दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक ऐसा फैसला किया है, जिसने एक पुराने कानून को पलट कर रख दिया है. ये कानून जुड़ा है भिखारियों से. 'बॉम्बे भीख रोकथाम कानून' के तहत अभी तक राजधानी दिल्ली में भीख मांगना अपराध था, लेकिन अब दिल्ली हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया है. यानी अब दिल्ली में भीख मांग रहे किसी भी व्यक्ति को पुलिस जेल में नहीं डाल सकती है. अधिकतर राज्यों में ये कानून लागू है. अब सोचने की बात ये है कि एक कोर्ट को भीख मांगने में अपराध जैसा कुछ नहीं दिखता, लेकिन देश के अधिकतर राज्यों में ये कानून कैसे लागू हो गया? क्या भीख मांगने का कोई ऐसा वाकया सामने आया था जो अपराध से जुड़ा था या फिर लोग जानबूझ कर भीख मांगते हैं? चलिए जानते हैं इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट का तर्क और साथ ही जानते हैं देश भर के भिखारियों के बारे में.
ये है दिल्ली हाईकोर्ट का तर्क
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले के पीछे तर्क दिया है कि कोई अपनी खुशी से भीख नहीं मांगता, बल्कि मजबूरी में भीख मांगता है, क्योंकि उनके पास जीवित रहने का ये आखिरी तरीका है. कोर्ट का कहना है कि दिल्ली सरकार सभी को रोजगार, खाना या बुनियादी सुविधाएं नहीं दे सकी है, ऐसे में भीख मांगना अपराध कैसे हो गया? कोर्ट का मानना है कि इसे अपराध कहना मौलिक अधिकारों का हनन करना है. यहां आपको ये जानकर हैरानी हो सकती है कि देश के अधिकतर राज्यों में भीख मांगना एक अपराध होने के बावजूद हर राज्य में भिखारी हैं. बहुत से भिखारी तो भीख मांगने को इतना सहज महसूस करते हैं कि अपराध होने के बावजूद वह इसे छोड़ते नहीं हैं.
देश में कितने भिखारी?
कुछ महीने पहले ही लोकसभा में सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत ने इस बात की जानकारी दी कि देश...
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक ऐसा फैसला किया है, जिसने एक पुराने कानून को पलट कर रख दिया है. ये कानून जुड़ा है भिखारियों से. 'बॉम्बे भीख रोकथाम कानून' के तहत अभी तक राजधानी दिल्ली में भीख मांगना अपराध था, लेकिन अब दिल्ली हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया है. यानी अब दिल्ली में भीख मांग रहे किसी भी व्यक्ति को पुलिस जेल में नहीं डाल सकती है. अधिकतर राज्यों में ये कानून लागू है. अब सोचने की बात ये है कि एक कोर्ट को भीख मांगने में अपराध जैसा कुछ नहीं दिखता, लेकिन देश के अधिकतर राज्यों में ये कानून कैसे लागू हो गया? क्या भीख मांगने का कोई ऐसा वाकया सामने आया था जो अपराध से जुड़ा था या फिर लोग जानबूझ कर भीख मांगते हैं? चलिए जानते हैं इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट का तर्क और साथ ही जानते हैं देश भर के भिखारियों के बारे में.
ये है दिल्ली हाईकोर्ट का तर्क
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले के पीछे तर्क दिया है कि कोई अपनी खुशी से भीख नहीं मांगता, बल्कि मजबूरी में भीख मांगता है, क्योंकि उनके पास जीवित रहने का ये आखिरी तरीका है. कोर्ट का कहना है कि दिल्ली सरकार सभी को रोजगार, खाना या बुनियादी सुविधाएं नहीं दे सकी है, ऐसे में भीख मांगना अपराध कैसे हो गया? कोर्ट का मानना है कि इसे अपराध कहना मौलिक अधिकारों का हनन करना है. यहां आपको ये जानकर हैरानी हो सकती है कि देश के अधिकतर राज्यों में भीख मांगना एक अपराध होने के बावजूद हर राज्य में भिखारी हैं. बहुत से भिखारी तो भीख मांगने को इतना सहज महसूस करते हैं कि अपराध होने के बावजूद वह इसे छोड़ते नहीं हैं.
देश में कितने भिखारी?
कुछ महीने पहले ही लोकसभा में सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत ने इस बात की जानकारी दी कि देश में कितने भिखारी हैं. 2011 की जनगणना के मुताबित देश में कुल 4,13,670 भिखारी हैं, जिसमें 2,21,673 पुरुष हैं, जबकि 1,91,997 महिलाएं हैं. सबसे अधिक भिखारी पश्चिम बंगाल में हैं, जिनकी संख्या 81,244 है. वहीं दूसरी ओर लक्षद्वीप में सबसे कम भिखारी हैं. थावर चंद के लिखित जवाब के अनुसार दिल्ली में कुल 2187 भिखारी हैं.
