क्या हाउस वाइफ (Housewife) बनना शर्मिंदगी की बात है? जो महिलाएं अपनी मर्जी से गृहिणी बनना चुनती हैं उन पर गर्व क्यों नहीं किया सकता है? जरूरी नहीं है कि हर महिला पढ़ लिखकर जॉब ही करना चाहे. हो सकता है कि कुछ महिलाओं को घर संभालना ही अच्छा लगता हो.
हमारे समाज में घर संभालना छोटी बात क्यों मानी जाती है? परिवार का ख्याल रखना...सास, ससुर, पति की जिम्मेदारी लेना छोटी बात तो नहीं है. ऊपर से रिश्तेदारों, पड़ोसी, घर खर्च को मैनेज करने का सिरदर्द अलग होता है. अक्सर लोग घरेलू महिलाओं को कम आंकते हैं.
क्या आपने कभी हाउसवाइफ का इसलिए सम्मान होते देखा है, क्योंकि उसने घर को बड़े ही करीने से संभाला है. लोगों को यह क्यों समझ नहीं आता कि जरूरी नहीं है कि हर महिला को बाहर काम करना ही पसंद हो. घर को मैनेज करना किसी कंपनी को मैनेज करने से आसान काम थोड़ी है.
जिसे देखो वह यही कहता है कि फलाने की बहू अफसर है. फलाने की बेटी कंपनी की मैनेजर है. कोई ऐसी महिला के बारे में बात नहीं करता जो एक साधारण हाउस वाइफ है और अपना घर अच्छी तरह संभाल रही है. वह कोई बेचारी नहीं है, उसकी कोई मजबूरी नहीं है यह करना उसकी अपनी मर्जी है. अगर पति या बच्चें कुछ अच्छा करते हैं तो उसमें उसका बहुत बड़ा रोल है और वह इसमें खुश है. लोगों का लगता है कि घर संभालना कौन सी बड़ी बात है?
असल में इन दिनों ट्रैड वाइफ (Trade Wife) पर बहस छिड़ी हुई है. ट्रैड वाइफ का मतलब 1050 दशक की ट्रे़डिशनल वाइफ यानी पारंपरिक पत्नी से है. वह पत्नी जिसे घर में रहना पसंद है. जिसे घर का काम करना पसंद है. जिसे रसोई में काम करना औऱ घर की सफाई करना पसंद है. जिसे घर संभालना औऱ परिवार की देखरेख करना पसंद है. वह बाहर जाकर काम नहीं करती...
क्या हाउस वाइफ (Housewife) बनना शर्मिंदगी की बात है? जो महिलाएं अपनी मर्जी से गृहिणी बनना चुनती हैं उन पर गर्व क्यों नहीं किया सकता है? जरूरी नहीं है कि हर महिला पढ़ लिखकर जॉब ही करना चाहे. हो सकता है कि कुछ महिलाओं को घर संभालना ही अच्छा लगता हो.
हमारे समाज में घर संभालना छोटी बात क्यों मानी जाती है? परिवार का ख्याल रखना...सास, ससुर, पति की जिम्मेदारी लेना छोटी बात तो नहीं है. ऊपर से रिश्तेदारों, पड़ोसी, घर खर्च को मैनेज करने का सिरदर्द अलग होता है. अक्सर लोग घरेलू महिलाओं को कम आंकते हैं.
क्या आपने कभी हाउसवाइफ का इसलिए सम्मान होते देखा है, क्योंकि उसने घर को बड़े ही करीने से संभाला है. लोगों को यह क्यों समझ नहीं आता कि जरूरी नहीं है कि हर महिला को बाहर काम करना ही पसंद हो. घर को मैनेज करना किसी कंपनी को मैनेज करने से आसान काम थोड़ी है.
जिसे देखो वह यही कहता है कि फलाने की बहू अफसर है. फलाने की बेटी कंपनी की मैनेजर है. कोई ऐसी महिला के बारे में बात नहीं करता जो एक साधारण हाउस वाइफ है और अपना घर अच्छी तरह संभाल रही है. वह कोई बेचारी नहीं है, उसकी कोई मजबूरी नहीं है यह करना उसकी अपनी मर्जी है. अगर पति या बच्चें कुछ अच्छा करते हैं तो उसमें उसका बहुत बड़ा रोल है और वह इसमें खुश है. लोगों का लगता है कि घर संभालना कौन सी बड़ी बात है?
असल में इन दिनों ट्रैड वाइफ (Trade Wife) पर बहस छिड़ी हुई है. ट्रैड वाइफ का मतलब 1050 दशक की ट्रे़डिशनल वाइफ यानी पारंपरिक पत्नी से है. वह पत्नी जिसे घर में रहना पसंद है. जिसे घर का काम करना पसंद है. जिसे रसोई में काम करना औऱ घर की सफाई करना पसंद है. जिसे घर संभालना औऱ परिवार की देखरेख करना पसंद है. वह बाहर जाकर काम नहीं करती है.
