भाविना पटेल (Bhavina Patel के नाम की चर्चा हर तरफ हो रही है. लोग जानना चाह रहे हैं कि कौन है यह खिलाड़ी जिसने बिना हो हल्ला मचाए देश के लिए सिल्वर मेडल जीत लिया. इसके पहले ना तो हमने इनका इतना नाम इतना सुना था ना ही शायद कभी फोटो देखी थी. आखिर यह महिला कौन है जो आज नारीशक्ति बनकर महिलाओं को हिम्मत दे रही है.
कौन है यह महिला, जिसने पोलियो के बाद व्हीलचेयर को ही अपनी अपनी ताकत बना ली और वह कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं है. हम तो अभी भी ओलंपिक की यादों में जी रहे थे इधर भाविना ने Tokyo Paralympics में सिल्वर मेडल जीतकर कमाल ही कर दिया.
असल में अभी तक हमारे सिर से टोक्यो ओलंपिक का हैंगओवर उतरा नहीं है. कभी गोल्ड मेडल जीते हुए खिलाड़ियों की चर्चा तो कभी हारे हुए खिलाड़ियों के भविष्य की बातें. कभी गोल्ड जीतने की खुशी तो कभी किसी खेल में हारने का मलाल. ओलंपिक के इन बातों की चर्चा ने अभी तक हमारा पीछा नहीं छोड़ा है. हमारे लिए ओलंपिक इतना महत्वपूर्ण है कि बाकी खेलों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता.
हम तो अभी भी ओलंपिक के बारे में सोचते हैं लेकिन ये महिला कौन है जो हमारा ध्यान टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics) पर ले आई. हम बात कर रहे हैं भाविना पटेल की जो ना तो कहीं लाइमलाइट में रहीं, ना कभी इनकी इनती चर्चा हई जितनी बाकी खिलाड़ियों की होती हैं.
हम तो इधर ओलंपिक के जीत-हार में ही अब तक फंसे थे उधर भाविना ने टोक्यो पैरालंपिक 2021 में सिल्वर मेडल जीतर इतिहास रच दिया. आपको टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics)...
भाविना पटेल (Bhavina Patel के नाम की चर्चा हर तरफ हो रही है. लोग जानना चाह रहे हैं कि कौन है यह खिलाड़ी जिसने बिना हो हल्ला मचाए देश के लिए सिल्वर मेडल जीत लिया. इसके पहले ना तो हमने इनका इतना नाम इतना सुना था ना ही शायद कभी फोटो देखी थी. आखिर यह महिला कौन है जो आज नारीशक्ति बनकर महिलाओं को हिम्मत दे रही है.
कौन है यह महिला, जिसने पोलियो के बाद व्हीलचेयर को ही अपनी अपनी ताकत बना ली और वह कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं है. हम तो अभी भी ओलंपिक की यादों में जी रहे थे इधर भाविना ने Tokyo Paralympics में सिल्वर मेडल जीतकर कमाल ही कर दिया.
असल में अभी तक हमारे सिर से टोक्यो ओलंपिक का हैंगओवर उतरा नहीं है. कभी गोल्ड मेडल जीते हुए खिलाड़ियों की चर्चा तो कभी हारे हुए खिलाड़ियों के भविष्य की बातें. कभी गोल्ड जीतने की खुशी तो कभी किसी खेल में हारने का मलाल. ओलंपिक के इन बातों की चर्चा ने अभी तक हमारा पीछा नहीं छोड़ा है. हमारे लिए ओलंपिक इतना महत्वपूर्ण है कि बाकी खेलों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता.
हम तो अभी भी ओलंपिक के बारे में सोचते हैं लेकिन ये महिला कौन है जो हमारा ध्यान टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics) पर ले आई. हम बात कर रहे हैं भाविना पटेल की जो ना तो कहीं लाइमलाइट में रहीं, ना कभी इनकी इनती चर्चा हई जितनी बाकी खिलाड़ियों की होती हैं.
हम तो इधर ओलंपिक के जीत-हार में ही अब तक फंसे थे उधर भाविना ने टोक्यो पैरालंपिक 2021 में सिल्वर मेडल जीतर इतिहास रच दिया. आपको टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics) खेलों में महिला एकल वर्ग 4 टेबल टेनिस स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीतने वाली खिलाड़ी के बारे में बताते हैं.
असल में अगर किसी को सीखना है कि संघर्ष को जीत में कैसे तब्दील किया जाता है तो उसे भाविना की कहानी जरूर जाननी चाहिए. इनकी पूरी जिंदगी ही एक प्रेरणा है. सोचिए अगर पता चले कि आपको अपनी पूरी जिंदगी व्हील चेयर पर बीतानी है तो??? शायद आप सहम उठेंगे, क्योंकि इसके आगे आपको कोई रास्ता नजर नहीं आता, कई लोग तो खुद को ऐसे हालात में सोच भी नहीं सकते. भगवान ना करें कि आपको कभी भी यह दिन देखना पड़े, लेकिन भाविना ने तो इसी व्हील चेयर को अपनी ताकत बना ली जिसकी हम कल्पना भी नहीं करना चाहते.
