राष्ट्रीय गीत की प्रथम लाइनें है - 'जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता !' लोकसभा चुनाव की आहट होते ही हमेशा की तरह राजनीतिक दलों में एकता होने लगती है. पहले कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन की रूपरेखा बनती थी, आज वही तमाम दल सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो लिए हैं. लेकिन जिस ताज़ातरीन गठबंधन ने जन्म लिया है, उसका नामकरण I.N.D.I.A किया जाना एक सोची समझी रणनीति है जिसका रहस्योद्घाटन तत्काल ही हो भी गया जब I.N.D.I.A. को गठजोड़ के नेताओं ने 'इंडिया' कहकर डिस्क्राइब करना शुरू कर दिया.
दरअसल सभी राजनीतिक घरानों के क्रिएटर/वंशजों की प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ सत्ताधारी मोदी सरकार को परास्त कर येनकेन प्रकारेण सत्ता पर काबिज होना है, उनका कॉमन मिनिमम एजेंडा मोदी को हराना है और इसी मकसद के लिए वे 'इंडिया' नाम को एक्सप्लॉइट कर रहे हैं ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार पूर्व में कभी करने की कोशिश की थी 'इंडिया इज़ इंदिरा एंड इंदिरा इज़ इंडिया' का स्लोगन देकर. और इस बार अपनी अपनी विचारधारा और अपने अपने सिद्धांतों की तिलांजलि देकर स्वार्थपरक राजनीति के वश वे ठीक उसी तर्ज पर दम भर रहे हैं. तब इंदिरा हारी थी और इस बार छद्मवेशी I.N.D.I.A. का चारों खाने चित होना तय है. क्योंकि भारत की जनता 'इंडिया' का दम भरने वालों को भाग्य विधाता कुबूल कर ही नहीं सकती. फिर आज जनता की परख इतनी परिपक्व है कि खोखले नारों, तर्कहीन विमर्शों की हकीकत भली भांति समझती है.
जनता जानती है कि इस परस्पर धुर विरोधी दलों के गठजोड़ का मकसद सिर्फ और सिर्फ निजी हितों को साधने के लिए, यदि सत्ता मिल गई तो, एक कामचलाऊ सरकार बनाने की है जिसके तहत जन सरोकार की बातें हवा हवाई हो जाएंगी. एक बात...
राष्ट्रीय गीत की प्रथम लाइनें है - 'जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता !' लोकसभा चुनाव की आहट होते ही हमेशा की तरह राजनीतिक दलों में एकता होने लगती है. पहले कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन की रूपरेखा बनती थी, आज वही तमाम दल सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो लिए हैं. लेकिन जिस ताज़ातरीन गठबंधन ने जन्म लिया है, उसका नामकरण I.N.D.I.A किया जाना एक सोची समझी रणनीति है जिसका रहस्योद्घाटन तत्काल ही हो भी गया जब I.N.D.I.A. को गठजोड़ के नेताओं ने 'इंडिया' कहकर डिस्क्राइब करना शुरू कर दिया.
दरअसल सभी राजनीतिक घरानों के क्रिएटर/वंशजों की प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ सत्ताधारी मोदी सरकार को परास्त कर येनकेन प्रकारेण सत्ता पर काबिज होना है, उनका कॉमन मिनिमम एजेंडा मोदी को हराना है और इसी मकसद के लिए वे 'इंडिया' नाम को एक्सप्लॉइट कर रहे हैं ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार पूर्व में कभी करने की कोशिश की थी 'इंडिया इज़ इंदिरा एंड इंदिरा इज़ इंडिया' का स्लोगन देकर. और इस बार अपनी अपनी विचारधारा और अपने अपने सिद्धांतों की तिलांजलि देकर स्वार्थपरक राजनीति के वश वे ठीक उसी तर्ज पर दम भर रहे हैं. तब इंदिरा हारी थी और इस बार छद्मवेशी I.N.D.I.A. का चारों खाने चित होना तय है. क्योंकि भारत की जनता 'इंडिया' का दम भरने वालों को भाग्य विधाता कुबूल कर ही नहीं सकती. फिर आज जनता की परख इतनी परिपक्व है कि खोखले नारों, तर्कहीन विमर्शों की हकीकत भली भांति समझती है.
