माफ़ कीजिएगा गिरीश चंद्र त्रिपाठी महोदय, आपको टेलीविजन पर बोलते सुना तो कुलपति पद को लेकर बचपन से दिमाग़ में जो एक छवि थी वो तार-तार हो गई. आप हर वक्त मेरी सुनिए, मेरी सुनिए ही करते रहते हैं. ऐसे में आप अपने संस्थान बीएचयू की उन बच्चियों की कहां से सुनते, जो कि बस यही मांग कर रही थीं कि दो घड़ी उनके बीच आ कर उनके दिल का दर्द सुन लें.
नहीं, आप को तो उस बच्ची की शिकायत भी पहले लिखित में चाहिए थी. जिसके कुर्ते में हाथ डाल कर दो शोहदों ने पूरी इंसानियत को शर्मसार किया. होना तो ये चाहिए था कि घटना का पता लगते ही आपकी नींद वैसे ही उड़ जानी चाहिए थी जैसे कि किसी जवान बेटी के साथ ऊंच-नीच होने पर उसके पिता की उड़ जाती है. आपको तो गुरुवार शाम 6.20 पर हुई घटना की जानकारी ही कई घंटे बाद मिलती है. गजब आपकी सुरक्षा और सूचना व्यवस्था है.
आपको रात को आपके मातहत अधिकारी बताते हैं कि मामला सुलझा लिया गया है. और आप उन पर आंख मूंद कर भरोसा कर लेते हैं और सोने चले जाते हैं. ये भी नहीं पूछते कि मामला सुलझा कैसे? क्या दोषियों को पकड़ लिया गया? क्या पीड़ित छात्रा को ही उलटे नसीहत देने वाले गार्ड, वार्डन के ख़िलाफ़ तत्काल कोई कार्रवाई की गई?
आप ‘मेरी सुनिए, मेरी सुनिए’ करते सबसे अधिक ज़ोर इसी बात पर देते हैं कि सब बाहरी तत्वों का किया कराया था. आप कहते हैं वो पेट्रोल बम...
माफ़ कीजिएगा गिरीश चंद्र त्रिपाठी महोदय, आपको टेलीविजन पर बोलते सुना तो कुलपति पद को लेकर बचपन से दिमाग़ में जो एक छवि थी वो तार-तार हो गई. आप हर वक्त मेरी सुनिए, मेरी सुनिए ही करते रहते हैं. ऐसे में आप अपने संस्थान बीएचयू की उन बच्चियों की कहां से सुनते, जो कि बस यही मांग कर रही थीं कि दो घड़ी उनके बीच आ कर उनके दिल का दर्द सुन लें.
नहीं, आप को तो उस बच्ची की शिकायत भी पहले लिखित में चाहिए थी. जिसके कुर्ते में हाथ डाल कर दो शोहदों ने पूरी इंसानियत को शर्मसार किया. होना तो ये चाहिए था कि घटना का पता लगते ही आपकी नींद वैसे ही उड़ जानी चाहिए थी जैसे कि किसी जवान बेटी के साथ ऊंच-नीच होने पर उसके पिता की उड़ जाती है. आपको तो गुरुवार शाम 6.20 पर हुई घटना की जानकारी ही कई घंटे बाद मिलती है. गजब आपकी सुरक्षा और सूचना व्यवस्था है.
आपको रात को आपके मातहत अधिकारी बताते हैं कि मामला सुलझा लिया गया है. और आप उन पर आंख मूंद कर भरोसा कर लेते हैं और सोने चले जाते हैं. ये भी नहीं पूछते कि मामला सुलझा कैसे? क्या दोषियों को पकड़ लिया गया? क्या पीड़ित छात्रा को ही उलटे नसीहत देने वाले गार्ड, वार्डन के ख़िलाफ़ तत्काल कोई कार्रवाई की गई?
आप ‘मेरी सुनिए, मेरी सुनिए’ करते सबसे अधिक ज़ोर इसी बात पर देते हैं कि सब बाहरी तत्वों का किया कराया था. आप कहते हैं वो पेट्रोल बम चला रहे थे. आग़जनी कर रहे थे. गेट तोड़ रहे थे. इसलिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. घटना का वीडियो पूरे देश ने देखा कि किस तरह छात्राओं पर (ना)मर्द पुलिसवालों ने डंडे बरसाए. देश भर को छात्राओं की चोटें नज़र आ गईं, नहीं आईं तो बस आपको ही नहीं आईं. आप फिर भी यही कह रहे हैं कि पुलिसवाले लड़कियों को बस गेट के अंदर कर रहे थे.
