आज अहम दिन है. बारहवीं के इम्तिहान के नतीजे आने हैं. बच्चों के लिए बेहद भावुक क्षण और उनके परिवार के लिए भी. कई बच्चे इसे जीवन का सबसे अहम समय मान लेते हैं गलत कदम उठा लेते हैं. उससे भी ज्यादा बच्चे कोई कदम तो नहीं उठाते लेकिन तनाव और अवसाद का शिकार हो जाते हैं. ये परीक्षा सबसे बड़ा टॉर्चर है क्योंकि इसमें तुलना छिपी है. तुलना न होती तो शायद इतना तनाव न होता.
बच्चों पर अच्छे नंबर लाने का दबाव होता है
मेहरबानी करके बच्चों के परिणाम की किसी दूसरे बच्चे से तुलना न करें. परिणाम की तुलना कर भी रहे हैं तो सिर्फ एक विषय की तुलना करें पूरे परिणाम की कतई न करें. जिसमें अच्छा किया है उस विषय की तारीफ करें उसे बढ़ावा दें. बच्चे का भविष्य वही विषय बनाने वाला है जिसमें उसने अच्छा स्कोर किया. वो नहीं जिसमें वो चूक गया. उदाहरण के लिए अगर बच्चा गणित में कमजोर है तो बना रहने दें. बच्चे को बताएं कि गणित के बगैर भी बड़ी दुनिया है. उसे भविष्य की संभावनाएं बताएं. ये न कहें कि आपने गणित में कुछ नहीं किया तो चैप्टर क्लोज़.
दूसरी गलती अभिभावक दो बच्चों के बीच तुलना करने में करते हैं. दो बच्चों में तुलना कभी न करें. तुलना तनाव की जड़ है. ये ज़हर है जो व्यक्ति को मौत की ओर ले जाता है. सभी तुलना में कहीं न कहीं किसी से पीछे हैं. जिससे आप तुलना कर रहे हैं वो भी कहीं किसी से किसी मामले में कमतर है.
रोज़गार और करियर जीवन के लिए है. जीवन करियर के लिए नहीं. इसका तनाव बच्चों पर इतना नहीं होना चाहिए. हाल के राजनीतिक विमर्ष में कुछ चीज़ें सामने आईं. प्रधानमंत्री ने पकौड़े बेचने को प्रतिष्ठित रोजगार का सम्मान देने की कोशिश की. भले ही वजह कुछ और हो लेकिन ये सच है कि हर रोज़गार सम्मानजनक है.
माता-पिता बी बच्चों को तनाव से उबार सकते हैं
कुछ लोग कहते हैं कि कंपटीशन का जमाना है. तुलना नहीं करेंगे तो कुछ नहीं होगा. एक एक नंबर की अहमियत होती है लेकिन गौर से देखें तो कंपटीशन कुछ नहीं नौकरी पर रखने के लिए लोगों को छांटने का एक सर्वमान्य तरीका है. दो लोगों की नौकरी के लिए अगर दस लोग आ जाएं तो आठ को न रखने के लिए कोई तो बहाना चाहिए. इसका मतलब ये न समझें कि दुनिया में सिर्फ वो दो ही काबिल थे.
जो बच्चे नौकरी नहीं पा सकते उनमें नौकरी देने की काबिलियत हो सकती है. जो कर्मचारी नहीं बन पाए हो सकता है वो कल कर्मचारियों के मालिक बनें. जीवन की अनंत संभावनाएं है. हमारे देश में अनेक उदाहरण है जिनमें पांचवी पास से भी कम पढ़े लिए बड़े बड़े अंग्रेज़ी प्रकाशनों के संपादक बने. संपादक ही नहीं बने उन्होंने संपादक के तौर पर ऑक्सफोर्ड वालों से ज्यादा सम्मान कमाया.
देश के बड़े उद्योगपतियों पर नज़र डालिए. उनकी पढ़ाई लिखाई उनके काम कितना आई. धीरूभाई अंबानी का उदाहरण सबके सामने हैं. हम प्रधानमंत्री का उदाहरण लें. जिन्होंने पत्राचार से पढ़ाई पूरी की. आज उनके नाम रिकॉर्ड लिखे जा रहे हैं. उनके लिए जान देने वालों की भीड़ है.
मैं चाहता हूं कि इस पोस्ट को आप ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं. हो सकता है कि कुछ बच्चों को हम तनाव से उबार सकें. भावुक होने का समय है लेकिन उससे भी ज्यादा भावनाओं पर काबू रखने की है. हमारे बच्चे मुस्कुराते रहें खुश रहें. पढ़े खूब पढ़े लेकिन ज्ञान बढ़ाने के लिए. खूब जानने के लिए. लेकिन इस नंबर गेम से दूर रहे.
ये नंबर बेकार हैं. यकीन मानिए इन नंबरों का सिर्फ अचार डलेगा. पूरे जीवन कोई आपसे आपके हाई स्कूल और इंटर के नंबर नहीं पूछेगा. इससे नौकरी पर कोई असर नहीं पड़ता ज्यादा नंबर वाले को ज्यादा पैसे नहीं मिलते. ज्यादा अच्छे इनसान को मिलते हैं. अच्छे इनसान बनें अपने बच्चों की खयाल रखें आज का दिन पार्टी का है बच्चों को खुश रखने का है. सबसे ज़रूरी बात आज बच्चों को अपनी नज़रों के सामने रखें. बेहद ज़रूरी है. सिर्फ आप ही उन पर दबाव नहीं बनाते हो सकता है उनके दोस्तों या स्कूल के टीचर के कारण भी वो नंबरों के दबाव में हों. लेकिन आप साथ रहेंगे सामने रहेंगे. बच्चों को सपोर्ट देंगे. घुमाने ले जाएंगे. तो सब ठीक हो जाएगा. यकीन रखिए.
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