जनता जानती है कि इस परस्पर धुर विरोधी दलों के गठजोड़ का मकसद सिर्फ और सिर्फ निजी हितों को साधने के लिए, यदि सत्ता मिल गई तो, एक कामचलाऊ सरकार बनाने की है जिसके तहत जन सरोकार की बातें हवा हवाई हो जाएंगी. एक बात और भी है एज़ एन आर्ग्युमेंट अगेंस्ट दिस नेम कि कवायद है सिर्फ और सिर्फ INDIA के हर लेटर के लिए ऐसा स्टैंड फॉर टाइप वर्ड खड़ा कर देना है ताकि वे इंडिया पर येनकेन प्रकारेण हक़ जता दें. जबकि वे स्वयं I.N.D.I.A. का फुल फ़ॉर्म नहीं बता पा रहे हैं - D स्टैंड्स फॉर डेमोक्रेटिक या फिर D स्टैंड्स फॉर डेवलपमेंटल !
अब जब एक नैरेटिव गढ़ ही दिया है तो बीजेपी कमतर थोड़े ना है ! भारत बनाम इंडिया होना ही है और इस कदर ग़दर मचेगा कि तमाम मुद्दे गौण हो जाएंगे. देश का, भारत कहें या फिर इंडिया, दुर्भाग्य ही है कि दोनों ही आदर्श शब्द राजनीति के शिकार होने लगेंगे. शुरुआत हो भी चुकी है. Iगठजोड़ के INDIA नाम के लिए एक और फुल फ़ॉर्म ईजाद भी हो गया है - I स्टैंड्स फॉर Immoral(अनैतिक) ; N स्टैंड्स फॉर Nepotism (भाई भतीजावाद) ; D स्टैंड्स फॉर Dishonest (बेईमान) ; I स्टैंड्स फॉर Incapable (असमर्थ) ; A स्टैंड्स फॉर Alliance(गठबंधन).
एक पवित्र शब्द के साथ छेड़छाड़ ना मालूम क्या क्या रंग दिखाएगी ? क्या इंडिया और भारत दोनों शब्द एक ही देश को दर्शाने के लिए नहीं हैं ? यह निर्भर करता है कौन किस मायने में उन्हें उपयोग कर रहा है ? देश भक्ति और समरसता के भाव के साथ एक दूसरे का सम्मान अपेक्षित है और सामूहिक आवश्यकता भाषाओं, संस्कृतियों और आदर्शों को संगठित रखने की है. तभी हम एक मिश्रित और समृद्ध समाज के निर्माण में सफल हो सकते हैं जहाँ इंडिया और भारत एक ही अर्थ में एकता के प्रतीक होते हैं - Bharat is India and India is Bharat ! परंतु पॉलिटिक्स है कि क्या न करा दे ?
अभी तो आगे आगे देखिये होता है क्या ? गठजोड़ में ही नामकरण पर श्रेय लेने की होड़ है, किसी एक को नाराजगी भी है नाम पर ! नाराजगी संयोजक न बनाये जाने पर भी है. पिछली बार एक मुख्यमंत्री( आम आदमी पार्टी) प्रेस कांफ्रेंस से कन्नी काट गए थे, इस बार भी एक अन्य मुख्यमंत्री मय सहयोगियों (आरजेडी और जदयू) के नाराज होकर कन्नी काट गए. उधर बीजेपी ने भी एनडीए के कुनबे को जोड़ना शुरू कर दिया है जिसमें उस गठजोड़ की दो मुख्य पार्टियों की फ़ौज भी शामिल है.