असल में भाविना को टोक्यो पैरालंपिक के फाइनल मुकाबले में चीनी खिलाड़ी झाउ यिंग के हाथों 11-7, 11- 5, 11-6 से हार का सामना करना पड़ा और इस तरह वे गोल्ड मेडल से चूंक गईं लेकिन उन्होंने सिल्वर मेडल पहले ही अपने नाम कर लिया था.
चलिए अब हम आपको इस खिलाड़ी के जिंदगी के बारे में बताते हैं कि क्यों ये हमारी प्रेरणा हैं. भाविना, गुजरात के मेहसाणा जिले के वडनगर के एक छोटे से गांव की रहने वाली है. जब वे एक साल की थीं तभी उन्हे पोलियो हो गया. भाविना के साधारण परिवार से हैं, उनके पिता के पास उस वक्त इतने पैसे नहीं थे कि वे अपनी बेटी का इलाज करा पाते.
बड़ी मशक्कत के बाद भाविना जब चौथे ग्रेड में पहुंची तो पिता ने विशाखापट्टनम में सर्जरी करवाई लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ. रिहैब से समय भाविना ज्यादा ध्यान नहीं दे सकीं और उनकी हालत हमेशा के लिए ऐसी ही रह गई. ऑपरेशन के बाद की जाने वाली एक्सरसाइज में लापरवाही बरतने की वजह से ही भाविना का यह हाल हुआ था, अब उन्होंने लापरवाही शब्द को ही अपनी जिंदगी से हटाने का फैसला कर लिया.
आसमान छूने का ख्वाब देखने वाली भाविना को भले ही हमेशा के लिए व्हीलचेयर को अपनाना पड़ा लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दी. अब भाविना को इन्हीं संघर्षों के साथ जीना था. इन्होंने हार नहीं मानी और गांव में ही 12वीं की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद भाविना ने पत्राचार के माध्यम से स्नातक की डिग्री पूरी की.
पहले भाविना ने खुद को फिट रखने के लिए पहले शौक के तौर पर टेबिल टेनिस खेलना शुरु किया. इन्होंने टेबिल टेनिस को गंभीरता से लिया तब लिया जब साल 2014 में पिता दृष्टिहीन लोगों के लिए बनाए गए अहमदाबाद के एक संगठन में ले गए. यहीं से भाविना के टेबल टेनिस के करियर की शुरुआत हुई. इस संगठन ने भाविना की काफी मदद की.
हालांकि मुश्किलें कम नहीं थी इसलिए भाविना ने अपना खर्चा चलाने के लिए एक अस्पताल में नौकरी शुरु कर दी. पैसे कम थे तो कम बजट में कमरा चॉल में लेना पड़ा. यह टेबल टेनिस ही था जिसके लिए भाविना को कॉकरोच और कीड़ों से भरे अहमदाबाद की एक झोपड़पट्टी में भी रहना पड़ा. यह टेबल टेनिस ही था जिसके लिए वे कई सालों तक चार ऑटो और बस बदलकर अपने गांव से 30 किलोमीटर दूर जाती रहीं.
इस बीच एक कॉमन फ्रेंड के जरिए भाविना की मुलाकात निकुल से हुई. निकुल के अनुसार, जब उन्होंने ने देखा कि 90 प्रतिशत दिव्यांग लड़की के हौसले इतने बुलंद हैं, तो मिलने का फैसला किया. दोनों ने शादी कर ली. निकुल शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ हैं. उनके घरवाले इस शादी के खिलाफ थे और 6 महीने तक वे नाराज रहे. वहीं अब निकुल के घरवाले उनसे ज्यादा प्यार भाविना से करते हैं.
असल में निकुल अपनी पत्नी के एस्कार्ट बनकर टोक्यो आए हैं. निकुल ने बताया कि जब पता चला कि पदक पक्का हो गया है तो भाविना के खुशी के आंसू निकल पड़े. वे तिरंगे से लिपटकर ऐसे रो रही थीं मानो सालों की तपस्या सफल हो गई.
सच में यह भाविना की मेहनत का ही तो फल है, तिरंगे का नाम बढ़ाने वाली भाविना को अपने सारी मेहनत दिख रही होगी...अपना संघर्ष दिख रहा होगा. उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर यह साबित कर दिया कि जिंदगी जीने का नाम है, संघर्षों ने डरकर हार मानने का नहीं.
इनकी सच्ची कहानी ने महिलाओं को हौसला दिया है. इन्होंने टोक्यो पैरालंपिक में सिल्वर मेडल जीतने के अलावा पहले भी कई सारे पदक अपने नाम किए हैं. वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने इस जीत के लिए भाविना पटेल को बधाई दी है और कहा है कि इनकी कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणादायक है...सच में भाविना के हौसले को हमारा सलाम है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.