर पड़े कीचड़ के छींटे
वह घर जहां छत से पानी टपकता था
अकेली महिला का घर में राशन भरना
आग पर सिका हुआ मक्का
जब बच्चों की टोली बागीचे में पहुंच जाती थी और पड़ोस वाली दादी के पेड़ से सारे पके अमरूद गायब हो जाते थे. जब एक छत से दूसरे छत फांदने में सिर्फ कुछ सेकेण्ड ही लगते थे. अब तो हमें कैब के बढ़े किराए की टेंशन होती है जो सीधे 250 से पहुंचकर 500 तक हो जाती है. ऊपर से ट्रैफिक जाम के चोचले अलग. अब भला इससे बड़ा दुख क्या होगा कि ऑफ वाले दिन तो बारिश होती भी नहीं है, उस दिन सूरज मामा शायद आग के गोले ऊपर से सीधा हमारे घर पर ही फेंकते हैं.
बचपन वाली कागज की कश्ती तो हम चाहकर भी नहीं भूल पाते. वो स्कूल के दिन जब हम प्रार्थना करते थे कि भगवान जी जल्दी से बारिश कर दीजिए ताकि हमारी छुट्टी हो जाए और हमें स्कूल ना जाना पड़े. अब तो बारिश देखकर लगता है कि कामवाली दीदी फोन करके यह ना कह दें कि बारिश हो रही है इसलिए आज मैं नहीं आ पाउंगी.
बारिश को देखकर चाय की टपरी पर बैठी वह लड़की याद आती है जिसके संग आप घंटों बातें करते थे और भविष्य की प्लानिंग करते थे. बाइक की पीछली सीट पर बैठी वह लड़की जिससे दिल की बात कहने में आपने देरी कर दी. वह आलसी दोस्त जो आपके ऑफिस से रूम लौटने पर आपके लिए अदरक वाली चाय बना देता है. या फिर मां के हाथों से बने वह प्याज पकौड़े और हरी धनिया की चटनी. जिसकी खुशबू आपको उसके पास ले जाती है.
वैसे, खाने के शौकीन लोग तो डिनर में चिकन बनाने की प्लानिंग कर ही लेते हैं. बारिश की बूदें सुकून हैं जिन्हें बेवजह बैठकर देखने का मन करता है. मन एकदम शांत हो जाता है. बारिश को हम अपनी पसंदीदा जगह से बैठकर देखना चाहते हैं. अब तो बॉलकनी में बैठकर चाय के कप से साथ आसमान से गिरती हुई बूंदों को देखकर ही संतोष कर लेते हैं.
बारिश होते ही याद आता है पॉवर कट...हमारे यहां बारिश होते ही सबसे बिजली गुल हो जाती है. वो गांव के हरे-भरे खेतों में भरा पानी जिसमें हम मछली खोजा करते थे. या फिर बाढ़ का वह कहर जो कितने घरों की खुशियां अपने साथ बहा ले गया. कोई 90 के दशक की वह फिल्म जिसे बार-बार देखने का हमारा मन करता है. जैसे- रहना है तेरे दिल में का वह दृश्य जब दिया मिर्जा कार से उतरकर बच्चों के साथ खेलती हैं.
या फिर वह गाना जिसे सुनने का मन करता है, जिसे आप यूं ही कभी-कभी गुनगुनाने की कोशिश करते हैं. राजकपूर और नरगिश का प्यार हुआ इकरार हुआ और वो एक छतरी...या किसी पुराने प्रेमी की याद जिसे आप लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है...सुनकर कम करना चाहते हैं. वैसे पीने वालों के लिए बरसात में पी लेने दो...एक अलग ही बहाना है. आग पर सिके हुए मक्का यानी भुट्टा...या गांव में दादा जी के साथ मिलकर चाचा, भैया का कंडे पर लिट्टी चोखा बनाना.
कपड़े पर पड़े वह छीटें जिसने आपकी सफेद ड्रेस खराब कर दी थी, इसलिए तो अब जब कोई कार आती दिखती है को आप किनारे हो लेते हैं. बारिश होने पर हमें याद आता है उसके साथ आने वाला आंधी-तूफान. जब आप घर में अकेले रहने से घबराते थे. जब आपको खिड़की, दरवाजे से आने वाली भड़-भड़ की आवाज से डर लगता था. मन में भूत-प्रेत की कल्पना लिए वह खौफनाक रात जिसकी सुबह जल्दी होती ही नहीं. अब हम नहीं चाहते कि कभी अकेले रहें और ऐसी काली अंधेरी रात से सामना हो.
क्या याद आता है अपना छोटा सा शहर, जिनकी सड़कें बारिश होते ही डूब जाती थीं. पापा कैसे अपने साइकिल पर बिठाकर सड़क पार करा देते थे ताकि आपके पैर गंदे ना हो...या फिर वह कैब ड्राइवर जिसने आपके खराब मूड को ठीक करने के धीरे से एफएम चालू दिया...
बारिश के बाद के वह उमस और गर्मी से चिपचिपा शरीर... बारिश में हुई वह परेशानी जिसने आपको तोड़कर रख दिया. गांव की वह अकेली औरत जो बारिश से पहले ही अपने घर का राशन भर लेती है. वह बारिश जिसके कारण आपकी ट्रेन कैंसिल हो गई थी. बनारस का वह घाट जहां बारिश और खूबसूरत हो गई...
वो कमरे में भरा पानी जिसे आपने और आपके पति ने बर्तन से निकाला था. कोरोना काल का वह दौर जब हम घरों में कैद थे और बाहर बारिश को खिड़की से देखकर सोचते थे कि ये दिन कब सामान्य होंगे. वह कोई अपना जिसे आपने खो दिया...तो फिर आप बताइए कि बारिश होने पर आपका दिल कहां जाकर ठहर जाता है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.