आपने इस पूरे प्रकरण को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दौरे के साथ जोड़ कर पेश किया. आपके मुताबिक विश्वविद्यालय के बाहर के लोगों ने, राजनीतिक शक्तियों ने, असामाजिक तत्वों ने ये सब सोच समझ कर साज़िश के तहत किया. जिससे कि विश्वविद्यालय के नाम पर बट्टा लगे. जान बूझ कर इसकी टाइमिंग प्रधानमंत्री के दौरे के साथ रखी गई. आप तो छेड़खानी की घटना के भी प्रायोजित होने का इशारा देकर संवेदनहीनता की सारी हदों को पार कर गए.
बीते तीन-चार दिन में ही सब कुछ घटित हुआ होता तो आपकी बाहरी और राजनीतिक साजिश़ की थ्योरी को मान भी लिया जाता. लेकिन विश्वविद्यालय की लड़कियां तो कई महीने पहले से ही असुरक्षा और भेदभाव की मांग उठाती रही हैं. क्यों लड़कियों के लिए आठ बजे के बाद नाइट कर्फ्यू लग जाता है. क्यों लड़कों को लाइब्रेरी में रात 10 बजे तक पढ़ने की इजाज़त है और लड़कियों को नहीं? क्यों लड़कियों के नॉन वेज खाने पर रोक है? क्यों उन्हें पहनावे के लिए फरमान दिए जाते हैं. यहां ये बताना ज़रूरी है कि जिस छात्रा के साथ 21 सितंबर को छेड़खानी की घटना हुई वो सलवार कुर्ता पहने हुए थी.
आप बाहरी-बाहरी कहे जा रहे हैं, तो ये भी तो बताइए कि उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में आने-जाने के लिए मनचाही छूट है तो इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? परिसर की सुरक्षा में छेद हैं, तो उन्हें भरने की ज़िम्मेदारी भी कुलपति के नाते आपकी नहीं? वाराणसी के कमिश्नर ने भी शासन को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अगर वीसी लड़कियों के बीच जाकर उनकी बात सुन लेते तो हालात काबू से बाहर नहीं होते.
चलिए इन सब बातों को जाने दीजिए. आख़िर में बस एक बात का जवाब दीजिए. जब आपके घर में इतना सब कुछ हो जाए. किसी छात्रा के साथ दो बाइक सवार शैतान बेहूदगी की सारी हदें पार कर जाएं. कुछ कुंठित और मानसिक विकृति के शिकार लड़के अंधेरा डलते ही लड़कियों के हॉस्टल के बाहर आकर ऐसी हरकते करें जिन्हें यहां लिखना भी मुश्किल है, ऐसे हालात के ख़िलाफ़ लड़कियां आवाज़ उठाएं तो उन पर पुलिस वाले डंडे बरसा दे. ये सब कुछ होने के बाद भी आप टीवी पर आए तो आपके माथे पर शिकन नाम की कोई चीज़ तक क्यों नज़र नहीं आई. उलटे आप मुस्कुराते नज़र आए, जैसे बीएचयू में सब कुछ सामान्य हो, ऐसा कुछ भी ना घटा हो जिससे आपका चैन उड़ा दिखे.
आप 40 साल से शिक्षक होने का दंभ भरते हैं. लेकिन आपने एक बार भी नहीं सोचा कि इतना कुछ होने के बाद भी आपको नेशनल टेलीविजन पर मुस्कुराते हुए देख बीएचयू की छात्राओं के दिल पर क्या बीती होगी. वही बेटियां, जिनके माता-पिता ने उन्हें आपको उनका पितातुल्य संरक्षक मानते हुए, आपकी सुरक्षा पर भरोसा जताते हुए बीएचयू परिसर के हॉस्टल्स में रहने के लिए छोड़ा था.
पुन: माफ़ी के साथ वीसी साहब, आपकी टीवी पर ज़हरीली मुस्कान देश में हर बेटी के पिता के कलेजे को चीर गई...
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