इसकी शुरुआत पश्चिमी देशों से हुई है. बहुत सी महिलाएं इसे अपने सम्मान से जोड़कर देखती हैं औऱ ट्रैड वाइफ बनना पंसद करती हैं. कई महिलाएं ट्रै़ड वाइफ का समर्थन इसलिए कर रही हैं क्योंकि वे घर औऱ बाहर की दोहरी जिम्मेदारी निभाने से तंग आ गई हैं. इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़कर घर में रहना चुना. उन्हें जिंदगी में भागदौड़ नहीं बल्कि सुकून चाहिए. कई महिलाएं रील बनाकर खुशी से खुद को ट्रैड वाइफ बता रही हैं. उनके लिए यह कोई छोटी बात नहीं है.
इस पर कुछ लोगों का कहना है कि यह किसी महिला की अपनी च्वाइस है कि वह अपनी जिंदगी में क्या चाहती हैं. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि इससे महिलाएं दोबारा से पिछ़ड़ जाएंगी. वे उस समय का उदाहरण देते हैं जब सेक्सिज्म जोरों पर था. उनका कहना है कि इससे पितृसत्ता को बढ़ावा मिलेगा. महिलाएं एक बार फिर से घरों में कैद हो जाएंगी तो बहुत सारे मामलों में पिछड़ जाएंगी. यह बात भी सही है कि हर महिला ट्रैड वाइफ बनना पंसद करती है कई महिलाएं अभी भी बाहर जाकर काम करना चाहती हैं. इसलिए यह कहना गलत है कि इससे महिलाएं पीछे हो जाएंगी.
असल में भारतीय महिलाओं के लिए करियर कोई विकल्प नहीं होता है. यह सिर्फ पैसा कमाने का एक जरिया होता है. ससुराल या पति चाहते हैं कि वह नौकरी करे ताकि घर में दो पैसे आ सके. अगर कोई महिला नौकरी छोड़ देती है तो उसे सामाजिक रूप से शर्मिंदा होना पड़ता है. अगर वह गृहिणी है तो दुनिया उसे आलसी कहती है, क्योंकि उनकी नजर में वह करती ही क्या है? दो-चार लोगों के लिए रोटी बनाना भी भला कोई काम है. हर महिला को एक ना एक दिन ऐसी बातें सुनने को ही मिलती हैं. आम महिला तो छोड़िए अगर कोई बॉलीवुड एक्ट्रेस काम करना छोड़ती है तो उसे ही लोग 10 बातें सुना देते हैं, कोई उसके फैसले का सम्मान नहीं करता.
अगर किसी लड़की से पूछा जाए कि वह पढ़कर क्या करना चाहती है तो उसका जवाब होता है डॉक्टर या इंजीनियर...ठीक है यह उनकी च्वाइस है. वहीं अगर कोई लड़की यह बोल दे कि उसे हाउस वाइफ बनना है लोग उसका मजाक बनाने लगते हैं. मानो हाइस वाइफ की कोई वैल्यू ही नहीं है.
हमारे समाज में लोग हाउसवाइफ को लेकर बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं लेकिन इसल जिंदगी में उन्हें वह जगह औऱ सम्मान नहीं देते तो एक कामकाजी महिला को देते हैं. इतना ही नहीं अगर किसी पति से उसका कोई दोस्त पूछता है कि और वाइफ क्या करती है और अगर वह हाउस वाइफ है तो उसे यह बताने में जैसे झिझक महसूस होती है. वह सीधे यह नहीं बोलता कि वह हाउसवाइफ है. वह लगता है उसके काम ना करने की वजहें गिनाने. वहीं अगर वह वर्किंग है तो वह गर्व महसूस कर तपाक से बताता है कि वह फलाने जगह कि पोजीशन पर काम करती है. जबकि अगर वह ऑफिस में आराम से काम कर रहा है, जिंदगी में सफल हो रहा है तो इसमें हाउसवाइफ की बहुत बड़ी भूमिका होती है.
हमारे कहने का मतलब यह है कि महिलाओं का काम करना उनकी मर्जी होनी चाहिए मजबूरी नहीं, वैसे आजकर लोगों को ऐसी बहू चाहिए तो काम भी करे और घर भी संभाले... ऐसे कैसे काम चलेगा भाई लोग? इस मामले में आपकी क्या राय है? क्या हाउसवाइफ बनने से महिलाएं पिछड़ जाएंगी, या फिर यह उनकी मर्जी है कि वे काम करें या नहीं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.