शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
बशीर बद्र
सोशल मीडिया का एक निर्मम सत्य है, यहां अर्श और फर्श के बीच की स्थिति जितनी तेज़ी से बदलती है उतनी तेज़ी से तो घड़ी की सुइयां भी नहीं भागती है. लाइक और शेयर के कांधे पर बैठकर सिर्फ कुछ सेकंड का वीडियो किसी भी अनजान व्यक्ति की किस्मत को सिर्फ कुछ ही पल में आसमां की बुलंदियों पर बैठा सकता है. इसी प्रकार किसी व्यक्ति की कोई नकारात्मक बात को लोग ट्रोल करके उसे इतना घटिया बना दे कि अच्छा भला इंसान इससे मानसिक रूप से ऊबर ही न पाए. सच कहूं तो कई बार भाई लोग इतना बुरा ट्रोल करते हैं कि व्यक्ति की छवि और मानसिक स्थिति इतनी बुरी हो जाती है कि इंसान अपने घर परिवार रिश्तेदार तो क्या अपने आप से भी आंख भी न मिला पाए. खुद दुनिया भर की किस्मत लिखने वाले विधाता भी आभासी दुनिया में किस्मत के इस अकस्मात और अप्रत्याशित उतार चढ़ाव को जब तक समझ पाएं तक कोई नया खेला हो जाता है.
भाई लोग प्लीज़ अब थोड़ा सा मेच्योर हो जाओ आप सब भी. सोशल मीडिया को सियारों की सभा न बनाओं कि कोई एक हुआं हुआं चिल्लाएं तो सभी बिना समझे हुआंने लग जाओ. टीवी पर उस एड की तरह जो गोली खाकर लड़का बोलता है कि 'दिखावे पर न जाओ अपनी अक्ल लगाओ' वाली पंच लाइन याद कर लो. यार, कम से कम किसी की तारीफ़ और आलोचना में इतना संतुलन होना ही चाहिए कि अगला उसे पचा ले. आप सब जो भी फेसबुक, ट्विटर, इंस्टा या यू ट्यूब को नज़दीक से समझ रहे या जुड़े हैं उन्हें यह बात समझनी होगी कि हम सब का सोशल मीडिया पर आचरण किसी के जीवन से खेलने के...
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
बशीर बद्र
सोशल मीडिया का एक निर्मम सत्य है, यहां अर्श और फर्श के बीच की स्थिति जितनी तेज़ी से बदलती है उतनी तेज़ी से तो घड़ी की सुइयां भी नहीं भागती है. लाइक और शेयर के कांधे पर बैठकर सिर्फ कुछ सेकंड का वीडियो किसी भी अनजान व्यक्ति की किस्मत को सिर्फ कुछ ही पल में आसमां की बुलंदियों पर बैठा सकता है. इसी प्रकार किसी व्यक्ति की कोई नकारात्मक बात को लोग ट्रोल करके उसे इतना घटिया बना दे कि अच्छा भला इंसान इससे मानसिक रूप से ऊबर ही न पाए. सच कहूं तो कई बार भाई लोग इतना बुरा ट्रोल करते हैं कि व्यक्ति की छवि और मानसिक स्थिति इतनी बुरी हो जाती है कि इंसान अपने घर परिवार रिश्तेदार तो क्या अपने आप से भी आंख भी न मिला पाए. खुद दुनिया भर की किस्मत लिखने वाले विधाता भी आभासी दुनिया में किस्मत के इस अकस्मात और अप्रत्याशित उतार चढ़ाव को जब तक समझ पाएं तक कोई नया खेला हो जाता है.
भाई लोग प्लीज़ अब थोड़ा सा मेच्योर हो जाओ आप सब भी. सोशल मीडिया को सियारों की सभा न बनाओं कि कोई एक हुआं हुआं चिल्लाएं तो सभी बिना समझे हुआंने लग जाओ. टीवी पर उस एड की तरह जो गोली खाकर लड़का बोलता है कि 'दिखावे पर न जाओ अपनी अक्ल लगाओ' वाली पंच लाइन याद कर लो. यार, कम से कम किसी की तारीफ़ और आलोचना में इतना संतुलन होना ही चाहिए कि अगला उसे पचा ले. आप सब जो भी फेसबुक, ट्विटर, इंस्टा या यू ट्यूब को नज़दीक से समझ रहे या जुड़े हैं उन्हें यह बात समझनी होगी कि हम सब का सोशल मीडिया पर आचरण किसी के जीवन से खेलने के लिए नहीं बनी है.