कुल 20 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखा गया है, लेकिन यहां सोचने वाली बात है कि अगर राज्यों ने इसे अपराध माना है तो क्या वहां भीख मांगना बंद हो गया है? क्या इन राज्यों की सरकारों ने भीख मांगने वालों के लिए कोई व्यवस्था की है? इन का जवाब है 'नहीं'. ना तो भीख मांगना रुका है ना ही सरकार ने भिखारियों के लिए कोई इंतजाम किए.
भीख मांगने के नाम पर रैकेट
ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें ये देखा गया है कि भीख मांगने के नाम पर लोग रैकेट भी चलाते हैं. इनमें छोटे बच्चों को जबरन भीख मांगने पर मजबूर किया जाता है. इस तरह के रैकेट पर वाकई सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है. साथ ही ये भी ध्यान देने की जरूरत है कि जो भिखारी भीख मांग रहा है वो वाकई उसकी मजबूरी ही है या फिर उसने इसे ही अपना रोजगार बना लिया है. जी हां, आपने सही पढ़ा है, बहुत से ऐसे भिखारी पकड़े जा चुके हैं हैं, जो बस नाम के भिखारी थे. जब इनके पास से पैसे बरामद हुए तो लोगों की आंखें फटी की फटी रह गईं.
लाखों कमाने वाले भिखारी !
पिछले साल चीन के एक भिखारी की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब चर्चा बटोर रही थी. ये भिखारी हर महीने सिर्फ भीष मांग के ही करीब 1 लाख रुपए कमाता था. उसकी पैसों के ढेर के साथ तस्वीर ने लोगों को हैरान कर दिया था. भीख मांग-मांग कर ही उसने अपने लिए एक शानदार घर भी बना लिया. कई बार तो वह पैसे गिनने के लिए स्थानीय कर्मचारियों को टिप तक देता था. ये मामला भले ही चीन का है, लेकिन भारत में भी ऐसे कई अमीर भिखारी पड़े हैं.
भारत में भी हैं अमीर भिखारी
भारत जैन- मुंबई के परेल में रहने वाला 50 वर्षीय ये भिखारी करीब 70 लाख के दो अपार्टमेंट का मालिक है, उसने एक जूस की दुकान किराए पर दी है, जिससे हर महीने 10,000 रुपए कमाता है. हर महीने वह सिर्फ भीख मांग कर ही करीब 60,000 रुपए कमाता है.
सर्वतिया देवी- पटना के अशोक सिनेमा के पीछे भीख मांगने वाली इस महिला के बारे में इकोनॉमिक टाइम्स ने पता लगाया था. पता चला था कि ये महिला 36,000 रुपए का तो अपना इंश्योरेंस प्रीमियम देती है.
लक्ष्मी दास- लक्ष्मी ने 1964 में कोलकाता में भीख मांगना शुरू किया था, जब वह 16 साल की थी. उसने अपनी पूरी जिंदगी भीख मांगने में गुजार दी और अब 50 साल बाद उसका एक बैंक खाता भी है, जिसमें काफी भारी मात्रा में पैसे जमा हैं.
ये तो बस वो चंद उदारण हैं, जिन पर किसी न किसी तरह से नजर पड़ गई तो ये मामले सामने आ गए. न जाते ऐसे और कितने भिखारी होंगे, जिन्होंने भीख मांगने को अपना पेशा बना रखा है और लाखों कमा रहे हैं. दिल्ली हाईकोर्ट अगर इन भिखारियों के बारे में देखे तो शायद वो अपना फैसला भी बदल दे. और ऐसा हो भी क्यों नहीं, भीख मांगने का मतलब हम-आप यही समझते हैं कि सामने वाले बहुत ही मजबूर है, लेकिन कई लोग मजबूर नहीं होते बल्कि इसे अपना पेशा बना लेते हैं. मेरे हिसाब से भीख मांगने को अपराध ही रहने देना चाहिए था, बल्कि उन मजबूर-लाचार लोगों के लिए नौकरी की व्यवस्था करनी चाहिए थी. हालांकि, ये आदर्शवादी बातें सरकार को वोट नहीं दिला सकती हैं, इसलिए इन पर कभी अमल नहीं होगा.
ये भी पढ़ें-
जब पुलिस श्रद्धालु दिखने लगे तो उद्दंड कावड़िये डंडा चलाएंगे ही
जो निराश होकर हार मान लेते हैं, ये अरबपति बच्चा उनके लिए प्रेरणा का स्रोत है !
कोई अपनी सुहागरात का वीडियोशूट कैसे करवा सकता है!!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.