हालांकि दिल को बहलाने के लिए ये ख्याल अच्छा है कि उन दो पार्टियों के क्रिएटर साथ हैं नए नवेले गठजोड़ के. नाराजगी इस बात पर भी है कि बंगलुरु की विपक्षी मीटिंग कांग्रेस के नेतृत्व का आभास देती प्रतीत हुई. और मीटिंग खत्म हुई नहीं कि तृणमूल नेत्री शताब्दी रॉय ने कह दिया कि पीएम फेस तो ममता दीदी को बनाया जाना चाहिए, कांग्रेस तो रेस में कहीं है ही नहीं। उधर सी.पी.एम. के येचुरी जी ने भी कह दिया कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल से लड़ाई जारी रहेगी.
दरअसल भारतीय राजनीति कहें या इंडियन पॉलिटिक्स कहें एकता के नाम पर गठबंधन की कवायद में न तो विचारधारा का कोई महत्व है न ही जनता से जुड़े मसलों पर साझा कार्यक्रम का. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, मकसद एक ही रहता है - येनकेन प्रकारेण सत्ता पर काबिज होना. बात चाहे एनडीए की हो या फिर यूपीए (यही नाम रहना चाहिए था) की, दोनों खेमों में शामिल हो रहे राजनीतिक दलों के इतिहास पर नजर डालें तो बीजेपी और कांग्रेस को छोड़कर शेष दल कभी न कभी दोनों मोर्चे में भागीदारी करके सत्ता सुख भोगते रहे हैं.
सीधा और साफ मतलब है दलों की प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ अपने अस्तित्व को बनाए रखते हुए सत्ता से जुड़े रहना है. एकता के नाम पर चुनावी गठजोड़ होते हैं, तभी तो चुनाव के बाद क्या हश्र होता है, देखा जाता रहा है. इमरजेंसी के बाद 1977 से शुरू हुई विपक्षी एकता की कवायद कई कई बार हुई, लेकिन कभी भी स्थायी नहीं रही. सत्ता पाने या सत्ता बचाने के लिए किये गए इन गठजोड़ों को जनता ने कभी स्थायी समर्थन नहीं दिया.
आज गठजोड़ की जरुरत हो सकती है, लेकिन ऐसे गठजोड़ ईमानदारी से हो, तब ही उनकी सार्थकता साबित हो पाएगी. बात किसी से छिपी भी नहीं है कि गठजोड़ करने वाली अधिकतर पार्टियों का प्रभाव सीमित है और इनकी प्रायोरिटी सिर्फ और सिर्फ अपने वर्चस्व को बचाये रखने की है. आदर्श स्थिति होती है यदि पोलिटिकल पार्टियों में कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत एकता हो और चुनाव से पहले नेता भी तय हो. नजीरें तो हैं ही चुनाव पूर्व के गठबंधन भी परिणाम आने के बाद टूट जाते हैं.
एक गठजोड़ का दल दूसरे गठजोड़ में चला जाता है और जनता ठगी सी महसूस करती है. लोकतंत्र के लिए खतरा सिद्धांतविहीन राजनीति की यही प्रवृत्ति है,और सत्ताधारी बीजेपी ने संभावित खतरे को भांप लिया है. बचे समय में वह अब ऐसे कदम उठा रही हैं, निर्णय ले रही हैं कि जनता का दिल और मन जीत सके. पिछले दिनों ही सरकार ने सहारा पीड़ित तक़रीबन तीन करोड़ लोगों का वोट सुनिश्चित कर लिया है उनकी जमा राशि की वापसी का रास्ता खोलकर और ये कदम कुछ ऐसा ही है कि ना हींग लगे ना फिटकरी, रंग आये चोखा.
निकट भविष्य में यूनिफार्म सिविल कोड को भी लागू कर ही देगी, राम मंदिर का उद्घाटन भी हो ही जाएगा. और तो और, I.N .D .I .A . के लिए INDIA (इंडिया) के विमर्श को औपनिवेशिक मानसिकता करार देते हुए धराशायी करने की कूवत भी है उसमें - 'उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।' यानी समुद्र के उत्तर में (हिमालय के) दक्षिण में जो वर्ष (भूमि) है, उसका नाम भारत है. यहां की प्रजा को भारतीय प्रजा कहते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.