अगर आपको यह बात आसानी से समझ में न आ रही हो तो आप बाबा के ढाबा वाले कांता प्रसाद का उदाहरण देख सकते है. सुनने में आ रहा कि बाबा के ढाबा वाले 80 वर्षीय श्री कांता प्रसाद ने सुसाइड की कोशिश की है. बाबा अभी हॉस्पिटल में भर्ती है और खबरों के मुताबिक़ उनकी हालत अभी स्थिर है. ऊपर वाले से दुआ है कि वह जल्दी स्वस्थ हो. पिछले वर्ष के लॉकडाउन और तंगहाली से बेहाल बाबा की एक वीडियो फेसबुक पर रातों रात चर्चा का विषय बन गई थी.
हर किसी को आंसू बहाते उस 80 वर्षीय बुजुर्ग में एक मजबूर किंतु स्वाभिमानी इंसान की छवि दिखाई दी. जिसका परिणाम यह हुआ कि बाबा का ढाबा अगले दिन सेलिब्रिटी प्वाइंट बन गया. लोगों ने कांता प्रसाद के लिए सहायता की भरमार लगा दी. बाद में सहायता राशि को लेकर कांता प्रसाद ने यू ट्यूबर गौरव वासन जिन्होंने बाबा का वीडियो बनाया था से अनबन भी हुई. जिसके कारण लोगों ने बाबा के ढाबा पर जाना कम कर दिया. हाल में ही बाबा का एक और वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे गौरव वासन से माफ़ी मांगते हुए दिखाई पड़ते हैं.
बाद में खबरें आई कि गौरव और बाबा ने मिलकर आपस के गिले शिकवे दूर कर लिए. काश बाबा और गौरव की साथ सोशल मीडिया पर मुस्कुराती वायरल फ़ोटो इस सम्पूर्ण घटनाक्रम का हैप्पी एंड होता लेकिन बाबा के आत्महत्या के प्रयास की ख़बर ने इस सम्पूर्ण घटना को एक विस्तृत नजरियें से देखने और सोचने पर हम सबको फिर से मजबूर कर दिया. निश्चित रूप से आज हम सब के जीवन में सोशल मीडिया एक ऐसे फैक्टर के रूप में है जो गहरे से हम सब को मानसिक रूप से प्रभावित कर रहा है.
इस पूरी घटना को एक समग्र नज़रिए से देखने की ज़रूरत है. बाबा के प्रति सहानुभूति से लेकर फिर उनकी आलोचना तक सोशल मीडिया पर होने वाले प्रॉम्ट रिएक्शन की उस प्रवृत्ति पर भी गौर करिए जो बस बिना आगा पीछे सोचे तुरंत जजमेंटल हो जाता है. सच कहूं तो गौरव से माफ़ी मांगते बाबा के उस वीडियो को जब मैने देखा तो पता नहीं क्यों बाबा पर मुझे न तो हंसी आयी और न ही कोई गुस्सा.
अरे भाई लोग माना कि हमीं आपने बाबा के प्रति उमड़े सहानुभूति में उन्हें सेलिब्रिटी बना दिया और किसी स्टार की तरह मान सम्मान दिया जो कि जायज़ था. लेकिन बाद में बाबा का बदला रवैया भी उतना ही सहज और स्वाभाविक था. 80 वर्ष का बुजुर्ग जो बुढ़ापे में भी अपनी आजीविका के लिए अपनी पत्नी के साथ रोटियां सेंक कर गुजारा कर रहा हो उसकी मानसिक स्थिति कितनी गतिशील और असुरक्षा बोध से ग्रस्त होगी. क्या हम सब इसका अंदाजा लगा सकते है.
नहीं न ! इसी लिए सोशल मीडिया कई बार बहुत असंवेदनशील व्यवहार करती है . या यूं कहिये कि 'भीड़' बन जाती है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि सोशल मीडिया पर हर कोई अपने को ज्ञानी बनता है और उसे मुखरता के साथ अभिव्यक्त करना चाहता है. बारीकी से गौर करें तो मानव मन में आत्म प्रदर्शन की ग्रंथि यहां खुले मंच पर खुद को किसी रोक टोक के अभाव में नैतिकता और सामाजिक आचरण का सबसे बड़ा और महान संरक्षक समझता है.
अरे भाई लोग थोड़ा सा सब्र कर लो. थोड़ा देख तांक कर व्यवहार करो. बाबा ने तो अपने बदले व्यवहार के लिए माफ़ी मांग ली अगर आप सब के आलोचना के कारण आहत होकर 80 साल के उम्र में आत्महत्या जैसा कदम उठाया है तो क्या हम सब अपने इस व्यवहार की माफ़ी मांग पाएंगे ? सोचिएगा !
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